साउथ कोरिया की न्यूक्लियर पनडुब्बियां बनाने में मदद करेगा अमेरिका: क्या होगी चीन और उत्तर कोरिया की प्रतिक्रिया?, जानिए पूरी खबर..

अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने सुरक्षा सहयोग को एक नए स्तर पर ले जाते हुए एक बड़ा रक्षा समझौता किया है। इस समझौते के तहत अमेरिका ने दक्षिण कोरिया को परमाणु ऊर्जा से चलने वाली हमलावर पनडुब्बियाँ बनाने की मंजूरी दे दी है। अमेरिका न केवल इन पनडुब्बियों के लिए ईंधन उपलब्ध कराएगा, बल्कि तकनीकी सहायता भी देगा। कोरियाई प्रायद्वीप पर बढ़ते तनाव, उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम और चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच यह साझेदारी दोनों देशों के रिश्तों में एक महत्वपूर्ण मोड़ मानी जा रही है।

us will help south korea build nuclear submarines

अक्टूबर में ही हुई थी घोषणा:

अक्टूबर में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली जे म्युंग और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मुलाकात के बाद यह संयुक्त घोषणा की गई थी। पिछले महीने हुए इस व्यापार समझौते के अनुसार, दक्षिण कोरिया अमेरिका में 29.58 लाख करोड़ रुपये का निवेश करेगा। इसमें 16.9 लाख करोड़ रुपये नकद निवेश और 12.68 लाख करोड़ रुपये जहाज निर्माण क्षेत्र में लगाए जाएंगे।

 

किम जंग-क्वान और हॉवर्ड लुटनिक ने किया समझौते पर हस्ताक्षर:

दक्षिण कोरिया के उद्योग मंत्री किम जंग-क्वान और अमेरिका के वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने शुक्रवार को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। यह 27 बिंदुओं वाला गैर-बाध्यकारी दस्तावेज है, जिसमें रणनीतिक निवेश से जुड़ी परियोजनाओं के लिए प्रक्रिया तय की गई है।

इन परियोजनाओं का चयन अमेरिकी राष्ट्रपति, दक्षिण कोरिया से सलाह लेकर करेंगे, और सियोल को फैसला आने के 45 दिनों के भीतर धनराशि भेजनी होगी। इस समझौते के साथ ट्रम्प के टैरिफ को लेकर तीन महीने से चल रही खींचतान खत्म हो गई। दक्षिण कोरिया खास तौर पर सेमीकंडक्टर और ऑटोमोबाइल जैसे अपने बड़े निर्यातों पर भारी शुल्क लगने की आशंका से परेशान था।

 

दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति ली ने क्या कहा ?

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली ने शुक्रवार को कहा कि अमेरिका के साथ व्यापार, वाणिज्य और सुरक्षा से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातचीत पूरी हो गई हैं। उन्होंने कहा कि अच्छी प्रतिस्पर्धा के लिए अच्छे साझेदार जरूरी होते हैं, और राष्ट्रपति ट्रम्प के समझदारी भरे फैसलों की वजह से ही यह महत्वपूर्ण समझौता हो सका।

ली ने बताया कि इस समझौते के तहत दक्षिण कोरिया अब अमेरिका के साथ जहाज निर्माण, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और परमाणु उद्योग जैसे क्षेत्रों में नई साझेदारी करेगा। इससे अमेरिका को अपने महत्वपूर्ण उद्योगों को फिर से मजबूत बनाने में मदद मिलेगी, जैसे कभी अमेरिका ने दक्षिण कोरिया की प्रगति में मदद की थी।

 

बाजार में स्थिरता लाने पर सहमति:

अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने बाज़ार में स्थिरता बनाए रखने पर सहमति जताई है। अमेरिका मान गया है कि वॉन को स्थिर रखने के लिए दक्षिण कोरिया का 200 बिलियन डॉलर का निवेश हर साल 20 बिलियन डॉलर से ज़्यादा की किश्तों में नहीं होगा।

तथ्य पत्र में कहा गया कि यह निवेश बाज़ार में अस्थिरता नहीं पैदा करेगा, और यदि ऐसा होता है तो दक्षिण कोरिया राशि और समय में बदलाव का अनुरोध कर सकता है, जिसे अमेरिका सकारात्मक रूप से देखेगा। इसके साथ ही अमेरिका ने दक्षिण कोरियाई उत्पादों जैसे कारों पर टैरिफ 25% से घटाकर 15% करने पर भी सहमति दी है। यह समझौता दिखाता है कि राष्ट्रपति ली ने परमाणु ऊर्जा चालित पनडुब्बियों और ऊर्जा क्षमताओं के विस्तार सहित प्रमुख सुरक्षा और ऊर्जा पहलों में अहम प्रगति की है।

 

परमाणु पनडुब्बियों का निर्माण निर्माण कहाँ होगा ?

परमाणु पनडुब्बियों का निर्माण हनवा फिली शिपयार्ड में किया जाएगा। यह एक वाणिज्यिक जहाज निर्माण केंद्र है, जिसे 2024 में एक दक्षिण कोरियाई कंपनी खरीदेगी। अभी यह शिपयार्ड न तो परमाणु सामग्री संभालने और न ही सैन्य जहाज बनाने के लिए तैयार है, क्योंकि यह पूरी तरह व्यावसायिक कामों के लिए बनाया गया है।

हनव्हा के मुख्य रणनीति अधिकारी एलेक्स वोंग ने कहा कि ट्रंप और राष्ट्रपति ली ने जहाज निर्माण को अमेरिका–कोरिया साझेदारी का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया है, और हनव्हा अपनी उन्नत शिपबिल्डिंग क्षमता के साथ इसे समर्थन देने के लिए तैयार है।

 

चुनिंदा देशों के साथ अमेरिका साझा करता है यह तकनीक:

अमेरिका अपनी परमाणु प्रणोदन तकनीक बहुत ही चुनिंदा देशों के साथ साझा करता है। अब तक उसने यह तकनीक केवल ब्रिटेन को दी थी, और हाल ही में 2021 के AUKUS समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया को भी दी, ताकि वह परमाणु ऊर्जा से चलने वाली नई पनडुब्बियाँ बना सके। यह तकनीक कई दशकों से कड़ी सुरक्षा में रखी गई थी, लेकिन चीन की बढ़ती सैन्य ताकत ने अमेरिका के सहयोगी देशों को अधिक उन्नत हथियारों की जरूरत महसूस कराई है।

 

परमाणु पनडुब्बी क्यों चाहता है दक्षिण कोरिया?

दक्षिण कोरिया का परमाणु पनडुब्बी क्षमता हासिल करने का प्रयास इस बात का संकेत है कि वह इंडो-पैसिफिक में चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों और उत्तर कोरिया के बढ़ते खतरों से चिंतित है। चीन, जिसके पास अब दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है, पीले सागर में ऐसी संरचनाएँ बना रहा है जिन्हें सियोल संभावित सैन्य चौकियाँ मानता है। हालांकि, दक्षिण कोरिया की यह कदम यह चिंता भी बढ़ा सकता है कि कहीं वह चीन या उत्तर कोरिया के खतरे से निपटने के लिए अपने परमाणु हथियार विकसित करने की दिशा में आगे न बढ़ रहा हो।

 

चीन और उत्तर कोरिया की प्रतिक्रिया:

चीन ने कहा कि अमेरिका और दक्षिण कोरिया के बीच परमाणु पनडुब्बी तकनीक साझा करने का समझौता सिर्फ एक सामान्य व्यावसायिक साझेदारी नहीं है। सियोल में चीन के राजदूत दाई बिंग ने बताया कि यह कदम वैश्विक परमाणु अप्रसार व्यवस्था और कोरियाई प्रायद्वीप तथा आसपास के क्षेत्र की स्थिरता को सीधा प्रभावित कर सकता है।

उत्तर कोरिया ने अभी इस बारे में कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन उसके प्रतिक्रिया देने की संभावना है। वह अक्सर अमेरिका और दक्षिण कोरिया पर आरोप लगाता है कि वे उसकी सीमाओं के पास सैन्य बल तैनात करके भविष्य में आक्रमण की तैयारी कर रहे हैं।

 

परमाणु पनडुब्बियां क्या है ?

परमाणु पनडुब्बियाँ वे पनडुब्बियाँ हैं जो यूरेनियम ईंधन के परमाणु विखंडन से मिलने वाली ऊर्जा पर चलती हैं, जिससे वे डीज़ल पनडुब्बियों की तुलना में अधिक शक्तिशाली, तेज और लंबे समय तक पानी के भीतर रह सकती हैं।

इनमें लगा रिएक्टर गर्मी पैदा करता है, जिससे भाप बनती है और उसी से बिजली बनाकर मोटर या टर्बाइन चलाए जाते हैं। इनके रिएक्टर में आमतौर पर 20% से अधिक समृद्ध यूरेनियम ईंधन उपयोग होता है, जिससे इन्हें कई सालों तक दोबारा ईंधन भरने की जरूरत नहीं पड़ती। साथ ही, सुरक्षा के लिए इनमें डीज़ल जनरेटर का बैकअप भी मौजूद रहता है।

 

दुनिया में सिर्फ 6 देशों के पास परमाणु पनडुब्बियां:

दुनिया में अभी सिर्फ छह देशों के पास ही परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियाँ हैं, अमेरिका, चीन, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और भारत। दक्षिण कोरिया के पास करीब 20 पनडुब्बियाँ जरूर हैं, लेकिन वे सभी डीज़ल से चलती हैं, इसलिए उन्हें बार-बार पानी की सतह पर आना पड़ता है। इसके मुकाबले, परमाणु पनडुब्बियाँ लंबे समय तक पानी के अंदर रह सकती हैं, तेज़ चलती हैं और बहुत दूर तक मिशन कर सकती हैं।

 

निष्कर्ष:

परमाणु पनडुब्बियों की क्षमता मिलने से दक्षिण कोरिया की सुरक्षा और प्रतिरोध क्षमता बढ़ेगी, जबकि अमेरिका का तकनीकी और ईंधन सहयोग इस साझेदारी की गहराई को दर्शाता है। उत्तर कोरिया और चीन से बढ़ती चुनौतियों के बीच यह समझौता क्षेत्रीय स्थिरता व सहयोग को मजबूत करने वाली एक निर्णायक प्रगति साबित हो सकता है।