एक ऐसा हादसा जिसने न केवल भारतीयों बल्कि पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। जिसमें कोई विदेश जा रहा था, तो कोई नौकरी के लिए लंदन जा रहा था। ऐसे अनगिनत लोगों के सपने इस क्रैश में डूब गए। इस हादसे में 275 लोगों की मौत हो गई – जिनमें 169 भारतीय, 52 ब्रिटिश, 7 पुर्तगाली और 1 कनाडाई नागरिक शामिल थे।
ऐसे हादसों के बाद सबसे ज़रूरी होता है ये जानना कि आखिर दुर्घटना की वजह क्या थी। इसी वजह से जांचकर्ता सबसे पहले ‘ब्लैक बॉक्स’ की तलाश करते हैं
तो आज हम इस लेख में इसी हादसे और ब्लैक बॉक्स के बारे में जानेंगे…
🔹घटना के बारे में जानते है-
अहमदाबाद से लंदन जाने वाली एयर इंडिया का बोइंग 787 ड्रीमलाइनर प्लेन उड़ान भरने के 2 मिनट के बाद ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
अहमदाबाद से 13:38 बजे रवाना हुई इस फ्लाइट में बोइंग 787-8 विमान में 242 यात्री और चालक दल के सदस्य सवार थे। इनमें से 169 भारतीय नागरिक, 53 ब्रिटिश नागरिक, 1 कनाडाई नागरिक और 7 पुर्तगाली नागरिक शामिल थे।
इस विमान में कुल 242 लोग सवार बताए जा रहे थे, जिनमें दो पायलट और 10 केबिन क्रू भी शामिल थे। एयर इंडिया में सवार केबिन क्रू के 12 सदस्यों में कैप्टन सुमित सभरवाल और फर्स्ट ऑफिसर क्लाइव कुंदर भी शामिल थे। इसके अतिरिक विमान में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, जो बिज़नेस क्लास में यात्रा कर रहे थे, हादसे में उनकी मृत्यु हो गई।
विमान क्रैश बाद मृतकों की पहचान के लिए डीएनए टेस्ट किया गया. जिसके बाद अब तक 231 शव के डीएनए सैंपल उनके परिजनों से मैच हुए है, जिनमें से 210 मृतदेह उनके स्वजनों को सौंपे गए है
🔹 आइए अब जानते है ब्लैक बॉक्स के बारे में:
विमान हादसों के बाद घटना के बारे में उस समय की गतिविधि, और दुर्घटना के पीछे असली वजह के बारे में पता लगाने के लिए ‘ब्लैक बॉक्स’ की तलाश की जाती हैं।
ब्लैक बॉक्स क्या है?
ब्लैक बॉक्स एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस होता है जो हवाई जहाज में लगाया जाता है। इसका असली नाम “फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR)” और “कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR)” होता है। इसे “ब्लैक बॉक्स” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह दुर्घटना की जांच में अहम भूमिका निभाता है।ब्लैक बॉक्स का इस्तेमाल 1950 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था, जब विमान दुर्घटनाओं के बाद जांचकर्ता दुर्घटनाओं के निर्णायक कारण का पता लगाने में असमर्थ थे। डेविड वॉरेन नामक एक ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक को अक्सर इसके आविष्कार का श्रेय दिया जाता है।
अब आपके मन में विचार आएगा, भाई ये फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR)” और “कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) क्या होता है ? आइए अब इसके बारे में भी जान लेते है-
FDR (फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर) विमान के इंजन प्रदर्शन, उड़ान मार्ग (फ्लाइट पाथ), ऊंचाई, थ्रस्ट और अन्य तकनीकी पहलुओं की जानकारी रिकॉर्ड करता है।
CVR (कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर) में पायलटों की बातचीत, अलार्म, यांत्रिक आवाजें (मैकेनिकल नॉइज़) और एयर ट्रैफिक कंट्रोल से हुई बातचीत रिकॉर्ड होती है।इस डिवाइस की मदद से यह पता लगाया जा सकता है कि हादसे से ठीक पहले विमान में कोई तकनीकी खराबी, इंजन फेल, पक्षी से टक्कर, या फिर मानवीय त्रुटि तो नहीं हुई थी।
इस बॉक्स को हर प्लेन में सबसे पीछे की तरफ रखा जाता है। इसकी वजह यह है कि ताकि दुर्घटना होने पर यह सुरक्षित रह सके। एक सामान्य ब्लैक बॉक्स का वजन लगभग 10 पाउंड (4.5 किलो) होता है।
ऑरेंज रंग का ब्लैक बॉक्स, फिर नाम ‘ब्लैक’ क्यों?
ब्लैक बॉक्स को आमतौर पर नारंगी रंग में पेंट किया जाता है ताकि हवाई दुर्घटना के मलबे के बीच इसे आसानी से खोजा जा सके।
लेकिन फिर भी इसे “ब्लैक बॉक्स” कहा जाता है, क्योंकि 1950 के दशक में इसके शुरुआती मॉडलों में काले रंग की फोटो-फिल्म तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था।
यह डिवाइस एक डार्क रूम की तरह काम करता था, जिसमें बाहरी रोशनी नहीं पहुंच पाती थी, जिससे डेटा सुरक्षित रहता था।ब्लैक बॉक्स कैसे सुरक्षित रहता है?
ब्लैक बॉक्स को विशेष प्रकार की अत्यंत मज़बूत धातु (metal) से बनाया जाता है, ताकि यह तेज़ टक्कर, आग और गहरे पानी के दबाव को भी सहन कर सके।
यह डिवाइस 1100 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी और 20,000 फीट गहराई तक के जलदाब को झेलने में सक्षम होता है।
इसके अंदर एक विशेष “बीकन” (सिग्नल भेजने वाला यंत्र) होता है, जो यदि यह पानी में गिर जाए तो स्वतः सिग्नल भेजता है, जिससे बचाव दल को इसे खोजने में मदद मिलती है।ब्लैक बॉक्स मिलने में कितना समय लग सकता है?
हर हादसे में ब्लैक बॉक्स तुरंत मिल जाए, ऐसा ज़रूरी नहीं है। कई बार इसे ढूंढने में कई दिन, यहां तक कि कई साल लग जाते हैं। कुछ मामलों में तो यह कभी नहीं मिलता। उदाहरण के तौर पर:- श्रीविजया एयर जेट (9 जनवरी 2021): हादसे के करीब 3 दिन बाद ब्लैक बॉक्स मिल गया।
- एयर फ्रांस फ्लाइट 447 (1 जून 2009): ब्लैक बॉक्स मिलने में 699 दिन लग गए।
- मलेशिया एयरलाइंस फ्लाइट 370 (8 मार्च 2014): अब तक इसका ब्लैक बॉक्स नहीं मिल पाया है।
क्या इस ब्लैक बॉक्स की जांच भारत में संभाव है?
ब्लैक बॉक्स के मिलने के बाद से खबर चल रही थी की बॉक्स को जांच के लिए अमेरिका की नेशनल सेफ्टी ट्रांसपोर्ट बोर्ड (NTSB) की प्रयोगशाला में भेजा जाएगा, डेटा रीकवर करने की तकनीक फिलहाल भारत के पास नहीं है।
जिसके बाद से ब्लैक बॉक्स की जांच को विदेश भेजे जाने को लेकर सोशल मीडिया पर कई यूज़र्स ने सवाल उठाए हैं। लोगों ने यह पूछना शुरू किया कि जब भारत में ही डिजिटल फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (DFDR) और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) के विश्लेषण के लिए अत्याधुनिक लैब बनाई गई है, तो फिर इसका उपयोग क्यों नहीं किया गया? जब देश के पास अपनी जांच सुविधा मौजूद है, तो फिर हादसे की जांच के लिए ब्लैक बॉक्स विदेश क्यों भेजा जा रहा है?
दरअसल, अप्रैल 2025 में नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू ने नई दिल्ली स्थित उड़ान भवन में एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (AAIB) परिसर में इस लैब का उद्घाटन किया था। इस प्रयोगशाला को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के सहयोग से, लगभग 9 करोड़ रुपये की लागत से विकसित किया गया था।
लेकिन 19 जून को नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) ने ब्लैक बॉक्स अमेरिका भेजने का खंडन करते हुए इसे गलत और भ्रामक बताया है. मंत्रालय ने कहा है कि ब्लैक बॉक्स भारत की अत्याधुनिक “ब्लैक बॉक्स लैब” में ही विश्लेषण किया जाएगा और अभी किसी विदेशी प्रयोगशाला में भेजने का कोई फैसला नहीं हुआ है.
🔹रिपोर्ट कब तक आएगी?
ICAO (International Civil Aviation Organization) के नियमानुसार, किसी भी विमान हादसे के बाद दो चरणों में रिपोर्ट जारी की जाती है:
- प्रारंभिक रिपोर्ट: हादसे के 30 दिनों के भीतर जारी की जाती है। इसमें घटना से संबंधित शुरुआती तथ्यों और परिस्थितियों का उल्लेख होता है।
- अंतिम विस्तृत रिपोर्ट: एक वर्ष के भीतर जारी की जाती है, जिसमें विस्तृत तकनीकी विश्लेषण और निष्कर्ष शामिल होते हैं।
इस जांच में निम्नलिखित बिंदुओं को विशेष रूप से ध्यान में रखा जाएगा:
- पायलट की संभावित त्रुटि
- तकनीकी खराबी या सिस्टम फेलियर
- मौसम संबंधी स्थितियां
- प्री-फ्लाइट निरीक्षण (Pre-flight Checks) में चूक