वैश्विक स्तर पर आर्थिक असमानता के मामले में भारत सबसे आगे है। विश्व असमानता प्रयोगशाला द्वारा बुधवार को जारी नवीनतम विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश की राष्ट्रीय आय का 58 फीसदी हिस्सा केवल शीर्ष 10 प्रतिशत कमाने वालों के पास है, जबकि निचले 50 प्रतिशत लोगों को मात्र 15 फीसदी हिस्सा मिल पाता है।
अर्थशास्त्री लुकास चांसेल, रिकार्डो गोमेज-कैरेरा, रोवैदा मोशरिफ और थॉमस पिकेटी द्वारा संपादित इस रिपोर्ट में भारत में धन-संपदा की विषमता को और भी गंभीर बताया गया है। देश की कुल संपत्ति का लगभग 65 प्रतिशत सबसे अमीर 10 फीसदी लोगों के हाथों में केंद्रित है, जबकि शीर्ष 1 प्रतिशत के पास लगभग 40 फीसदी धन-दौलत मौजूद है।
पिछली रिपोर्ट से तुलना
विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के आंकड़ों से तुलना करें तो स्थिति में मामूली बदलाव आया है। वर्ष 2021 में भारत के शीर्ष 10 प्रतिशत के पास राष्ट्रीय आय का 57 फीसदी था, जबकि निचले 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी 13 फीसदी थी। इसका अर्थ है कि धनी वर्ग और अधिक समृद्ध हुआ है, जबकि गरीब तबके की स्थिति में बहुत कम सुधार हुआ है।
प्रति व्यक्ति आय और महिला भागीदारी
रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय करीब 6,200 यूरो (क्रय शक्ति समता के आधार पर) है, जबकि औसत संपत्ति लगभग 28,000 यूरो है। चिंताजनक बात यह है कि महिला श्रम भागीदारी केवल 15.7 प्रतिशत पर बनी हुई है और पिछले एक दशक में इसमें कोई सुधार नहीं हुआ है।
अर्थशास्त्री जयती घोष और जोसेफ स्टिग्लिट्ज द्वारा प्रस्तावना लिखी गई इस रिपोर्ट में कहा गया है, “समग्र रूप से भारत में असमानता आय, संपत्ति और लैंगिक आयामों में गहराई से जड़ें जमाए हुए है, जो अर्थव्यवस्था के भीतर लगातार बने संरचनात्मक विभाजन को उजागर करती है।”
वैश्विक स्तर पर धन संकेंद्रण
वैश्विक परिदृश्य भी कम चिंताजनक नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में धन-संपदा ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गई है लेकिन इसका वितरण अत्यंत असमान है। शीर्ष 0.001 प्रतिशत में शामिल 60,000 से भी कम करोड़पति मानवता के निचले आधे हिस्से की तुलना में तीन गुना अधिक धन के मालिक हैं। उनका हिस्सा 1995 में लगभग 4 फीसदी से बढ़कर आज 6 प्रतिशत से अधिक हो गया है।
विश्व की शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी के पास कुल संपत्ति का तीन-चौथाई हिस्सा है, जबकि निचले 50 फीसदी के पास केवल 2 प्रतिशत है। शीर्ष 1 प्रतिशत, जो यूनाइटेड किंगडम की वयस्क जनसंख्या के बराबर है, वैश्विक संपत्ति के 37 प्रतिशत पर नियंत्रण रखता है। यह विश्व की निचली आधी आबादी की संपत्ति से अठारह गुना अधिक है।
विश्व असमानता प्रयोगशाला के सह-निदेशक का बयान
विश्व असमानता प्रयोगशाला के सह-निदेशक थॉमस पिकेटी ने कहा, “विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 एक चुनौतीपूर्ण राजनीतिक समय में आई है, लेकिन यह पहले से कहीं अधिक आवश्यक है। केवल समानता की ओर ऐतिहासिक आंदोलन जारी रखकर ही हम आगामी दशकों की सामाजिक और जलवायु चुनौतियों का समाधान कर पाएंगे।”
1980 से 2025 तक का सफर
रिपोर्ट में 1980 और 2025 में वैश्विक आय समूहों का भौगोलिक विवरण प्रस्तुत करते हुए बताया गया कि 1980 में वैश्विक अभिजात वर्ग उत्तरी अमेरिका, ओशिनिया और यूरोप में केंद्रित था। उस समय चीन में वैश्विक अभिजात वर्ग की लगभग कोई उपस्थिति नहीं थी, जबकि भारत, एशिया और उप-सहारा अफ्रीका सबसे निचले प्रतिशतक में भारी संख्या में थे।
वर्ष 2025 तक चीन की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। उसकी अधिकांश जनसंख्या मध्य 40 प्रतिशत में पहुंच गई है और बढ़ता हुआ हिस्सा ऊपरी-मध्यम वर्ग में प्रवेश कर चुका है।
हालांकि, भारत की सापेक्षिक स्थिति कमजोर हुई है। 1980 में भारत की अधिक जनसंख्या मध्य 40 फीसदी में थी, लेकिन आज लगभग सभी निचले 50 प्रतिशत में हैं। उप-सहारा अफ्रीका भी वैश्विक वितरण के निचले आधे हिस्से में बना हुआ है।
लैंगिक वेतन अंतर की समस्या
लैंगिक संदर्भ में देखें तो सभी क्षेत्रों में वेतन अंतर बना हुआ है, खासकर अवैतनिक श्रम के मामले में। अवैतनिक कार्य को छोड़कर महिलाएं प्रति कार्य घंटे पुरुषों की तुलना में केवल 61 प्रतिशत कमाती हैं, और जब अवैतनिक श्रम को शामिल किया जाता है तो यह आंकड़ा घटकर मात्र 32 फीसदी रह जाता है।
वैश्विक स्तर पर महिलाएं कुल श्रम आय का सिर्फ एक-चौथाई से थोड़ा अधिक हिस्सा प्राप्त करती हैं, जो 1990 से मुश्किल से बदला है। क्षेत्रीय विश्लेषण में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में महिलाओं का हिस्सा केवल 16 प्रतिशत है, दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशिया में 20 प्रतिशत, उप-सहारा अफ्रीका में 28 प्रतिशत और पूर्वी एशिया में 34 फीसदी है।
जलवायु संकट और कार्बन उत्सर्जन
रिपोर्ट में जलवायु संकट पर भी प्रकाश डाला गया है। वैश्विक आबादी का सबसे गरीब आधा हिस्सा निजी पूंजी स्वामित्व से जुड़े कार्बन उत्सर्जन का केवल 3 प्रतिशत उत्पन्न करता है, जबकि शीर्ष 10 प्रतिशत 77 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। सबसे धनी 1 प्रतिशत निजी पूंजी स्वामित्व उत्सर्जन का 41 प्रतिशत उत्पन्न करता है, जो संपूर्ण निचले 90 प्रतिशत से लगभग दोगुना है।
औसत संपत्ति का चौंकाने वाला अंतर
रिपोर्ट में औसत के आधार पर असमानता की और भी स्पष्ट तस्वीर पेश की गई है। निचले 50 प्रतिशत में एक व्यक्ति के पास लगभग 6,500 यूरो की संपत्ति है, जबकि शीर्ष 10 प्रतिशत में किसी के पास करीब 10 लाख यूरो है। शीर्ष 0.001 फीसदी (लगभग 56,000 वयस्क) की औसत संपत्ति लगभग 1 अरब यूरो है, और शीर्ष 100 मिलियन में से एक (दुनियाभर में केवल 56 वयस्क) प्रत्येक के पास औसतन 53 अरब यूरो है।
कराधान और नीतिगत सुधार की जरूरत
रिपोर्ट में नोट किया गया कि नीतियां असमानता को कम कर सकती हैं, लेकिन कराधान अक्सर वहां विफल होता है जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। अति-धनी लोग कराधान से बच निकलते हैं। प्रभावी आयकर दरें अधिकांश आबादी के लिए लगातार बढ़ती हैं, लेकिन अरबपतियों और शत-करोड़पतियों के लिए तेजी से गिरती हैं।
“ये अभिजात वर्ग बहुत कम आय वाले अधिकांश परिवारों की तुलना में आनुपातिक रूप से कम भुगतान करते हैं। यह प्रतिगामी पैटर्न राज्यों को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और जलवायु कार्रवाई में आवश्यक निवेश के लिए संसाधनों से वंचित करता है,” रिपोर्ट में कहा गया।
सार्वजनिक निवेश और पुनर्वितरण योजनाएं भी विषमता कम करने में मदद कर सकती हैं। मुफ्त उच्च-गुणवत्ता वाले स्कूलों, सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा, बाल देखभाल और पोषण कार्यक्रमों में सार्वजनिक निवेश जीवन की शुरुआती असमानताओं को कम कर सकता है। नकद हस्तांतरण, पेंशन, बेरोजगारी लाभ और कमजोर परिवारों के लिए लक्षित समर्थन सीधे शीर्ष से निचले हिस्से में संसाधनों को स्थानांतरित कर सकते हैं।
यह रिपोर्ट 2018 और 2022 संस्करणों के बाद श्रृंखला की तीसरी रिपोर्ट है, जो विश्व असमानता प्रयोगशाला से जुड़े दुनियाभर के 200 से अधिक विद्वानों के कार्य पर आधारित है।
