तख्तापलट के बाद सीरिया में पहले चुनाव, आम जनता वोटिंग से बाहर- क्या अहमद अल-शरा की जीत पहले से तय?

सीरिया में हुए परोक्ष संसदीय चुनावों के प्रारंभिक परिणाम कल यानी 6 तारीख को जारी किए गए। यह चुनाव बशर अल-असद के सत्ता संभालने के बाद देश में पहली बार कराए गए चुनावों में से एक है और असद के बाद के राजनीतिक परिवर्तन का महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

 

लगभग 6,000 क्षेत्रीय प्रतिनिधियों ने 210 में से 119 सीटों के लिए पूर्व-अनुमोदित सूचियों से उम्मीदवारों का चयन किया, जबकि राष्ट्रपति अहमद अल-शरा शेष 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार नियुक्त करेंगे।

Syria holds first post-coup elections

सीरिया में अप्रत्यक्ष संसदीय चुनाव:

सीरिया के हालिया संसदीय चुनाव अप्रत्यक्ष प्रक्रिया के तहत कराए गए। 11 सदस्यीय हाई लेवल कमेटी, जिसे अल-शरा ने नियुक्त किया था, ने 140 सीटों पर चुनाव की देखरेख की। लगभग 6,000 वोटर्स ने मतदान किया, जिन्हें भी अल-शरा ने चुना था। इस चुनाव में 1,570 उम्मीदवारों को हाई लेवल कमेटी द्वारा मंजूरी दी गई, जिनमें महिलाओं और विशेष जरूरत वाले लोगों के लिए आरक्षण शामिल था।  

 

सांसदों की योग्यता:

  • कुल सांसदों में से 70% अकादमिक या विशेषज्ञ होंगे।
  • 30% ऐसे विशिष्ट समुदाय सदस्य होंगे जिनके पास शैक्षणिक डिग्री होगी।

 

सुप्रीम कमेटी मे कौन कौन होता है?

  • 7 सदस्य पूर्व विपक्ष से होंगे।
  • 2 सदस्य पूर्व HTS-नेतृत्व वाले Salvation Government से जुड़े होंगे।
  • 2 सदस्य स्वतंत्र नागरिक कार्यकर्ता होंगे।

इस प्रकार, नई पीपुल्स असेंबली का गठन किया जाएगा और तब तक जनता की प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं होगी, जब तक देश में नया संविधान लागू नहीं हो जाता और आम चुनाव आयोजित नहीं किए जाते।

 

छह महिलाएं और 10 अल्पसंख्यक सांसद चुने गए:

चुनावों में चुने गए 119 सांसदों में छह महिलाएं शामिल हैं, जबकि 10 सीटें धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित रही। इनमें कुर्द, ईसाई और दो अलावी प्रतिनिधि शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति बशर अल असद भी अलावी संप्रदाय से आते हैं।

 

सीरिया संसदीय चुनाव में जनता अनुपस्थित:

सीरिया के हालिया संसदीय चुनाव में आम जनता और राजनीतिक दलों की भागीदारी लगभग नगण्य रही। विशेषज्ञों के अनुसार यह चुनाव जनता की इच्छाओं का प्रतिनिधि नहीं, बल्कि शरा सरकार की वैधता को मजबूत करने की कवायद है।

सरकार का तर्क है कि गृहयुद्ध और विस्थापन के कारण व्यापक जनमत संग्रह असंभव था, क्योंकि करोड़ों लोग दस्तावेज़ों के बिना हैं। इस कारण केवल सीमित प्रतिनिधियों के माध्यम से चुनाव कराया गया।

 

सीरिया में मतदान हर जगह नहीं हुआ:

रिया में सभी क्षेत्रों में मतदान नहीं हो सका। देश की 210 संसदीय सीटों में से लगभग 32 सीटें खाली रह सकती हैं। चुनाव तीन क्षेत्रों में स्थगित किए गए हैं। इनमें उत्तर-पूर्व में कुर्द नियंत्रण वाले क्षेत्र शामिल हैं, जहाँ प्रशासन और सुरक्षा हालात मतदान के लिए उपयुक्त नहीं माने गए। इसके अलावा, दक्षिण में सुवैदा क्षेत्र को भी मतदान के लिए तैयार नहीं माना गया, क्योंकि जुलाई और अगस्त में वहां द्रूज़ और बेडुइन समुदायों के बीच झड़पें हुई थीं। इन परिस्थितियों के कारण चुनाव पूरी तरह से देशव्यापी नहीं हो सके और कुछ हिस्सों में मतदान स्थगित करना पड़ा।

 

अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा की जीत तय मानी जा रही है –

क्योंकि 210 में से 70 सीटों पर सीधे शरा द्वारा नियुक्त उम्मीदवार होंगे, इसलिए शरा समर्थकों की संसद में निर्णायक जीत लगभग तय मानी जा रही है।

 

नतीजे और उनकी घोषणा:

मतदान 5 अक्टूबर को संपन्न हुआ। प्रारंभिक नतीजे 6 अक्टूबर घोषित किए गए, जबकि अंतिम परिणाम 7 अक्टूबर को अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से घोषित करेंगे।

 

HTS, असद समर्थक और अंतरराष्ट्रीय संगठन बोले “दिखावटी और प्रशासनिक प्रक्रिया”:

  1. HTS (हयात तहरीर अल-शाम): उत्तर-पश्चिमी सीरिया में सक्रिय यह संगठन चुनावों को “दमिश्क की सत्ता का नाटक” बता रहा है। उनका कहना है कि अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा की सरकार देश के वास्तविक प्रतिनिधित्व से कोसों दूर है, क्योंकि जनता को वोट का अधिकार ही नहीं मिला।
  2. असद समर्थक गुट: बशर अल-असद की पार्टी ने इसे “कठपुतली चुनाव” कहा। उनका आरोप है कि शरा केवल पश्चिमी देशों की मदद से सत्ता में आया और अब अपनी वैधता दिखाने के लिए यह दिखावटी प्रक्रिया चला रहा है।
  3. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन: यूरोप स्थित कई एनजीओ ने कहा कि यह चुनाव लोकतांत्रिक नहीं बल्कि प्रशासनिक है। उम्मीदवारों की सूची पारदर्शी नहीं है और मतदाता चयन की प्रक्रिया पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में है।

 

सीरिया चुनाव पर रूस, चीन और ईरान का समर्थन:

  • रूस और चीन ने हाल के चुनावों को सीरिया में स्थिरता बनाए रखने के लिए जरूरी कदम करार दिया है। उनका कहना है कि युद्धग्रस्त परिस्थितियों में पूरे देश में तत्काल आम चुनाव कराना संभव नहीं है, इसलिए अंतरिम सरकार फिलहाल सबसे सही विकल्प है।
  • ईरान ने भी शरा सरकार को देश के पुनर्निर्माण और राजनीतिक स्थिरता में केंद्रीय भूमिका निभाने वाला माना।

 

अधिकांश सीरियाई लोकतंत्र के पक्ष में:

सितंबर 2025 में किए गए सर्वे के अनुसार, 61% सीरियाई नागरिक लोकतांत्रिक प्रणाली का समर्थन करते हैं, जिसमें राजनीतिक बहुलता और जवाबदेही शामिल है। सर्वे “Syrian Public Opinion Survey 2025” के तहत असद शासन के पतन के तुरंत बाद आयोजित किया गया।

मुख्य निष्कर्ष:

  • लोकतंत्र पसंद: 61% लोग मानते हैं कि लोकतंत्र सीरिया के लिए सबसे उपयुक्त शासन प्रणाली है। 60% का मानना है कि “लोकतंत्र, इसकी समस्याओं के बावजूद, अन्य शासन प्रणालियों से बेहतर है।”
  • सत्तावादी तर्कों का खंडन: अधिकांश नागरिकों ने लोकतंत्र विरोधी तर्कों को खारिज किया, जैसे कि यह इस्लाम के खिलाफ है या आर्थिक प्रदर्शन कमजोर करता है।
  • चुनावी परिणाम स्वीकार करने की तैयारी: 53% उत्तरदाताओं ने कहा कि वे किसी राजनीतिक दल के शासन को स्वीकार करेंगे, भले ही वे उससे असहमत हों, यदि वह दल स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में बहुमत से जीतता है।

 

कौन है अहमद अल-शरा?

अहमद अल-शरा, जिन्हें अबू मोहम्मद अल-जुलानी के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 1975-1979 के बीच सऊदी अरब की राजधानी रियाद में हुआ था। जन्म के कुछ समय बाद उनका परिवार सीरिया की राजधानी दमिश्क आ गया। उनके दादा गोलान हाइट्स में रहते थे, जो 1967 के अरब-इजरायल युद्ध से पहले सीरिया का हिस्सा था, लेकिन बाद में इजरायल के नियंत्रण में आ गया।

राजनीतिक सक्रियता और अल-कायदा से जुड़ाव:

अल-शरा ने अपनी किशोरावस्था से ही राजनीति में सक्रियता दिखाई। 2003 में अमेरिका द्वारा इराक पर आक्रमण के दौरान उन्होंने वहां विद्रोहियों के साथ मिलकर अमेरिकी सेना के खिलाफ लड़ाई में हिस्सा लिया। इस दौरान वे अल-कायदा से जुड़ गए। 2010 में उन्हें अमेरिकी सेना ने गिरफ्तार कर कुवैत के नजदीक कैंप बुका जेल में बंद किया।

 

आतंकवाद के आरोप और वैश्विक स्थिति: 2013 में अमेरिकी विदेश विभाग ने अल-शरा को वैश्विक आतंकी घोषित किया। उन पर आतंक को फाइनेंस करने और आतंकी घटनाओं में मदद करने का आरोप लगा। 2017 में अमेरिका ने उसे वैश्विक आतंकी मानते हुए उन पर 10 मिलियन डॉलर का इनाम रखा था।

 

एचटीएस (HTS) और इदलिब में नियंत्रण:

2016 में अल-कायदा में फूट के बाद अल-शरा ने हयात तहरीर अल-शाम (HTS) की स्थापना की। HTS ने उत्तर-पश्चिमी सीरिया के इदलिब और आसपास के इलाकों में अपना नियंत्रण स्थापित किया। 2020 में समूह ने इदलिब में अल-कायदा के ठिकानों पर ताला लगाया और हथियार जब्त कर लिए।

 

असद शासन का अंत और अंतरिम राष्ट्रपति पद:

बशर अल-असद का 25 सालों तक चला शासन पिछले साल नवंबर में HTS के विद्रोहियों के हमले के बाद समाप्त हुआ। दो हफ्तों से भी कम समय में असद देश छोड़कर भाग गए और वर्तमान में रूस में शरण में हैं। दमिश्क पर नियंत्रण पाने के बाद अहमद अल-शरा सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति बने।

हालांकि HTS अब भी संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और ब्रिटेन के लिए एक आतंकवादी संगठन है, लेकिन अल-शरा ने असद शासन को उखाड़ फेंककर सीरिया में नया राजनीतिक अध्याय शुरू किया है।

 

अमेरिका ने सीरिया के साथ संबंध सामान्य करने की पहल की:

डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की है कि अमेरिका सीरिया पर लगे कुछ प्रतिबंध हटा सकता है और नए नेतृत्व के साथ संबंध सामान्य करने पर काम करेगा। दिसंबर 2024 में हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के विद्रोह के बाद ट्रंप ने पहले ही स्पष्ट किया था कि “सीरिया का संघर्ष हमारा युद्ध नहीं है,” हालांकि वहां अभी भी लगभग 900 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं।

 

क्षेत्रीय सहयोग और रणनीति:

ट्रंप ने सऊदी अरब और तुर्की के साथ मिलकर सीरिया में स्थिरता और पुनर्निर्माण के प्रयासों को आगे बढ़ाने का संकेत दिया। उनका ध्यान मध्य पूर्व में आर्थिक और व्यापारिक अवसरों पर भी है, जैसा कि सऊदी अरब यात्रा के दौरान 600 अरब डॉलर के निवेश सौदों से देखा गया। उन्होंने सऊदी अरब को अब्राहम समझौते में शामिल करने की भी इच्छा जताई, लेकिन सीरिया के मामले में यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं था।

 

अल-शरा के नेतृत्व पर प्रभाव और संभावित तनाव:

अमेरिकी नीति के तहत अल-शरा के नेतृत्व को समर्थन मिलने से सीरिया में पुनर्निर्माण और स्थिरता की उम्मीद है। वहीं, यह कदम तुर्की, इज़राइल और कुर्द बलों के बीच क्षेत्रीय तनाव बढ़ा सकता है। ट्रंप की यह नीति उनकी व्यापक मध्य पूर्व रणनीति का हिस्सा है, जिसमें आर्थिक सौदे, सहयोगियों के साथ जुड़ाव और ईरान के खिलाफ रुख शामिल है।

 

निष्कर्ष:

इन चुनावों को सीरिया की जनता के लिए लोकतंत्र और स्थिरता की दिशा में पहला ठोस कदम माना जा रहा है। हालांकि, आम जनता की चुनाव प्रक्रिया में भागीदारी अभी भी सीमित रही है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह वास्तव में लोकतांत्रिक रूप से वैध और प्रतिनिधि सरकार की ओर बढ़ने वाला कदम है।