हाल ही में, केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि भारत में वायु प्रदूषण के लगभग 40% के लिए परिवहन क्षेत्र जिम्मेदार है।
भारत में परिवहन-आधारित वायु प्रदूषण की वर्तमान स्थिति
- भारत के शहर लगातार गंभीर वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत दुनिया के पाँच सबसे अधिक प्रदूषित देशों में शामिल रहा। वर्ष 2024 में देश का औसत PM2.5 स्तर लगभग 50.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया। यह मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा तय सुरक्षित सीमा 5 माइक्रोग्राम से दस गुना से भी अधिक है। अधिकांश बड़े और मध्यम शहरों में साल के अधिकतर महीनों में हवा सुरक्षित स्तर से नीचे बनी रहती है।
- राष्ट्रीय अध्ययनों के अनुसार, शहरों में होने वाले कुल वायु प्रदूषण का करीब 40 प्रतिशत हिस्सा सीधे परिवहन गतिविधियों से जुड़ा है। खासकर दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे घनी आबादी वाले शहरों में यह योगदान और अधिक दिखाई देता है। वाहनों से निकलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और PM2.5 कण हवा की गुणवत्ता को तेजी से खराब करते हैं। दोपहिया वाहन, निजी कारें, बसें और भारी ट्रक शहरी प्रदूषण के प्रमुख स्रोत बने हुए हैं।
- भारत के महानगर लगातार खराब एयर क्वालिटी दर्ज कर रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर देश का सबसे बड़ा प्रदूषण हॉटस्पॉट बना हुआ है। सर्दियों के महीनों में यहां कई इलाकों का AQI 350 से 450 के बीच पहुंच जाता है, जो “बहुत खराब” से “गंभीर” श्रेणी में आता है। नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे आसपास के शहर भी ट्रैफिक-जनित प्रदूषण के कारण बार-बार खतरनाक स्तर की हवा झेलते हैं।
- वाहनों से निकलने वाले प्रदूषक सीधे मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इनमें PM2.5, PM10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs) और ब्लैक कार्बन प्रमुख हैं। इसके साथ ही वाहन उत्सर्जन धूप वाले दिनों में ग्राउंड-लेवल ओजोन के निर्माण में भी योगदान देता है, जिससे स्मॉग की समस्या और गंभीर हो जाती है।
- वाहन पंजीकरण के आंकड़े दिखाते हैं कि दिल्ली जैसे शहरों में हाल के वर्षों में लाखों नए वाहन जुड़े हैं। खासकर दोपहिया और निजी कारों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इससे जाम, रुक-रुक कर चलने वाला ट्रैफिक और इंजन के खाली चलने से होने वाला उत्सर्जन बढ़ गया है। बड़े महानगरों में प्रतिदिन लाखों वाहन यात्राएं दर्ज होती हैं, जो परिवहन-आधारित वायु प्रदूषण को लगातार ऊंचे स्तर पर बनाए रखती हैं।
वाहनजनित वायु प्रदूषण के प्रभाव
- स्वास्थ्य पर बढ़ता बोझ: वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण भारत में जनस्वास्थ्य पर गंभीर दबाव बना रहा है। वाहन के धुएँ में मौजूद सूक्ष्म कण और जहरीली गैसें सीधे फेफड़ों और रक्त प्रवाह में प्रवेश कर जाती हैं। इससे दमा, ब्रोंकाइटिस, हृदय रोग, स्ट्रोक, फेफड़ों का कैंसर और अन्य दीर्घकालिक बीमारियों के मामले तेजी से बढ़ते हैं। बच्चों, बुजुर्गों और पहले से बीमार लोगों पर इसका असर अधिक गहरा होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनिया भर में हर साल लगभग 42 लाख समयपूर्व मौतें बाहरी वायु प्रदूषण से जुड़ी होती हैं। इनमें परिवहन से होने वाला प्रदूषण है।
- जीवन प्रत्याशा में गिरावट: राष्ट्रीय स्तर के अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि वायु प्रदूषण भारत में समयपूर्व मृत्यु का एक प्रमुख कारण बन चुका है। वर्ष 2019 में लगभग 16.7 लाख मौतें सीधे या परोक्ष रूप से वायु प्रदूषण से जुड़ी थीं। यह देश में होने वाली कुल मौतों का लगभग 18 प्रतिशत हिस्सा था। इन मौतों में बड़ी भूमिका परिवेशी कणीय पदार्थ, खासकर वाहनों से निकलने वाले कणों की रही। समय से पहले होने वाली ये मौतें न केवल परिवारों को प्रभावित करती हैं, बल्कि देश की औसत जीवन प्रत्याशा को भी कम करती हैं।
- जलवायु परिवर्तन से गहरा संबंध: वाहन प्रदूषण केवल स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन को भी तेज करता है। परिवहन क्षेत्र से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और अन्य ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं। वर्ष 2019 में भारत के परिवहन क्षेत्र से लगभग 32 करोड़ टन CO₂ उत्सर्जित हुआ, जो देश के कुल कार्बन उत्सर्जन का करीब 14 प्रतिशत था। इसमें सड़क परिवहन की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत से अधिक रही। वाहनों की संख्या और ईंधन खपत बढ़ने के साथ यह उत्सर्जन आने वाले वर्षों में और बढ़ने की आशंका है।
- उत्पादकता पर असर: वाहनजनित प्रदूषण से आर्थिक नुकसान भी काफी होता है। बीमारियों के कारण काम से अनुपस्थिति, इलाज पर बढ़ता खर्च और समयपूर्व मृत्यु से उत्पादकता में भारी कमी आती है। वर्ष 2019 में भारत में वायु प्रदूषण से जुड़ा कुल आर्थिक नुकसान लगभग 36.8 अरब अमेरिकी डॉलर आंका गया, जो देश के GDP का करीब 1.36 प्रतिशत था। उद्योगों और व्यवसायों को श्रमिकों की अनुपलब्धता और कार्यक्षमता में गिरावट के कारण अतिरिक्त नुकसान झेलना पड़ता है।
परिवहन उत्सर्जन नियंत्रण के लिए नीतिगत ढांचा और नियामक पहल
- भारत स्टेज उत्सर्जन मानक: भारत में वाहनों से निकलने वाले प्रदूषकों को सीमित करने के लिए भारत स्टेज (BS) मानक लागू किए गए हैं। सरकार ने BS-V को छोड़ते हुए अप्रैल 2020 से पूरे देश में BS-VI मानक लागू किए। इसका उद्देश्य पेट्रोल और डीज़ल वाहनों से निकलने वाले NOx और PM जैसे जहरीले उत्सर्जन को कम करना था। इस बदलाव के साथ ईंधन में सल्फर की मात्रा को 50 ppm से घटाकर 10 ppm किया गया। इससे दहन प्रक्रिया अधिक स्वच्छ हुई और वाहनों के एग्जॉस्ट से निकलने वाला धुआँ कम हुआ। अब सरकार BS-VII मानकों के मसौदे पर काम कर रही है, जो और अधिक कड़े होने की संभावना रखते हैं।
- राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना: भारत की दीर्घकालिक जलवायु नीति का आधार राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC) है, जिसे 2008 में शुरू किया गया था। इस योजना के तहत आठ राष्ट्रीय मिशन संचालित किए जाते हैं, जो स्वच्छ ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, टिकाऊ आवास और जलवायु अनुकूलन पर केंद्रित हैं। परिवहन से जुड़े लक्ष्यों को इन मिशनों के माध्यम से जोड़ा गया है। 2025 में सरकार ने इसमें एक अलग सतत परिवहन मिशन जोड़ने का प्रस्ताव रखा, ताकि वाहन उत्सर्जन में कटौती और नेट-ज़ीरो लक्ष्यों को मजबूती मिल सके।
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम: वायु प्रदूषण से निपटने के लिए 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) शुरू किया गया। इसका लक्ष्य 2024–25 तक PM2.5 और PM10 के स्तर में 20–30 प्रतिशत की कमी लाना है। यह कार्यक्रम 130 से अधिक गैर-अनुपालक शहरों पर केंद्रित है। प्रत्येक शहर को अपना शहर-विशिष्ट स्वच्छ वायु कार्य योजना बनानी होती है, जिसमें सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा, स्वच्छ ईंधन, PUC जांच, और वाहनों के रखरखाव जैसे कदम शामिल हैं।
- इलेक्ट्रिक वाहन नीति: FAME और PM E-Drive: परिवहन क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटाने के लिए सरकार ने FAME योजना की शुरुआत 2015 में की। इसके तहत इलेक्ट्रिक दो-पहिया, तीन-पहिया और बसों पर सब्सिडी दी गई। वित्त वर्ष 2025–26 में PM E-Drive योजना के माध्यम से यह प्रयास आगे बढ़ाया गया। इसके साथ EV पर GST घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया, जिससे इलेक्ट्रिक वाहन अधिक किफायती बने।
- वाहन स्क्रैपेज और निरीक्षण नीति: पुराने और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को हटाने के लिए वाहन स्क्रैपेज नीति लागू की गई। इस नीति के तहत पुराने पेट्रोल और डीज़ल वाहनों को अधिकृत स्क्रैपिंग केंद्रों में नष्ट करने पर प्रोत्साहन मिलता है। नए वाहन खरीदने पर कर छूट और अन्य लाभ भी दिए जाते हैं। इसके साथ स्वचालित परीक्षण केंद्र (ATS) स्थापित किए जा रहे हैं।
- EV चार्जिंग ढांचे का विस्तार: इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए सरकार चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का तेजी से विस्तार कर रही है। PM E-Drive जैसी योजनाओं के तहत हाईवे, शहरों और परिवहन केंद्रों पर हजारों चार्जिंग स्टेशन लगाए जा रहे हैं। इससे रेंज एंग्जायटी कम होगी और इलेक्ट्रिक वाहन रोज़मर्रा की यात्रा के लिए अधिक व्यवहारिक बनेंगे।
आगे की राह
- समग्र रणनीति की आवश्यकता: भारत में परिवहन से होने वाले वायु प्रदूषण को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए एकीकृत और बहु-आयामी नीति अपनाना आवश्यक है। केवल तकनीकी समाधान पर्याप्त नहीं हैं। नीति, व्यवहार और शहरी ढांचे में समानांतर सुधार जरूरी है।
- सार्वजनिक परिवहन और गैर-मोटर साधन: शहरों में मेट्रो, बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम और उपनगरीय रेल के विस्तार से निजी वाहनों पर निर्भरता घटाई जा सकती है। साथ ही साइकिल ट्रैक और पैदल मार्ग विकसित करने से छोटे सफर के लिए मोटर वाहनों का उपयोग कम होगा। इससे ईंधन खपत और उत्सर्जन दोनों घटेंगे।
- स्वच्छ वाहन और ईंधन संक्रमण: इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाने के लिए सस्ती कीमत, चार्जिंग सुविधा और भरोसेमंद तकनीक जरूरी है। इसके साथ CNG, बायोफ्यूल और हाइड्रोजन मिश्रण जैसे स्वच्छ ईंधनों को बढ़ावा देना होगा। यह संक्रमण सीधे तौर पर PM2.5 और NOx उत्सर्जन में कमी लाएगा।
- शहरी नियोजन और यातायात प्रबंधन: बेहतर ट्रैफिक मैनेजमेंट, स्मार्ट सिग्नल प्रणाली और भीड़ नियंत्रण उपाय शहरों में जाम को कम कर सकते हैं। ग्रीन कॉरिडोर और वृक्षारोपण प्रदूषण के प्रभाव को संतुलित करने में मदद करेंगे।
- जन-जागरूकता और व्यवहार परिवर्तन: लोगों को इको-ड्राइविंग, समय पर वाहन रखरखाव और प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में जागरूक करना जरूरी है। जब नागरिक जिम्मेदारी समझते हैं, तभी स्थायी बदलाव संभव होता है।
