जब भी बात होती है कालेधन यानी ब्लैक मनी की, तो सबसे पहला नाम आता है — वो है स्विस बैंक (Swiss Bank)। यह बैंक दुनिया भर के भ्रष्ट राजनेताओं, अधिकारियों और कारोबारियों के लिए सबसे सुरक्षित तिजोरी माना जाता है।
कालेधन को लेकर बदनाम इस बैंक का नाम समय-समय पर चर्चा में आता रहा है — कभी अमिताभ बच्चन से लेकर राजीव गांधी तक के नाम इससे जुड़े बताए गए।
अब एक बार फिर स्विस बैंक सुर्खियों में है, क्योंकि Swiss National Bank ने जून में यह खुलासा किया है कि 2021 के बाद स्विस बैंकों में जमा भारतीयों की धनराशि में यह अब तक की सबसे बड़ी बढ़ोतरी है।
तो आइए, आज हम समझते हैं — स्विस बैंक का इतिहास, इसकी गोपनीयता की नीति, और कैसे यह बैंक कारोबारियों, अभिनेताओं और नेताओं के लिए ‘सुरक्षित ठिकाना‘ बना हुआ है।
🔹स्विस बैंक का इतिहास:
स्विस बैंक की शुरुआत 17वीं सदी में हुई थी लेकिन जब भी हम “स्विस बैंक” कहते हैं, तो असल में बात होती है UBS की — यानी Union Bank of Switzerland। यह बैंक 1998 में यूनियन बैंक ऑफ स्विट्जरलैंड और स्विस बैंक कॉर्पोरेशन के विलय से बना। UBS दुनिया के सबसे बड़े और ताकतवर बैंकों में से एक है, और इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के ज़्यूरिख और बेसल शहरों में है।
अब आपके मन में सवाल ज़रूर आया होगा — “ये स्विस बैंक काम कैसे करता है?”
दरअसल, UBS भी वही काम करता है जो कोई और बैंक करता है — जैसे सेविंग्स अकाउंट खोलना, निवेश सेवाएं देना आदि। लेकिन इसका काम करने का तरीका बहुत ही खास और गोपनीय होता है। अब सोचिए — अगर कोई बैंक आपके खाते की जानकारी किसी को न बताए, चाहे वो सरकार हो या बाहरी एजेंसी —
तो क्या वो बैंक आपका सबसे पसंदीदा बैंक नहीं बन जाएगा
एक समय था जब स्विट्जरलैंड के बैंक अपने ग्राहकों की जानकारी किसी के साथ भी साझा नहीं करते थे — ना सरकार के साथ, ना पुलिस के साथ, और ना ही किसी कोर्ट के साथ। जब तक आप स्विट्जरलैंड में कोई अपराध नहीं करते, तब तक आपकी पहचान एक रहस्य बनी रहती थी। यही वजह थी कि दुनिया भर के भ्रष्ट राजनेता, कारोबारी, और तानाशाह अपने धन को यहां छुपाकर रखते थे।
लेकिन साल 2017 के बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते स्विट्जरलैंड को अपना कानून थोड़ा नरम करना पड़ा। अब जिन-जिन देशों के साथ उसका समझौता है, उनके साथ वह अपने ग्राहकों की बैंकिंग जानकारी साझा कर सकता है। भारत और स्विट्जरलैंड के बीच ऐसा ही एक एग्रीमेंट 2018 से लागू हुआ, जिसके बाद स्विस बैंक भारतीय खाताधारकों की जानकारी भारत सरकार को उपलब्ध कराने लगा। भारतीय अधिकारियों को पहला डेटा ट्रांसफर सितंबर 2019 में हुआ था। तब से, नियमित जानकारी साझा की जा रही है जिसमें वित्तीय अनियमितताओं के संदिग्ध लिंक वाले खाते भी शामिल हैं। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई अवैध फंड या टैक्स चोेरी तो नहीं होे रही।
अब सवाल उठता है — “आखिर क्यों कहा जाता है कि स्विस बैंक दुनिया की सबसे सुरक्षित तिजोरी है?”
इसका जवाब है — नंबर्ड अकाउंट। जी हां, ये वो अकाउंट होते हैं जिनमें किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिखा होता, बल्कि चार अंकों का एक कोड होता है, और साथ में एक नकली नाम (Code name) भी इस्तेमाल किया जाता है। इन खातों की असली पहचान सिर्फ बैंक के टॉप अधिकारियों को ही पता होती है। आम कर्मचारी को भी मालूम नहीं होता कि वो नंबर असल में किसका है। यही कारण है कि इन खातों को “गुप्त खजाना” कहा जाता है।
अब आपके दिमाग में ये सवाल जरूर आया होगा — “क्या मैं भी स्विस बैंक में खाता खुलवा सकता हूं?”
जवाब है – हां, लेकिन इसके लिए आपको थोड़ी जेब ढीली करनी होगी। UBS जैसे बड़े बैंक में खाता खोलने के लिए कम से कम 1 लाख डॉलर यानी करीब 75 लाख रुपये का बैलेंस ज़रूरी होता है। साथ ही, हर साल 300 डॉलर (करीब 22,000 रुपये) का मेंटेनेंस चार्ज भी देना पड़ता है। यानी इस बैंक में ब्याज कमाने की उम्मीद तो छोड़िए, यहां तो खाता रखने का किराया भरना पड़ता है!
स्विस बैंक में खाता खोलने की प्रक्रिया भी अब पहले जैसी कठिन नहीं रही। आजकल इंटरनेट की मदद से कई कंपनियां इस प्रक्रिया में आपकी मदद करती हैं। कुछ बैंक तो ईमेल के जरिए भी खाता खोलने की सुविधा देते हैं। और अगर आप स्विट्जरलैंड जाकर खाता खुलवाना चाहें, तो वहां की किसी भी ब्रांच में जाकर प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं।
अब बात करें ज़रूरी दस्तावेज़ों की, तो आपको बस कुछ बुनियादी चीजें चाहिए होती हैं:
एक वैध पासपोर्ट की कॉपी, आपकी संपत्ति और आय के स्रोत से जुड़े दस्तावेज़, और आपके पास मौजूद डिपॉज़िट्स व अकाउंट्स की जानकारी। मतलब ये देखा जाता है कि आपके पास जो पैसा है, वो कहां से आया, और क्या आप उस पैसे के सही मालिक हैं।
🔹 “क्या बैंक किसी को भी जानकारी नहीं देता?”
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तो इसका जवाब थोड़ा बदल चुका है। पहले तो बिल्कुल भी जानकारी नहीं दी जाती थी, लेकिन अब कुछ शर्तों के साथ यह संभव है। जैसे अगर खाताधारक की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति का असली कानूनी वारिस, या वो पति-पत्नी जिसके पास कोर्ट से अधिकार प्राप्त हो, वह व्यक्ति बैंक से जानकारी ले सकता है। लेकिन ये भी आसान नहीं है — सबूत, दस्तावेज़ और कानूनी प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है।
तो कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि स्विस बैंक की यह रहस्यमयी दुनिया आज भी लोगों को आकर्षित करती है। पहले जितनी गोपनीयता अब भले ना हो, लेकिन फिर भी ये बैंक अपने सिस्टम और सीक्रेसी के लिए जाना जाता है। शायद यही कारण है कि जब भी बात ब्लैकमनी की होती है, तो जुबां पर बस एक ही नाम आता है — स्विस बैंक।
🔹क्या स्विस बैंक में जमा सारा पैसा काला धन है?
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आपको बता दें कि स्विस अधिकारियों के अलावा, भारतीय सरकार ने भी यह साफ कर दिया है कि स्विस बैंकों में जमा सारे पैसे को काला धन नहीं माना जा सकता। शेयर किए गए आंकड़े स्विस नेशनल बैंक (SNB) के आधिकारिक रिकॉर्ड से हैं जो बैंकों की देनदारी (Liabilities) को बताते हैं।
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आखिरी अब चर्चा मे क्यों है?
हाल ही में स्विस बैंक एक बार फिर चर्चा में है। वजह भी बड़ी दिलचस्प है — 2024 में भारतीयों द्वारा स्विस बैंकों में जमा किया गया धन अचानक तीन गुना बढ़कर 3.5 अरब स्विस फ्रैंक (करीब ₹37,600 करोड़) हो गया है। जबकि 2023 में यह रकम सिर्फ 1.04 अरब स्विस फ्रैंक (लगभग ₹11,000 करोड़) थी। ये वृद्धि 2021 के बाद सबसे ज्यादा है, जब भारतीयों का स्विस बैंकों में जमा पैसा 3.83 अरब फ्रैंक (करीब ₹41 हजार करोड़) तक पहुंच गया था।
इस बढ़त के साथ भारत की वैश्विक रैंकिंग भी सुधरी है। 2023 में भारत 67वें स्थान पर था, लेकिन अब वह 48वें स्थान पर आ गया है। हालांकि यह 2022 के अंत में भारत की 46वीं रैंक से थोड़ा नीचे जरूर है, लेकिन फिर भी यह एक बड़ी छलांग मानी जा रही है।
अब आप सोचेगे “इतना पैसा आखिर स्विस बैंकों तक पहुंचा कैसे?”
इसका सीधा उत्तर है कि ये पैसा सिर्फ आम नागरिकों या व्यापारियों का नहीं, बल्कि अधिकांश धन बैंकों और वित्तीय संस्थानों के माध्यम से आया है।
वास्तव में, व्यक्तिगत ग्राहकों के खातों में जमा राशि सिर्फ 11% बढ़ी है। यह करीब 346 मिलियन स्विस फ्रैंक, यानी लगभग ₹3,675 करोड़ है। इसका मतलब है कि कुल जमा का लगभग दसवां हिस्सा ही व्यक्तिगत खातों में है, बाकी सारा धन बैंकों, कंपनियों, बॉन्ड्स और सिक्योरिटीज के माध्यम से स्विस बैंकों तक पहुंचा है।
“आखिर भारतीय बैंक स्विस बैंकों में पैसा क्यों जमा करते हैं?”
इसके चार मुख्य कारण माने जाते हैं:
अंतरराष्ट्रीय लेन-देन में आसानी — वैश्विक व्यापारिक भुगतान और सेवाओं को सरल बनाने के लिए।
बेहतर निवेश रिटर्न — बॉन्ड्स, शेयर और अन्य विदेशी फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश से लाभ के लिए।
स्विस बैंकिंग सिस्टम की स्थिरता — स्विट्जरलैंड की राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता का भरोसा।
विदेशी मुद्रा प्रबंधन — ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए।
अब सबसे अहम सवाल — “क्या स्विस बैंक में भारतीयों का पैसा बढ़ना चिंता की बात है?”
इसका जवाब थोड़ा संतुलित है। खुद स्विट्जरलैंड के केंद्रीय बैंक (SNB) के आंकड़े बताते हैं कि स्विस बैंकों में पैसा जमा होना अपने आप में गलत नहीं है। यह पैसा वैध कारोबारी लेन-देन, अंतरराष्ट्रीय निवेश या संस्थागत गतिविधियों का हिस्सा हो सकता है।
चिंता तब होती है जब पैसा अवैध तरीकों से जमा किया गया हो — जैसे टैक्स चोरी, भ्रष्टाचार या हवाला के जरिए। ऐसे मामलों में सरकारों को सतर्क रहना चाहिए और सूचना समझौते (Information Exchange Agreements) के तहत जांच करनी चाहिए।