अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने एक बार फिर मौद्रिक नीति में बदलाव करते हुए ब्याज दरों में 25 बेसिस पॉइंट यानी 0.25 प्रतिशत की कमी का ऐलान किया है। इस निर्णय के बाद फेड की बेंचमार्क दर 3.50 प्रतिशत से 3.75 प्रतिशत की रेंज में आ गई है। इससे पूर्व 29 अक्टूबर को भी फेड ने समान मात्रा में कटौती की थी, जिसके बाद यह 3.75 प्रतिशत से 4.00 प्रतिशत के स्तर पर थी।
केंद्रीय बैंक ने यह महत्वपूर्ण कदम दो प्रमुख आर्थिक कारणों को ध्यान में रखते हुए उठाया है। पहला, रोजगार बाजार में देखी जा रही नरमी और दूसरा, मुद्रास्फीति के स्तर में आई बढ़ोतरी। दोनों ही स्थितियां अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रही हैं।
लगातार तीसरी कटौती का सिलसिला
यह लगातार तीसरा अवसर है जब फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में कमी की है। इससे पहले 17 सितंबर और 29 अक्टूबर को भी दरों में कुल मिलाकर 0.50 प्रतिशत की छूट दी गई थी। उस समय ब्याज दरें पहले 4 प्रतिशत से 4.25 प्रतिशत और फिर 3.75 प्रतिशत से 4 प्रतिशत के बीच निर्धारित की गई थीं।
फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (FOMC) ने इस महत्वपूर्ण निर्णय के पक्ष में 9-3 के अनुपात से मतदान किया। यह स्पष्ट करता है कि कमेटी के अधिकांश सदस्य इस कटौती के समर्थन में थे, हालांकि कुछ असहमति भी दर्ज की गई।
पिछले वर्ष की दरों में कमी का इतिहास
गौरतलब है कि पिछले वर्ष भी फेड ने तीन मौकों पर ब्याज दरों में कटौती की थी। दिसंबर में 0.25 प्रतिशत, नवंबर में 0.50 प्रतिशत और सितंबर में 0.25 प्रतिशत की कमी की गई थी। उस दौरान दरें 4.25 प्रतिशत से 4.50 प्रतिशत की सीमा में बनी रहीं।
सितंबर 2024 की यह कटौती विशेष रूप से उल्लेखनीय थी क्योंकि यह लगभग चार वर्षों के अंतराल के बाद की गई थी। फेड ने मार्च 2020 के बाद पहली बार सितंबर 2024 में ब्याज दरों में कमी की थी।
फेड रिजर्व ने इस तरह ब्याज दरें बढ़ाईं | ||
Meeting Date | Rate Change (bps) | Federal Funds Rate |
July 26, 2023 | ↑ 25 | 5.25%-5.50% |
May 3, 2023 | ↑ 25 | 5.00%-5.25% |
March 22, 2023 | ↑ 25 | 4.75%-5.00% |
February 1, 2023 | ↑ 25 | 4.50%-4.75% |
December 14, 2022 | ↑ 50 | 4.25%-4.50% |
November 2, 2022 | ↑ 75 | 3.75%-4.00% |
September 21, 2022 | ↑ 75 | 3.00%-3.25% |
July 27, 2022 | ↑ 75 | 2.25%-2.50% |
June 16, 2022 | ↑ 75 | 1.50%-1.75% |
May 5, 2022 | ↑ 50 | 0.75%-1.00% |
March 17, 2022 | ↑ 25 | 0.25%-0.50% |
मुद्रास्फीति नियंत्रण के लिए पूर्व में बढ़ाई थीं दरें
मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से केंद्रीय बैंक ने मार्च 2022 से जुलाई 2023 की अवधि में कुल 11 बार ब्याज दरों में वृद्धि की थी। यह महंगाई से निपटने की एक आक्रामक रणनीति थी जो उस समय की परिस्थितियों के अनुरूप थी।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव
बाजार के जानकारों और आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि फेड की यह नीतिगत कटौती अमेरिकी शेयर बाजारों के लिए अनुकूल साबित होगी। इसका प्रमुख कारण यह है कि कम ब्याज दरों से उधार लेना सस्ता हो जाता है, जिससे कॉर्पोरेट सेक्टर अधिक पूंजी निवेश कर सकता है।
भारत सहित अन्य विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी यह सकारात्मक संकेत माना जा रहा है। अमेरिकी ब्याज दरों में आई कमी से विदेशी निवेशकों का रुझान भारतीय बाजारों की ओर बढ़ने की संभावना है, क्योंकि उन्हें बेहतर रिटर्न की उम्मीद होगी।
फेड की बैठक में विभाजित राय
इस निर्णय को अक्टूबर की बैठक जितना ही विवादास्पद बताया जा रहा है। अक्टूबर में भी जब दरों में कटौती हुई थी, तब सदस्यों के बीच मतभेद देखे गए थे। एक ओर क्षेत्रीय बैंकों के अध्यक्ष मुद्रास्फीति के जोखिम को देखते हुए अधिक कठोर नीति की वकालत कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के सदस्य रोजगार बाजार की कमजोरी को लेकर चिंतित थे।
इस बार भी समान परिदृश्य सामने आया है। फेड के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने स्पष्ट किया कि आगे की कटौती केवल तभी संभव होगी जब श्रम बाजार में वास्तविक गिरावट देखने को मिले।
आर्थिक आंकड़ों का विश्लेषण
सितंबर के अंतिम आंकड़ों के अनुसार, बेरोजगारी दर बढ़कर 4.4 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई थी। साथ ही, कोर पर्सनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर (PCE) मुद्रास्फीति 2 प्रतिशत के लक्ष्य से ऊपर 2.8 प्रतिशत पर दर्ज की गई थी।
हालांकि, नवंबर के रोजगार और मुद्रास्फीति से संबंधित रिपोर्ट सरकारी शटडाउन के कारण विलंबित हो गई हैं। ये महत्वपूर्ण रिपोर्ट फेड की बैठक के कुछ दिनों बाद जारी होंगी, जो आगे की मौद्रिक नीति को आकार देने में अहम भूमिका निभाएंगी।
पॉलिसी रेट: मुद्रास्फीति नियंत्रण का प्रभावी साधन
केंद्रीय बैंकों के पास पॉलिसी रेट एक शक्तिशाली उपकरण है जिसके माध्यम से वे महंगाई पर नियंत्रण स्थापित कर सकते हैं। भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) भी इसी तरह की नीति अपनाता है।
जब अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति का स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है, तो केंद्रीय बैंक पॉलिसी रेट में वृद्धि करता है। इससे बाजार में मुद्रा का प्रवाह कम हो जाता है। जब पॉलिसी रेट बढ़ता है, तो वाणिज्यिक बैंकों के लिए केंद्रीय बैंक से कर्ज लेना महंगा हो जाता है। परिणामस्वरूप, बैंक अपने ग्राहकों को भी अधिक ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराते हैं। इससे बाजार में धन का संचार घटता है, वस्तुओं और सेवाओं की मांग कम होती है और अंततः मुद्रास्फीति में कमी आती है।
इसके विपरीत, जब अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही होती है और उसे प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है, तो केंद्रीय बैंक पॉलिसी रेट में कमी करता है। इससे बैंकों को कम लागत पर ऋण मिलता है और वे उपभोक्ताओं को भी सस्ती दरों पर कर्ज उपलब्ध करा सकते हैं। इस प्रकार बाजार में धन का प्रवाह बढ़ता है और अर्थव्यवस्था को गति मिलती है।
निष्कर्ष:
फेडरल रिजर्व का यह ताजा निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों की नजर अब आगामी आर्थिक आंकड़ों और फेड की भावी नीति पर टिकी है। भारतीय निवेशकों और व्यापारिक जगत को इस बदलाव के सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।
