संचार साथी ऐप विवाद: सरकार का साइबर सुरक्षा कदम या निगरानी का हथियार?

दूरसंचार विभाग (DoT) ने सोमवार को एक बड़ा आदेश जारी किया, जिसमें सभी स्मार्टफोन निर्माताओं को मार्च 2026 से भारत में बिकने वाले हर नए मोबाइल में ‘संचार साथी’ ऐप पहले से इंस्टॉल करना अनिवार्य कर दिया गया है। इस फैसले ने देश में बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है।


आदेश के मुताबिक, एप्पल, सैमसंग, शाओमी, वीवो और ओप्पो जैसी सभी कंपनियों को 90 दिन के भीतर इस नियम का पालन करना होगा और 120 दिन में रिपोर्ट सौंपनी होगी। सबसे विवादास्पद बात यह है कि यूजर्स इस ऐप को डिलीट या डिसेबल नहीं कर सकेंगे।

Sanchar Saathi App Controversy

सरकार का पक्ष: साइबर सुरक्षा जरूरी है

 

  1. फर्जी और नकली फोन से बचाव सरकार का कहना है कि यह कदम नागरिकों को नकली हैंडसेट खरीदने से बचाएगा। संचार मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि यह टेलीकॉम संसाधनों के दुरुपयोग की रिपोर्टिंग आसान बनाएगा।
  2. साइबर फ्रॉड पर रोक भारत में 2 अरब से ज्यादा मोबाइल यूजर्स हैं और डुप्लिकेट IMEI नंबर की वजह से साइबर क्राइम तेजी से बढ़ रहा है। अपराधी IMEI नंबर को क्लोन करके चोरी के फोन को ट्रैकिंग से बचाते हैं और स्कैम करते हैं।
  3. चोरी के फोन की रोकथाम सरकार के अनुसार, अब तक संचार साथी ऐप से 7 लाख से ज्यादा गुम या चोरी हुए मोबाइल वापस मिल चुके हैं। इसके अलावा 37 लाख चोरी के डिवाइस ब्लॉक हुए हैं और 3 करोड़ फर्जी मोबाइल कनेक्शन बंद किए गए हैं।
  4. CEIR सिस्टम से जुड़ाव सेंट्रल इक्विपमेंट आइडेंटिटी रजिस्टर (CEIR) एक सरकारी डेटाबेस है जो सभी मोबाइल डिवाइस के असली IMEI नंबर रिकॉर्ड करता है। ऐप इससे जुड़कर काम करेगा।\
  5. मंत्री की सफाई मंगलवार को केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने विवाद के बाद सफाई दी कि यह ऐप कंपल्सरी नहीं है और यूजर्स चाहें तो इसे डिलीट कर सकते हैं। हालांकि, यह स्पष्टीकरण सरकार के मूल आदेश से अलग लगता है।

 

संचार साथी ऐप क्या है?

 

2023 में लॉन्च हुआ यह ऐप एक टेलीकॉम सुरक्षा टूल है जिसमें कई फीचर्स हैं:

  • Know Your Mobile Connections: अपने नाम पर जारी सभी मोबाइल कनेक्शन चेक करें
  • IMEI ब्लॉकिंग: खोए या चोरी हुए फोन को सभी नेटवर्क पर ब्लॉक करें
  • IMEI वेरिफिकेशन: फोन की पहचान की जांच करें, खासकर सेकंड-हैंड मार्केट में
  • फ्रॉड रिपोर्टिंग: स्पैम कॉल और संदिग्ध संदेशों की शिकायत करें

 

अब तक

  • 5 करोड़ से ज्यादा डाउनलोड
  • 7 लाख से ज्यादा फोन एप के जरिए अब तक वापस मिले
  • 3 करोड़ से ज्यादा फर्जी कनेक्शन कट चुके एप की मदद से
  • 50,000 चोरी के फोन एप की मदद से अक्टूबर में रिकवर हुए
  • 37 लाख से ज्यादा चोरी के डिवाइस ब्लॉक किए गए।

 

विपक्ष का पक्ष: यह निगरानी है, सुरक्षा नहीं

विपक्षी दलों ने इस फैसले की तीखी आलोचना की है और इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है।

  • प्रियंका गांधी का आरोप: कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने कहा, “यह कदम लोगों की प्राइवेसी पर सीधा हमला है। यह एक जासूसी ऐप है। सरकार हर नागरिक की निगरानी करना चाहती है। साइबर धोखाधड़ी की रिपोर्टिंग के लिए सिस्टम जरूरी है, लेकिन सरकार का ताजा आदेश लोगों की निजी जिंदगी में अनावश्यक दखल जैसा है।”
  • शशि थरूर का तर्क: कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा, “संचार साथी ऐप उपयोगी हो सकता है, लेकिन इसे स्वैच्छिक होना चाहिए। जिसे जरूरत हो, वह खुद इसे डाउनलोड कर सके। किसी भी चीज को लोकतंत्र में जबरन लागू करना चिंता की बात है।”
  • केसी वेणुगोपाल की चेतावनी: कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने कहा, “यह आम लोगों की प्राइवेसी पर सीधा हमला है। मदद के नाम पर BJP लोगों की निजी जानकारी तक पहुंच बनाना चाहती है। भारत में हमने पेगासस जैसे मामले देखे हैं। अब यह ऐप लगाकर देश के लोगों की निगरानी करने की कोशिश की जा रही है।”
  • रेणुका चौधरी का संवैधानिक मुद्दा: कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ने संसद में स्थगन नोटिस देते हुए कहा, “प्राइवेसी का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। संचार साथी ऐप लोगों की आजादी और प्राइवेसी पर सीधा हमला है।”
  • CPI-M का आरोप: CPI-M सांसद जॉन ब्रिटास ने कहा, “मोबाइल में इस ऐप को डालना लोगों की प्राइवेसी का सीधा उल्लंघन है और सुप्रीम कोर्ट के 2017 के पुट्टास्वामी फैसले के खिलाफ है। यह ऐप हटाया भी नहीं जा सकता, यानी 120 करोड़ मोबाइल फोनों में इसे अनिवार्य किया जा रहा है।”
  • राहुल गांधी का रुख: लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा कि वह सदन में बहस के दौरान इस पर बोलेंगे।

 

मुख्य विवादास्पद मुद्दे

  1. प्राइवेसी की चिंता: गूगल प्ले स्टोर की जानकारी के अनुसार, ऐप कॉल लॉग, SMS, कैमरा, फोटो, वीडियो, डिवाइस और नेटवर्क स्टेट तक एक्सेस मांग सकता है। सरकार ने स्पष्ट नहीं किया है कि सिस्टम-लेवल ऐप के रूप में कौन सी परमिशन अनिवार्य होंगी।
  2. यूजर कंट्रोल का अभाव: ऐप को डिलीट या डिसेबल नहीं किया जा सकता, जो यूजर्स के अपने डिवाइस पर नियंत्रण को सीमित करता है। यह भारत में पहली बार है जब सरकार ने डिवाइस स्तर पर कोई सिस्टम ऐप अनिवार्य किया है।
  3. चीन और रूस से तुलना: सोशल मीडिया पर यूजर्स ने इस कदम की तुलना चीन और रूस से की है, जहां सरकारी निगरानी के लिए प्री-इंस्टॉल्ड ऐप का इस्तेमाल होता है।
  4. SIM-बाइंडिंग के साथ जोड़: इससे कुछ दिन पहले DoT ने WhatsApp और अन्य मैसेजिंग प्लेटफॉर्म्स पर SIM-बाइंडिंग अनिवार्य करने का निर्देश दिया था। दोनों कदम मिलकर एक केंद्रीकृत, पहचान-आधारित टेलीकॉम व्यवस्था की ओर इशारा करते हैं।
  5. अनुत्तरित सवाल
  • क्या ऐप अपने आप डिवाइस का IMEI पढ़ेगा?
  • क्या यूजर्स परमिशन रद्द कर सकेंगे?
  • क्या भविष्य में ऐप को डिसेबल करने की अनुमति होगी?
  • एकत्रित डेटा कैसे स्टोर और शेयर किया जाएगा?

 

ऐप्पल के लिए खास चुनौती

इंडस्ट्री सोर्सेज के अनुसार, पहले से बातचीत न होने से कंपनियां परेशान हैं। खासकर एप्पल के लिए यह बड़ी चुनौती है क्योंकि कंपनी की इंटरनल पॉलिसी किसी भी सरकारी या थर्ड-पार्टी ऐप को फोन की बिक्री से पहले प्री-इंस्टॉल करने की अनुमति नहीं देती।

पहले भी एप्पल का एंटी-स्पैम ऐप को लेकर टेलीकॉम रेगुलेटर से टकराव हुआ था। एक्सपर्ट्स का मानना है कि एप्पल सरकार से बातचीत कर सकती है या यूजर्स को वॉलंटरी प्रॉम्प्ट देने का सुझाव दे सकती है।

 

यूजर्स के लिए क्या मायने रखता है?

फायदे:

  • चोरी या खोए फोन को IMEI से तुरंत ब्लॉक कर सकेंगे
  • फ्रॉड कॉल रिपोर्ट करना आसान होगा
  • अपने नाम पर फर्जी कनेक्शन की पहचान संभव
  • सेकंड-हैंड फोन खरीदते समय IMEI वेरिफिकेशन

 

नुकसान:

  • प्राइवेसी पर सवाल
  • ऐप डिलीट न कर पाने से यूजर कंट्रोल कम
  • भविष्य में और फीचर्स जुड़ सकते हैं जिन पर यूजर का कोई नियंत्रण नहीं
  • स्टेट सर्विलांस की आशंका

 

निष्कर्ष:

यह विवाद साइबर सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन का सवाल उठाता है। सरकार का तर्क है कि बढ़ते साइबर क्राइम को रोकने के लिए यह कदम जरूरी है, जबकि विपक्ष और प्राइवेसी ग्रुप्स इसे राज्य द्वारा निगरानी का औजार मानते हैं।

 

मंत्री की सफाई के बावजूद, मूल आदेश में ऐप को डिलीट या डिसेबल न करने की बात साफ तौर पर लिखी है। DoT ने अभी तक डेटा कलेक्शन, स्टोरेज और परमिशन मॉडल के बारे में स्पष्ट दिशानिर्देश जारी नहीं किए हैं।

 

अगले 90 दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इन चिंताओं को कैसे दूर करती है और क्या विपक्ष के दबाव में कोई बदलाव आता है। फिलहाल यह साफ है कि यह मामला केवल एक ऐप तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत के डिजिटल भविष्य की दिशा तय करने वाला एक महत्वपूर्ण मोड़ है।