सऊदी अरब का रेगिस्तान दुर्लभ शीतकालीन बर्फ की चादर से ढक गया

हाल ही में, एक दुर्लभ और भारी हिमपात ने सऊदी अरब के कुछ हिस्सों को एक चमकदार सफेद शीतकालीन परिदृश्य में बदल दिया। यह असाधारण घटना तीन दशकों में पहली बार देखी गई है।

Saudi Arabia desert covered in rare winter snow

सऊदी अरब के रेगिस्तान में एक असाधारण मौसमीय घटना

 

  • 18 दिसंबर 2025 को सऊदी अरब के उत्तरी हिस्सों में मौसम ने सभी को चौंका दिया। आम तौर पर गर्म और शुष्क रहने वाले रेगिस्तानी इलाकों में बर्फ की सफेद चादर दिखाई दी। यह दृश्य अपने आप में दुर्लभ था और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया।
  • इस असामान्य बर्फबारी का असर तबुक, हाइल और उत्तरी रेगिस्तानी मैदानों में स्पष्ट रूप से देखा गया। इसके अलावा सऊदी अरब–यूएई सीमा के पास भी बर्फ गिरने की खबरें आईं। वहां आमतौर पर सर्दियों में भी तापमान अधिक रहता है, इसलिए बर्फबारी ने लोगों को हैरान कर दिया।
  • सबसे उल्लेखनीय दृश्य तबुक क्षेत्र के जबल अल-लौज पहाड़ पर देखने को मिला। यह पर्वत लगभग 2,580 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां इतनी अधिक बर्फ गिरी कि स्थानीय लोगों ने इसे यूरोपीय पहाड़ी इलाकों जैसा बताया। रेगिस्तान के बीच ऐसा नज़ारा बेहद असामान्य माना गया।
  • हाइल क्षेत्र में भी बर्फ जमा होने की खबर सामने आई। रिपोर्टों के अनुसार, यहां लगभग 80 वर्षों बाद ऐसी बर्फबारी दर्ज की गई। इसके अलावा अल-घाट, क़सीम और रियाद के उत्तर के पठारी क्षेत्रों में भी हल्की से मध्यम बर्फ या बर्फीली परिस्थितियाँ बनी रहीं।
  • मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, इस ठंडी प्रणाली के कारण ऊंचाई वाले इलाकों में तापमान -4 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया। इतनी कम तापमान की स्थिति सऊदी अरब के लिए असाधारण मानी जाती है और यह घटना देश के मौसम इतिहास में एक दुर्लभ उदाहरण बन गई।

 

बर्फबारी के पीछे मौसम विज्ञान के प्रमुख कारण

 

  • ठंडी हवाओं का असामान्य प्रवेश: उत्तरी सऊदी अरब में हुई दुर्लभ बर्फबारी का सबसे बड़ा कारण साइबेरिया से आई अत्यंत ठंडी हवाएँ रहीं। ये हवाएँ सामान्य सर्दियों की तुलना में कहीं अधिक ठंड लेकर उत्तरी अक्षांशों से दक्षिण की ओर बढ़ीं। इनके प्रभाव से तापमान अचानक और तेजी से नीचे गिर गया। ऐसे इलाकों में, जहां आम तौर पर ठंड सीमित रहती है, यह गिरावट असाधारण थी। तापमान के इस बदलाव ने बर्फ बनने की आवश्यक परिस्थितियाँ तैयार कर दीं, जो रेगिस्तानी क्षेत्रों में सामान्य रूप से नहीं बन पातीं।
  • वायुमंडलीय नमी की भूमिका: दिसंबर 2025 के दौरान अरब प्रायद्वीप की ओर हवाओं के साथ पर्याप्त नमी भी पहुंची। यह नमी एक सक्रिय मौसम प्रणाली से जुड़ी थी, जिसने उत्तरी सऊदी अरब के ऊपर घने बादलों का निर्माण किया। सामान्य स्थिति में ऐसी नमी वर्षा के रूप में गिरती है। लेकिन जब ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तापमान शून्य से नीचे चला गया, तब यही नमी पानी की बूंदों के बजाय बर्फ के कणों में बदल गई। इस प्रक्रिया ने बारिश के स्थान पर बर्फबारी को जन्म दिया।
  • गहरा निम्न दबाव तंत्र: इस मौसम घटना के पीछे एक और महत्वपूर्ण तत्व मध्य पूर्व में फैला गहरा निम्न दबाव क्षेत्र था। दिसंबर के मध्य में सक्रिय इस प्रणाली ने आसपास के इलाकों से नमी को अपनी ओर खींचा। साथ ही इसने ठंडी हवाओं को क्षेत्र में स्थिर रहने का अवसर दिया। जब ठंडी हवा और नमी एक साथ मिलती हैं, तो ऊंचाई के अनुसार मौसम का स्वरूप बदल जाता है। इसी कारण कई स्थानों पर बर्फ और पाले जैसी स्थितियाँ बनीं।

 

अरब प्रायद्वीप में बर्फबारी की ऐतिहासिक घटनाएँ

 

  • अरब प्रायद्वीप के इतिहास में 1943 का वर्ष विशेष रूप से उल्लेखनीय माना जाता है। इसी वर्ष उत्तरी सऊदी अरब के तबूक क्षेत्र में बर्फ गिरने की प्रामाणिक रिपोर्ट दर्ज हुई। स्थानीय विवरणों के अनुसार जमीन पर जमी बर्फ की ऊँचाई लगभग एक मीटर तक पहुंच गई थी। सामान्य रूप से शुष्क और गर्म रहने वाले इस रेगिस्तानी इलाके में ऐसा दृश्य लोगों के लिए पूरी तरह नया था। 
  • करीब दो दशक बाद 1965 में एक और असाधारण मौसम घटना सामने आई। उत्तरी और मध्य सऊदी अरब के कुछ हिस्सों में बर्फबारी हुई। विशेष रूप से अल-उक़लान ज़िले में बर्फ लगातार सात दिनों तक गिरती रही। इस दौरान भारी बारिश और तीखी ठंड ने सामान्य जीवन को प्रभावित किया। 
  • 14 नवंबर 1992 को बर्फबारी ने एक बार फिर लोगों को चौंका दिया। इस बार बर्फ तबूक से हक़्ल तक फैले सड़क मार्ग पर गिरी। लंबी दूरी तक फैला यह इलाका पूरी तरह सफेद नजर आया। स्थानीय निवासियों ने इसे पहले कभी न देखी गई घटना बताया। इस बर्फबारी की खास बात इसका विस्तृत क्षेत्र था, जिसने यात्रा और परिवहन को भी प्रभावित किया।
  • नवंबर 2016 में उत्तरी और मध्य सऊदी अरब में हल्की बर्फबारी दर्ज की गई। इस दौरान तापमान शून्य से नीचे चला गया, जो उस मौसम की पहली बड़ी ठंड मानी गई। इसी अवधि में अरब क्षेत्र के अन्य हिस्सों में भी बर्फ दिखाई दी। संयुक्त अरब अमीरात के जेबेल जैस पर्वत पर भी इक्कीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों में कई बार बर्फ गिरी। 2009, 2017 और 2020 में वहां दर्ज हुई बर्फबारी ने यह संकेत दिया कि ऊंचाई वाले इलाके कभी-कभी ठंडे मौसम का अनुभव कर सकते हैं।

 

रेगिस्तानी क्षेत्रों में बर्फबारी का जलवायु महत्व

 

  • बढ़ती जलवायु अस्थिरता का स्पष्ट संकेत: रेगिस्तानी इलाकों में असामान्य रूप से बर्फ गिरना आज की बदलती जलवायु का संकेत है। आधुनिक जलवायु विज्ञान यह स्पष्ट करता है कि वैश्विक ऊष्मीकरण का अर्थ केवल तापमान बढ़ना नहीं है। इसका प्रभाव मौसम के व्यवहार में असंतुलन के रूप में भी दिखाई देता है। 2023 में जारी IPCC की छठी आकलन रिपोर्ट के अनुसार, धरती के गर्म होने से वायुमंडलीय परिसंचरण की दिशा और गति बदल रही है। इसी बदलाव के कारण कुछ क्षेत्रों में अचानक ठंडे दौर और असामान्य मौसम घटनाएँ अधिक देखने को मिल रही हैं।
  • तेजी से गर्म होता आर्कटिक और कमजोर जेट स्ट्रीम: जलवायु परिवर्तन का एक अहम पहलू है आर्कटिक क्षेत्र का तेज़ी से गर्म होना। वैज्ञानिक अध्ययनों ने 2022 और 2024 में यह पुष्टि की कि आर्कटिक औसत वैश्विक दर से लगभग चार गुना तेज़ गर्म हो रहा है। इस प्रक्रिया से पोलर जेट स्ट्रीम कमजोर पड़ती है। सामान्य स्थिति में यह जेट स्ट्रीम ठंडी हवाओं को ऊँचे अक्षांशों तक सीमित रखती है। जब यह कमजोर और लहरदार हो जाती है, तो ठंडी आर्कटिक हवा दक्षिण की ओर खिसकने लगती है। इसी कारण पश्चिम एशिया जैसे क्षेत्रों में असामान्य ठंड और बर्फबारी की स्थिति बनती है।
  • वायुमंडल में बढ़ती नमी की भूमिका: गर्म होता वातावरण अधिक नमी धारण करने में सक्षम होता है। लंबे समय से स्थापित जलवायु सिद्धांत बताते हैं कि हर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर हवा में लगभग 7 प्रतिशत अधिक जलवाष्प समा सकता है। औद्योगिक युग के अंत से अब तक पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। इस अतिरिक्त नमी के कारण वर्षा की तीव्रता बढ़ जाती है। जब तापमान पर्याप्त रूप से गिर जाता है, तो यही नमी बारिश के बजाय बर्फ के रूप में गिरती है।
  • क्षेत्रीय जलवायु स्वरूप में बदलाव: मध्य पूर्व से जुड़े जलवायु आँकड़े यह दर्शाते हैं कि 2000 के बाद से चरम मौसम घटनाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। इनमें अत्यधिक वर्षा, तीव्र गर्मी की लहरें और अचानक ठंडे दौर शामिल हैं। रेगिस्तानी क्षेत्रों में बर्फबारी इसी व्यापक बदलाव का हिस्सा है। 2020 के बाद प्रकाशित क्षेत्रीय जलवायु मॉडल यह संकेत देते हैं कि भविष्य में समान रूप से गर्म मौसम के बजाय अधिक अस्थिरता देखने को मिलेगी। यह विरोधाभास इस बात को दर्शाता है कि वैश्विक जलवायु प्रणाली गहरे दबाव में है।