लद्दाख में बुधवार को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया। लेह में छात्रों और सुरक्षाबलों के बीच झड़प में 4 लोगों की मौत हो गई और 70 से अधिक लोग घायल हो गए। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पत्थरबाजी की, भाजपा कार्यालय और CRPF की गाड़ी में आगजनी की। हालात काबू से बाहर होते देख प्रशासन ने लेह में बिना अनुमति रैली और प्रदर्शन पर बैन लगा दिया है। यह आंदोलन सोशल एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक के समर्थन में हो रहा है, जो पिछले 15 दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे हैं।

- सीआरपीएफ की गाड़ी को फूंका: छात्रों ने सीआरपीएफ की गाड़ी में भी आग लगा दी।
- बीजेपी ऑफिस में तोड़फोड़: लद्दाख में कल जेन-जी हिंसक प्रदर्शन के चलते बीजेपी कार्यालय में तोड़फोड़ की गई और आग के हवाले कर दिया गया।
- लेह में छात्र कर रहे भारी प्रदर्शन, पुलिस से हिंसक झड़प हुई: लेह में छात्रों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हुई है।
हिंसा भड़कने के पीछे दो मुख्य कारण रहे:
- सोशल मीडिया से भीड़ जुटाई: आंदोलनकारियों ने 24 सितंबर को लद्दाख बंद बुलाने का ऐलान किया और सोशल मीडिया के जरिए बड़ी संख्या में लोगों को लेह हिल काउंसिल पहुंचने की अपील की। इसके बाद बड़ी तादाद में लोग वहां जुट गए।
- पुलिस-प्रदर्शनकारियों की झड़प: लेह हिल काउंसिल के सामने बैरिकेड्स लगे थे। प्रदर्शनकारी जब उन्हें पार करने लगे तो पुलिस ने आंसू गैस का इस्तेमाल किया। इसके बाद भीड़ ने पुलिस की गाड़ी जलाई और तोड़फोड़ की, जिससे हिंसा फैल गई।
लद्दाख में धारा 163 लागू:
लेह के डीएम ने जिले में बीएनएस की धारा 163 लागू कर दी है, इसके तहत पांच या अधिक व्यक्तियों का एकत्र होना प्रतिबंधित है। पूर्वानुमति के बिना कोई भी जुलूस, रैली या मार्च नहीं निकाला जाएगा। कोई भी व्यक्ति ऐसा बयान नहीं देगा जिससे सार्वजनिक शांति भंग होने या कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होने की संभावना हो। धारा 163 के तहत प्रतिबंध लागू होने के बाद उल्लंघन पर धारा 223 के तहत कार्रवाई होगी।

सोनम वांगचुक की आंदोलन से जुड़ी प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं:
- पूर्ण राज्य का दर्जा: लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर एक अलग राज्य बनाने की मांग। उनका मानना है कि 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद लद्दाख की सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान खतरे में है।
- छठी अनुसूची में शामिल करना: संविधान की छठी अनुसूची के तहत लद्दाख को विशेष दर्जा देने की मांग, ताकि स्थानीय विधानसभाओं और परिषदों को भूमि, नौकरियों और पर्यावरण संरक्षण पर अधिकार मिल सकें।
- भूमि, नौकरी और पर्यावरण संरक्षण: स्थानीय निवासियों के लिए भूमि और नौकरियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा की मांग। उनका कहना है कि बाहरी निवेश से लद्दाख की स्थानीय संस्कृति और पर्यावरण पर खतरा बढ़ रहा है।
इन्ही मांगों को लेकर अक्तूबर में होने वाली थी बैठक :
लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल करने जैसी मांगों को लेकर अब सरकार और आंदोलनकारियों के बीच बैठक 6 अक्टूबर को दिल्ली में होगी। गौरतलब है कि साल 2019 में अनुच्छेद 370 और 35A हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था। उस समय सरकार ने भरोसा दिलाया था कि हालात सामान्य होने पर राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा।
सोनम वांगचुक का आंदोलन कब से चल रहा है?
लद्दाख के पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने 10 सितंबर 2025 को लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर आमरण अनशन शुरू किया था। खुद को गांधीवादी बताते हुए उन्होंने इस भूख हड़ताल को महात्मा गांधी के रास्ते का अनुसरण बताया। उनके साथ 14 अन्य कार्यकर्ता भी लेह में इस आंदोलन में शामिल हुए।
सोनम वांगचुक ने खत्म की भूख हड़ताल:
सोनम वांगचुक ने अपनी 15 दिन की भूख हड़ताल समाप्त की और कहा, मैं लद्दाख के युवाओं से आगजनी और झड़पें रोकने की अपील करता हूं। हम अपना अनशन समाप्त कर रहे हैं, और मैं प्रशासन से भी आग्रह करता हूं कि वह आंसू गैस के गोले न छोड़े। अगर झड़पों में किसी की जान जाती है, तो कोई भी अनशन सफल नहीं होता।
समझ लीजिए- पूर्ण राज्य का दर्जा क्या है?
पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने का अर्थ है कि किसी क्षेत्र को भारतीय संविधान के अंतर्गत पूरी तरह राज्य का दर्जा प्राप्त हो जाता है। इसका मतलब है कि वहां के नागरिक अपनी सरकार, विधानसभा, मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद चुन सकते हैं। राज्य सरकार को केंद्र से स्वतंत्र होकर कानून बनाने, टैक्स लगाने और विकास योजनाएं लागू करने का अधिकार होता है।
पूर्ण राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में अंतर क्या अंतर है?
- पूर्ण राज्य: अपनी सरकार बनाकर फैसले ले सकता है, मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद होती है।
- केंद्र शासित प्रदेश: सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में होता है, फैसले दिल्ली लेती है। यहां लेफ्टिनेंट गवर्नर या प्रशासक की नियुक्ति केंद्र करता है और अधिकार सीमित होते हैं।
पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के फायदे क्या होंगे?
- अपनी सरकार और मुख्यमंत्री चुनने का अधिकार।
- विधानसभा और संसद (लोकसभा/राज्यसभा) में प्रतिनिधित्व बढ़ता है।
- पुलिस, भूमि, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे विषयों पर राज्य सरकार का कंट्रोल।
- स्थानीय मुद्दे संसद में मजबूती से उठाने का अवसर।
- अपना बजट बनाकर स्वतंत्र विकास योजनाएं लागू करने का अधिकार।
- टैक्स लगाने और वसूली करने की शक्ति।
- छठी अनुसूची के साथ जुड़ने पर भूमि अधिकार, भाषा और संस्कृति की सुरक्षा का विशेष लाभ।
- बाहरी प्रोजेक्ट्स में स्थानीय हितों को प्राथमिकता मिलती है।
छठी अनुसूची क्या है?
छठी अनुसूची में संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275 (1) हैं. इन दोनों अनुच्छेदों के तहत खास प्रावधान हैं. इसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम सूबों के जनजाति इलाकों के प्रशासन के बारे में उपबंध या व्यवस्था है। इसके तहत स्वायत्त जिला परिषदें बनाई जाती हैं, जिन्हें भूमि, वन, सामाजिक रीति-रिवाज, विवाह, तलाक और अन्य विशिष्ट विषयों पर कानून बनाने का अधिकार होता है।
साथ ही ये परिषदें प्राथमिक विद्यालय, बाजार, सड़कें और अन्य स्थानीय विकास कार्य स्थापित और प्रबंधित कर सकती हैं। इससे संबंधित क्षेत्र को संरक्षित और जनजातीय क्षेत्र का दर्जा प्राप्त होता है। लद्दाख के लोग भी यही मांग कर रहे हैं, ताकि जमीन, रोजगार और स्थानीय संसाधनों पर उनका अधिकार सुरक्षित रहे।
लद्दाख द्वारा छठी अनुसूची में शामिल होने की मांग:
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व और स्वायत्तता: UT बनने के बाद प्रशासन पूरी तरह ब्यूरोक्रेटिक; छठी अनुसूची से स्थानीय लोकतंत्र और निर्णय में भागीदारी सुनिश्चित।
- स्थानीय रोजगार के अवसरों की कमी: सार्वजनिक सेवा आयोग और नौकरी नीति की अनुपस्थिति के कारण युवाओं को रोजगार नहीं।
- सांस्कृतिक पहचान का संरक्षण: आदिवासी और स्थानीय समुदायों की भाषा, परंपरा और रीति-रिवाज संरक्षित।
- पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण: ग्लेशियर, अल्पाइन घास के मैदान और दुर्लभ प्रजातियों का संरक्षण।
- डोमिसाइल नीति में सुरक्षा: लद्दाख की आबादी के लिए विशेष अधिकार और निवास सुनिश्चित।
- लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करना: LAHDC जैसे स्वायत्त परिषदों को अधिक अधिकार और स्वायत्तता।
छठी अनुसूची में शामिल होने के लाभ:
- लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण: प्रशासन, न्याय और विधायिका में स्वायत्तता।
- सांस्कृतिक संरक्षण: स्थानीय भाषा और रीति-रिवाज सुरक्षित।
- भूमि अधिकार की सुरक्षा: स्वायत्त परिषदों को भूमि और वन पर कानून बनाने का अधिकार।
- वित्तीय अनुदान: तेज़ विकास और परियोजनाओं के लिए अधिक फंड।
- सतत सामाजिक-आर्थिक विकास: स्थानीय संसाधनों और पर्यावरण के अनुरूप स्थायी विकास।
सरकार द्वारा छठी अनुसूची का दर्जा न देने के पीछे की चिंताएँ:
- सामरिक महत्व: सीमावर्ती और सामरिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में अधिक स्वायत्तता देना सुरक्षा चुनौती बन सकता है।
- वित्तीय निर्भरता: स्वायत्त परिषदों में वित्तीय कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार के जोखिम के कारण राजस्व की संभावनाएँ सीमित हो सकती हैं।
- प्रशासनिक चुनौतियाँ: कुशल पेशेवरों की कमी, राजनीतिक हस्तक्षेप और वित्तीय प्रबंधन के मुद्दे प्रशासन को जटिल बनाते हैं।
- संसाधनों पर नियंत्रण: भूमि, वन और प्राकृतिक संसाधनों पर स्वायत्त परिषदों का नियंत्रण बढ़ने से सुरक्षा और नीति नियंत्रण पर असर पड़ सकता है।
- अन्य क्षेत्रों के दावे: सरकार को यह भी चिंता है कि यदि कोई क्षेत्र छठी अनुसूची में शामिल होता है, तो अन्य संवेदनशील या सीमावर्ती क्षेत्र भी समान दर्जा मांग सकते हैं, जिससे प्रशासनिक और सुरक्षा चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं।
कौन हैं सोनम वांगचुक?
सोनम वांगचुक लद्दाख के जाने-माने इंजीनियर, शिक्षाविद् और पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। 1966 में लद्दाख में जन्मे वांगचुक ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल करने के बाद 1988 में स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (SECMOL) की स्थापना की। यह संस्था लद्दाखी छात्रों के लिए शिक्षा क्रांति का प्रतीक बनी। पारंपरिक शिक्षा प्रणाली को चुनौती देने और आइस स्टूपा जैसी तकनीकों के माध्यम से जल संरक्षण में योगदान ने उन्हें व्यापक पहचान दिलाई।
बॉलीवुड फिल्म ‘3 इडियट्स’ के चरित्र फुंसुख वांगड़ू की प्रेरणा वही हैं, जो उनकी सादगी और नवाचार का प्रतीक है। पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन पर उनका कार्य उन्हें वैश्विक मंचों तक ले गया है। वांगचुक शिक्षा के माध्यम से युवाओं को सशक्त बनाने और लद्दाख को आत्मनिर्भर बनाने की वकालत करते हैं। वर्तमान में वे लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा दिलाने की मांग को लेकर सक्रिय आंदोलन कर रहे हैं और कई बार अनशन भी कर चुके हैं। उनका यह संघर्ष लद्दाख की सांस्कृतिक पहचान और पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरणादायी माना जाता है