अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने H-1B वीजा पर अपना रुख बदलते हुए अब इस कार्यक्रम का समर्थन किया है। फॉक्स न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में ट्रम्प ने कहा कि अमेरिका को अपनी तकनीकी और औद्योगिक बढ़त बनाए रखने के लिए विदेशी कुशल श्रमिकों की जरूरत है। उन्होंने स्वीकार किया कि देश में ऐसी कई जटिल नौकरियां हैं जिनके लिए पर्याप्त प्रशिक्षित अमेरिकी कामगार उपलब्ध नहीं हैं।
ट्रम्प ने पूछे गए सवालों का क्या जवाब दिया ?
जब ट्रम्प से पूछा गया कि क्या उनकी सरकार H-1B वीजा पर सख्ती नहीं करेगी, तो उन्होंने कहा कि अमेरिका को दुनिया भर से प्रतिभाशाली लोगों को लाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “हमें देश में प्रतिभा लानी होगी।”
जब उनसे पूछा गया कि क्या अमेरिका में खुद पर्याप्त प्रतिभा नहीं है, तो ट्रम्प ने साफ कहा, “नहीं, हमारे पास नहीं है… कुछ खास तरह की प्रतिभाएं हमारे पास नहीं हैं, और लोगों को उन्हें सीखना होगा।”
साक्षात्कार के दौरान किया ICE छापे का भी ज़िक्र:
साक्षात्कार के दौरान ट्रम्प ने जॉर्जिया में हुंडई के कारखाने पर हुए ICE (आव्रजन और सीमा शुल्क प्रवर्तन) छापे का भी ज़िक्र किया। उन्होंने बताया कि यह छापा अवैध प्रवासियों को पकड़ने के लिए मारा गया था, लेकिन वहाँ काम करने वाले ज्यादातर दक्षिण कोरियाई लोग थे जो सालों से बैटरियां बना रहे थे। ट्रम्प ने कहा कि बैटरी बनाना बहुत मुश्किल और खतरनाक काम है, इसलिए ऐसे कुशल लोगों की जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि शुरू में करीब 500-600 कोरियाई कर्मचारी थे जो दूसरों को यह काम सिखा रहे थे, लेकिन छापे के बाद उन्हें देश छोड़ने को कहा गया।
ट्रम्प ने कहा कि वह इस छापे के खिलाफ हैं। इस कार्रवाई में 300 से ज्यादा कोरियाई मजदूरों को हिरासत में लिया गया था, जिसके बाद दक्षिण कोरिया की सरकार ने मानवाधिकार उल्लंघन की जांच शुरू कर दी।
इस बयान के मायने:
ट्रम्प का यह नरम रुख इसलिए अहम है क्योंकि उनकी सरकार अब तक H-1B वीजा पर सख्त कार्रवाई करती रही है। इस वीजा का इस्तेमाल खास तौर पर टेक कंपनियां विदेशी कर्मचारियों को अमेरिका में काम पर रखने के लिए करती हैं। भारतीय IT प्रोफेशनल और डॉक्टर इस वीजा के सबसे बड़े लाभार्थियों में हैं, इसलिए ट्रम्प का यह बयान भारत के लिए भी राहत भरा माना जा रहा है।
इस टिप्पणी के बाद IT शेयरों में देखी गई तेज़ी:
ट्रम्प की इस टिप्पणी के बाद बुधवार को भारत की IT कंपनियों के शेयरों में तेजी देखी गई। निफ्टी IT इंडेक्स में एम्फैसिस, LTI Mindtree और परसिस्टेंट सिस्टम्स जैसे मिडकैप शेयर 1.5% से 2.5% तक बढ़े, जबकि इंफोसिस, TCS और टेक महिंद्रा जैसे बड़े शेयरों में करीब 1% की बढ़त रही। निफ्टी IT इंडेक्स लगातार तीसरे दिन बढ़ा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत-अमेरिका के बीच संभावित व्यापार समझौते और भारतीय निर्यात पर टैरिफ में कमी की उम्मीदों ने भी बाजार को सहारा दिया। हालांकि सालाना आधार पर यह इंडेक्स अब भी करीब 17% नीचे है, और केवल LTI Mindtree ने सकारात्मक रिटर्न दिया है।
H -1B वीज़ा कार्यक्रम क्या है?
H -1B वीज़ा एक अस्थायी वीज़ा है जो अमेरिकी कंपनियों को IT, इंजीनियरिंग और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में कुशल विदेशी पेशेवरों को नौकरी पर रखने की अनुमति देता है। 1990 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम तब मददगार साबित होता है जब अमेरिका में योग्य कामगारों की कमी होती है। यह वीज़ा अधिकतम छह साल तक वैध रहता है, जिसके बाद धारक को या तो ग्रीन कार्ड लेना होता है या एक साल के लिए देश छोड़ना पड़ता है। हर साल 65,000 नए H -1B वीज़ा जारी किए जाते हैं और अमेरिकी मास्टर डिग्री या उससे अधिक योग्यता वालों के लिए 20,000 अतिरिक्त वीज़ा उपलब्ध रहते हैं।
भारतीय पेशेवर इस कार्यक्रम के सबसे बड़े लाभार्थी हैं, जिन्हें 2015 से हर साल 70% से ज़्यादा वीज़ा मिलते हैं, जबकि चीन लगभग 12-13% हिस्सेदारी के साथ दूसरे स्थान पर है। विश्वविद्यालयों, गैर-लाभकारी संगठनों और सरकारी शोध संस्थानों को इस सीमा से छूट दी गई है।
भारतीयों के लिए फायदे:
- IT और टेक्नोलॉजी में बढ़त: 70% से ज़्यादा भारतीय पेशेवर H-1B वीज़ा पर IT और कंप्यूटर से जुड़ी नौकरियों में काम करते हैं, जिससे वे अमेरिकी टेक उद्योग के लिए बहुत जरूरी बन गए हैं।
- स्वास्थ्य क्षेत्र में योगदान: अमेरिका में लगभग 22% विदेशी डॉक्टर भारतीय हैं, जो अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
- शिक्षा और करियर अवसर: कई भारतीय छात्र पढ़ाई के बाद इसी वीज़ा से अमेरिका में काम करते हैं, जिससे उन्हें अंतरराष्ट्रीय अनुभव और बेहतर करियर अवसर मिलते हैं।
- भारत के IT उद्योग को लाभ: अमेरिकी कंपनियों में काम करने वाले भारतीय प्रोफेशनल्स से भारतीय IT सेक्टर की आमदनी और प्रतिष्ठा दोनों बढ़ती हैं।
सितम्बर में H-1B वीज़ा शुल्क में वृद्धि:
सितंबर 2025 में डोनाल्ड ट्रम्प ने H-1B वीज़ा कार्यक्रम में बदलाव की घोषणा की। इसके तहत, 21 सितंबर 2025 के बाद जो भी नई H-1B वीज़ा याचिकाएँ दायर की जाएंगी, उनके साथ 1,00,000 अमेरिकी डॉलर का अतिरिक्त शुल्क देना होगा। यह नियम केवल नई याचिकाओं या H-1B लॉटरी में भाग लेने वालों पर लागू होगा। जो लोग पहले से H-1B वीज़ा पर काम कर रहे हैं या जिन्होंने 21 सितंबर से पहले आवेदन किया है, उन पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। यह कदम ट्रम्प प्रशासन के वीज़ा सुधार की दिशा में एक शुरुआती और बड़ा फैसला माना जा रहा है।
H-1B वीज़ा शुल्क में वृद्धि के पीछे का कारण:
- राजनीतिक दबाव: अमेरिका में आव्रजन (Immigration) एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है, जिससे “अमेरिका फर्स्ट” नीतियों को बढ़ावा मिला।
- राजकोषीय लक्ष्य: 1,00,000 डॉलर का अतिरिक्त शुल्क लगाकर सरकार लगभग 100 बिलियन डॉलर जुटाना चाहती है, जिसका उपयोग कर कटौती और कर्ज घटाने में किया जाएगा।
- श्रम संरक्षण: H-1B कर्मचारियों की औसत आय अमेरिकी औसत से कम होती है, जिससे स्थानीय वेतन पर दबाव पड़ता है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा: कुछ मामलों में वीज़ा का गलत इस्तेमाल और धन शोधन की घटनाओं ने चिंता बढ़ाई है।
- कौशल संतुलन: विदेशी STEM पेशेवरों की संख्या तेजी से बढ़ने से अमेरिकी नागरिकों के लिए नौकरियों के अवसर कम हो रहे हैं।
भारत पर H-1B वीज़ा शुल्क वृद्धि का असर:
नए शुल्क से भारतीय IT पेशेवरों के लिए अमेरिका में नौकरी के अवसर कम हो सकते हैं, खासकर शुरुआती और मध्यम स्तर के कर्मचारियों के लिए। मौजूदा वीज़ा धारकों को भी नौकरी की असुरक्षा का सामना करना पड़ सकता है। इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसी भारतीय कंपनियों की लागत बढ़ेगी, जिससे उनके अमेरिकी प्रोजेक्ट्स पर असर पड़ेगा।
नतीजतन, ये कंपनियां स्थानीय भर्ती, ऑफशोर काम और ऑटोमेशन पर ज़ोर दे सकती हैं। इससे भारत से भेजे जाने वाले धन (remittances) में कमी आ सकती है, जो रुपए पर दबाव बढ़ाएगी। इसके अलावा, यह कदम भारत-अमेरिका आर्थिक रिश्तों को भी कमजोर कर सकता है, जबकि अमेरिकी कंपनियों को कुशल तकनीकी कर्मचारियों की कमी का नुकसान झेलना पड़ सकता है।
निष्कर्ष:
ट्रम्प का यह बदला हुआ रुख संकेत देता है कि अमेरिका अपनी आर्थिक और तकनीकी प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए विदेशी कुशल प्रतिभाओं को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। फिलहाल H-1B वीज़ा की प्रक्रिया कठिन और सीमित बनी हुई है। फिर भी, राष्ट्रपति द्वारा विदेशी प्रतिभा की ज़रूरत को खुलकर स्वीकार करना यह दिखाता है कि भविष्य में इस कार्यक्रम में सुधार और नई संभावनाएं खुल सकती हैं।
