सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ अपील करने का ऐलान किया है, जिसमें पुलिस को “सहयोग पोर्टल” के जरिए मनमाने ढंग से कंटेंट हटाने का अधिकार दिया गया है. कंपनी का कहना है कि यह व्यवस्था बिना न्यायिक समीक्षा के ऑनलाइन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को चोट पहुंचाती है. एलन मस्क की कंपनी का दावा है कि यह सिस्टम यूजर्स के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है।

X ने पुलिस कंटेंट हटाने के अधिकार पर विरोध जताया:
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X ने कहा है कि सहयोग पोर्टल के माध्यम से बिना किसी न्यायिक समीक्षा के पुलिस को कंटेंट हटाने का आदेश देने का प्रावधान लोकतांत्रिक मूल्यों और यूजर्स के अधिकारों के लिए खतरा है।
कंपनी के अनुसार, यह नई व्यवस्था कानून का समर्थन नहीं करती, आईटी अधिनियम की धारा 69ए को दरकिनार करती है, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की अनदेखी करती है और भारतीय नागरिकों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (फ्रीडम ऑफ स्पीच) के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।

क्या है पूरा मामला?
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X ने मार्च में भारत सरकार के खिलाफ याचिका दायर की थी। कंपनी का आरोप था कि सरकारी अफसर प्लेटफॉर्म पर कंटेंट ब्लॉक कर रहे हैं और इसके लिए आईटी एक्ट की धारा 79(3)(B) का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। एक्स का कहना था कि इस तरह के आदेश केवल आईटी एक्ट की धारा 69A के तहत तय प्रक्रिया से ही दिए जा सकते हैं।
अपनी याचिका में एक्स ने भारत के सख्त इंटरनेट नियमन को चुनौती दी थी और केंद्र सरकार के “सहयोग पोर्टल” की वैधता पर भी सवाल उठाए थे। यह पोर्टल एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है, जिसका इस्तेमाल इंटरमीडिएरीज़ (बीच के सेवा प्रदाता) को कंटेंट हटाने के आदेश भेजने के लिए किया जाता है।
24 सितंबर को कर्नाटक हाईकोर्ट ने X की याचिका खारिज की थी-
24 सितंबर को कर्नाटक हाईकोर्ट ने X की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें सरकार द्वारा सामग्री हटाने के आदेशों को सुगम बनाने के लिए सहयोग पोर्टल के इस्तेमाल को चुनौती दी गई थी।
अदालत ने कहा कि सोशल मीडिया को नियंत्रित करना हर देश की जरूरत है और अमेरिका सहित सभी देश इसे लागू करते हैं। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि एक्स अमेरिका में टेकडाउन आदेशों को मानता है, तो भारत में भी ऐसा करने से इनकार नहीं कर सकता।
भारत में भारत का कानून मानना होगा: कर्नाटक हाई कोर्ट–
कंपनी ने अमेरिकी कानूनों का हवाला देते हुए कहा कि वह वैश्विक स्तर पर अपनी नीतियों के अनुसार काम करती है. कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा कि एक्स अमेरिका में वहां के कानूनों का पालन करता है लेकिन भारत में लागू टेकडाउन आदेशों को मानने से मना कर रहा है. कोर्ट ने कहा कि जो भी प्लेटफॉर्म यहां काम कर रहा है, सभी को यहां के नियमों का पालन करना होगा।
अमेरिकी कानून को भारत पर थोपा नहीं जा सकता‘
मामले की सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता वर्चुअल रूप से पेश हुए। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा, सूचना और संचार को कभी भी अनियंत्रित और अनियमित नहीं छोड़ा जा सकता है, जब से तकनीक विकसित हुई है, सभी को विनियमित किया गया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 19 (2) के तहत प्रतिबंधों से घिरा हुआ है। अमेरिकी न्यायशास्त्र को भारतीय विचारधारा में प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता।
सहयोग पोर्टल पर भी हाई कोर्ट की प्रतिक्रिया:
अदालत ने स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार जिम्मेदारी से जुड़ा हुआ है। यदि इसे बिना नियमन लागू किया जाए, तो यह अराजकता को जन्म दे सकता है। कोर्ट ने माना कि ‘सहयोग पोर्टल’ का मकसद साइबर अपराध रोकना और सुरक्षित डिजिटल वातावरण सुनिश्चित करना है।
X के इस विरोध मे केंद्र ने क्या कहा था?
सरकार ने अदालत में तर्क दिया कि संविधान का अनुच्छेद 19(2) केवल भारतीय नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, न कि विदेशी कंपनियों या गैर-नागरिकों को। इसलिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X को इस आधार पर छूट नहीं मिल सकती। केंद्र ने साफ कहा कि भारत में काम करने वाली हर कंपनी को देश के कानूनों और नियमों का पालन करना ही होगा।
केंद्र सरकार का मत है कि यह पोर्टल ऑनलाइन अवैध कंटेंट पर रोक लगाने और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को जवाबदेह बनाने के लिए है। इंटरनेट पर अफवाह और गलत जानकारी, फर्जी कंटेंट और अवैध गतिविधियों पर लगाम लगेगी। वहीं कंपनी ने तर्क दिया है कि इस पोर्टल से निजता और फ्री स्पीच के अधिकार का उल्लघंन होगा। इसके लिए कंपनी ने हाईकोर्ट ने फिर याचिका दाखिल की है।
सहयोग पोर्टल क्या है?
सहयोग पोर्टल भारत में साइबर अपराधों से निपटने के लिए गृह मंत्रालय द्वारा विकसित एक ऑनलाइन मंच है। यह केंद्रीय और राज्य सरकार की एजेंसियों को ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म (इंटरमीडियरीज़) के साथ एक ही स्थान पर जोड़ता है, ताकि अवैध ऑनलाइन सामग्री को हटाने या उस तक पहुँच को अक्षम करने के अनुरोधों पर तुरंत कार्रवाई की जा सके।
सहयोग पोर्टल के मुख्य उद्देश्य:
- साइबर अपराध की रोकथाम: इसका मुख्य उद्देश्य भारत में साइबर अपराध की रोकथाम, पता लगाने, जांच और मुकदमा चलाने के लिए एक प्रभावी ढांचा और पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करना है।
- अवैध सामग्री हटाना: यह पोर्टल आईटी अधिनियम, 2000 के तहत जारी किए गए नोटिसों को स्वचालित बनाता है, जिससे इंटरमीडियरीज़ द्वारा गैरकानूनी सामग्री, डेटा या संचार लिंक को हटाना या अवरुद्ध करना आसान हो जाता है।
- सरकारी एजेंसियों और इंटरमीडियरीज़ के बीच समन्वय: यह सभी अधिकृत सरकारी एजेंसियों और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म को एक डिजिटल मंच पर लाता है ताकि साइबर-सक्षम अवैध गतिविधियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके।
- नागरिकों के लिए सुरक्षित साइबर स्पेस: इसका अंतिम लक्ष्य भारत के नागरिकों के लिए एक सुरक्षित साइबर स्पेस बनाना है।
IT अधिनियम की धाराएँ:
- धारा 69A: यह केंद्र को राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और सार्वजनिक व्यवस्था की रक्षा के लिये विशिष्ट परिस्थितियों में ऑनलाइन कंटेंट तक सार्वजनिक पहुँच को अवरुद्ध करने का अधिकार देती है।
- धारा 79: यह ऑनलाइन मध्यस्थों को “सेफ हार्बर” संरक्षण प्रदान करती है, तथा यदि वे तटस्थता से कार्य करते हैं तो उन्हें तीसरे पक्ष की विषय-वस्तु के लिये उत्तरदायित्व से संरक्षण प्रदान करती है।
- धारा 79(3)(b) के तहत, यदि मध्यस्थ अनुचित कंटेंट से संबंधित नोटिस पर शीघ्र कार्यवाही करने में विफल रहते हैं तो वे इस प्रतिरक्षा को खो देते हैं।
सहयोग पोर्टल कैसे काम करता है?
सरकार ने कर्नाटक हाईकोर्ट को बताया कि सहयोग पोर्टल के माध्यम से अवैध सामग्री हटाने की प्रक्रिया निम्न चरणों में होती है:
- नोडल अधिकारी नोटिस जारी करते हैं: अधिकृत एजेंसी के नोडल अधिकारी प्लेटफॉर्म्स को पोर्टल के जरिए नोटिस भेजते हैं।
- प्लेटफॉर्म का जवाब: नोटिस मिलने के बाद प्लेटफॉर्म नोटिस के जवाब में एजेंसी को बताता है कि उसने क्या कार्रवाई की।
- सामग्री हटाना या अतिरिक्त जानकारी मांगना: प्लेटफॉर्म नोटिस के आधार पर सामग्री हटा सकता है या अतिरिक्त जानकारी के लिए अनुरोध कर सकता है।
- अनुपालन न करने का अनुरोध: प्लेटफॉर्म उचित कारण बताते हुए नोटिस का पालन न करने का अनुरोध भी कर सकता है।
- एजेंसी की समीक्षा: यदि अधिकृत एजेंसी कारणों से सहमत होती है, तो अनुरोध बंद कर दिया जाता है। असहमत होने पर एजेंसी नोटिस जारी करने के कारण रिकॉर्ड करती है और अनुपालन का अनुरोध दोबारा करती है।
- मंच की अंतिम प्रतिक्रिया: यदि प्लेटफॉर्म नोटिस के कारणों से सहमत होता है, तो मामला बंद हो जाता है। लेकिन यदि प्लेटफॉर्म अब भी अनुपालन नहीं करता है, तो एजेंसी शो कॉज़ नोटिस जारी कर सकती है।
- अंतिम कार्रवाई: यदि प्लेटफॉर्म उत्तर देता है, तो एजेंसी उसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। अस्वीकार करने की स्थिति में, एजेंसी प्लेटफॉर्म के खिलाफ आईटी नियम, 2021 की नियम 7 के तहत कार्रवाई कर सकती है। नियम 7 के अनुसार, अगर प्लेटफॉर्म आईटी नियमों का पालन नहीं करता, तो उसे सेफ हार्बर सुरक्षा (Section 79) से वंचित किया जा सकता है।
I4C ने सहयोग पोर्टल क्यों बनाया?
LEA (कानून प्रवर्तन एजेंसियों) की चुनौतियाँ: I4C के अनुसार, कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने अवैध सामग्री हटाने में निम्नलिखित समस्याएँ बताईं:
- अंतरमध्यस्थों के संपर्क विवरण की कमी: प्लेटफॉर्म्स पर दिए गए संपर्क विवरण अक्सर काम नहीं करते। नोडल अधिकारियों तक पहुँचने में LEAs को बहुत समय लगता है, जिससे नोटिस जारी करने में देरी होती है।
- भारत में कार्यालय का अभाव: कई प्लेटफॉर्म्स का भारत में कोई शारीरिक कार्यालय या प्रतिनिधि नहीं है। इससे उपयोगकर्ताओं की शिकायतों का समय पर निवारण मुश्किल हो जाता है।
- LEA अनुरोध पोर्टल जटिल: प्लेटफॉर्म्स के LEA अनुरोध पोर्टल अक्सर जटिल, असमान और कठिन नेविगेट करने वाले होते हैं। अलग-अलग पोर्टल्स के इस्तेमाल से ऑपरेशनल कठिनाइयाँ और भ्रम बढ़ता है।
- अंतरमध्यस्थों से देरी या जवाब न आना: कुछ मामलों में प्लेटफॉर्म्स नोटिस का जवाब देर से देते हैं या बिल्कुल नहीं देते। यह कानूनी अनुपालन और जवाबदेही पर प्रश्न उठाता है।
- अनुपालन ट्रैकिंग की कमी: LEAs के पास कोई मानकीकृत तंत्र नहीं है जिससे वे अनुत्तरित नोटिस या गैर-अनुपालन की निगरानी और फॉलो-अप कर सकें।
प्लेटफॉर्म्स की चुनौतियाँ:
सरकार ने यह भी बताया कि प्लेटफॉर्म्स को नोटिस का पालन करते समय निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है:
- कौन नोटिस जारी कर रहा है, स्पष्ट नहीं: विभिन्न एजेंसियां नोटिस भेजती हैं और प्लेटफॉर्म्स को यह पता नहीं होता कि सभी के पास कानूनी अधिकार हैं या नहीं।
- नोटिस में पर्याप्त जानकारी नहीं: अक्सर नोटिस में सीमित विवरण होता है, जिससे प्लेटफॉर्म्स को वैधता का आकलन करना और उचित कार्रवाई करना कठिन होता है।
- नोटिस का दोहराव: कई बार एक ही सामग्री के लिए प्लेटफॉर्म्स को कई नोटिस मिलते हैं, जिससे संचालन में बाधा और अनुपालन का बोझ बढ़ता है।
- संरचित और पारदर्शी नोटिस की आवश्यकता: प्लेटफॉर्म्स ने सुझाव दिया कि नोटिस मानकीकृत फॉर्मेट, सही दस्तावेज़ीकरण, अधिकृत प्राधिकारी और पर्याप्त समर्थन जानकारी के साथ होना चाहिए।
2023 से सख्त हुआ इंटरनेट नियम:
भारत सरकार ने 2023 से इंटरनेट पर कंट्रोल कड़ा कर दिया है. अब दो मिलियन से ज्यादा अधिकारी सहयोग पोर्टल के जरिए सीधे टेक कंपनियों को कंटेंट हटाने का आदेश भेज सकते हैं. इस कदम से कंपनियों पर और ज्यादा दबाव बढ़ गया है, जिसे X खुलकर चुनौती दे रही है।
कौन जुड़ चुका है पोर्टल से?
अब तक 15 बड़े IT Intermediaries इस पोर्टल से जुड़ चुके हैं, इनमें शामिल हैं: Josh, Quora, Telegram, Apple, Google, Amazon, YouTube, PI Data Centre, Sharechat आदि।
31 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने भी अपने अधिकारियों को नामित करके पोर्टल पर ऑनबोर्ड कर लिया है।
निष्कर्ष:
भारत में ऑनलाइन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पुलिस के कंटेंट हटाने के अधिकार के बीच संतुलन बनाए रखना एक संवेदनशील मुद्दा है। X (पूर्व ट्विटर) ने कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की है, यह दर्शाता है कि प्लेटफॉर्म्स यूजर्स के संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा चाहते हैं, जबकि सरकार और कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ अवैध सामग्री हटाने और कानून का पालन सुनिश्चित करने पर जोर देती हैं।