10 अक्टूबर, 2025 को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका-चीन व्यापार संघर्ष के तहत सभी चीनी आयातों पर 100% टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जो चीन की कार्रवाइयों के आधार पर 1 नवंबर, 2025 या उससे पहले प्रभावी होगा।

चीनी आयातों पर 100% टैरिफ की घोषणा के पीछे के कारण
- चीन का विस्तारित निर्यात नियंत्रण: 9 अक्टूबर, 2025 को, चीन ने दुर्लभ मृदा तत्वों पर अपने निर्यात नियंत्रणों का विस्तार करने की घोषणा की। चीन ने अपनी मौजूदा सूची में पाँच नई धातुएं—होल्मियम, एर्बियम, थुलियम, यूरोपियम और यटरबियम शामिल की है, ये तत्व इलेक्ट्रिक वाहनों, एयरोस्पेस उपकरणों और सैन्य प्रौद्योगिकी के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं। नए नियमों के तहत निर्यातकों को लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक है। आने वाले समय में चीन रक्षा अनुप्रयोगों से जुड़े उत्पादों को अस्वीकार कर देगा और अर्धचालकों तथा उन्नत कृत्रिम बुद्धिमत्ता में उनके उपयोग का बारीकी से मूल्यांकन करेगा।
- अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताएँ: कथित राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों के संदर्भ में, अमेरिकी संघीय संचार आयोग (FCC) ने Huawei और ZTE जैसी कंपनियों के सुरक्षा कैमरों और मोबाइलों सहित चीनी इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की लाखों सूचियाँ हटा दी हैं। ये कंपनियाँ या तो अमेरिकी प्रतिबंधित सूची में हैं या उनके पास उचित FCC प्राधिकरण नहीं है। यह कार्रवाई दूरसंचार और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में चीनी तकनीकी फर्मों द्वारा उत्पन्न राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिमों को कम करने के लिए अमेरिकी एजेंसियों द्वारा किए जा रहे प्रयासों का एक हिस्सा है।
- चीन के प्रतिशोधात्मक बंदरगाह शुल्क: ट्रम्प और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की उपस्थिति में, चीन ने अमेरिका से संबंधित जहाजों पर नए प्रतिशोधात्मक बंदरगाह शुल्क की घोषणा की। 14 अक्टूबर से, चीन में आने वाले अमेरिकी स्वामित्व वाले, संचालित, निर्मित या ध्वजांकित जहाजों से प्रति यात्रा प्रति टन 400 युआन ($56) का शुल्क लिया जाएगा, जो 2028 तक 1,120 युआन ($157) तक पहुँचने तक सालाना बढ़ता रहेगा। प्रत्येक जहाज से प्रति वर्ष अधिकतम पाँच यात्राओं के लिए शुल्क लिया जाएगा। यह कदम अमेरिका द्वारा चीनी जहाजों पर प्रति टन 50 डॉलर के नियोजित शुल्क के समान है।
- पिछली टैरिफ वृद्धि: अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध 2025 तक तीव्र होता जा रहा है। इस वर्ष फरवरी में, राष्ट्रपति ट्रम्प ने चीन पर टैरिफ बढ़ा दिए थे। अप्रैल में भी ट्रम्प ने चीन पर 67% टैरिफ और गैर-टैरिफ व्यापार बाधाओं का आरोप लगाने के बाद, चीन पर टैरिफ में 34% की अतिरिक्त वृद्धि की थी। चीन ने भी जवाबी कार्रवाई में अमेरिकी वस्तुओं पर 84% टैरिफ लगाया था।
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का प्रभाव
- वैश्विक आर्थिक मंदी: संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापार तनाव ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है। 2025 में, विश्व बैंक ने अपने वैश्विक विकास पूर्वानुमान को घटाकर 2.3% कर दिया है, जो 2023 और 2024 के 2.8% से कम है। इस मंदी का कारण चल रहे व्यापार युद्ध को माना जा रहा है, जिसने वैश्विक व्यापार और आर्थिक गतिविधियों को बाधित किया है।
- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान: चीनी विनिर्माण या अमेरिका द्वारा डिज़ाइन की गई तकनीकों पर निर्भर देश सीमा पार आर्थिक व्यवधान का सामना कर रहे हैं। रीशोरिंग और नियर-शोरिंग प्रयास महंगे और समय लगने वाले हैं। व्यापार युद्ध वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित कर रहा है, जिससे कंपनियाँ चल रहे तनावों से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिए अपनी सोर्सिंग रणनीतियों का पुनर्मूल्यांकन कर रही हैं।
- मुद्रास्फीति का दबाव: टैरिफ-भारी व्यवस्था से रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतें बढ़ने, मुद्रास्फीति को बढ़ावा देने और संभावित रूप से उपभोक्ता खर्च पर अंकुश लगाने का जोखिम है। चीनी आयातों पर टैरिफ लगाने से वस्तुओं की लागत बढ़ रही है, जिसका उपभोक्ताओं को बढ़ी हुई कीमतों में सामान खरीदना पड़ रहा है। अगर इसी तरह तनाव बढ़ता रहा तो मुद्रास्फीति का यह दबाव उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति को कम कर सकता है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग में कमी आ सकती है।
- भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण: इस व्यापार युद्ध से बहुपक्षवाद कमज़ोर हो रहा है और वैश्विक आर्थिक शासन में बदलाव हो रहा है। जैसे-जैसे अमेरिका और चीन टैरिफ, निर्यात नियंत्रण और व्यापार ब्लैकलिस्ट जैसे उपायों को अपना रहे हैं, वैसे-वैसे अन्य देशों पर किसी न किसी पक्ष के साथ जुड़ने का दबाव बढ़ रहा है। भविष्य में यह भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण एक खंडित वैश्विक आर्थिक व्यवस्था का कारण बन सकता है।
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के भारत पर प्रभाव
- आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान: भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोटिव और फार्मास्युटिकल उद्योग चीनी कलपुर्जों पर बहुत अधिक निर्भर हैं। चीनी वस्तुओं पर टैरिफ लगाने से ये आपूर्ति श्रृंखलाएँ बाधित हुई हैं, जिससे लागत बढ़ी है और शिपमेंट में देरी हुई है। उदाहरण के लिए, भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र को सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले पैनल जैसे कलपुर्जों की आपूर्ति में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनका आयात मुख्य रूप से चीन से होता है।
- औषधि क्षेत्र: भारतीय दवाओं में इस्तेमाल होने वाले लगभग 70% सक्रिय फार्मास्युटिकल (एपीआई) चीन से आयात किए जाते हैं। व्यापार युद्ध के कारण टैरिफ से जुड़ी लागत में वृद्धि और आपूर्ति में बाधाएँ आई हैं, जिससे आवश्यक दवाओं की उपलब्धता और सामर्थ्य को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं। ये चुनौतियाँ जेनेरिक दवाओं के एक प्रमुख निर्यातक के रूप में भारत की स्थिति को कमजोर करती हैं।
- आर्थिक विकास: अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध ने वैश्विक माँग को कमज़ोर कर दिया है, जिससे भारत की जीडीपी वृद्धि धीमी हो गई है। उदाहरण के लिए, 2019-20 में, भारत की जीडीपी वृद्धि दर गिरकर 4.2% रह गई, जिसका एक कारण वैश्विक व्यापार प्रवाह पर व्यापार युद्ध का प्रभाव भी था। इन दबावों ने घरेलू खर्च और व्यावसायिक लागतों में वृद्धि की है।
- नीतिगत प्रतिक्रियाएँ: व्यापार युद्ध की चुनौतियों के जवाब में, भारत रणनीतिक पुनर्गठन और नीतिगत प्रतिक्रियाओं की तलाश कर रहा है। सरकार जापान, दक्षिण कोरिया और यूके जैसे बाजारों पर ध्यान केंद्रित करते हुए व्यापार साझेदारियों में विविधता ला रही है। मई 2025 में हस्ताक्षरित भारत-यूके व्यापक आर्थिक एवं व्यापार समझौते (सीईटीए) का उद्देश्य यूके को होने वाले 99% भारतीय निर्यात पर शुल्क समाप्त करना है।
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से निपटने की रणनीतियाँ
- विश्व व्यापार संगठन का अपीलीय निकाय 2019 से निष्क्रिय है। विश्व व्यापार संगठन की विवाद निपटान प्रणाली को पुनर्जीवित करने के लिए G20 और क्वाड के सदस्यों देशों को संगठित होना चाहिए। इस प्रकार का संगठन बड़े स्तर पर व्यापार विवादों को सुलझाने और वैश्विक व्यापार को स्थिर करने में एक संरचित मंच प्रदान करेगा।
- विकासशील देशों को दक्षिण-दक्षिण व्यापार नेटवर्क में निवेश करके अमेरिका-चीन व्यापार अक्ष पर निर्भरता कम करना चाहिए। भारत-अफ्रीका, भारत-आसियान और भारत-लैटिन अमेरिका गलियारे का प्रयोग इस जोखिम को कम कर सकता है।
- यूरोप द्वारा एशिया के साथ संबंधों को मजबूत करने से वैश्विक व्यापार का विकेंद्रीकरण कम किया जा सकता है। इसके लिए यूरोपीय संघ के देशों और एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के बीच द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौते निवेश, प्रौद्योगिकी विनिमय और आपूर्ति श्रृंखला विविधीकरण को सुगम बनाया जाना चाहिए।
- APEC, BRICS और G20 जैसे मंचों को आर्थिक सहयोग को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसमें शामिल सदस्य देशों को संवाद, साझा मानकों और समन्वित व्यापार नीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इस दृष्टिकोण से भविष्य ने तनाव कम हो सकता है और छोटी अर्थव्यवस्थाओं को आर्थिक झटके से बचाया जा सकता है।