भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने सोमवार को राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु को संबोधित पत्र के माध्यम से अपने पद से इस्तीफ़ा प्रस्तुत कर दिया। और राष्ट्रपति ने उनके इस्तीफे को स्वीकार भी कर लिया है, 74 वर्षीय श्री धनखड़ ने अपने पत्र में संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के अंतर्गत उपराष्ट्रपति पद से तत्काल प्रभाव से त्यागपत्र देने की घोषणा की है। उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी कारणों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि अब वे अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना चाहते हैं। श्री धनखड़ ने अगस्त 2022 में भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण किया था तथा उनका कार्यकाल वर्ष 2027 तक निर्धारित था।

किस बीमारी से जूझ रहे थे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़?
9 मार्च 2025 की रात को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को अचानक सीने में दर्द और बेचैनी की शिकायत के बाद दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें अस्पताल की क्रिटिकल केयर यूनिट (CCU) में रखा गया और इलाज वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. राजीव नारंग की देखरेख में हुआ।
डॉक्टरों के अनुसार, उन्हें हृदय संबंधी समस्या थी, जिसे तत्काल नियंत्रित कर लिया गया था। करीब तीन दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद उन्हें 12 मार्च को छुट्टी दे दी गई थी, लेकिन उनकी कार्डियक मॉनिटरिंग जारी रही।
डॉक्टरों की रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि:
- उन्हें हाई ब्लड प्रेशर (उच्च रक्तचाप),
- थकावट (Fatigue) और
- कार्डियक स्ट्रेस (हृदय तनाव) जैसी समस्याएं थीं।
उनकी उम्र और स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए, मेडिकल टीम ने उन्हें लंबे विश्राम और कार्यभार में कटौती की सिफारिश की थी।
हालाँकि श्री धनखड़ ने इसके बावजूद अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियाँ निभाना जारी रखा, लेकिन स्वास्थ्य स्थितियों के चलते अंततः उन्हें पद से इस्तीफा देने का निर्णय लेना पड़ा।
कार्यकाल पूर्ण होने से पहले इस्तीफा देने वाले तीसरे उपराष्ट्रपति बने जगदीप धनखड़
उपराष्ट्रपति पद से त्यागपत्र देने वाले श्री जगदीप धनखड़ भारतीय इतिहास में ऐसे तीसरे उपराष्ट्रपति बन गए हैं जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही पद छोड़ने का निर्णय लिया। हालांकि, पूर्व में जिन दो उपराष्ट्रपतियों ने इस्तीफा दिया, उनके पीछे परिस्थितियाँ भिन्न थीं:
- वी. वी. गिरि: उन्होंने 1969 में राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन के निधन के बाद कार्यवाहक राष्ट्रपति का पदभार संभाला और राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने हेतु उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया।
- आर. वेंकटरमन: उन्होंने 1987 में राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद, शपथ लेने से पूर्व ही उपराष्ट्रपति पद से त्यागपत्र दिया।
इसके विपरीत, श्री धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों के चलते स्वेच्छा से त्यागपत्र दिया है, जबकि उनका कार्यकाल वर्ष 2027 तक निर्धारित था। यह उन्हें इस श्रेणी में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करता है।
आइए जानते है, जगदीप धनखड़ के बारे में: भारत के 14वें उपराष्ट्रपति
जगदीप धनखड़ एक अनुभवी भारतीय राजनीतिज्ञ और पेशे से वकील रहे हैं । वे 2022 में जाकर भारत के उपराष्ट्रपति का पदभार संभालते हैं । इससे पहले वे 2019 से 2022 तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रह चुके हैं। धनखड़ ने 1990 से 1991 तक चंद्रशेखर सरकार में संसदीय कार्य मंत्री का पद भी संभाला था। वे राजस्थान विधानसभा (1993–1998) और लोकसभा (1989–1991) के सदस्य भी रह चुके हैं। उनका ताल्लुक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर एस एस) से रहा एवं
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सदस्य रहे ।
जबकि पहले वे जनता दल और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से भी जुड़े रहे हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जगदीप धनखड़ का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझुनू जिले के किथाना गाँव में एक जाट परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम गोकल चंद और केसरी देवी है। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल से पूरी की। इसके बाद उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से बी.एससी और फिर एलएलबी की पढ़ाई की। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा क्रमशः किथाना और घर्धना सरकारी स्कूलों में हुई। उनका विवाह 1979 में डॉक्टर सुदेश धनखड़ से हुआ और उनकी एक बेटी कामना है।
कानूनी करियर
धनखड़ ने 1979 में राजस्थान बार काउंसिल में वकील के रूप में नामांकन कराया और 1990 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया।
वे सुप्रीम कोर्ट और कई उच्च न्यायालयों में सक्रिय रूप से प्रैक्टिस करते रहे हैं। वे राजस्थान हाई कोर्ट बार एसोसिएशन, जयपुर के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 2016 में वे सतलुज नदी जल विवाद में सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा राज्य की ओर से पेश हुए थे।
राजनीतिक जीवन
धनखड़ ने राजनीति की शुरुआत जनता दल से की और 1989 में झुंझुनू से लोकसभा सांसद बने। वे 1990–91 के दौरान केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री भी रहे । 1991 में कांग्रेस में शामिल होकर अजमेर से लोकसभा चुनाव लड़ा, पर हार गए। इसके बाद वे 1993 से 1998 तक किशनगढ़ (राजस्थान) से विधायक रहे। 1998 में झुंझुनू से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन पराजित हुए। वर्ष 2003 में वे भाजपा में शामिल हुए और 2008 में भाजपा की विधानसभा चुनाव प्रचार समिति के सदस्य बने। 2016 में उन्हें भाजपा का विधि एवं कानून विभाग प्रमुख नियुक्त किया गया।
उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का त्यागपत्र: भावपूर्ण शब्दों में राष्ट्र के प्रति कृतज्ञता
माननीय राष्ट्रपति जी को संबोधित अपने त्यागपत्र में उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने गहन भावनाओं और संवेदनशीलता के साथ अपने पद से इस्तीफ़ा देने की घोषणा की। उन्होंने लिखा: “सेहत को प्राथमिकता देने और डॉक्टर की सलाह का पालन करते हुए, मैं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के अंतर्गत उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देता हूं।”
उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान मिले सहयोग और स्नेह के लिए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद और सांसदों के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा: “माननीय राष्ट्रपति जी, आपका समर्थन अडिग रहा, जिससे मेरा कार्यकाल शांतिपूर्ण और श्रेष्ठ बना। प्रधानमंत्री एवं मंत्रिपरिषद का सहयोग अमूल्य रहा, और मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा। माननीय सांसदों का स्नेह, विश्वास और अपनापन मेरी स्मृति में सदैव अंकित रहेगा।”
श्री धनखड़ ने भारत की प्रगति पर गर्व जताते हुए लिखा:
“इस महान लोकतंत्र में उपराष्ट्रपति के रूप में जो अनुभव और ज्ञान प्राप्त हुआ, वह अत्यंत मूल्यवान है। यह मेरे लिए गर्व और सौभाग्य की बात रही है कि मैंने भारत की अभूतपूर्व आर्थिक प्रगति और उसके परिवर्तनकारी युग का साक्षी बनने का अवसर पाया।”
अंत में, उन्होंने देश की उपलब्धियों और उज्ज्वल भविष्य में अपनी गहरी आस्था व्यक्त करते हुए पत्र को इन शब्दों में समाप्त किया:
“जब मैं इस सम्माननीय पद को छोड़ रहा हूं, मेरे हृदय में भारत की उपलब्धियों और उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए गहरा गर्व और अटूट विश्वास है। गहरी श्रद्धा और आभार के साथ।” – जगदीप धनखड़
आइए अब जान लेते है, भारत के उपराष्ट्रपति के बारे में : एक संवैधानिक पद
भारत के उपराष्ट्रपति का पद संविधान द्वारा परिभाषित एक महत्त्वपूर्ण संवैधानिक पद है, जो देश में राष्ट्रपति के बाद दूसरे सर्वोच्च पद के रूप में स्थापित है। यह पद न केवल विधायी बल्कि कार्यकारी जिम्मेदारियों को भी संतुलित करता है, जिससे भारत की संसदीय प्रणाली और शासन व्यवस्था का सुचारू संचालन सुनिश्चित होता है।
चुनाव प्रक्रिया: संसद के सदस्य करते हैं मतदान
उपराष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली द्वारा संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के निर्वाचित तथा मनोनीत सदस्यों द्वारा किया जाता है। यह चुनाव एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote) से गोपनीय मतपत्र द्वारा संपन्न होता है। राष्ट्रपति चुनाव की तुलना में यह प्रक्रिया भिन्न है, क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव में राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भी भाग लेते हैं, जबकि उपराष्ट्रपति चुनाव केवल संसद के भीतर सीमित होता है। उल्लेखनीय है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी मतदान करते हैं, जबकि राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें यह अधिकार प्राप्त नहीं होता।
शक्तियाँ और कार्य: राज्यसभा के सभापति व कार्यवाहक राष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति भारत की संसद के उच्च सदन, राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। इस भूमिका में वे सदन की कार्यवाही को नियंत्रित करते हैं, जो लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका से मिलती-जुलती होती है। इसके अतिरिक्त, यदि राष्ट्रपति का पद किसी कारणवश रिक्त हो जाता है (जैसे त्यागपत्र, निधन या महाभियोग), तो उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति का कार्यभार संभालते हैं। यह कार्य वे अधिकतम छह महीने तक निभा सकते हैं, इस अवधि में नए राष्ट्रपति का निर्वाचन आवश्यक होता है। कार्यवाहक राष्ट्रपति रहते समय वे राज्यसभा के सभापति की भूमिका का निर्वहन नहीं करते; यह जिम्मेदारी राज्यसभा के उपसभापति निभाते हैं।
कार्यकाल, त्यागपत्र और पुनर्निर्वाचन
उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पांच वर्षों का होता है, जो पदभार ग्रहण की तिथि से गिना जाता है। हालांकि, कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी वे तब तक पद पर बने रह सकते हैं जब तक कि नया उपराष्ट्रपति पदभार ग्रहण न कर ले। उपराष्ट्रपति पुनः निर्वाचित होने के लिए पात्र होते हैं। यदि वे स्वेच्छा से पद छोड़ना चाहें, तो उन्हें राष्ट्रपति को लिखित रूप में अपना इस्तीफ़ा सौंपना होता है।
हटाने की प्रक्रिया: अनुच्छेद 67(ब)
संविधान के अनुच्छेद 67(ब) के तहत, उपराष्ट्रपति को राज्यसभा में प्रभावी बहुमत (total वर्तमान सदस्यों का बहुमत) से पारित एक प्रस्ताव द्वारा पद से हटाया जा सकता है। इस प्रस्ताव को लोकसभा द्वारा साधारण बहुमत से अनुमोदित किया जाना अनिवार्य होता है। प्रस्ताव लाने से पहले संबंधित सदन के सदस्यों को कम से कम 14 दिन पूर्व इसकी लिखित सूचना देनी होती है।
उपराष्ट्रपति के इस्तीफ़े के बाद: जल्द कराना होगा चुनाव
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफ़े के बाद अब यह पद रिक्त हो गया है, और संविधान के अनुसार उनके उत्तराधिकारी के निर्वाचन की प्रक्रिया शीघ्र आरंभ की जानी चाहिए।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 68(2) में स्पष्ट किया गया है कि:
“यदि उपराष्ट्रपति का पद मृत्यु, त्यागपत्र, पद से हटाए जाने या किसी अन्य कारण से रिक्त हो जाता है, तो उस रिक्त पद को भरने के लिए चुनाव ‘यथाशीघ्र’ आयोजित किया जाना चाहिए।”
हालाँकि, संविधान में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि:
- यदि उपराष्ट्रपति अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले त्यागपत्र दें,
- या वह राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहे हों, तो ऐसी स्थिति में राज्यसभा के सभापति के रूप में उनके कर्तव्यों का निर्वहन कौन करेगा।
ऐसे मामलों में आमतौर पर राज्यसभा के उपसभापति कार्यवाहक सभापति की भूमिका निभाते हैं, जब तक कि नया उपराष्ट्रपति निर्वाचित होकर पदभार ग्रहण नहीं कर लेता।
उपराष्ट्रपति पद के लिए संभावित नामों पर चर्चाएं तेज़
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफ़े के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर राजनीतिक चर्चा तेज हो गई है। संभावित नामों में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह प्रमुखता से उभर रहे हैं, जो वर्तमान में सभापति के कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं। उनके अलावा जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कांग्रेस सांसद शशि थरूर के नाम भी चर्चाओं में हैं। हालांकि अब तक किसी नाम की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन निर्वाचन प्रक्रिया शीघ्र आरंभ होने की संभावना है।
