केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 की समयसीमा की घोषणा कर दी गई है। चुनाव की अधिसूचना 7 अगस्त 2025 (गुरुवार) को जारी होगी। उम्मीदवारों के लिए नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 21 अगस्त 2025 (गुरुवार) तय की गई है, जिसके बाद 22 अगस्त 2025 (शुक्रवार) को नामांकन पत्रों की जांच होगी। नाम वापसी की अंतिम तिथि 25 अगस्त 2025 (सोमवार) निर्धारित की गई है।
मतदान 9 सितंबर 2025 (मंगलवार) को सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक संपन्न होगा। इसी दिन मतगणना भी की जाएगी और परिणाम की घोषणा हो सकती है।

धनखड़ का इस्तीफा और उपराष्ट्रपति पद रिक्त
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 22 जुलाई को मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा स्वीकार कर लिया था। 74 वर्षीय धनखड़ का कार्यकाल 10 अगस्त 2027 तक था, लेकिन इस्तीफे के बाद यह पद रिक्त हो गया, जिससे चुनाव की आवश्यकता पड़ी। आइए उपराष्ट्रपति के चुनाव और कार्यकाल के बारे में जान लेते है-
उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया: कौन डालता है वोट और कैसे होता है मतदान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 66 के अनुसार, उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के सदस्यों से मिलकर बने निर्वाचक मंडल (इलेक्टोरल कॉलेज) द्वारा किया जाता है। इस प्रक्रिया में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation System) और एकल संक्रमणीय मत पद्धति (Single Transferable Vote System) का पालन किया जाता है। निर्वाचक मंडल में लोकसभा और राज्यसभा के सभी निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं, साथ ही राज्यसभा के राष्ट्रपति द्वारा नामित 12 सदस्य भी इसमें भाग लेते हैं। क्योंकि सभी मतदाता सांसद होते हैं, इसलिए हर सांसद के वोट का मूल्य समान रूप से ‘1’ होता है।
उपराष्ट्रपति चुनाव की शुरुआती प्रक्रिया
उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया की शुरुआत निर्वाचक मंडल की सूची तैयार करने से होती है। इस सूची में लोकसभा और राज्यसभा के सभी निर्वाचित व राष्ट्रपति द्वारा नामित सदस्य शामिल होते हैं। राज्यसभा में कुल 233 निर्वाचित और 12 नामांकित सदस्य होते हैं, जबकि लोकसभा में 543 निर्वाचित सांसद होते हैं। इस प्रकार कुल निर्वाचक मंडल में सामान्यतः 788 सांसद होते हैं। हालांकि वर्तमान में राज्यसभा की 5 और लोकसभा की 1 सीट रिक्त होने के कारण कुल संख्या घटकर 782 हो गई है। इसका मतलब है कि उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में जीत हासिल करने के लिए उम्मीदवार को कम से कम 391 सांसदों (यानि कुल संख्या का 50%) का समर्थन प्राप्त होना आवश्यक होगा।
उम्मीदवार की योग्यता के लिए प्रस्तावकों और समर्थकों की अनिवार्यता
उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकन भरने वाले किसी भी उम्मीदवार को 20 सांसदों द्वारा प्रस्तावित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही, अलग से 20 अन्य सांसदों का समर्थन भी आवश्यक है। यानी कुल 40 सांसदों की प्राथमिक सहमति (20 प्रस्तावक और 20 अनुमोदक) के बिना किसी भी प्रत्याशी का नामांकन वैध नहीं माना जाएगा।
मतदान की विधि और नियम
उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान पोस्टल-बैलट प्रणाली से होता है। सांसदों को मतपत्र पर सभी प्रत्याशियों के सामने उनकी पसंद के अनुसार वरीयता क्रम में अंक दर्ज करने होते हैं। यह अंक भारतीय अंकों, रोमन अंकों या किसी मान्यता प्राप्त भारतीय भाषा में अंकित किए जा सकते हैं, परंतु शब्दों में अंक लिखना मान्य नहीं होता। पहली वरीयता देना अनिवार्य होता है, जबकि दूसरी और तीसरी वरीयता वैकल्पिक होती हैं।
मतदान के लिए चुनाव आयोग विशेष स्याही वाली कलम उपलब्ध कराता है, जो केवल मतदान केंद्र पर ही दी जाती है। यदि कोई मतदाता इस कलम के स्थान पर अपनी कलम का उपयोग करता है, तो उसका वोट अमान्य घोषित कर दिया जाता है। मतदान पूरी तरह गोपनीय होता है और कोई भी सदस्य अपना मतपत्र किसी और को नहीं दिखा सकता। वोट डालने के बाद मतपत्र को विधिवत मोड़ना अनिवार्य है, अन्यथा वोट रद्द किया जा सकता है।
राजनीतिक दल अपने सांसदों को किसी विशेष प्रत्याशी को वोट देने के लिए ‘व्हिप’ जारी नहीं कर सकते। इसके साथ ही, यदि किसी प्रकार की रिश्वत, दबाव या अनुचित प्रभाव डाला जाता है (IPC की धारा 171B और 171C के अंतर्गत), तो चुनाव परिणाम सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द भी किया जा सकता है। मतदान की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उसी दिन चुनाव परिणामों की घोषणा कर दी जाती है।
उपराष्ट्रपति पद के लिए जरूरी योग्यताएं :
भारतीय संविधान में उपराष्ट्रपति पद के लिए कुछ स्पष्ट योग्यताएं निर्धारित की गई हैं, जिन्हें पूरा किए बिना कोई भी व्यक्ति इस पद के लिए उम्मीदवार नहीं बन सकता। सबसे पहली शर्त यह है कि
- उम्मीदवार भारत का नागरिक होना चाहिए।
- इसके साथ ही, उसकी उम्र कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए।
- 35 वर्ष से कम उम्र का कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति पद के लिए अयोग्य माना जाएगा।
इसके अलावा, उम्मीदवार को राज्यसभा सदस्य बनने की सभी आवश्यक योग्यताएं पूरी करनी होती हैं। इसका अर्थ है कि वह उन सभी शर्तों पर खरा उतरता हो जो राज्यसभा चुनाव लड़ने के लिए जरूरी मानी जाती हैं। एक और अहम शर्त यह है कि उम्मीदवार किसी लाभ के पद पर न हो (यानी वह केंद्र या राज्य सरकार के अधीन कोई सरकारी नौकरी या ऐसा पद न संभाल रहा हो जिससे उसे आर्थिक लाभ हो)
उपराष्ट्रपति का कार्यकाल
भारत के उपराष्ट्रपति का कार्यकाल उनके पदभार ग्रहण करने की तिथि से पाँच वर्षों का होता है। हालांकि, वे पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने से पहले भी, यदि चाहें तो राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंप सकते हैं। उपराष्ट्रपति के पद को रिक्त मानने की परिस्थितियाँ स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं, यदि वे अपना कार्यकाल पूरा कर लें, इस्तीफा दे दें, किसी कारणवश मृत्यु हो जाए, उनका चुनाव निरस्त कर दिया जाए या उन्हें पद से हटा दिया जाए, तो यह पद रिक्त हो जाता है।
उपराष्ट्रपति की शक्तियाँ और कार्य:
- भारत के उपराष्ट्रपति की भूमिका द्वैतीय प्रकृति की होती है। एक ओर वे राज्यसभा के पदेन सभापति के रूप में कार्य करते हैं, तो दूसरी ओर आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्राध्यक्ष के रूप में भी कार्य करते हैं।
- राज्यसभा के सभापति के रूप में, उपराष्ट्रपति की शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ लोकसभा अध्यक्ष के समान होती हैं। उन्हें राज्यसभा की कार्यवाही को निष्पक्ष और प्रभावी ढंग से संचालित करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। इस संदर्भ में उनकी भूमिका अमेरिकी उपराष्ट्रपति से मिलती-जुलती है, जो वहाँ की सीनेट (उच्च सदन) के सभापति भी होते हैं।
- यदि राष्ट्रपति किसी कारणवश पद पर नहीं रहते, जैसे त्यागपत्र, हटाए जाने, मृत्यु या किसी अन्य कारणवश पद रिक्त हो जाना, तो उपराष्ट्रपति अस्थायी रूप से राष्ट्रपति का कार्यभार संभालते हैं। हालांकि, वह केवल अधिकतम छह महीने तक ही राष्ट्रपति पद का दायित्व निभा सकते हैं, जिसके भीतर नए राष्ट्रपति का निर्वाचन अनिवार्य होता है।
- इसके अतिरिक्त, जब राष्ट्रपति अनुपस्थित हों, अस्वस्थ हों या अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हों, तो उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उनके कार्यों को संभालते हैं।
क्या उपराष्ट्रपति पर महाभियोग चलाया जा सकता है?
राष्ट्रपति के विपरीत, भारत के उपराष्ट्रपति पर औपचारिक रूप से महाभियोग की प्रक्रिया लागू नहीं होती। संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो उपराष्ट्रपति को ‘संविधान के उल्लंघन’ के आधार पर हटाने की अनुमति देता हो। उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए राज्यसभा में बहुमत से एक प्रस्ताव पारित किया जाता है, जिसे इसके बाद लोकसभा की भी सहमति प्राप्त होनी चाहिए। यह प्रक्रिया औपचारिक महाभियोग नहीं मानी जाती और न ही इसमें किसी विशेष आधार—जैसे ‘संविधान का उल्लंघन’ का उल्लेख किया गया है।