भारत निर्वाचन आयोग ने सोमवार को घोषणा की कि देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का दूसरा चरण 28 अक्टूबर से शुरू होगा। इस अभियान के तहत 51 करोड़ से अधिक मतदाताओं के नामों की जांच की जाएगी ताकि मतदाता सूचियों को सटीक और त्रुटिरहित बनाया जा सके।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बताया कि मसौदा मतदाता सूची 9 दिसंबर को जारी होगी, जबकि अंतिम सूची 7 फरवरी 2026 को प्रकाशित की जाएगी। यह 2002-2005 के बाद पहली बार है जब पूरे देश में इस स्तर का व्यापक पुनरीक्षण किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य डुप्लिकेट, स्थानांतरित या अयोग्य प्रविष्टियों को हटाना और प्रत्येक योग्य नागरिक को मतदान सूची में सही ढंग से शामिल करना है।
चुनाव आयोग की वर्त्तमान तैयारी:
चुनाव आयोग ने बताया है कि SIR(विशेष गहन पुनरीक्षण) के दूसरे चरण में कुछ राज्यों को फिलहाल शामिल नहीं किया जाएगा। महाराष्ट्र जैसे राज्यों को इसलिए छोड़ा गया है क्योंकि वहां जनवरी 2026 तक स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं। इसी तरह, बर्फ से ढके जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और लद्दाख को भी इस चरण में शामिल नहीं किया गया है।
वर्त्तमान में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, पुडुचेरी, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में SIR किया जायेगा। लेकिन असम में चल रही NRC प्रक्रिया और नागरिकता अधिनियम के अलग प्रावधानों के कारण बहिष्कृत किया गया है। आयोग ने कहा कि उसकी योजना पूरे देश में मतदाता सूचियों को सही और अद्यतन करने की है। पहले से तय राज्यों “तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल” में यह प्रक्रिया सबसे पहले शुरू की जाएगी, क्योंकि इन राज्यों में अगले साल चुनाव होने हैं।
चुनाव आयोग कैसे करेगा SIR?
चुनाव आयोग ने बताया है कि SIR के दौरान हर घर तक जाकर मतदाता सूची की जांच की जाएगी। इसके लिए बूथ लेवल अधिकारी (BLO) जिम्मेदार होंगे। BLO अपने साथ कम से कम 30 खाली फॉर्म 6 और घोषणा पत्र (अनुलग्नक IV) लेकर जाएंगे, ताकि जो भी नया व्यक्ति मतदाता सूची में नाम जोड़ना चाहता है, वह वहीं फॉर्म भर सके। आयोग ने इस प्रक्रिया की रूपरेखा तय करने के लिए राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEO) के साथ दो बैठकें भी की हैं।
आइये जानते है विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) क्या है?
मतदाता सूची एक ऐसी आधिकारिक सूची होती है जिसमें किसी निर्वाचन क्षेत्र के सभी पात्र और पंजीकृत मतदाताओं के नाम दर्ज होते हैं। इसका इस्तेमाल चुनावों में मतदाताओं की पहचान की पुष्टि करने और निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है।
यह सूची भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत बनाई जाती है। इस अधिनियम के अनुसार, केवल 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के भारतीय नागरिक, जो किसी क्षेत्र में स्थायी रूप से रहते हैं, उन्हें मतदाता सूची में शामिल किया जा सकता है। गैर-नागरिकों को इसमें शामिल नहीं किया जाता।
SIR की आवश्यकता क्यों है:
राजनीतिक दलों ने कई बार शिकायत की है कि मतदाता सूचियों में गलतियाँ और अशुद्धियाँ हैं, जैसे —
- लोग एक से ज़्यादा जगहों पर पंजीकृत हैं (बहु-पंजीकरण),
- कई मृत मतदाताओं के नाम अब भी सूची में हैं,
- कुछ गैर-नागरिकों के नाम गलती से जुड़ गए हैं,
- और कई योग्य मतदाताओं के नाम सूची में नहीं हैं।
इन्हीं समस्याओं को दूर करने के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की जरूरत महसूस की गई। 1951 से अब तक 8 बार SIR किया जा चुका है, और आखिरी बार यह 2002 से 2005 के बीच हुआ था। उसके बाद से केवल छोटे-छोटे सारांश संशोधन किए जाते रहे हैं।
SIR पिछले संशोधनों से अलग कैसे?
सामान्य सारांश संशोधन (SSR) में केवल मौजूदा मतदाता सूची में छोटे बदलाव किए जाते हैं, जबकि विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) में पूरी सूची को नए सिरे से तैयार किया जाता है, जिसमें घर-घर जाकर पहचान और पात्रता की जांच होती है।
भारत की आज़ादी के बाद यह नौवां बड़ा संशोधन है; पिछला 2002–2004 के बीच हुआ था। पहले के संशोधनों का उद्देश्य बढ़ते मतदाताओं, प्रवासन और रिकॉर्ड की सटीकता से जुड़ी चुनौतियों को दूर करना था। अब ध्यान दोहराव रोकने और विदेशी नागरिकों के नाम हटाने पर है। 1993 में शुरू हुआ मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) भी ऐसे गहन संशोधनों से जुड़ा था।
SIR के दौरान मान्य प्रमाण: SIR में पहचान और पात्रता साबित करने के लिए निम्न दस्तावेज स्वीकार होंगे-
- सरकारी कर्मचारी या पेंशनभोगी का पहचान पत्र/पेंशन आदेश
- 1 जुलाई 1987 से पहले जारी सरकारी पहचान पत्र या प्रमाणपत्र
- सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र।
- पासपोर्ट
- बोर्ड/विश्वविद्यालय का शैक्षणिक प्रमाणपत्र
- स्थायी निवास प्रमाण पत्र
- वन अधिकार प्रमाण पत्र
- OBC/SC /ST या सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी कोई भी जाति प्रमाण पत्र
- राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (जहाँ उपलब्ध हो)
- राज्य/स्थानीय प्राधिकारियों द्वारा तैयार किया गया परिवार रजिस्टर
- परिवार रजिस्टर या भूमि/मकान आवंटन प्रमाण
- आधार कार्ड (केवल पहचान के लिए)
SIR पर राजनीतिक विवाद शुरू:
SIR को लेकर राजनीतिक विवाद तेज हो गया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह बिहार की तरह राज्य चुनावों से पहले मतदाता सूची से नाम हटाने की साजिश कर रही है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा और योगेंद्र यादव ने भी SIR पर सवाल उठाते हुए पारदर्शिता की मांग की।
वहीं, उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री के.पी. मौर्य ने फर्जी वोटरों को हटाने के फैसले का समर्थन किया। तृणमूल कांग्रेस ने चेतावनी दी कि अगर किसी वैध मतदाता का नाम काटा गया तो लोकतांत्रिक विरोध होगा।
बिहार से शुरू हुआ था SIR:
इस साल जून में चुनाव आयोग ने बिहार में SIR की शुरुआत की थी। आयोग ने 30 सितंबर तक अंतिम मतदाता सूची जारी करने की समयसीमा तय की थी। इस प्रक्रिया के तहत लोगों ने अपने फॉर्म जमा किए और मतदाता सूची की जांच शुरू हुई। इस बार एक नया प्रावधान जोड़ा गया — नागरिकता प्रमाण पत्र का।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बताया कि SIR का मकसद अवैध प्रवासी मतदाताओं की पहचान करना, दोहरी वोटर ID वाले लोगों को चिन्हित करना, दूसरे राज्यों में स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं और मृत व्यक्तियों के नाम सूची से हटाना था। बिहार में अंतिम सूची जारी होने पर 7.42 करोड़ मतदाता दर्ज किए गए, जो पहले की तुलना में 42 लाख कम थे। आयोग ने बताया कि उचित जांच और सुनवाई के बाद इतने नाम हटाए गए।
विपक्ष के आरोपों के बाद मामला पंहुचा सुप्रीम कोर्ट:
विपक्षी दलों ने इस पूरी प्रक्रिया की कड़ी आलोचना की और इसे “वोट चोरी” की कोशिश बताया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया, जहां कई सुनवाई के बाद अदालत ने कुछ अहम निर्देश दिए। कोर्ट ने कहा कि जिन मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए हैं, वे आधार कार्ड को पहचान प्रमाण के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।
साथ ही, चुनाव आयोग को यह भी निर्देश दिया गया कि वह उन 65 लाख मतदाताओं की सूची सार्वजनिक करे जिनके नाम हटाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि पूरी प्रक्रिया को रद्द करने से मना कर दिया, लेकिन यह जरूर कहा कि आयोग को पारदर्शिता और समयबद्धता बनाए रखनी चाहिए। अदालत ने माना कि चुनाव आयोग को SIR करने का पूरा अधिकार है।
चुनाव आयोग के समक्ष संभावित कदम:
- तकनीक और पारदर्शिता: मतदाता पोर्टल के ज़रिए नागरिकों को अपनी जानकारी जांचने की सुविधा देना। पात्रता प्रमाण डिजिटल और आसान बनाना।
- फर्जी मतदान पर रोक: शुद्ध सूचियों से चुनावों की विश्वसनीयता और जनता का भरोसा बढ़ाना।
- जागरूकता अभियान: लोगों को समय पर दस्तावेज जमा करने के लिए प्रेरित करना।
- नियमित पुनरीक्षण: मतदाता सूची को अद्यतन रखने के लिए SIR को नियमित करना।
- कानूनी स्पष्टता: सुप्रीम कोर्ट से ECI की शक्तियों पर मार्गदर्शन लेना।
- धीरे-धीरे लागू करना: बिहार मॉडल अपनाकर राज्य-दर-राज्य प्रक्रिया शुरू करना।
निष्कर्ष:
विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का दूसरा चरण चुनावी पारदर्शिता और विश्वसनीयता बढ़ाने की दिशा में एक अहम कदम है। इसका उद्देश्य मतदाता सूचियों को सही और अद्यतन बनाकर हर पात्र नागरिक को मतदान का अधिकार सुनिश्चित करना है। यह पहल लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता का विश्वास मजबूत करती है, हालांकि आयोग के सामने मतदाता सूची की शुद्धता और नागरिक अधिकारों के संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती बनी रहेगी।
