हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने वैध प्रमाणपत्रों वाले निर्माताओं को भारत में हरित पटाखे बनाने की अनुमति दी है। हालाँकि, न्यायालय ने दिल्ली-NCR क्षेत्र में इन पटाखों की बिक्री पर स्पष्ट रूप से रोक लगाई है।
सुप्रीम कोर्ट का ग्रीन पटाखे संबंधी फैसला
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रमाणित निर्माताओं को ग्रीन क्रैकर्स (पर्यावरण के अनुकूल पटाखे) बनाने की अनुमति दे दी है, लेकिन दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में उनकी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI) और पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन (PESO) से वैध प्रमाणपत्र प्राप्त निर्माताओं को ही ग्रीन क्रैकर्स बनाने की अनुमति दी है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि निर्माता 8 अक्टूबर, 2025 को होने वाली अगली सुनवाई तक दिल्ली और एनसीआर में बिक्री नहीं करेंगे।
- न्यायालय ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) और NEERI की रिपोर्टों में उठाई गई व्यवहार्यता संबंधी चिंताओं पर भी प्रकाश भी डाला।
दिल्ली-NCR में ग्रीन पटाखों की बिक्री पर सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के पीछे कारण
- गंभीर वायु प्रदूषण: सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मुख्य रूप से इस क्षेत्र की पुरानी वायु प्रदूषण समस्या से प्रेरित है। त्योहारों के मौसम में दिल्ली में अक्सर “बेहद खराब” से लेकर “गंभीर” वायु गुणवत्ता स्तर दर्ज किया जाता रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, 2024 में, दिवाली के दौरान कई दिनों तक दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 400 को पार कर गया था, जो सुरक्षित सीमा 100 से कहीं अधिक था।
- जन स्वास्थ्य की सुरक्षा: भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के अध्ययनों से संकेत मिलता है कि वायु प्रदूषण भारतीयों की औसत जीवन प्रत्याशा को 3.5 वर्ष कम कर देता है, जिसमें दिल्ली जैसे शहरी क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। पटाखों के उत्सर्जन से अस्थमा और ब्रोंकाइटिस सहित श्वसन संबंधी समस्याओं की संख्या बढ़ रही है।
- पिछले प्रतिबंधों की अप्रभावीता: सुप्रीम कोर्ट ने पिछले प्रतिबंधों की सीमित सफलता पर भी विचार किया। पटाखों पर पहले से लगे प्रतिबंधों के बावजूद, त्योहारों के मौसम में दिल्ली में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) की रिपोर्टें बताती हैं कि अवैध बिक्री और अनियमित उपयोग के कारण इसे पूरी तरह से लागू करना चुनौतीपूर्ण था। अदालत ने कहा कि उत्पादन की अनुमति देकर और बिक्री को नियंत्रित करके इसे रोका जा सकता है।
- निम्न आबादी वर्ग: उच्च प्रदूषण के दौरान, संपन्न लोग खुद को बचाने के लिए एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन, कम आय वाली आबादी, खासकर झुग्गी-झोपड़ियों या फुटपाथों पर रहने वाले लोग, हानिकारक हवा के संपर्क में लगातार होने के कारण पटाखों से होने वाला प्रदूषण इन समूहों के जीवन स्तर को सीधे तौर पर प्रभावित करता है, जो पहले से ही कई स्वास्थ्य और पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
सामान्य पारंपरिक पटाखे इतने हानिकारक क्यों होते हैं?
- उच्च वायु प्रदूषण: पारंपरिक पटाखे हवा में बड़ी मात्रा में कणिका तत्व (PM2.5 और PM10) का उत्सर्जन करते हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, ये सूक्ष्म कण फेफड़ों में प्रवेश करते हैं, जिससे श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। ये पटाखे धुंध के निर्माण में भी योगदान देते हैं, जिससे समग्र वायु गुणवत्ता बिगड़ती है।
- विषैला रासायनिक उत्सर्जन: पारंपरिक पटाखों में बेरियम नाइट्रेट, मैग्नीशियम, सल्फर और आर्सेनिक जैसे रसायन होते हैं, जो जलने पर काला धुआँ और विषैली गैसें उत्पन्न करते हैं। विशेष रूप से बेरियम नाइट्रेट अत्यधिक खतरनाक होता है और आतिशबाजी के दौरान आमतौर पर दिखाई देने वाला घना सफेद धुआँ पैदा करता है। ये रसायन अस्थमा के दौरे, ब्रोंकाइटिस और आँखों में जलन पैदा करते हैं।
- अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण: पारंपरिक पटाखे 160 से 200 डेसिबल के बीच ध्वनि उत्पन्न करते हैं, जो सुरक्षित श्रवण सीमा से कहीं अधिक है। लंबे समय तक इनके संपर्क में रहने से श्रवण शक्ति को स्थायी क्षति हो सकती है। ध्वनि प्रदूषण पालतू जानवरों और वन्यजीवों को भी प्रभावित करता है, जिससे तनाव की स्थिति पैदा होती है।
- पर्यावरणीय क्षरण: पारंपरिक पटाखों में मौजूद रसायन और भारी धातुएँ न केवल वायु को प्रदूषित करती हैं, बल्कि मिट्टी और जल निकायों को भी दूषित करती हैं। एल्युमीनियम, बेरियम और तांबे जैसी धातुओं के अवशेष ज़मीन पर जम जाते हैं या नदियों में बह जाते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता और जलीय जीवन प्रभावित होता है। ये प्रदूषक खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करते हैं, जिससे दीर्घकालिक पारिस्थितिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ पैदा होती हैं।
ग्रीन पटाखे क्या हैं?
- परिचय: ग्रीन पटाखे, पारंपरिक पटाखों की तुलना में पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए बनाए गए पटाखों की एक नई पीढ़ी हैं। इनका उद्देश्य कम धुआँ, कम धूल और कम हानिकारक गैसें उत्पन्न करना है। इन पटाखों को पर्यावरण के अनुकूल विकल्प के रूप में बनाया गया है।
- विकास: सर्वोच्च न्यायालय के 2018 के निर्देश के अनुपालन में, CSIR-NEERI ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सहयोग से कड़े पर्यावरणीय मानकों का पालन करने के लिए ग्रीन पटाखे विकसित किए हैं।
- विनियमन: ग्रीन क्रैकर्स के उत्पादन और बिक्री से पहले उन्हें NEERI और PESO द्वारा प्रमाणित किया जाना आवश्यक है। प्रमाणन यह सुनिश्चित करता है कि पटाखे सख्त सुरक्षा और पर्यावरणीय मानकों को पूरा करते हैं।
- विशेषताएँ:
- ग्रीन क्रैकर्स पारंपरिक पटाखों में पाए जाने वाले खतरनाक पदार्थों की जगह कम प्रदूषणकारी विकल्प हैं। इन पटाखों को बनाने में पोटेशियम नाइट्रेट, एल्युमीनियम और कार्बन जैसे सुरक्षित रसायनों का उपयोग किया जाता है।
- औसतन, ग्रीन क्रैकर्स पारंपरिक पटाखों की तुलना में 30% कम प्रदूषणकारी होते हैं। ये हवा में काफी कम कण पदार्थ (PM2.5 और PM10) और जहरीली गैसें छोड़ते हैं।
- हरित पटाखे 110 से 130 डेसिबल के बीच सीमित मात्रा में ध्वनि उत्पन्न करते हैं।
- हरित पटाखों में प्रयुक्त सामग्री का चयन पर्यावरण पर कम नकारात्मक प्रभाव डालने के लिए किया जाता है।
- हरित पटाखों के पैकेटों पर एक हरे रंग का चिन्ह और एक त्वरित प्रतिक्रिया (QR) कोड प्रदर्शित होता है, जो निर्माता और रासायनिक संरचना के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
- प्रकार:
- SWAS – सुरक्षित जल विमोचक: SWAS पटाखा हानिकारक रसायनों के बजाय जल वाष्प छोड़ने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो हवा में कण पदार्थों को नम करने में मदद करता है। इसमें सल्फर या पोटेशियम नाइट्रेट नहीं होता है। इसमें गैसीय उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए पटाखे में मंदक का भी उपयोग किया जाता है।
- STAR – सुरक्षित थर्माइट क्रैकर: स्टार क्रैकर्स भी SWAS की तरह ही पर्यावरण-अनुकूल हैं, लेकिन इसमें शोर कम करने पर विशेष ध्यान दिया गया हैं। इनमें सल्फर या पोटेशियम नाइट्रेट नहीं पाया जाता है।
- SAFAL – सुरक्षित न्यूनतम एल्युमीनियम: सफल क्रैकर्स में एल्युमीनियम की जगह मैग्नीशियम का उपयोग किया जाता है, जिससे रासायनिक प्रदूषण को कम करने में सहायता मिलती है। सफल पटाखों में भी सल्फर और पोटेशियम नाइट्रेट का प्रयोग नहीं किया जाता है।
हरित पटाखों की चुनौतियाँ
- सीमित जन जागरूकता: मुख्य चुनौतियों में से एक है हरित पटाखों के लाभों के बारे में उपभोक्ताओं में कम जागरूकता। बहुत से लोग अभी भी पारंपरिक पटाखे खरीदते है, क्योंकि वे पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों के कम प्रदूषण और स्वास्थ्य लाभों से अनजान हैं।
- उच्च उत्पादन लागत: सुरक्षित रसायनों और पर्यावरण-अनुकूल कच्चे माल के उपयोग के कारण, हरित पटाखों का निर्माण पारंपरिक पटाखों की तुलना में अधिक महंगा होता है। लागत का यह अंतर छोटे पैमाने के विक्रेताओं और व्यापक उत्पादन को हतोत्साहित करता है।
- सीमित उपलब्धता: एक अन्य चुनौती हरित पटाखों का सीमित उत्पादन और वितरण है। केवल NEERI और PESO द्वारा अनुमोदित प्रमाणित निर्माता ही इनका उत्पादन कर सकते हैं। परिणामस्वरूप, दिवाली जैसे उच्च-मांग वाले समय में आपूर्ति अक्सर कम हो जाती है, जिससे मात्रा में कमी और संभावित मूल्य वृद्धि होती है।
आगे की राह
- सरकार और नियामक प्राधिकरण हरित पटाखों की उच्च उत्पादन लागत को कम करने के लिए प्रमाणित निर्माताओं को वित्तीय प्रोत्साहन या सब्सिडी प्रदान कर सकते हैं। सब्सिडी या कर लाभ छोटे और मध्यम उत्पादकों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।
- उपभोक्ताओं को हरित पटाखों के लाभों के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है। जागरूकता अभियान का आयोजन करके लोगों को कम प्रदूषण, कम शोर और सुरक्षित रासायनिक विकल्पों के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए।
भारत सरकार को पारंपरिक या अप्रमाणित पटाखों की बिक्री को रोकने के लिए प्रमाणित उत्पादन इकाइयों और खुदरा दुकानों, दोनों पर नज़र रखनी चाहिए। क्यूआर कोड और डिजिटल सिस्टम का उपयोग करके निगरानी तंत्र को मजबूत किया जा सकता है।