उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारने की मांग को लेकर शुरू हुआ ‘ऑपरेशन स्वास्थ्य’ आंदोलन लगातार जारी है। 2 अक्टूबर को अल्मोड़ा के चौखुटिया से कुछ लोगों के साथ शुरू हुआ यह आंदोलन अब एक बड़े जन आंदोलन में बदल गया है। पूर्व सैनिक भुवन कठैत और बचे सिंह के नेतृत्व में चल रहे इस अभियान में अब हजारों लोग शामिल हो चुके हैं। जल सत्याग्रह और अनशन से शुरू हुई यह लड़ाई अब देहरादून की ओर बढ़ रही है, जहां प्रदर्शनकारी मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री से मुलाकात कर पहाड़ों में बेहतर चिकित्सा सुविधाओं की मांग करेंगे।
क्या हैं प्रदर्शनकारियों की मांग:
- डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ: CHC (Community Health Center) में सर्जन, सामान्य चिकित्सक, स्त्रीरोग विशेषज्ञ, प्रसूति और बाल रोग विशेषज्ञ मौजूद हों। साथ ही 7 से 10 नर्सें, 2 फार्मासिस्ट, लैब तकनीशियन और रेडियोलॉजिस्ट की भी तैनाती की जाए।
- सेवाएं और सुविधाएं: अस्पताल में 24 घंटे OPD और इमरजेंसी सेवाएं मिलें। प्रसव और सर्जरी की सुविधा हो, नवजात बच्चों की देखभाल के लिए विशेष इंतज़ाम हों, कम से कम 30 बेड, ऑक्सीजन, एम्बुलेंस, लैब टेस्ट और दवा की दुकान उपलब्ध हो।
- उपकरण और मशीनें: फेटल मॉनिटर, डिलीवरी बेड, नवजात इंक्यूबेटर, ECG, एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड मशीन जैसी जरूरी मशीनें लगाई जाएं, और इनके साथ प्रशिक्षित रेडियोलॉजिस्ट हों।
- प्रशिक्षित स्टाफ: सभी चिकित्सा उपकरणों का संचालन केवल प्रशिक्षित कर्मचारियों द्वारा किया जाए।
हीरा सिंह पटवाल ने किया जल सत्याग्रह:
हीरा सिंह पटवाल, जो एक सेवानिवृत्त सैनिक हैं, ने चौखुटिया CHC में डॉक्टरों और सुविधाओं की कमी के खिलाफ जल सत्याग्रह किया। उन्होंने कहा कि भले ही उनके पास इलाज के लिए ECHS कार्ड है, लेकिन पहाड़ों के गरीब लोगों के पास न तो संसाधन हैं और न ही सही स्वास्थ्य सुविधाएं। अगर सरकार ने जल्द सुधार नहीं किए, तो वे जल समाधि लेने से भी पीछे नहीं हटेंगे।
7 अक्टूबर की सुबह, पटवाल रामगंगा नदी में उतर गए और तीन घंटे से ज्यादा समय तक कमर तक ठंडे पानी में खड़े रहकर जल सत्याग्रह किया। प्रशासन के कई बार समझाने के बाद भी वे बाहर नहीं आए, आखिरकार पूर्व सैनिक भुवन कठायत के हस्तक्षेप से स्थिति कुछ देर के लिए शांत हो सकी।
अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे थे बचे सिंह:
6 अक्टूबर की रात, 85 साल के बचे सिंह अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए। उनकी हालत बिगड़ने पर प्रशासन ने उन्हें जबरन अस्पताल में भर्ती कराया। जांच के बाद अगले दिन उन्हें छुट्टी दे दी गई। लेकिन इससे आंदोलन कमजोर नहीं पड़ा- बल्कि 10 और ग्रामीण भूख हड़ताल में शामिल हो गए और विरोध जारी रखा।
प्रशासन की हस्तक्षेप कार्रवाई:
7 अक्टूबर की रात प्रशासन ने आंदोलन स्थल से बचे सिंह को स्वास्थ्य कारणों के चलते उठाकर अस्पताल पहुंचाया। इस दौरान वह पुलिसकर्मियों के साथ काफी संघर्ष और विरोध करते नजर आए।
अगले दिन, यानी 8 अक्टूबर को प्रशासन की टीम ने भुवन कठैत को भी इसी कारण अस्पताल ले जाकर उपचार शुरू कराया। पुलिस जब उन्हें लेने पहुंची तो विवाद और धक्का-मुक्की की स्थिति बनी। करीब तीन से चार पुलिसकर्मियों ने उन्हें जबरन उठाने की कोशिश की, हालांकि बाद में कठैत स्वयं की मर्जी से अस्पताल में भर्ती हो गए।
विरोध के बाद उत्तराखंड सरकार ने उठाया था कदम:
लगातार विरोध और 15 दिनों तक चले ‘ऑपरेशन स्वास्थ्य’ आंदोलन के बाद उत्तराखंड सरकार ने चौखुटिया के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) को 50 बिस्तरों वाले उप-जिला अस्पताल में अपग्रेड कर दिया था। स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने बताया कि जल्द ही अस्पताल में डिजिटल एक्स-रे मशीन, नए पद और जरूरी बुनियादी ढाँचा उपलब्ध कराया जाएगा। दो विशेषज्ञ डॉक्टरों “डॉ. मंजू रावत (स्त्री रोग विशेषज्ञ, रायपुर) और डॉ. रेनू अग्निहोत्री (बाल रोग विशेषज्ञ, हल्द्वानी)” की तैनाती भी की गई थी।
लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह फैसला अधूरा है। वे अस्पताल में पूरे स्टाफ, पैरामेडिकल सहायता और आधुनिक उपकरणों की मांग पर अड़े हैं। आंदोलन के नेता भुवन कठायत ने कहा, “ये फैसले सालों पहले हो जाने चाहिए थे। जब तक अस्पताल को पूरी सुविधाएं नहीं मिलतीं, हमारा आंदोलन जारी रहेगा।”
देहरादून की ओर बढ़ रहे प्रदर्शनकारी:
आसपास के गांवों से बढ़ते समर्थन के साथ, ‘ऑपरेशन स्वास्थ्य’ से जुड़े प्रदर्शनकारी अब देहरादून की ओर मार्च पर हैं। उनका उद्देश्य मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के आवासों का घेराव कर पहाड़ी इलाकों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ठोस नीति की मांग करना है।
पूर्व सैनिक भुवन कठायत के नेतृत्व में “चलो देहरादून” अभियान के तहत 26 लोगों की टीम गैरसैंण, कर्णप्रयाग और रुद्रप्रयाग होते हुए राजधानी पहुंचेगी। यह यात्रा करीब 12 से 15 दिन चलेगी। इधर चौखुटिया में भी आंदोलन जारी है- दो लोग आमरण अनशन पर हैं और सात लोग क्रमिक अनशन पर डटे हुए हैं।
उत्तराखंड का स्वास्थ्य ढांचा:
- SCs(Sub-Centers): 1,839 (ज़रूरत 1,515) यानि 21% ज़्यादा
- PHCs(Primary Health Centers): 257 (ज़रूरत 251) यानि 2% ज़्यादा
- CHCs(Community Health Centers): 56 (ज़रूरत 62) यानि 10% की कमी
- शहरी क्षेत्रों में 38 PHCs हैं जबकि ज़रूरत 78 की है यानि 51% की कमी वही, जनजातीय क्षेत्रों में PHCs की 46% कमी है।
- राज्य में 13 जिला अस्पताल, 19 उप-जिला अस्पताल और 4 सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं। 22 दिसंबर 2021 तक 1,147 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर चालू हैं।
- 17 जिलों में मोबाइल मेडिकल यूनिट्स हैं, और 99% आशा कार्यकर्ता तैनात हैं। डॉक्टर-नर्स अनुपात 1:1 है।
- हर 1000 लोगों में से 766 ने OPD और 32 ने भर्ती सेवाएं सरकारी अस्पतालों से लीं। वर्त्तमान में भर्ती सेवाओं में राज्य थोड़ा पीछे है।
निष्कर्ष:
‘ऑपरेशन स्वास्थ्य’ आंदोलन ने साबित कर दिया है कि पहाड़ी क्षेत्रों के लोग बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जागरूक और संगठित हैं। आंदोलन ने सरकार के सामने यह संदेश रखा है कि स्वास्थ्य सुविधाएं केवल ढांचे तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि सभी के लिए सुलभ और प्रभावी होनी चाहिए। यह आंदोलन पूरे उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुधार की दिशा में एक प्रेरक उदाहरण बन चुका है।
