उन्नाव रेप केस: सुप्रीम कोर्ट ने कुलदीप सेंगर की जमानत पर लगाई रोक, पीड़ित फूट-फूटकर रोई

सुप्रीम कोर्ट ने उन्नाव गैंगरेप मामले में पूर्व BJP विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दी गई जमानत पर सोमवार को रोक लगा दी। न्यायालय ने सेंगर को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है। प्रकरण में चार सप्ताह पश्चात पुनः सुनवाई होगी। दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 दिसंबर को सेंगर को जमानत प्रदान की थी।

unnao rape case

CBI ने तीन दिन पूर्व दाखिल की थी याचिका

जमानत के विरुद्ध केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने सर्वोच्च न्यायालय में तीन दिन पूर्व याचिका प्रस्तुत की थी। सोमवार को चीफ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ में सुनवाई संपन्न हुई। पीठ ने दोनों पक्षों की लगभग 40 मिनट तक दलीलें सुनीं।

 

चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी करते हुए कहा, “हाईकोर्ट के जिन न्यायाधीशों ने सजा निलंबित की, वे उत्कृष्ट न्यायाधीशों में गिने जाते हैं, परंतु त्रुटि किसी से भी हो सकती है।”

 

न्यायालय का महत्वपूर्ण आदेश

चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “न्यायालय को प्रतीत होता है कि मामले में महत्वपूर्ण प्रश्नों पर विस्तृत विचार आवश्यक है। सामान्यतः न्यायालय का सिद्धांत है कि किसी दोषी या विचाराधीन बंदी को मुक्त कर दिया गया हो, तो बिना उसे सुने ऐसे आदेशों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाता। परंतु इस प्रकरण में परिस्थितियां भिन्न हैं क्योंकि अभियुक्त दूसरे मामले में पहले से दोषसिद्ध घोषित किया जा चुका है। अतः दिल्ली हाईकोर्ट के 23 दिसंबर 2025 के आदेश पर रोक आरोपित की जाती है।”

 

पीड़ित की भावनात्मक प्रतिक्रिया

सर्वोच्च न्यायालय का आदेश सुनते ही पीड़िता फूट-फूटकर रोने लगी। कार्यकर्ता योगिता भैयाना और अन्य महिलाओं ने उसे संभाला। भावनाओं पर नियंत्रण पाने के पश्चात पीड़िता ने कहा, “मैं इस निर्णय से अत्यंत प्रसन्न हूं। मुझे सुप्रीम कोर्ट से न्याय प्राप्त होगा। मैं इस संघर्ष को जारी रखूंगी। उसे मृत्युदंड दिलाऊंगी, तब जाकर हमारे परिवार को इंसाफ मिलेगा।”

 

सॉलिसिटर जनरल की दलीलें

न्यायालय में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “यह भयावह मामला है। धारा-376 और POCSO कानून के अंतर्गत आरोप निर्धारित हुए थे। ऐसे प्रकरणों में न्यूनतम दंड 20 वर्ष का कारावास हो सकता है, जो संपूर्ण जीवन की जेल तक बढ़ाया जा सकता है।”

 

सॉलिसिटर जनरल ने आगे कहा कि POCSO अधिनियम की धारा 42A पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इस धारा में स्पष्ट रूप से लिखा है कि यदि POCSO कानून और किसी अन्य कानून के मध्य टकराव हो, तो POCSO कानून को प्राथमिकता दी जाएगी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस पहलू पर विचार ही नहीं किया।

 

‘लोक सेवक’ की परिभाषा पर बहस

चीफ जस्टिस ने कहा, “POCSO कानून में ‘लोक सेवक’ की परिभाषा को लेकर अदालत चिंतित है। ऐसा कैसे संभव है कि इस कानून के अंतर्गत एक पुलिस कांस्टेबल को लोक सेवक माना जाए, किंतु किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि, जैसे विधायक या सांसद, को इस दायरे से बाहर कर दिया जाए। न्यायालय को यह असमानता व्यथित कर रही है।”

 

जस्टिस माहेश्वरी ने प्रश्न उठाया कि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह स्पष्ट रूप से कहा भी है अथवा नहीं कि अभियुक्त धारा 376(2)(i) के अंतर्गत दोषी है या नहीं।

 

1997 के आडवाणी केस का संदर्भ

CBI ने 1997 के आडवाणी प्रकरण का हवाला देकर तर्क प्रस्तुत किया कि निर्वाचित विधायक को आपराधिक कानूनों के अंतर्गत लोक सेवक माना जा सकता है। यदि विधायकों को भ्रष्टाचार जैसे अपराधों के लिए सरकारी कर्मचारी माना जा सकता है तो बच्चों के विरुद्ध यौन अपराधों से संबंधित मामलों में भी यही सिद्धांत समान या उससे अधिक कठोरता से लागू होना चाहिए।

 

वास्तव में, CBI ने एलके आडवाणी सहित अनेक राजनीतिक हस्तियों के विरुद्ध 1997 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अंतर्गत मामला दर्ज किया था। आरोप लगाया गया था कि सरकारी लाभ के बदले राजनेताओं को अवैध निधि प्रदान की गई थी। तब यह कानूनी मुद्दा उठा था कि क्या निर्वाचित प्रतिनिधियों को भ्रष्टाचार विरोधी कानून के उद्देश्य से सरकारी कर्मचारी माना जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय का उत्तर सकारात्मक था।

 

उन्नाव रेप केस की पृष्ठभूमि

पीड़िता के साथ 4 जून 2017 को सेंगर ने बलात्कार किया था। वह अधिकारियों के पास चक्कर लगाती रही, परंतु सुनवाई नहीं हुई। इसी बीच, उसके पिता को वृक्ष से बांधकर पीटा गया। पिटाई करने वालों में कुलदीप के भाई अतुल और उनके सहयोगी सम्मिलित थे।

 

8 अप्रैल 2018 को पीड़िता लखनऊ पहुंची और मुख्यमंत्री आवास के समक्ष आत्मदाह का प्रयास किया। सुरक्षाकर्मियों ने उसे बचा लिया। अगले ही दिन समाचार आया कि पीड़िता के पिता की पुलिस हिरासत में मृत्यु हो गई। मामले में कुलदीप, उसके भाई, माखी थाने के एसएचओ सहित 10 लोग आरोपी बने और बाद में इन्हें सजा हुई।

 

मामला CBI को हस्तांतरित

12 अप्रैल 2018 को प्रकरण CBI को हस्तांतरित कर दिया गया। सेंगर के विरुद्ध मामला दर्ज हुआ और उसे गिरफ्तार करके कारावास भेज दिया गया। इसी बीच, पीड़िता के चाचा, जो इस मामले में उसकी सहायता कर रहे थे, उन्हें 19 वर्ष पुराने मामले में 10 वर्ष की सजा हो गई। पीड़िता एकाकी हो गई।

 

28 जुलाई 2019 को वह अपनी मौसी, चाची और अधिवक्ता के साथ जा रही थी, तभी एक ट्रक ने टक्कर मार दी। मौसी-चाची की मृत्यु हो गई। पीड़िता बच गई। मामले में कुलदीप के विरुद्ध षड्यंत्र का मामला दर्ज हुआ।

 

तीस हजारी कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मामले को गंभीरता से लिया। प्रकरण दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में स्थानांतरित करवाया। 45 दिन तक निरंतर सुनवाई के पश्चात न्यायालय ने सेंगर को दोषी पाया और 21 दिसंबर 2019 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

 

पीड़ित परिवार की प्रतिक्रिया

पीड़िता की माता ने कहा, “मैं इस निर्णय के लिए सुप्रीम कोर्ट को धन्यवाद देना चाहती हूं। सुप्रीम कोर्ट ने मेरे साथ न्याय किया है। मेरे परिवार को सुरक्षा चाहिए। हमारे अधिवक्ताओं को सुरक्षा चाहिए। मैं सरकार से निवेदन करती हूं कि हम सबको सुरक्षित रखें। हाई कोर्ट के दोनों न्यायाधीशों ने हमारे साथ अन्याय किया। हाई कोर्ट से मेरा विश्वास टूट गया था, अब मुझे थोड़ी राहत प्राप्त हुई है।”

 

कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया

महिला कार्यकर्ता योगिता भैयाना ने कहा, “सत्यमेव जयते। हमें इस आदेश की आशा थी। सुप्रीम कोर्ट इस मामले के प्रति संवेदनशील रहा है। यही न्याय की मूल भावना थी। यह राष्ट्र की बेटियों को संदेश देगा कि यदि उन्हें अन्याय का सामना करना पड़े, तो उन्हें न्याय अवश्य मिलेगा।”

 

कांग्रेस नेता मुमताज पटेल ने कहा, “इस आदेश से आशा की किरण दिखाई दी। हम चाहते हैं कि बालिका को न्याय प्राप्त हो। अब प्रतीत होता है कि हम उस दिशा में हैं। प्रत्येक बलात्कारी को मृत्युदंड की सजा प्राप्त होनी चाहिए।”

 

यह मामला न्याय व्यवस्था में जनता के विश्वास और कानून की समानता के सिद्धांत का प्रतीक बन गया है।