नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के विरोध में हिंसक प्रदर्शन: संसद में घुसे प्रदर्शनकारी, पुलिस फायरिंग में 9 की मौत और दर्जनों घायल..

नेपाल में भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ गुस्सा अब सड़कों पर फूट पड़ा है। राजधानी काठमांडू में हजारों युवाओं, खासकर जनरेशन Z ने मार्च निकालकर सरकार से फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और अन्य प्लेटफॉर्म पर लगाए गए बैन हटाने की मांग की।

यह आंदोलन, जो शुरुआत में ऑनलाइन था, अब एक बड़े जनविरोध में बदल गया है। पुलिस के साथ हुई झड़पों में कई लोगों की मौत और दर्जनों घायल होने की खबर है।

Violent protests against the ban on social media in Nepal

काठमांडू में जुटे हज़ारों युवा:

नेपाल की राजधानी काठमांडू में सोशल मीडिया प्रतिबंध और भ्रष्टाचार के खिलाफ गुस्सा चरम पर पहुँच गया है। हजारों छात्र-युवा सड़कों पर उतर आए, जिसे अब “Gen Z रिवोल्यूशन” कहा जा रहा है।

 

संसद परिसर में घुसे प्रदर्शनकारी:

सोमवार को हालात तब बेकाबू हो गए जब प्रदर्शनकारी संसद भवन के पास लगाए गए बैरिकेड तोड़कर भीतर घुसने लगे। भीड़ को रोकने के लिए पुलिस ने आंसू गैस, पानी की बौछार और फायरिंग का सहारा लिया। इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें हुईं, जिनके वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे हैं।

 

पुलिस गोलीबारी में नौ की मौत, कई घायल:

सोमवार को न्यू बनेश्वर में हुए प्रदर्शनों के दौरान पुलिस की गोलीबारी में कम से कम 9 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई और करीब 42 लोग घायल हो गए। कार्यकारी निदेशक मोहन चंद्र रेग्मी ने बताया कि मृतकों की पहचान अभी नहीं हो पाई है और सभी ने सिविल अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ा। दर्जनों घायलों का इलाज सिविल अस्पताल, एवरेस्ट अस्पताल और आसपास के अन्य मेडिकल सेंटरों में चल रहा है।

 

3 सितंबर को हुआ सोशल मीडिया बैन:

नेपाल सरकार ने 3 सितंबर को फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब समेत 26 सोशल मीडिया साइट्स पर बैन लगा दिया। सरकार ने इन कंपनियों को 28 अगस्त से सात दिन का समय दिया था कि वे संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में रजिस्ट्रेशन कराएं, लेकिन समय सीमा पूरी होने के बाद भी ऐसा नहीं हुआ।

 

क्यों लगाया गया सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबन्ध:

नेपाल सरकार का कहना है कि जिन प्लेटफ़ॉर्म्स ने स्थानीय स्तर पर पंजीकरण और नियमों का पालन नहीं किया, उन्हें ब्लॉक कर दिया गया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स जैसे बड़े प्लेटफॉर्म अब तक शर्तें पूरी नहीं कर पाए हैं, जबकि टिकटॉक और कुछ अन्य ऐप्स ने पंजीकरण करा लिया है। जैसे ही कंपनियां नियमों का पालन करेंगी, प्रतिबंध हटा लिया जाएगा।

 

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लगा प्रतिबंध:

यह कदम नेपाल सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक आदेश के बाद उठाया गया है, जिसमें बिना लाइसेंस वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, ओटीटी ऐप्स और ब्राउज़रों के ज़रिए प्रसारित हो रही सामग्री और विज्ञापनों पर कड़ी निगरानी की आवश्यकता बताई गई थी। जस्टिस टेक प्रसाद धुंगाना और जस्टिस शांति सिंह थापा की संयुक्त पीठ ने सितंबर 2024 में दिए अपने फैसले में कहा था कि ऐसे प्लेटफॉर्म्स को देश के कानूनों का पालन करना होगा और इसके लिए उन्हें अनिवार्य रूप से पंजीकरण कराना होगा। यही वजह है कि सरकार ने अब गैर-पंजीकृत 26 प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगाने का कदम उठाया।

 

भ्रष्टाचार और असमानता भी आंदोलन की मुख्य वजह:

विशेषज्ञों का मानना है कि यह आंदोलन सिर्फ सोशल मीडिया बैन के खिलाफ नहीं है, बल्कि देश में लंबे समय से चल रहे भ्रष्टाचार और आर्थिक असमानता के प्रति गुस्से का नतीजा है। सोशल मीडिया पर रोक ने चिंगारी का काम किया और डिजिटल रूप से सक्रिय युवाओं को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया।

 

देश की स्वतंत्रता और गरिमा से कोई समझौता नहीं: ओली

प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने सोशल मीडिया बैन को सही ठहराते हुए कहा कि देश की स्वतंत्रता, संप्रभुता और गरिमा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। पार्टी सम्मेलन में उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार भ्रष्टाचार और अराजकता के खिलाफ मजबूती से खड़ी रहेगी। ओली ने तर्क दिया कि कुछ लोगों की नौकरियों या सुविधाओं से कहीं ज्यादा अहम है राष्ट्र का सम्मान और सुरक्षा, और इसके लिए अगर सख्त कदम उठाने पड़ें तो सरकार पीछे नहीं हटेगी।

 

नेपाल में ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स पर प्रतिबंध का इतिहास:

नेपाल में ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स पर प्रतिबंध कोई नई बात नहीं है। जुलाई में सरकार ने ऑनलाइन फ्रॉड और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में टेलीग्राम को ब्लॉक कर दिया था। पिछले साल टिक टॉक पर भी 9 महीने तक बैन रहा, जो तभी हटाया गया जब कंपनी ने स्थानीय नियम मानने का वादा किया।

 

नेपाल में कड़े नियमों के कारण डिजिटल कंपनियों ने दूरी बनाई:

नेपाल सरकार ने हाल ही में विदेशी इंटरनेट प्लेटफॉर्म्स के लिए नए नियम लागू किए।

  • इन नियमों के मुताबिक कंपनियों को देश में ऑफिस खोलना, कंटेंट मॉडरेशन के लिए स्थानीय अधिकारी रखना, और कानूनी नोटिसों का तुरंत जवाब देना अनिवार्य कर दिया गया। साथ ही, सरकार के साथ यूज़र डेटा साझा करने की शर्त भी जोड़ दी गई।
  • इन शर्तों को कंपनियों ने बेहद कठिन माना। उनका कहना है कि छोटे देश में सीमित यूज़र बेस के बावजूद इतनी लागत उठाना आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं होगा। बड़ी अर्थव्यवस्थाओं जैसे भारत या यूरोप में कंपनियां इस तरह के कदम उठा लेती हैं, क्योंकि वहां से उन्हें बड़े पैमाने पर लाभ मिलता है। लेकिन नेपाल में वही मॉडल अपनाना उनके लिए अव्यावहारिक साबित होता।
  • एक और कारण यह बताया गया कि यदि वे नेपाल में यह नियम मान लेते, तो भविष्य में अन्य छोटे देशों को भी इसी तरह की छूट देनी पड़ती। इससे कंपनियों के लिए ग्लोबल पॉलिसी को मैनेज करना और जटिल हो जाता।
  • यही वजह रही कि यूट्यूब समेत 26 से अधिक बड़ी टेक कंपनियों ने नेपाल सरकार के निर्देशों का पालन नहीं किया और रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया से बाहर रहने का फैसला किया।

 

नेपाल में इंटरनेट का बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया के कब्जे में

नेपाल में इंटरनेट इस्तेमाल का लगभग 80% हिस्सा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से आता है। इनमें सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाले प्लेटफॉर्म हैं Facebook, Messenger, Instagram, X और YouTube

 

मैनेजमेंट एंड इंफॉर्मेशन सिस्टम (MIS) रिपोर्ट के मुताबिक, नेपाल में इस समय करीब 29.7 लाख इंटरनेट सब्सक्राइबर्स हैं। वहीं, डेटा रिपोर्टल (जनवरी 2024) के आंकड़े बताते हैं कि नेपाल में:

  • 1.35 करोड़ फेसबुक यूजर्स हैं
  • 1.08 करोड़ मैसेंजर यूजर्स
  • 36 लाख इंस्टाग्राम यूजर्स
  • 15 लाख लिंक्डइन यूजर्स
  • और करीब 4.66 लाख X (ट्विटर) यूजर्स सक्रिय हैं।

सरकार द्वारा अचानक लगाए गए इस प्रतिबंध ने खासकर छोटे कारोबारियों की चिंता बढ़ा दी है। ये व्यापारी सोशल मीडिया पर अपने उत्पादों का प्रचार और बिक्री करते हैं। त्योहारों के सीज़न से ठीक पहले आए इस फैसले ने उनकी मुश्किलें और भी बढ़ा दी हैं।

 

 

निष्कर्ष:

नेपाल में शुरू हुआ यह विरोध सिर्फ सोशल मीडिया बैन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह युवाओं की अभिव्यक्ति की आज़ादी, पारदर्शिता और भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था की माँग का प्रतीक बन गया है। काठमांडू की सड़कों पर उतरकर जनरेशन Z ने साफ कर दिया है कि अब उनकी आवाज़ को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।