यूएसआईएसपीएफ ने भारत शांति अधिनियम 2025 की सराहना की।

हाल ही में, यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम (यूएसआईएसएफ) ने शांति अधिनियम को भारत के ऊर्जा परिदृश्य में एक ऐतिहासिक मोड़ और स्वतंत्रता के बाद से देश के नागरिक परमाणु ढांचे का सबसे व्यापक सुधार बताया है।

USISPF commends India Peace Act 2025

SHANTI अधिनियम 2025 के मुख्य प्रावधान:

 

  • कानूनी ढांचे का आधुनिकीकरण: सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (SHANTI) अधिनियम, 2025 ने भारत के परमाणु कानूनों को एक नई दिशा दी है। इस अधिनियम के लागू होने से परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और न्यूक्लियर क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 को समाप्त कर दिया गया है। पहली बार देश के सभी सिविल परमाणु नियम एक ही कानून के अंतर्गत समाहित किए गए हैं। 
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: SHANTI अधिनियम का सबसे बड़ा बदलाव निजी कंपनियों को सिविल परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति देना है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार भारतीय निजी कंपनियां और संयुक्त उपक्रम सरकार की अनुमति से परमाणु रिएक्टरों का निर्माण, स्वामित्व, संचालन और डी-कमीशनिंग कर सकेंगे। 
  • निजी कंपनियों के लिए अनुमत गतिविधियां: नए कानून के तहत पात्र निजी संस्थाएं न्यूक्लियर फ्यूल फैब्रिकेशन से जुड़ी गतिविधियों में भाग ले सकती हैं। इनमें ईंधन का कन्वर्ज़न, रिफाइनिंग और सरकार द्वारा तय सीमाओं के भीतर सीमित संवर्धन शामिल है। इसके साथ ही ऐसी कंपनियों को परमाणु ईंधन, सामग्री, उपकरण, तकनीक और सॉफ्टवेयर का परिवहन, भंडारण, आयात और निर्यात करने की भी अनुमति दी गई है।
  • रणनीतिक क्षेत्रों पर सरकारी नियंत्रण: अधिनियम यह स्पष्ट करता है कि परमाणु ईंधन चक्र के रणनीतिक हिस्से पूरी तरह राज्य के नियंत्रण में रहेंगे। यूरेनियम और थोरियम खनन, निर्धारित सीमा से अधिक आइसोटोपिक संवर्धन, उच्च स्तरीय रेडियोधर्मी कचरा प्रबंधन, स्पेंट फ्यूल रीप्रोसेसिंग और हेवी वाटर उत्पादन केवल केंद्र सरकार या नामित सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा ही किए जाएंगे। इससे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हित सुरक्षित रहते हैं।
  • मजबूत परमाणु सुरक्षा नियामक: SHANTI अधिनियम ने परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) को वैधानिक दर्जा दिया है। अब यह एक कानूनी रूप से सशक्त नियामक है, जो संसद के प्रति जवाबदेह होगा। AERB को सुरक्षा अनुमतियां जारी करने, निरीक्षण करने, विकिरण सीमा लागू करने, कचरा निपटान को नियंत्रित करने और नियमों का उल्लंघन होने पर लाइसेंस निलंबित या रद्द करने का अधिकार मिला है।
  • न्यूक्लियर दायित्व व्यवस्था में बदलाव: नए अधिनियम में नो-फॉल्ट लायबिलिटी सिद्धांत को बरकरार रखा गया है। इसका अर्थ है कि परमाणु दुर्घटना की स्थिति में ऑपरेटर जिम्मेदार होगा, चाहे लापरवाही सिद्ध हो या नहीं। हालांकि आपूर्तिकर्ता दायित्व को हटाया गया है, जिससे उपकरण निर्माता तभी जिम्मेदार होंगे जब अनुबंध में स्पष्ट रूप से तय हो। अब ऑपरेटर की दायित्व सीमा रिएक्टर क्षमता श्रेणियों से जुड़ी होगी।
  • क्षतिपूर्ति दावों की विशेष व्यवस्था: SHANTI अधिनियम में न्यूक्लियर विवाद न्यायाधिकरण या न्यूक्लियर क्षति दावा आयोग की स्थापना का प्रावधान है। यह निकाय परमाणु घटनाओं से जुड़े मुआवजा मामलों को विशेष मंच पर सुलझाएगा। इसके निर्णयों के खिलाफ तय समय सीमा में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकेगी।
  • दंड और अनुपालन प्रावधान: अधिनियम में सुरक्षा नियमों के उल्लंघन पर आर्थिक जुर्माने और कानूनी दंड का प्रावधान किया गया है। अपराध की गंभीरता के अनुसार दंड तय होंगे। इससे परमाणु क्षेत्र में अनुपालन और जवाबदेही को मजबूत आधार मिलता है।

 

SHANTI अधिनियम 2025 की आवश्यकता क्यों पड़ी?

 

  • पुराना और अप्रासंगिक कानूनी ढांचा: भारत में परमाणु ऊर्जा से जुड़ा प्रशासन लंबे समय तक परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और न्यूक्लियर क्षति नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 पर आधारित रहा। ये कानून उस दौर में बनाए गए थे, जब परमाणु क्षेत्र में केवल सरकार की भूमिका मानी जाती थी। समय के साथ ऊर्जा की मांग बदली, तकनीक आगे बढ़ी और वैश्विक मानक विकसित हुए। लेकिन यह कानूनी ढांचा उसी पुराने सोच में अटका रहा। नई परियोजनाओं को मंजूरी देना जटिल और अत्यंत धीमा हो गया। इससे निर्णय प्रक्रिया कमजोर हुई।
  • निजी क्षेत्र के लिए बंद दरवाजे: छह दशकों से अधिक समय तक भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन लगभग पूरी तरह सरकारी संस्थानों, विशेष रूप से न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) तक सीमित रहा। निजी कंपनियों के लिए निवेश और संचालन के अवसर लगभग नहीं थे। इस कारण पूंजी, आधुनिक प्रबंधन कौशल और नवाचार का लाभ नहीं मिल पाया। बड़े पैमाने पर विस्तार के लिए आवश्यक वित्त और तकनीकी विशेषज्ञता जुटाना कठिन हो गया।
  • परमाणु क्षमता की धीमी वृद्धि: लंबे समय के प्रयासों के बावजूद भारत की स्थापित परमाणु ऊर्जा क्षमता अपेक्षाकृत कम बनी रही। 2025 के अंत तक यह लगभग 8.8 गीगावाट के आसपास थी। यह प्रगति देश की महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप नहीं थी। उच्च लागत, सीमित परियोजना प्रबंधन क्षमता और पुराने कानूनों से जुड़े नियामकीय अवरोध इसकी मुख्य वजह बने। भविष्य के लक्ष्यों, जैसे 2032 तक 22 गीगावाट और 2047 तक 100 गीगावाट, को हासिल करने के लिए संरचनात्मक सुधार अनिवार्य हो गए।
  • स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों की मजबूरी: भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन और ऊर्जा मिश्रण में स्वच्छ स्रोतों की हिस्सेदारी बढ़ाना इनमें प्रमुख हैं। परमाणु ऊर्जा निरंतर मिलने वाली स्वच्छ बिजली देती है, जो सौर और पवन ऊर्जा की अनिश्चितता को संतुलित करती है। बढ़ते डेटा सेंटर, उद्योग और शहरी जरूरतों के लिए भरोसेमंद बिजली जरूरी है। इसके बिना जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम नहीं हो सकती।
  • नियामकीय विश्वसनीयता की कमी: पहले की व्यवस्था में भारत का परमाणु सुरक्षा नियामक मजबूत वैधानिक अधिकार के बिना काम करता था। इससे उसकी स्वतंत्रता, पारदर्शिता और प्रभावशीलता पर सवाल उठते थे। आम जनता और निवेशकों के बीच सुरक्षा को लेकर भरोसा कमजोर रहा। सुधार की आवश्यकता इसलिए भी थी ताकि एक कानूनी रूप से सशक्त नियामक स्थापित किया जा सके, जो स्पष्ट अधिकारों के साथ सुरक्षा मानकों को लागू कर सके।

 

SHANTI अधिनियम पर USISPF समर्थन का महत्व

 

  • यूएस–इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम (USISPF) द्वारा SHANTI अधिनियम का खुले तौर पर स्वागत किया जाना भारत की ऊर्जा नीतियों पर अंतरराष्ट्रीय भरोसे को दर्शाता है। यह मंच अमेरिका से जुड़े प्रमुख उद्योगों और नीति विशेषज्ञों का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे में इसका समर्थन यह संकेत देता है कि भारत के परमाणु ऊर्जा सुधार अब वैश्विक निवेशकों की नजर में विश्वसनीय और दूरदर्शी माने जा रहे हैं। 
  • SHANTI अधिनियम पर अमेरिकी सरकार की सकारात्मक प्रतिक्रिया भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। अमेरिकी दूतावास ने इसे ऊर्जा सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम बताया। वाशिंगटन की यह इच्छा कि वह भारत के साथ संयुक्त नवाचार और अनुसंधान एवं विकास (R&D) में भागीदारी बढ़ाए, दोनों लोकतांत्रिक देशों के साझा हित को दर्शाती है। 
  • USISPF का समर्थन इस बात का संकेत है कि SHANTI अधिनियम के बाद भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। नए कानूनी ढांचे के तहत अब निजी कंपनियां लाइसेंस के माध्यम से परमाणु संयंत्र बना सकती हैं, उनका स्वामित्व रख सकती हैं और संचालन कर सकती हैं। इससे अमेरिकी कंपनियों के लिए स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR), उन्नत ईंधन प्रणालियों और सुरक्षा तकनीकों में साझेदारी के अवसर खुलते हैं। 
  • आज की दुनिया महाशक्ति प्रतिस्पर्धा, विशेषकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र, से प्रभावित है। इस संदर्भ में भारत और अमेरिका के बीच परमाणु ऊर्जा सहयोग केवल ऊर्जा तक सीमित नहीं रहता। यह सहयोग वैश्विक परमाणु आपूर्ति श्रृंखलाओं के विविधीकरण में योगदान दे सकता है। एक ही आपूर्तिकर्ता पर निर्भरता कम होने से दोनों देशों की ऊर्जा लचीलापन और रणनीतिक स्वायत्तता बढ़ती है।

 

यूएस–इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम (USISPF) क्या है?

 

  • यूएस–इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम (USISPF) एक गैर-लाभकारी संस्था है, जो भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक तथा आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के उद्देश्य से कार्य करती है। 
  • इसकी स्थापना 2017 में की गई थी। संगठन का मूल लक्ष्य दोनों देशों के बीच सरकार, उद्योग जगत और नागरिक समाज के स्तर पर सहयोग को संस्थागत रूप देना है। 
  • यह मंच द्विपक्षीय रिश्तों को केवल कूटनीति तक सीमित न रखकर व्यावहारिक साझेदारी में बदलने पर जोर देता है।
  • USISPF का कार्य मुख्य रूप से नीति समर्थन, व्यावसायिक संवाद और रणनीतिक विमर्श पर केंद्रित है। यह मंच भारत और अमेरिका के नीति निर्माताओं तथा उद्योग नेतृत्व के बीच संवाद को सरल बनाता है। 
  • इसका उद्देश्य व्यापार बाधाओं को कम करना और निवेश के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना है। संगठन नियमित रूप से संवाद सत्र, सम्मेलन और नीति चर्चा आयोजित करता है, जिससे दोनों देशों के साझा हितों को आगे बढ़ाया जा सके।
  • USISPF का मुख्यालय वाशिंगटन डी.सी. में स्थित है, जिससे इसे अमेरिकी प्रशासन और नीति संस्थानों तक सीधी पहुंच मिलती है। इसके साथ ही संगठन की सक्रिय उपस्थिति नई दिल्ली में भी है। 
  • इस मंच से अमेरिका और भारत की प्रमुख कंपनियां जुड़ी हुई हैं। इसके सदस्य ऊर्जा, रक्षा, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, वित्त, विनिर्माण और बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों से आते हैं।
  • संगठन का नेतृत्व वैश्विक और भारतीय कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों वाला बोर्ड करता है। 2021 से इसके अध्यक्ष और सीईओ मुकेश आघी हैं, जिन्होंने मंच को अधिक सक्रिय और प्रभावशाली बनाया है।