तमिलनाडु ने वन्यजीव संरक्षण के लिए ₹1 करोड़ आवंटित किए

हाल ही में, तमिलनाडु सरकार ने चार संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण के लिए ₹1 करोड़ का बजट आवंटित किया है। यह कदम राज्य की जैव विविधता संरक्षण के प्रति बढ़ती प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

Tamil Nadu allocates ₹1 crore for wildlife conservation

तमिलनाडु की वन्यजीव संरक्षण पहल क्या है?

जैव विविधता संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, तमिलनाडु सरकार ने चार कम-ज्ञात लुप्तप्राय प्रजातियों की सुरक्षा के लिए 2025 में ₹1 करोड़ के कोष को मंज़ूरी दी है। यह उन प्रजातियों पर केंद्रित है, जिन्हें अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है, लेकिन जो पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

 

  • लक्षित प्रजातियाँ: यह योजना पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण चार प्रजातियों को लक्षित करती है: शेर-पूंछ वाला मकाक, मद्रास हेजहॉग, धारीदार लकड़बग्घा और कूबड़-सिर वाली महासीर। प्रत्येक प्रजाति पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों के लिए आवश्यक है।

 

  • निधि आवंटन: कुल ₹1 करोड़ का कोष प्रत्येक प्रजाति की पारिस्थितिक आवश्यकताओं के आधार पर वितरित किया जाता है। ₹48.50 लाख शेर-पूंछ वाले मकाक के लिए, ₹20.50 लाख मद्रास हेजहॉग के लिए, ₹14 लाख धारीदार लकड़बग्घा के लिए और ₹17 लाख कूबड़-सिर वाली महासीर के लिए आवंटित किया गया हैं।

 

  • कार्यान्वयन: इस योजना में प्रजातियों और उनके आवासों के समर्थन हेतु कई व्यावहारिक हस्तक्षेप शामिल हैं: 
    • आवास निगरानी और अनुसंधान: इसमें अधिकारी व्यवस्थित जनसंख्या सर्वेक्षण और पारिस्थितिक आकलन करेंगे। इस तरह एकत्रित आँकड़े दीर्घकालिक संरक्षण रणनीतियों की योजना बनाने में मदद करेंगे।
    • संपर्क और प्रजनन पहल: शेर-पूंछ वाले मकाक के लिए, छतरी पुल बनाए जाएंगे, जो जंगलों को जोड़ने का काम करेंगे। इसमें कूबड़ वाले महाशीर के लिए, यथास्थान प्रजनन, संवर्धन और विमोचन कार्यक्रम नदी तटीय आबादी को पुनर्स्थापित किया जाएगा।
    • जागरूकता और सामुदायिक सहभागिता: स्कूलों और स्थानीय समुदायों में शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएँगे। संवेदनशील क्षेत्रों में संकेतक चिह्न लुप्तप्राय प्रजातियों के बारे में जागरूकता बढ़ाएँगे और सुरक्षात्मक व्यवहार को प्रोत्साहित करेंगे।
    • अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों का प्रशिक्षण: वन विभाग के कर्मचारियों को संरक्षण चुनौतियों से कुशलतापूर्वक निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसमें आबादी की निगरानी, ​​मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने और आवासों के प्रबंधन की रणनीतियाँ शामिल हैं।

आइए जानते हैं: इन चार कम ज्ञात लुप्तप्राय प्रजातियों के बारे में

 

  1. शेर-पूंछ वाला मकाक
  • शेर-पूंछ वाला मकाक (मकाका सिलेनस) एक प्राइमेट है जो तमिलनाडु और केरल के पश्चिमी घाटों में पाया जाता है।
  • इसे IUCN द्वारा लुप्तप्राय श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।
  • ये मकाक छोटे, काले बंदर होते हैं जिनके चेहरे के चारों ओर चाँदी का अयाल और शेर के समान गुच्छेदार पूँछ होती है।
  • ये घने उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में रहते हैं। ये फल, पत्ते, कीड़े और छोटे जानवर का शिकार करते हैं, जिससे बीजों के फैलाव और वन पुनर्जनन को बनाए रखने में मदद मिलती है।
  • ये वर्षावन पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • आजकल आवास विखंडन, सड़क निर्माण और मानव अतिक्रमण के कारण इस प्रजाति को गंभीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
  1. मद्रास हेजहॉग
  • मद्रास हेजहॉग (पैराचीनस न्यूडिवेंट्रिस) एक निशाचर स्तनपायी है जो तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाया जाता है।
  • इसका IUCN दर्जा डेटा-अपूर्ण है, जिसका अर्थ है कि इसकी आबादी के बारे में वैज्ञानिक जानकारी सीमित है।
  • इसका छोटा, गोल शरीर काँटों से ढका होता है और यह शिकारियों से बचने के लिए ज़्यादातर रात में ही घूमता है।
  • हेजहॉग कीटों, छोटे कशेरुकियों और पौधों को खाते हैं, जिससे कीटों की आबादी को नियंत्रित करने और मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद मिलती है।
  • वर्तमान में इस प्रजाति को आवास विनाश, कीटनाशकों के उपयोग और सड़क दुर्घटनाओं से खतरा है, जिससे इसके जीवित रहने की संभावना कम हो गई है।
  • मद्रास हेजहॉग का संरक्षण अर्ध-शुष्क पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बढ़ावा देता है और जमीनी स्तर पर जैव विविधता को बढ़ावा देता है।
  1. धारीदार लकड़बग्घा
  • धारीदार लकड़बग्घा (हाइना हाइना) एक अपमार्जक जीव है जो मुदुमलाई टाइगर रिजर्व, राजस्थान के कुछ हिस्सों और गुजरात में पाया जाता है। इसका IUCN दर्जा निकट-संकटग्रस्त है।
  • इसका शरीर धूसर, काली धारियों वाला, मज़बूत जबड़ा और घनी पूंछ वाला होता है। लकड़बग्घा मुख्य रूप से सड़े हुए मांस और छोटे जानवरों को खाता है, जो प्राकृतिक रोग नियामक के समान कार्य करता है।
  • शिकार, आवास के नुकसान और मानव संघर्ष के कारण आजकल यह प्रजाति प्राय विलुप्त हो रही हैं।
  1. कूबड़-सिर वाली महासीर
  • कूबड़-सिर वाली महासीर (टोर रेमादेवी) एक बड़ी मीठे पानी की मछली है जो मोयार नदी और पश्चिमी घाट की अन्य नदियों में पाई जाती है। इसे IUCN द्वारा गंभीर रूप से संकटग्रस्त के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • यह मछली अपने सिर पर उभरे हुए कूबड़ के लिए जानी जाती है और इनका आकर प्रायः बहुत बड़ा होता है।
  • यह छोटी मछलियों, क्रस्टेशियंस और वनस्पति पदार्थों का भक्षण करती है, जिससे पोषक चक्रण और नदी पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन में मदद मिलती है।
  • आजकल इस प्रजाति को बांधों, अत्यधिक मछली पकड़ने और प्रदूषण से गंभीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण इसकी आबादी में भारी गिरावट आ रही है।

तमिलनाडु में जैव विविधता संरक्षण के अन्य प्रयास

  • तमिलनाडु को पौधों, जानवरों और पारिस्थितिक तंत्रों की अपनी समृद्ध विविधता के कारण वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • इस राज्य में पश्चिमी और पूर्वी घाट स्थित हैं, जो कई स्थानिक और लुप्तप्राय प्रजातियों का घर हैं।
  • 2022 में, तमिलनाडु ने दुर्लभ समुद्री स्तनपायी डुगोंग (डुगोंग डुगोन) के संरक्षण के लिए पाक खाड़ी में डुगोंग संरक्षण रिजर्व बनाया था। डुगोंग शाकाहारी होते हैं और उनकी उपस्थिति एक स्वच्छ और स्वस्थ समुद्री पर्यावरण का संकेत देती है।
  • 2022 में स्थापित कदवुर स्लेंडर लोरिस अभयारण्य, स्लेंडर लोरिस (लोरिस लिडेकेरियानस), एक छोटे निशाचर प्राइमेट, के संरक्षण पर केंद्रित है। ये प्राइमेट तमिलनाडु के शुष्क जंगलों और झाड़ियों में रहते हैं। ये कीड़ों और छोटे जानवरों को खाते हैं, जिससे कीटों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
  • 2023 में, तमिलनाडु ने पहाड़ी बकरी प्रजाति नीलगिरि तहर (नीलगिरिट्रैगस हाइलोक्रियस) के संरक्षण हेतु नीलगिरि तहर परियोजना शुरू की। ये शाकाहारी जीव है, जो पश्चिमी घाट के ऊँचाई वाले घास के मैदानों में पाए जाते हैं। 

 

तमिलनाडु का एकीकृत दृष्टिकोण जैव विविधता के संरक्षण और कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता जैसी वैश्विक पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में नेतृत्व का प्रदर्शन करता है।