झारखंड के प्रसिद्ध सारंडा वन, जो देश के सबसे हरे-भरे और प्राचीन साल वृक्षों के लिए जाना जाता हैं, को अब वन्यजीव अभयारण्य घोषित किए जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि वह 250 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अभयारण्य के रूप में अधिसूचित करने को तैयार है। यह निर्णय भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने 10 अक्टूबर को झारखंड सरकार को सारंडा में एक नए वन्यजीव अभयारण्य को अधिसूचित करने के आदेश के बाद आया।
आपको बता दे यह वही इलाका है जहां कभी अवैध खनन हुआ करता था, लेकिन अब इसे जैव विविधता से भरपूर संरक्षित क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाएगा।

याचिकाकर्ता ने क्या तर्क दिया था?
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि सारंडा का बड़ा हिस्सा पहले से ही संरक्षित क्षेत्र माना जाना चाहिए, क्योंकि अविभाजित बिहार सरकार ने 1968 में ही इस इलाके को “खेल अभयारण्य” घोषित कर दिया था। उन्होंने कहा कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अनुसार, अगर किसी राज्य ने 1972 से पहले किसी भी कानून के तहत किसी क्षेत्र को अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया है, तो उसे आज भी वैध माना जाएगा। इसलिए, याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया कि सरकार को इस क्षेत्र को आधिकारिक रूप से वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने का निर्देश दिया जाए।
NGT ने भी अभयारण्य घोषित करने का दिया था आदेश:
यही मांग पहले राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की पूर्वी क्षेत्र पीठ में भी की गई थी, जिसने जुलाई 2022 में सरकार को ऐसा करने का आदेश दिया था। लेकिन राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को अपने रिकॉर्ड में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे यह साबित हो सके कि सारंडा वन को कभी “खेल अभयारण्य” घोषित किया गया था। इसके बावजूद, NGT ने झारखंड सरकार से कहा कि वह इस क्षेत्र को अभयारण्य घोषित करने पर विचार करे, क्योंकि सारंडा देश के सबसे सुंदर और घने साल वनों का खजाना है।
लेकिन सरकार ने इसके बाद भी न तो कोई नया अभयारण्य घोषित किया और न ही कोई संरक्षण रिजर्व बनाया। इसी कारण बाद में इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई।
सुप्रीम कोर्ट ने NGT के निर्देशों को रिकॉर्ड में लिया:
20 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के निर्देशों को रिकॉर्ड में शामिल किया और झारखंड सरकार से कहा कि वह सारंडा क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने पर सकारात्मक कदम उठाए। इसके बाद नवंबर 2024 से सितंबर 2025 के बीच, मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने बार-बार राज्य सरकार से इस प्रक्रिया की प्रगति पर सवाल किए। अदालत ने दो मौकों पर “16 अप्रैल और 17 सितंबर को” झारखंड सरकार की आलोचना की कि वह जानबूझकर मामले को टाल रही है।
8 अक्टूबर को कपिल सिब्बल ने अदालत को आश्वासन दिया कि सरकार पीछे नहीं हट रही है। अदालत ने तब 314.68 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अभयारण्य घोषित करने की वचनबद्धता मांगी। 17 अक्टूबर को सरकार ने आदिवासियों के अधिकारों का हवाला देते हुए 25,000 हेक्टेयर क्षेत्र का प्रस्ताव दिया। लेकिन सुनवाई अगली तारीख तक टाल दी गई।
सेल की याचिका पर अदालत ने स्पष्ट किया कि अभयारण्य की घोषणा से वैध और चल रहे खनन पट्टों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
सेल और झारखंड सरकार ने व्यक्त की थी चिंता:
सारंडा वन को अभयारण्य बनाने पर झारखंड सरकार और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) दोनों ने कुछ चिंताएँ जताई थीं। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह इस कदम का समर्थन करती है, लेकिन आदिवासियों और वनवासियों के अधिकारों की रक्षा भी जरूरी है। सरकार का कहना है कि सारंडा क्षेत्र देश के कुल लौह अयस्क भंडार का लगभग 26% हिस्सा है, जिससे राज्य को बड़ी आर्थिक आय होती है।
7 अक्टूबर को दिए गए एक हलफनामे में सरकार ने बताया कि सारंडा पाँचवीं अनुसूची वाले क्षेत्र में आता है, जहाँ हो, मुंडा और अन्य आदिवासी समुदाय रहते हैं, जिनमें कुछ बहुत कमजोर जनजातियाँ भी शामिल हैं। सरकार का तर्क है कि अभयारण्य घोषित होने पर इन लोगों की रोजमर्रा की जीविका गतिविधियाँ अपराध मानी जा सकती हैं, जिससे उनके अधिकारों का हनन होगा।
हालांकि, न्याय मित्र के. परमेश्वर ने स्पष्ट किया कि अभयारण्य बनने से आदिवासियों या वनवासियों के किसी भी अधिकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अदालत ने भी यह दर्ज किया कि प्रस्तावित अभयारण्य क्षेत्र में इस समय कोई खनन कार्य नहीं हो रहा है, जैसा कि सारंडा वन प्रभाग के अधिकारी ने अपने हलफनामे में बताया है।
वित्त विभाग की चेतावनी:
वित्त विभाग ने कहा कि सारंडा क्षेत्र को अभयारण्य बनाने से राज्य का राजस्व और स्थानीय लोगों की आजीविका प्रभावित हो सकती है। इस कदम से खनन पट्टों से रॉयल्टी वसूलना मुश्किल हो सकता है और राज्य की वित्तीय स्थिति कमजोर पड़ सकती है। अधिकारियों ने बताया कि सारंडा एशिया के सबसे बड़े लौह अयस्क भंडारों में से एक है, जो टाटा स्टील, सेल और अन्य निजी कंपनियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
अभयारण्य क्या है ?
अभयारण्य का मतलब है ऐसा वन (अरण्य) जहाँ जानवर बिना किसी डर के सुरक्षित रह सकें। इसे सरकार या किसी अन्य संस्था द्वारा संरक्षित किया जाता है। अभयारण्य का मुख्य उद्देश्य जानवरों, पक्षियों और वनस्पतियों को बचाना, उनका विकास करना और शिक्षा तथा अनुसंधान में मदद करना होता है। भारत में केंद्र और राज्य सरकारों ने कई राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य स्थापित किए हैं।
भारत में वन्यजीव अभयारण्य:
भारत में वन्यजीव अभयारण्यों की स्थापना 1947 के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत हुई थी, जिसे 1972 के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम से और मजबूत किया गया। इस अधिनियम के तहत राज्य सरकारें पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों को आधिकारिक रूप से अभयारण्य घोषित कर सकती हैं।
आज भारत में लगभग 573 (मार्च 2025 तक) वन्यजीव अभयारण्य हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल करीब 123,762.56 वर्ग किलोमीटर है। इनमें से 53 बाघ अभयारण्य और 33 हाथी रिजर्व हैं। भारत का सबसे बड़ा वन्यजीव अभयारण्य कच्छ मरुस्थल वन्यजीव अभयारण्य है, जो लगभग 7,506 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है । वही अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सबसे अधिक वन्यजीव अभयारण्य (97) हैं।
सारंडा वन के बारे में:
सारंडा वन झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम और सरायकेला जिलों के पहाड़ी इलाके में फैला एक घना जंगल है। यह क्षेत्र पहले सरायकेला के शासक सिंहदेव परिवार का निजी शिकारगाह हुआ करता था। लगभग 820 वर्ग किलोमीटर में फैला यह वन अपने घने साल के पेड़ों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। स्थानीय भाषा में “सारंडा” या “सेरेंगडा” का मतलब होता है- “700 पहाड़ियाँ”।
सारंडा वन की विशेषताएँ:
सारंडा वन से कारो और कोइना जैसी बारहमासी नदियाँ बहती हैं, जो यहाँ की विविध वनस्पति और जीव-जंतुओं को जीवन देती हैं। साल (Shorea robusta) इस वन का सबसे महत्वपूर्ण वृक्ष है। साल गर्मियों में अपने पत्ते गिरा देता है, लेकिन वन का निचला हिस्सा आम, जामुन, कटहल और पियार जैसे सदाबहार पेड़ों से हरा-भरा रहता है। इसके अलावा महुआ, कुसुम, तिलई, हरिनहरा, गूलर और आसन भी यहाँ पाए जाते हैं।
इस क्षेत्र में जंगली हाथी, सांभर, चीतल और बाइसन पाए जाते हैं। बाघ कभी बहुतायत में नहीं थे, लेकिन तेंदुए आम हैं। सारंडा वन ओडिशा के क्योञ्जर जिले के हाथियों का भी महत्वपूर्ण आवास है।
सारंडा क्षेत्र में गुआ, चिरिया, किरीबुरु और नोआमुंडी जैसे लौह अयस्क खनन शहर हैं। पहले यह माओवादी और नक्सली गतिविधियों से प्रभावित था, लेकिन अब हाल के वर्षों में स्थिति सुधरी है और यह एक प्रमुख पर्यटन केंद्र बन गया है। मनोहरपुर क्षेत्र के कई पर्यटन स्थल अक्टूबर से मार्च तक पर्यटकों से भरे रहते हैं।
अवैध खनन के लिए मशहूर सारंडा वन:
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दौरान न्यायमूर्ति एमबी शाह के नेतृत्व में एक जांच आयोग ने झारखंड में अवैध खनन की जांच की। जांच में पता चला कि कानूनों का उल्लंघन करके भारी मात्रा में लौह अयस्क और मैंगनीज निकाला गया।
शाह आयोग ने बताया कि करीब 14,403 करोड़ रुपये का लौह अयस्क और 138 करोड़ रुपये का मैंगनीज अवैध रूप से खनन किया गया था। इसके बाद केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने सारंडा में खनन के लिए एक स्थायी योजना बनाई। इस योजना में ‘गो और नो-गो’ क्षेत्र तय किए गए और वार्षिक खनन की सीमा 64 मिलियन टन रखी गई, जिसे स्थायी खनन की स्थिति में बढ़ाने की संभावना भी थी।
निष्कर्ष:
सारंडा वन को अभयारण्य में बदलना झारखंड की प्राकृतिक धरोहर और जैव विविधता की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह कदम अवैध खनन से प्रभावित क्षेत्र को संरक्षित करेगा और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के साथ भविष्य की पीढ़ियों के लिए स्थायी प्राकृतिक विरासत सुनिश्चित करेगा।