शेख हसीना को फांसी की सजा: बांग्लादेश ने भारत से की तत्काल प्रत्यर्पण की मांग, जानिए पूरी खबर..

बांग्लादेश की राजनीति में अभूतपूर्व मोड़ लाते हुए, अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने सोमवार (17 नवंबर) को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराध का दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई। 453 पन्नों के इस फैसले में न्यायाधिकरण ने माना कि 2024 के छात्र-नेतृत्व वाले विद्रोह के दौरान प्रदर्शनकारियों पर हुई घातक कार्रवाई को रोकने में हसीना विफल रहीं और उन्होंने बल प्रयोग की अनुमति दी। अदालत के भीतर पीड़ित परिवारों ने निर्णय का स्वागत किया, जबकि बाहर मौजूद भीड़ ने इसे देश के इतिहास का सबसे कठोर और महत्वपूर्ण फैसला बताया।

Sheikh Hasina sentenced to death

पूर्व प्रधानमंत्री हसीना के खिलाफ आरोप:

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल बांग्लादेश में हुए विरोध प्रदर्शनों में 46 दिनों में 1,400 से ज़्यादा लोग मारे गए और हज़ारों घायल हुए। रिपोर्ट का कहना है कि हसीना सरकार के अधिकारी, सुरक्षा एजेंसियां और सत्तारूढ़ दल से जुड़े लोग मिलकर व्यवस्थित मानवाधिकार उल्लंघन कर रहे थे।

 

हसीना पर खास तौर पर ये आरोप लगे:

  • भड़काऊ भाषण देना, जिससे हिंसा बढ़ी।
  • प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए घातक हथियारों से कार्रवाई का आदेश देना।
  • रंगपुर में छात्र अबू सईद की गोली मारकर हत्या।
  • ढाका के चंखरपुल में 6 निहत्थे प्रदर्शनकारियों की गोली मारकर हत्या।
  • अशुलिया में 6 लोगों को जिंदा जलाकर मार देना।

डेली स्टार के अनुसार, हसीना सभी आरोपों में दोषी पाई गईं। उन्हें सबसे गंभीर मामले यानि 5 अगस्त को चंखरपुल में 6 निहत्थे प्रदर्शनकारियों की हत्या में धारा 4 के तहत मौत की सजा सुनाई गई।

 

शेख हसीना के आलावा अन्य आरोपी:

ट्रिब्यूनल ने सिर्फ शेख हसीना ही नहीं, बल्कि दो और वरिष्ठ अधिकारियों को भी दोषी पाया:

  1. असदुज्जमान खान (पूर्व गृह मंत्री): अदालत ने उन्हें जुलाई 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान हुई हत्याओं में हसीना का मुख्य सहयोगी माना। उन्हें भी फांसी की सजा सुनाई गई। साथ ही, अदालत ने आदेश दिया कि हसीना और असदुज्जमान खान की संपत्ति जब्त की जाए।
  2. अब्दुल्ला अल-ममून (पूर्व पुलिस प्रमुख – IGP): इन्हें 5 साल की जेल की सजा सुनाई गई है जो पहले से हिरासत में हैं और सरकारी गवाह बन चुके हैं।

 

हसीना और असदुज्जमान पिछले 15 महीने से भारत में:

5 अगस्त 2024 के तख्तापलट के बाद शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान देश छोड़कर भारत आ गए थे। तब से दोनों करीब 15 महीनों से भारत में रह रहे हैं। अब बांग्लादेश के प्रधानमंत्री कार्यालय ने बयान जारी कर कहा है कि भारत और बांग्लादेश के बीच मौजूद प्रत्यर्पण संधि के अनुसार, भारत की जिम्मेदारी है कि वह हसीना को वापस बांग्लादेश के हवाले करे।

 

हसीना और यूनुस की क्या रही प्रतिक्रिया?

भारत में निर्वासन के दौरान जारी अपने बयान में हसीना ने कहा कि यह फैसला पहले से तय था। शेख हसीना ने फैसले को पूरी तरह खारिज करते हुए न्यायाधिकरण को “कंगारू अदालत” और “धांधली वाला न्यायाधिकरण” बताया। उन्होंने कहा कि यह अदालत उनके राजनीतिक विरोधियों के नियंत्रण में है, जो अपनी असफलताओं से ध्यान हटाने के लिए इस फैसले का उपयोग कर रहे हैं।

इसके विपरीत, नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार ने इस निर्णय को “ऐतिहासिक” बताया। यूनुस ने कहा कि कानून के सामने कोई भी बड़ा नहीं है, साथ ही जनता से शांति बनाए रखने की अपील की और चेतावनी दी कि किसी भी अव्यवस्था पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

 

भारत की प्रतिक्रिया:

शेख हसीना को मिली सजा पर भारत ने बेहद सावधानी से प्रतिक्रिया दी। विदेश मंत्रालय ने कहा कि उसने बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के फैसले पर “ध्यान दिया है”, और भारत एक करीबी पड़ोसी के तौर पर हमेशा बांग्लादेश के लोगों के हितों के लिए प्रतिबद्ध रहेगा जिसमें शांति, लोकतंत्र, समावेशिता और स्थिरता शामिल हैं। भारत ने यह भी कहा कि वह इन लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए सबसे रचनात्मक तरीके से सभी संबंधित पक्षों के साथ बातचीत जारी रखेगा।

हालाँकि, भारत ने एक बात पर चुप्पी साध ली; ढाका ने सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद हसीना के प्रत्यर्पण की मांग दोबारा उठाई, लेकिन भारत ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की।

 

पिछले वर्ष भी बांग्लादेश ने की थी प्रत्यर्पण की मांग:

दरअसल, यह स्थिति नई नहीं है। पिछले साल दिसंबर में जब ढाका ने पहली बार आधिकारिक रूप से हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की थी, तब भी भारत ने वही सतर्क रुख अपनाया था। अब जबकि हसीना को नाटकीय ढंग से मौत की सजा सुना दी गई है, तब भी भारत के रुख में कोई तेज बदलाव की उम्मीद नहीं है।

भारत के लिए फिलहाल यह मामला जल्दबाजी में कोई फैसला करने जैसा नहीं है, क्योंकि सजा के बावजूद दोनों देशों के संबंधों की बुनियादी स्थिति ज्यादा बदली नहीं है।

 

भारत–बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि:

भारत और बांग्लादेश ने 2013 में प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए थे, ताकि दोनों देशों की सीमाओं के पार छिपे भगोड़ों और उग्रवादियों पर कार्रवाई आसान हो सके। यह संधि प्रत्यर्पण का कानूनी ढांचा तो देती है, लेकिन हर मामले में प्रत्यर्पण करना अनिवार्य नहीं बनाती।

 

संधि के मुख्य बिंदु:

  • दोनों देश उन व्यक्तियों को प्रत्यर्पित कर सकते हैं जो आरोपित, दोषी, या वांछित हों।
  • अपराध ऐसा होना चाहिए जिसकी सजा दोनों देशों में कम से कम 1 साल हो यानी दोहरी आपराधिकता नियम लागू होता है।
  • हत्या, हिंसा, आतंकवाद जैसे अपराध इसमें शामिल हैं।
  • 2016 के संशोधन के बाद अब सिर्फ गिरफ्तारी वारंट काफी है; विस्तृत साक्ष्य देना ज़रूरी नहीं।

 

प्रत्यर्पण न करने के आधार:

  • यदि अपराध राजनीतिक प्रकृति का हो, तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है।
  • संधि कहती है कि यदि अनुरोधित व्यक्ति यह साबित कर दे कि आरोप न्याय के हित में सद्भावनापूर्वक नहीं लगाए गए, तो प्रत्यर्पण रोका जा सकता है।

 

हसीना को बांग्लादेश के हवाले करना कितना सही ?

भारत के लिए यह सवाल बेहद जटिल है। शेख हसीना पिछले डेढ़ दशक से भारत की सबसे भरोसेमंद साझेदारों में रही हैं; चाहे वह सुरक्षा सहयोग हो, सीमा प्रबंधन हो या कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों पर लगाम लगाना। ऐसे में, उन्हें अचानक से छोड़ देना भारत की दीर्घकालिक रणनीति के खिलाफ माना जा सकता है।

इसके अलावा, ढाका द्वारा पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने की कोशिशें भी भारत के लिए चिंता का विषय हैं। भारत जानता है कि अगर बांग्लादेश में भारत-विरोधी ताकतें मजबूत होती हैं, तो यह उसके पूर्वी पड़ोस में बड़ी अस्थिरता ला सकता है। इसलिए भारत के लिए मुद्दा सिर्फ हसीना का भविष्य नहीं है, बल्कि अवामी लीग की भूमिका, क्षेत्रीय स्थिरता और बांग्लादेश में स्वतंत्र व समावेशी चुनावों का सवाल भी है।

 

हसीना का समर्थन पूरी तरह छोड़ने पर तीन बड़े जोखिम हैं:

  1. अवामी लीग का कमजोर पड़ना: उनकी पार्टी पहले ही चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित है। भारत का समर्थन कम होने से उसका मनोबल और घट सकता है।
  2. कट्टरपंथी और भारत-विरोधी ताकतों का मजबूत होना: हसीना के जाने से उन समूहों को बढ़ावा मिल सकता है जो भारत-विरोधी हैं और बांग्लादेश की राजनीति में अधिक जगह चाहते हैं।
  3. नए अंतरिम सरकार पर भरोसे की कमी: मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने अभी तक बढ़ते कट्टरपंथ और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भारत की चिंताओं को दूर करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए हैं।

 

इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल के बारे में:

इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (ICT) की स्थापना शेख हसीना ने 2010 में की थी, हालांकि इसके लिए मूल कानून 1973 में ही बना लिया गया था। दशकों तक प्रक्रिया रुकी रही, लेकिन हसीना सरकार ने इसे सक्रिय कर 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान हुए युद्ध अपराधों, नरसंहार और अत्याचारों की जांच और सजा देने का काम शुरू करवाया।

लेकिन, अब इसी ट्रिब्यूनल ने हसीना को मानवता के खिलाफ अपराधों में दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई है। ट्रिब्यूनल का फैसला ऐसे समय आया है जब हसीना के तख्तापलट के बाद फरवरी 2026 में होने वाले पहले राष्ट्रीय चुनाव की तैयारियाँ शुरू होने वाली हैं।

 

बांग्लादेश–पाकिस्तान की बढ़ती करीबी:

हसीना के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश और पाकिस्तान, जो पहले कट्टर दुश्मन थे, अब एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं। पाकिस्तान मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहा है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान चाहता है कि बांग्लादेश को भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया जाए और इसी वजह से वह वहां कट्टरपंथ को बढ़ावा दे रहा है। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि बांग्लादेश को नहीं भूलना चाहिए कि 1971 में पाकिस्तान से उसे आज़ादी भारत ने दिलाई थी।

 

निष्कर्ष:

शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराधों में दोषी ठहराने और मौत की सजा सुनाने का फैसला बांग्लादेश की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत देता है। 2026 के चुनावों से पहले यह मामला देश की आंतरिक राजनीति, उसके लोकतांत्रिक भविष्य और क्षेत्रीय संबंधों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। अब बांग्लादेश के सामने असली चुनौती न्याय, स्थिरता और लोकतंत्र के बीच संतुलन बनाए रखने की है।