हिमाचल प्रदेश में हिम तेंदुओं की संख्या चार साल में 62% बढ़ी: 83 हुआ कुल आँकड़ा, कुछ नई प्रजातियाँ भी पाई गई..

हिमाचल प्रदेश वन विभाग की वन्यजीव शाखा ने नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन (NCF), बेंगलुरु के साथ साझेदारी में हाल ही में राज्य में हिम तेंदुओं की आबादी का नया सर्वेक्षण पूरा किया है। इस सर्वेक्षण में पता चला है कि हिम तेंदुओं की संख्या 2021 के 51 से बढ़कर अब 83 हो गई है। यह राज्य में हिम तेंदुओं की बढ़ती संख्या का संकेत देता है और उनके संरक्षण के प्रयासों में सफलता को दर्शाता है। साथ ही यह संरक्षण प्रयासों में स्थानीय समुदाय की भागीदारी के महत्व को रेखांकित करता है.

 

गुरुवार को 74वें वन्य प्राणी सप्ताह के शुभारंभ पर PCCF अमिताभ गौतम ने स्नो लैपर्ड इन हिमाचल प्रदेश-2025 पुस्तिका का विमोचन किया, जिसमें बर्फानी तेंदुओं की संख्या बढ़ने का उल्लेख है।

Snow leopard numbers in Himachal Pradesh

सर्वेक्षण में और क्या पाया गया?

हिमाचल प्रदेश वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि राज्य में हिम तेंदुओं की आबादी का सर्वेक्षण उच्च और निम्न घनत्व वाले क्षेत्रों में किया गया। इस बड़े पैमाने पर किए गए कैमरा ट्रैपिंग सर्वेक्षण में कुल 44 अनोखे हिम तेंदुओं की पहचान हुई, जिन्हें कुल 262 बार देखा गया। इसके बाद के विश्लेषण से पता चला कि शावकों को छोड़कर राज्य में हिम तेंदुओं की कुल संख्या 83 है।

 

सर्वेक्षण में 26,000 वर्ग किमी क्षेत्र के छह प्रमुख हिम तेंदुओं के आवासों का अध्ययन किया गया। शोध के अनुसार, हिम तेंदुओं का घनत्व प्रति 100 वर्ग किमी में 0.16 से 0.53 के बीच है। सबसे अधिक घनत्व स्पीति और पिन घाटी के ट्रांस-हिमालयी क्षेत्रों में पाया गया, इसके बाद ऊपरी किन्नौर और ताबो में उच्च घनत्व दर्ज किया गया।

 

 

कुछ अन्य स्तनधारियों की भी खोज की गई:

सर्वेक्षण में हिम तेंदुओं के अलावा कुछ अन्य स्तनधारियों की भी खोज की गई। किन्नौर में पल्लास बिल्ली (ओटोकोलोबस मैनुल) को पहली बार आधिकारिक रूप से देखा गया, जबकि लाहौल में ऊनी उड़ने वाली गिलहरी (यूपेटोरस सिनेरियस) को फिर से पाया गया।

 

हिम तेंदुओं के साथ-साथ उसी क्षेत्र में रहने वाले अन्य स्तनधारियों का भी अध्ययन किया गया, ताकि उनके वितरण का अनुमान लगाया जा सके। प्रमुख शिकार प्रजातियों जैसे नीली भेड़ (स्यूडोइस नायाउर), हिमालयन आइबेक्स (कैप्रा सिबिरिका), और कस्तूरी मृग (मोस्कस ल्यूकोगैस्टर) के लिए विशेष वितरण मानचित्र बनाए गए।

 

इसके अलावा हिमालयन भेड़िया (कैनिस ल्यूपस), भूरा भालू (उर्सस आर्कटोस), सामान्य तेंदुआ (पैंथेरा पार्डस), लाल लोमड़ी (वल्पेस वल्पेस), स्टोन मार्टन (मार्टेस फोइना), माउंटेन वीज़ल (मस्टेला अल्टाइका), और पीले गले वाला मार्टन (मस्टेला फ्लेविगुला) जैसे अन्य स्तनधारियों के वितरण का भी विस्तृत अध्ययन किया गया।

 

स्पीति को UNESCO के मानव और जीवमंडल नेटवर्क में जोड़ा गया:

PCCF अमिताभ गौतम ने बताया कि स्पीति शीत मरुस्थलीय क्षेत्र को यूनेस्को के मानव और जैवमंडल (MAB) नेटवर्क में शामिल किया गया है। यह उसके पारिस्थितिक महत्व को वैश्विक स्तर पर मान्यता देता है। उन्होंने कहा कि यह हिमाचल प्रदेश के लिए गर्व की बात है और नाज़ुक पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा की हमारी ज़िम्मेदारी की याद दिलाता है।

 

इस सर्वेक्षण के क्या मायने है?

यह सर्वेक्षण हिमाचल प्रदेश की जैव विविधता को समझने और उसे संरक्षित करने में महत्वपूर्ण है। यह दिखाता है कि वैज्ञानिक अनुसंधान और क्षेत्रीय अध्ययन प्रभावी संरक्षण रणनीतियों बनाने में मदद कर सकते हैं।

अधिकारियों ने कहा कि हिम तेंदुओं की बढ़ती संख्या को बनाए रखने के लिए लगातार निगरानी, शिकार रोकने के उपाय और आवास संरक्षण जरूरी हैं। हिमाचल की सफलता दुनिया के अन्य हिमालयी क्षेत्रों के लिए उदाहरण है, यह बताती है कि सही योजना, समुदाय की भागीदारी और वैज्ञानिक अनुसंधान से वन्यजीव संरक्षण में सुधार संभव है। निरंतर प्रयासों से हिम तेंदुओं और अन्य दुर्लभ प्रजातियों की स्वस्थ आबादी बनी रहेगी और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र संतुलित रहेगा।

 

स्थानीय समुदायों का कितना सहयोग?

इस सफलता में स्थानीय समुदायों का बहुत बड़ा योगदान है। खासकर लाहौल-स्पीति के किब्बर गांव के युवा, स्पीति वन प्रभाग के 20 कर्मचारी और 15 स्थानीय लोग सर्वेक्षण में सक्रिय रहे। पहली बार स्वदेशी महिलाओं की टीम ने डेटा विश्लेषण में हिस्सा लिया, जिससे वन्यजीव संरक्षण के साथ महिला सशक्तिकरण का भी उदाहरण सामने आया।

 

पहले सर्वेक्षण में लगे थे तीन साल:

पहली बार इस सर्वेक्षण(वर्ष 2021) में तीन साल लगे थे, लेकिन दूसरे सर्वेक्षण को सिर्फ एक साल में पूरा कर लिया गया। इससे हिमाचल प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है जिसने राज्यव्यापी हिम तेंदुआ आंकलन पूरा किया। वन विभाग के अनुसार, आबादी में वृद्धि सिर्फ संख्या बढ़ने का संकेत नहीं है। इस बार हिम तेंदुए कम दूरी तक घूमते दिखे, जो बेहतर आवास और शिकार की बढ़ी उपलब्धता की वजह से हो सकता है।

 

वन्यजीव सप्ताह की गतिविधियाँ:

वन्यजीव सप्ताह 2025 मानव-पशु सह-अस्तित्व के विषय पर 2 से 8 अक्टूबर तक पूरे देश में मनाया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश में इस अवसर पर चित्रकला और निबंध प्रतियोगिताएँ, वाद-विवाद, फ़ोटोग्राफ़ी प्रतियोगिताएँ, लघु पदयात्राएँ और पक्षी-दर्शन कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इसमें शैक्षणिक संस्थान, महिला समूह, पंचायती राज निकाय और सरकारी विभाग भाग लेंगे।

कार्यक्रम में वरिष्ठ अधिकारियों ने हिम तेंदुओं की बढ़ती संख्या, नई प्रजातियों की खोज और स्पीति की यूनेस्को मान्यता के निष्कर्ष साझा किए। यह सप्ताह प्रगति और संरक्षण की अहमियत को उजागर करता है।

 

एशिया में 12 स्थानों पर पाए जाते हैं हिम तेंदुए:

हिम तेंदुए एशिया के 12 स्थानों पर पाए जाते हैं, जिनमें सबसे ज्यादा संख्या चीन में पाए जाते है। हालांकि वर्ल्ड वाइड फंड (WWF) के मुताबिक इनके 70 फीसदी आवासों पर अब तक शोध नहीं किया गया है।

वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट “स्टेटस ऑफ स्नो लेपर्ड इन इंडिया 2023” के अनुसार, भारत में कुल 718 हिम तेंदुओं के होने की पुष्टि हुई है। इनमें सबसे ज्यादा यानी 58% हिम तेंदुए लद्दाख में हैं, जहां उनकी संख्या 477 है। बाकी प्रदेशों में उत्तराखंड में 124, हिमाचल प्रदेश में 51 (अब 83 हो गए), अरुणाचल प्रदेश में 36, सिक्किम में 21, और जम्मू-कश्मीर में केवल 9 हिम तेंदुए पाए गए हैं।

 

भारत में राष्ट्रीय उद्यान:

भारत में कई राष्ट्रीय उद्यान हैं जो देश की जैव विविधता और प्राकृतिक धरोहर की रक्षा करते हैं। 2023 तक भारत में कुल 107 राष्ट्रीय उद्यान हैं, जो लगभग 44,403 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं। ये उद्यान हिमालय की पहाड़ियों से लेकर तटीय इलाकों तक फैले हुए हैं और हर क्षेत्र की अपनी खासियत है।

  • हेमिस राष्ट्रीय उद्यान (जम्मू और कश्मीर): भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान, जो हिम तेंदुओं की आबादी के लिए प्रसिद्ध है।
  • साउथ बटन द्वीप राष्ट्रीय उद्यान (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह): भारत का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान, जो अपनी प्रवाल भित्तियों और समुद्री जीवन के लिए जाना जाता है।
  • कच्छ का रण (गुजरात): भारत का सबसे बड़ा वन्यजीव अभयारण्य, भारतीय जंगली गधे और प्रवासी पक्षियों का घर।
  • बोर टाइगर रिजर्व (महाराष्ट्र): भारत का सबसे छोटा वन्यजीव अभयारण्य, बाघ संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण।

 

भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान:

  • जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान (उत्तराखंड): इसे पहले हैली राष्ट्रीय उद्यान कहा जाता था और इसे 1936 में बनाया गया था। यह प्रोजेक्ट टाइगर (1973) की शुरुआत का पहला स्थल भी है और यहां बंगाल टाइगर, हाथी, तेंदुए और कई पक्षी प्रजातियाँ मिलती हैं।

 

हिमाचल प्रदेश में राष्ट्रीय उद्यान:

  1. ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (कुल्लू जिला)
  2. पिन वैली राष्ट्रीय उद्यान(लाहौल और स्पीति जिला)
  3. सिम्बलबारा राष्ट्रीय उद्यान(सिरमौर जिला)

 

हिमाचल प्रदेश में वन्यजीव अभयारण्य: हिमाचल प्रदेश में 30 से अधिक वन्यजीव अभयारण्य हैं जो लुप्तप्राय जानवरों और उनके निवास स्थलों की रक्षा करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख अभयारण्य इस प्रकार हैं:

  1. चूड़धार वन्यजीव अभयारण्य
  • स्थान: सिरमौर जिला
  • मुख्य विशेषताएं: अल्पाइन घास के मैदान, कस्तूरी मृग और मोनाल तीतर।
  1. कालाटोप-खजियार वन्यजीव अभयारण्य
  • स्थान: चंबा जिला
  • मुख्य विशेषताएं: घने देवदार के जंगल, काला भालू और तीतर।
  1. रेणुका वन्यजीव अभयारण्य
  • स्थान: सिरमौर जिला
  • विशेष पहलू: पवित्र मानी जाने वाली रेणुका झील से घिरा हुआ।
  1. टुंडा वन्यजीव अभयारण्य
  • स्थान: चंबा जिला
  • मुख्य विशेषताएं: हिम तेंदुए और हिमालयी काले भालू का निवास स्थान।

 

हिमाचल प्रदेश में रामसर स्थल:

  1. पोंग डैम झील (कांगड़ा): ब्यास नदी पर, सर्दियों में प्रवासी पक्षियों का ठिकाना।
  2. चंद्रताल वेटलैंड (लाहौल-स्पीति): ऊँचाई पर, सुंदर और पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण।
  3. रेणुका वेटलैंड (सिरमौर): जैव विविधता से समृद्ध, रेणुका झील से जुड़ा।

 

आइये जानते है वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के बारे में:

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की सुरक्षा, उनके आवास का प्रबंधन और उनके व्यापार को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया कानून है।

इसने बाघ संरक्षण की नींव रखी, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य बनाए और राज्य सरकारों को अधिकार दिए। 2006 के संशोधन से राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) और व्यापक बाघ संरक्षण योजना शुरू हुई। यह कानून बाघ संरक्षण, वन संरक्षण और स्थानीय समुदायों की भलाई को जोड़ता है।

 

वन अधिकार मान्यता अधिनियम, 2006 क्या है?

वन अधिकार मान्यता अधिनियम, 2006 (FRA) समुदायों के पारंपरिक और प्रथागत वन अधिकारों को मान्यता देता है। यह ग्राम सभाओं को उनके क्षेत्र के वन संसाधनों और जैव विविधता का लोकतांत्रिक तरीके से प्रबंधन करने का अधिकार देता है।

 

निष्कर्ष:

हिमाचल प्रदेश में हिम तेंदुओं की बढ़ती संख्या दिखाती है कि सही योजना, वैज्ञानिक अध्ययन और समुदाय की भागीदारी से वन्यजीव संरक्षण संभव है। निरंतर प्रयासों से पारिस्थितिकी तंत्र संतुलित और स्थायी बना रहेगा।

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