सुप्रीम कोर्ट का केंद्र से इलेक्ट्रिक वाहन नीति पर पुनर्विचार का आग्रह: लक्जरी कारों पर प्रतिबंध की भी मांग, जानिए पूरी खबर..

राष्ट्रीय राजधानी में बढ़ती प्रदूषण समस्या को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार से इलेक्ट्रिक वाहनों पर तेजी से शिफ्ट होने का आह्वान किया। कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है कि महंगी पेट्रोल-डीज़ल कारों को धीरे-धीरे हटाया जाए और 2020 की इलेक्ट्रिक वाहन नीति को मौजूदा हालात के हिसाब से अपडेट किया जाए, ताकि महानगरों में EV को बढ़ावा देने की दिशा में ठोस शुरुआत हो सके।

supreme court urges centre to reconsider electric vehicle policy

याचिकाकर्ता की ओर से क्या कहा गया ?

यह याचिका CPIL (Centre for Public Interest Litigation) की ओर से 2019 में दायर की गई है, जिसका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता प्रशांत भूषण, कॉमन कॉज़ और सीताराम जिंदल फाउंडेशन कर रहे हैं। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि नागरिकों के स्वास्थ्य और स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार (अनुच्छेद 14 और 21) का उल्लंघन हो रहा है, क्योंकि सरकार वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से प्रभावी तरीके से नहीं निपट पाई है। जीवाश्म ईंधन वाले वाहनों से होने वाला उत्सर्जन इसका बड़ा कारण है।

भूषण ने कहा कि इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतें भले ही कम हुई हों, लेकिन चार्जिंग स्टेशनों की धीमी स्थापना इसकी व्यापक अपनाने में सबसे बड़ी बाधा है। उन्होंने अदालत से मांग की कि केंद्र को NEMMP 2020 और नीति आयोग की 2018 की ‘शून्य उत्सर्जन वाहन’ रिपोर्ट की सिफारिशें लागू करने के निर्देश दिए जाएँ।

 

EV नीति के लिए रोडमैप तैयार करे केंद्र: सुप्रीम कोर्ट

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि वह पिछले पाँच साल में हुए बदलावों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना (NEMMP) 2020 को फिर से तैयार करे। पीठ ने बताया कि अब समय आ गया है कि इस नीति को अपडेट कर किसी बड़े महानगर में पायलट परियोजना के तौर पर लागू किया जाए।

अदालत ने कहा कि EV अपनाने के लिए प्रोत्साहन, सरकारी दफ्तरों में EV का इस्तेमाल और चार्जिंग स्टेशनों की पर्याप्त उपलब्धता जैसे पहलुओं पर गंभीरता से काम करने की ज़रूरत है। न्यायाधीशों ने यह भी माना कि लोग अब इलेक्ट्रिक वाहन आसानी से अपना रहे हैं और बढ़ती माँग के चलते नए उन्नत मॉडल भी आ रहे हैं।

 

बुनियादी ढाँचे का विकास माँग के अनुरूप: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बुनियादी ढाँचे का विकास अक्सर माँग के साथ बढ़ता है। जब सड़कों पर इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या बढ़ेगी, तो चार्जिंग स्टेशनों का नेटवर्क भी स्वाभाविक रूप से फैल जाएगा। कोर्ट ने यह सुझाव भी दिया कि मौजूदा पेट्रोल पंपों पर चार्जिंग सुविधाएँ शुरू की जा सकती हैं। अटॉर्नी जनरल ने माना कि ईवी नीति लागू करने में कुछ चुनौतियाँ अभी भी हैं और इन पर और काम करने की जरूरत है।

 

केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल ने क्या कहा ?

केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने अदालत को बताया कि सरकार भी इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के कदमों का समर्थन करती है। उन्होंने कहा कि इस नीति पर काम करने के लिए 13 मंत्रालय मिलकर विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कर रहे हैं और इसकी व्यवहार्यता पर विचार कर रहे हैं।

वेंकटरमणी ने बताया कि अंतर-मंत्रालयी समूह EV अपनाने और उससे जुड़ी नीतियों पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है और जल्द ही इस पर निर्णय लिया जाएगा। उन्होंने आश्वासन दिया कि अब तक जारी सभी अधिसूचनाओं की एक संयुक्त रिपोर्ट अदालत के सामने पेश की जाएगी। मामले की अगली सुनवाई चार हफ़्ते बाद होगी।

 

2020 में हुई थी याचिका पर पहली सुनवाई:

अदालत ने 2020 में हुई पहली सुनवाई में कहा था कि यह मुद्दा सिर्फ दिल्ली-एनसीआर का नहीं, बल्कि पूरे देश के पर्यावरण को प्रभावित करता है। उस समय कोर्ट ने “फीबेट” जैसे विकल्पों पर सुझाव मांगे थे, जिसमें ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने और स्वच्छ वाहनों, हाइड्रोजन व अन्य वैकल्पिक ईंधन तकनीकों को सब्सिडी देने की बात शामिल थी।

 

राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना (NEMMP), 2020:

राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना (NEMMP) का लक्ष्य देश में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को बढ़ावा देना है। इस योजना के तहत सरकार ने 2020 तक 60-70 लाख EVs और हाइब्रिड वाहनों की बिक्री का लक्ष्य रखा था। इसका मुख्य उद्देश्य ईंधन की खपत कम करके राष्ट्रीय ईंधन सुरक्षा को मजबूत करना और लोगों को पारंपरिक वाहनों की जगह इलेक्ट्रिक वाहन चुनने के लिए प्रेरित करना है।

इस योजना में कई तरह के कदम शामिल हैं, जैसे;

  • ईवी और हाइब्रिड वाहन खरीदने पर प्रोत्साहन देना।
  • बैटरी, मोटर, पावर इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य तकनीकों पर शोध व विकास को बढ़ावा देना।
  • देश भर में चार्जिंग स्टेशन जैसे बुनियादी ढाँचे का विस्तार करना।
  • वाहन निर्माण और सप्लाई चेन को बढ़ाने के लिए उद्योग को प्रोत्साहन देना।
  • मौजूदा वाहनों को हाइब्रिड किट लगाकर बेहतर बनाने (रेट्रो-फिटमेंट) को बढ़ावा देना।

 

भारत का इलेक्ट्रिक वाहन (EV) सेक्टर:

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाज़ार है और इसकी GDP में लगभग 7% योगदान देता है। अब देश तेजी से इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर बढ़ रहा है। 2024 में कुल वाहन बिक्री में ईवी की हिस्सेदारी 7.5% रही, जिसमें इलेक्ट्रिक दोपहिया सबसे आगे थे और कुल ईवी बिक्री का 60% हिस्सा रखते थे।भारत में ईवी बाजार लगातार बढ़ रहा है, हालांकि चीन जैसे देशों से अभी पीछे है।

सरकार सार्वजनिक परिवहन को भी इलेक्ट्रिक बना रही है और 2026 तक 14,000 ई-बसें लाने की योजना है। घरेलू LFP बैटरी निर्माण पर जोर देकर EV की लागत कम करने की कोशिश की जा रही है। भारत ने 2030 तक दोपहिया/तिपहिया में 80%, बसों में 40% और निजी कारों में 30% EV अपनाने का लक्ष्य तय किया है, जिसे विभिन्न सरकारी नीतियों का मजबूत समर्थन मिला है।

 

EV सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहलें:

  • पीएम ई-ड्राइव योजना: 2024-26 के लिए 10,900 करोड़, ईवी उद्योग और हरित गतिशीलता को बढ़ावा।
  • चार्जिंग नेटवर्क: 72,000 नए चार्जिंग स्टेशन; FAME-II के तहत 7,000+ स्टेशन मंजूर।
  • नई EV विनिर्माण नीति: 4,150 करोड़ के न्यूनतम निवेश के साथ भारत को EV निर्माण हब बनाना; सीमित आयात पर कम कस्टम ड्यूटी।
  • बैटरी निर्माण: PLI में 18,100 करोड़ का समर्थन, ताकि घरेलू बैटरियां बनें और लागत घटे।
  • राज्यों की पहल: दिल्ली, कर्नाटक, तेलंगाना आदि में ई-बस बेड़ा बढ़ रहा है।
  • ई-बस सेवा योजना: 10,000 ई-बसें PPP मॉडल पर।
  • EV मित्र योजना: सब्सिडी प्रक्रिया आसान।

 

निष्कर्ष:

राष्ट्रीय राजधानी में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट का EVs अपनाने पर जोर एक जरूरी और सही कदम है। अब जरूरत है कि 2020 की EV नीति को मौजूदा हालात के अनुसार अपडेट किया जाए और चार्जिंग व्यवस्था व सार्वजनिक परिवहन में EV को तेजी से बढ़ावा दिया जाए। इससे प्रदूषण कम करने और शहरों में स्वच्छ व सुरक्षित परिवहन व्यवस्था बनाने की दिशा में ठोस प्रगति हो सकेगी।