रूस के साथ बढ़ते तनाव के बीच ट्रम्प का बड़ा कदम: दो परमाणु पनडुब्बियां तैनात करने का आदेश

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव के भड़काऊ बयानों के जवाब में दो अमेरिकी परमाणु पनडुब्बियों की तैनाती का आदेश दिया है। ट्रंप ने यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए उठाया और कहा कि ऐसे भड़काऊ बयान अनपेक्षित और गंभीर परिणामों को जन्म दे सकते हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई अमेरिकी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए है।

वहीं दूसरी ओर, दिमित्री मेदवेदेव ने ट्रंप पर रूस को धमकाने का आरोप लगाया और आगाह किया कि हर नया अल्टीमेटम संभावित रूप से युद्ध की दिशा में ले जा सकता है। इस तीखी बयानबाज़ी ने अमेरिका और रूस के बीच बढ़ते तनाव को उजागर कर दिया है, जो पहले से ही भू-राजनीतिक स्तर पर कई मुद्दों को लेकर टकराव में हैं। दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच यह टकराव वैश्विक शांति और स्थिरता के लिहाज़ से चिंताजनक माना जा रहा है।

अमेरिका-रूस के बीच बढ़ता तनाव:  

हालिया तनाव की शुरुआत उस समय हुई जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को चेतावनी दी कि अगर उन्होंने यूक्रेन में युद्धविराम की शर्तों को स्वीकार नहीं किया, तो अमेरिका रूस पर और कड़े प्रतिबंध लगाएगा। ट्रंप ने इसे “सीजफायर-या-सैंक्शन डेडलाइन” करार दिया, जिसे रूस ने आक्रामक अल्टीमेटम की तरह लिया।

इस बयान के जवाब में रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने अमेरिका को रूस की परमाणु प्रणाली “डेड हैंड” की याद दिलाई, एक ऐसी प्रणाली जो रूस पर पहले हमले की स्थिति में स्वतः जवाबी परमाणु हमला कर देती है। ट्रंप ने इस चेतावनी को गंभीर परमाणु खतरा मानते हुए दो अमेरिकी परमाणु पनडुब्बियां रूस के करीब तैनात करने का आदेश दिया और मेदवेदेव को “फेल्ड प्रेजिडेंट” कहते हुए चेतावनी दी कि वे “खतरनाक जमीन” पर कदम रख रहे हैं।

कौन हैं दिमित्री मेदवेदेव? दिमित्री मेदवेदेव 2008 से 2012 तक रूस के राष्ट्रपति रहे। उस समय व्लादिमीर पुतिन संविधानिक सीमा के चलते राष्ट्रपति नहीं बन सकते थे, इसलिए मेदवेदेव को सामने लाया गया। लेनिनग्राद (अब सेंट पीटर्सबर्ग) में जन्मे मेदवेदेव पेशे से वकील हैं और 1990 के दशक से ही पुतिन के करीबी माने जाते रहे हैं। राष्ट्रपति बनने से पहले उन्होंने गैज़प्रॉम के चेयरमैन, उप प्रधानमंत्री और चीफ ऑफ स्टाफ जैसे अहम पदों पर काम किया। उनके राष्ट्रपति काल में New START जैसी परमाणु संधियों और पुलिस सुधार जैसे कई शांतिपूर्ण पहल हुए थे। 2020 तक वे रूस के प्रधानमंत्री रहे और वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष हैं, हालांकि उनकी वास्तविक ताकत सीमित मानी जाती है।

 

डेड हैंड क्या है

डेड हैंड, जिसे ‘पेरिमीटर’ सिस्टम भी कहा जाता है, सोवियत यूनियन द्वारा 1980 के दशक में विकसित किया गया एक अत्यंत गोपनीय और खतरनाक परमाणु रिटैलिएशन (जवाबी हमला) सिस्टम है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि अगर दुश्मन देश (विशेष रूप से अमेरिका) रूस पर परमाणु हमला करे और पूरा नेतृत्व खत्म हो जाए, तो भी रूस की ओर से जवाबी परमाणु हमला संभव हो सके।

यह सिस्टम पूरी तरह ऑटोमैटिक है। यदि यह तय हो जाता है कि रूस के सभी प्रमुख नेता मारे जा चुके हैं और देश के कमांड सेंटर निष्क्रिय हैं, तो डेड हैंड खुद-ब-खुद परमाणु हथियार लॉन्च कर सकता है। इसमें विशेष सेंसर, कमांड चैनल और मिसाइल लॉन्च मैकेनिज़म जुड़े होते हैं, जो हर परिस्थिति में प्रतिशोध को सुनिश्चित करते हैं।

 

परमाणु पनडुब्बी क्या होती है?

परमाणु पनडुब्बी को देखकर कोई नहीं कह सकता कि वह किसी आम डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी से अलग है, लेकिन इसका असली फर्क इसकी “ऊर्जा प्रणाली” में छिपा होता है। यह कोई परमाणु हथियार नहीं होती, बल्कि एक ऐसी पनडुब्बी होती है जो परमाणु ऊर्जा से चलती है।

इसमें एक न्यूक्लियर रिएक्टर लगा होता है, जो यूरेनियम जैसे ईंधन के परमाणु विखंडन से ऊर्जा उत्पन्न करता है। जब यूरेनियम के परमाणु टूटते हैं, तो वे भारी मात्रा में गर्मी उत्पन्न करते हैं। इस गर्मी से पानी भाप में बदलता है, और फिर उस भाप से टर्बाइन घुमाई जाती है, जिससे पनडुब्बी को शक्ति मिलती है।

जैसे बिजली संयंत्रों में परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाई जाती है, ठीक उसी सिद्धांत पर परमाणु पनडुब्बी का संचालन होता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह महीनों तक सतह पर आए बिना पानी के नीचे गश्त कर सकती है जो किसी भी सैन्य रणनीति में अत्यधिक लाभदायक होता है। यह स्टील्थ, सहनशक्ति और लंबे समय तक अभियान चलाने की क्षमता के मामले में पारंपरिक पनडुब्बियों से कहीं अधिक प्रभावी होती है।

इसलिए, ‘परमाणु पनडुब्बी’ शब्द का अर्थ केवल हथियारों से नहीं, बल्कि इसकी चालने की क्षमता और ऊर्जा स्रोत से है। यही वजह है कि दुनिया की महाशक्तियां इसे रणनीतिक संतुलन और समुद्री प्रभुत्व के लिए अत्यंत आवश्यक मानती हैं।

 

अमेरिका की परमाणु पनडुब्बी क्षमता:

अमेरिका और रूस, दोनों की नौसेनाएं अत्याधुनिक परमाणु पनडुब्बियों से लैस हैं जो उनकी सामरिक ताकत और वैश्विक प्रभुत्व की रीढ़ मानी जाती हैं।

  • अमेरिका के पास ओहायो-क्लास बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों की 14 यूनिट्स हैं, जिन्हें ‘बूमर्स’ कहा जाता है। ये पनडुब्बियां Trident II D5 मिसाइलों से लैस हैं और स्टेल्थ के मामले में बेहद उन्नत हैं।
  • साथ ही, अमेरिका की वर्जीनिया-क्लास, सीवुल्फ-क्लास और लॉस एंजेलिस-क्लास जैसी फास्ट अटैक पनडुब्बियां समुद्र में गहरे जाकर टॉमहॉक, हार्पून मिसाइलों और टॉरपीडो से हमले की क्षमता रखती हैं।

रूस की परमाणु पनडुब्बी क्षमता

  • दूसरी ओर, रूस की परमाणु नौसेना का मुख्य आधार बोरेई-क्लास SSBNs हैं, जिनमें 16 बुलावा मिसाइलें और टॉरपीडो लॉन्चर लगे होते हैं। ये आधुनिक पनडुब्बियां भविष्य में रूस की रणनीतिक ताकत का केंद्र होंगी।
  • इसके अलावा डेल्टा IV-क्लास पनडुब्बियां अभी भी रूस की समुद्र आधारित परमाणु प्रणाली में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।
  • फास्ट अटैक पनडुब्बियों की बात करें तो रूस के पास यासेन-क्लास और अकुला-क्लास जैसी घातक पनडुब्बियां हैं, जो लंबी दूरी की कैलिब्र, ओनिक्स और ग्रेनिट मिसाइलें दागने में सक्षम हैं।

 

परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी की विशेषता:

परमाणु ऊर्जा से संचालित पनडुब्बियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्हें बार-बार ईंधन भरवाने की आवश्यकता नहीं होती। जब इन्हें सेवा में उतारा जाता है, तो इनमें यूरेनियम आधारित इतना ईंधन पहले से मौजूद होता है कि ये बिना दोबारा रिफ्यूलिंग के 25–30 वर्षों तक लगातार संचालन में रह सकती हैं। यह सुविधा इन्हें पारंपरिक डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों से कहीं अधिक उपयोगी बनाती है, जो कुछ दिनों या हफ्तों के भीतर सतह पर आकर ईंधन या ऑक्सीजन भरने को मजबूर होती हैं।

परमाणु पनडुब्बियां तेज़ रफ्तार से लंबे समय तक समुद्र की गहराइयों में रह सकती हैं, क्योंकि इन्हें ऑक्सीजन या हवा की जरूरत नहीं होती। ये स्टील्थ मोड में महीनों तक सतह पर आए बिना दुश्मन क्षेत्र में रहकर खुफिया जानकारी इकट्ठा करने या रणनीतिक हमले की तैयारी में सक्षम होती हैं।

हालांकि, इनकी निर्माण लागत अत्यंत अधिक होती है। एक न्यूक्लियर सबमरीन बनाने में अरबों डॉलर का खर्च आता है, साथ ही इसके निर्माण और संचालन के लिए अत्यधिक प्रशिक्षित वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि बहुत कम देशों के पास ऐसी पनडुब्बियां हैं और इन्हें उनकी समुद्री शक्ति का सर्वोच्च प्रतीक माना जाता है।

 

भारत के पास परमाणु पनडुब्बियां:

भारत ने समुद्री रणनीतिक शक्ति में एक अहम मुकाम हासिल किया है—देश के पास अब दो स्वदेशी परमाणु पनडुब्बियां हैं: INS अरिहंत और INS अरिघात। ये दोनों पनडुब्बियां भारत के “न्यूक्लियर ट्रायड” यानी थल, वायु और जल तीनों माध्यमों से परमाणु हमले की क्षमता को पूरा करती हैं, जिससे भारत की प्रतिरोधक शक्ति और भी मजबूत हुई है।

 

ट्रंप ने नहीं बताया कहां तैनात करेंगे परमाणु पनडुब्बी

डोनाल्ड ट्रंप ने परमाणु पनडुब्बियों की तैनाती की बात तो कही, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया कि उन्हें वास्तव में कहां तैनात किया जाएगा। यह रणनीतिक अस्पष्टता जानबूझकर भी हो सकती है, जिससे दुश्मन भ्रम में रहे और अमेरिका की सामरिक योजना के ठिकानों का अंदाज़ा न लगा सके। सैन्य दृष्टिकोण से परमाणु पनडुब्बियों को आमतौर पर रणनीतिक लोकेशनों पर तैनात किया जाता है।

 

रूसी प्रतिक्रिया:

अमेरिकी परमाणु पनडुब्बियों की तैनाती पर रूस की ओर से तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। एक रूसी सांसद ने बयान दिया कि “दोनों अमेरिकी पनडुब्बियों को रवाना होने दीजिए, वे लंबे समय से निशाने पर हैं।