अमेरिकी सरकार ने संकटग्रस्त चिप निर्माता कंपनी इंटेल (Intel) में लगभग 10% हिस्सेदारी खरीदते हुए 8.9 अरब डॉलर का निवेश किया है। इसकी घोषणा शुक्रवार को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इंटेल कंपनी ने संयुक्त रूप से की।
दरअसल, पिछली बाइडन सरकार ने इंटेल को बड़ी आर्थिक मदद देने का फैसला किया था, लेकिन उस समय निवेश को लेकर हिस्सेदारी का कोई प्रावधान नहीं था। ट्रंप प्रशासन ने इस फैसले की आलोचना करते हुए स्पष्ट किया था कि सरकारी सहायता सीधे इक्विटी हिस्सेदारी के रूप में होनी चाहिए। इसी दृष्टिकोण के चलते अब समझौता हुआ है, जिसके तहत अमेरिकी सरकार न केवल इंटेल को आर्थिक रूप से सहारा देगी, बल्कि कंपनी में सीधा स्वामित्व भी प्राप्त करेगी।
अमेरिकी सरकार ने इंटेल को ₹68,100 करोड़ की सब्सिडी दी
अमेरिकी सरकार ने इंटेल को 2022 के CHIPS एक्ट के तहत बड़े पैमाने पर सब्सिडी प्रदान की है। इस एक्ट के अंतर्गत इंटेल को कुल 7.8 अरब डॉलर (लगभग ₹68,100 करोड़) की सब्सिडी स्वीकृत की गई थी। कंपनी को अब तक 2.2 अरब डॉलर (लगभग ₹19,200 करोड़) जारी किए जा चुके हैं। शेष 5.7 अरब डॉलर (लगभग ₹49,764 करोड़) के साथ-साथ कुछ अतिरिक्त फंडिंग को अमेरिकी सरकार इंटेल के शेयरों में निवेश के रूप में जारी करने की योजना बना रही है। इस प्रकार सब्सिडी और निवेश का यह मॉडल न केवल अमेरिकी सेमीकंडक्टर उद्योग को मजबूती देगा बल्कि घरेलू चिप निर्माण क्षमता को भी नई गति प्रदान करेगा।
अमेरिकी सरकार को 1.9 अरब डॉलर का लाभ
अमेरिकी सरकार को पहले जारी किए गए 11.1 अरब डॉलर के फंड और गिरवी रखे गए शेयरों के ट्रांसफर के माध्यम से हिस्सेदारी मिली है। इसके तहत ट्रंप सरकार को 433.3 मिलियन गैर-वोटिंग शेयर प्राप्त हुए, जिनकी कीमत 20.47 डॉलर प्रति शेयर आंकी गई है। यह मूल्य शुक्रवार के बाजार बंद भाव 24.80 डॉलर से थोड़ा कम है। हालांकि, इन शेयरों के जरिए अमेरिकी सरकार को अब तक लगभग 1.9 अरब डॉलर का लाभ हो चुका है, जिससे यह सौदा सरकार के लिए वित्तीय दृष्टि से अत्यंत फायदेमंद साबित हुआ है।

सेमीकंडक्टर सेक्टर में अमेरिका की बढ़त
अमेरिका सेमीकंडक्टर सेक्टर में अपनी स्थिति को और मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। ट्रंप की रणनीति का मुख्य उद्देश्य वैश्विक चिप निर्माण (global chipmaking) में अमेरिका की भूमिका को बढ़ाना है। सेमीकंडक्टर आज की दुनिया में केवल तकनीक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और तकनीकी नेतृत्व का केंद्र माने जाते हैं। इनका महत्व इतना है कि ये स्मार्टफोन और इलेक्ट्रिक वाहनों से लेकर आधुनिक रक्षा प्रणालियों तक हर क्षेत्र में अनिवार्य हो चुके हैं।
इंटेल डील: जोखिम और संभावनाओं के बीच अमेरिका का बड़ा दांव
अमेरिकी सरकार द्वारा इंटेल में हिस्सेदारी लेने का फैसला असामान्य माना जा रहा है, क्योंकि आमतौर पर सरकार केवल युद्ध या गंभीर आर्थिक संकट जैसी परिस्थितियों में ही इस तरह के कदम उठाती है। 2008 में जनरल मोटर्स में सरकार की 60 फीसदी हिस्सेदारी इसका बड़ा उदाहरण है, जिसे अंततः 10 अरब डॉलर के नुकसान के साथ बेचना पड़ा था।
इंटेल के मामले में भी जोखिम और संभावनाएं दोनों मौजूद हैं। अगर कंपनी अपनी स्थिति सुधारने में विफल रहती है, तो इसका बोझ अमेरिकी करदाताओं पर पड़ सकता है। वहीं, यदि इंटेल अपनी पुरानी ताकत हासिल कर लेती है, तो यह अमेरिका की चिप इंडस्ट्री के लिए बड़ी उपलब्धि साबित होगी। इसी संदर्भ में, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में इंटेल के सीईओ लिप-बू तान से व्हाइट हाउस में मुलाकात की। पहले ट्रंप ने उनसे उनके पुराने चीनी निवेशों के कारण इस्तीफा मांगा था, लेकिन मुलाकात के दौरान तान ने अमेरिका के प्रति अपनी निष्ठा स्पष्ट की। इसके बाद ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से उनकी सराहना भी की।
इंटेल कॉरपोरेशन के बारे मे :
इंटेल कॉरपोरेशन, जिसकी स्थापना 18 जुलाई 1968 को रॉबर्ट नोयस और गॉर्डन मूर ने की थी, दुनिया की सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर कंपनियों में से एक है। सिलिकॉन वैली, कैलिफोर्निया के सांता क्लारा में मुख्यालय वाली यह कंपनी माइक्रोप्रोसेसर निर्माण की अग्रदूत रही है। इंटेल ने 1971 में दुनिया का पहला व्यावसायिक माइक्रोप्रोसेसर चिप बनाया और व्यक्तिगत कंप्यूटरों की सफलता के साथ ही इसका व्यवसाय तेजी से बढ़ा। कंपनी की पहचान केवल माइक्रोप्रोसेसर तक सीमित नहीं रही, बल्कि SRAM और DRAM मेमोरी चिप्स के शुरुआती विकास में भी इसका योगदान रहा। आज भी अधिकांश कंप्यूटर कंपनियाँ इंटेल के चिप्स का इस्तेमाल करती हैं, जिससे यह वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर क्षेत्र की प्रमुख ताकत बनी हुई है।
वर्तमान कारोबारी स्थिति और चुनौतियाँ
हालांकि, मौजूदा समय में इंटेल कई चुनौतियों का सामना कर रही है। तकनीकी दृष्टि से यह ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (TSMC) से पिछड़ गई है, जो एपल, एनवीडिया, क्वालकॉम, एएमडी जैसी दिग्गज कंपनियों के लिए चिप्स बनाती है। प्रतिस्पर्धा से निपटने के लिए इंटेल ने अमेरिका के ओहियो राज्य में अरबों डॉलर की लागत से नई फैक्ट्रियाँ स्थापित करने की योजना बनाई है, जिसे कंपनी ने “सिलिकॉन हार्टलैंड” नाम दिया है। यहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समेत उन्नत तकनीक वाले चिप्स बनाए जाने की योजना है। लेकिन बाजार की अनिश्चितताओं और वैश्विक परिस्थितियों के चलते निर्माण की रफ्तार धीमी कर दी गई है, और अब उम्मीद है कि ये फैक्ट्रियाँ वर्ष 2030 तक ही शुरू हो पाएंगी।