भारत में हिमालय को केवल एक भौगोलिक श्रृंखला नहीं, बल्कि धार्मिक चेतना और आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र माना गया है। हिंदू दृष्टिकोण से देखें तो यह पर्वत श्रृंखला सृष्टि के उस प्रारंभिक क्षण का प्रतीक है जब ब्रह्मांडीय ऊर्जा ने आकार लेना शुरू किया।
पुराणों और वैदिक ग्रंथों में उल्लेख है कि हिमालय की चोटियाँ स्वर्ण कमल की पंखुड़ियों के समान हैं, जिन्हें भगवान विष्णु द्वारा ब्रह्मांड निर्माण के प्रथम चरण में रचा गया बताया गया है। इस अलौकिक कल्पना के केंद्र में है — कैलाश पर्वत, जिसे हिंदू धर्म में शिव का धाम और शून्य व सृजन के बीच की कड़ी माना जाता है।
कैलाश की विशेषता केवल धार्मिक नहीं, भूगर्भीय भी है — वैज्ञानिक मानते हैं कि यह चोटी लगभग 3 करोड़ वर्ष पुरानी है और हिमालय श्रृंखला के बनने के शुरुआती चरण में निर्मित हुई थी। इसकी बनावट, एक विशाल शिवलिंग जैसी संरचना, हजारों श्रद्धालुओं को हर साल अपनी ओर आकर्षित करती है।
हालांकि कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील का अधिकांश हिस्सा तिब्बत में स्थित है, जिस पर चीन अपना अधिकार जताता है। यही कारण है कि भारत-चीन सीमा विवाद का असर इस यात्रा पर भी पड़ता रहा है।
साल 2020 में जब दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही थी, और साथ ही भारत-चीन सीमा पर तनाव अपने चरम पर था, तब इस पवित्र यात्रा पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी गई थी। इसके बाद चार वर्षों तक लाखों श्रद्धालु इस यात्रा की पुनः शुरुआत की प्रतीक्षा करते रहे।
अब 2025 में, चार साल बाद, यह ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण यात्रा फिर से शुरू होने जा रही है। 30 जून से 25 अगस्त के बीच यह यात्रा आयोजित की जाएगी और विदेश मंत्रालय ने इसके लिए आधिकारिक वेबसाइट पर आवेदन प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।
आइए जान लेते है कैलाश पर्वत के बारे में:
कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। कैलाश को डेमचोक के निवास स्थान के रूप में जाना जाता है, कैलाश पर्वत पहले तीर्थंकर ऋषभदेव से जुड़ा है, कैलाश को स्वास्तिक पर्वत के रूप में पूजा जाता है।
कैलाश पर्वत विशालकाय पिरामिड के समान प्रतीत होता है, जो चारों दिशाओं में फैले सौ से अधिक छोटे पिरामिडों का केंद्र बिंदु है। यह हिमालय की उत्तरी दिशा में तिब्बत में स्थित है और समुद्र तल से 6,657 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। चूँकि तिब्बत वर्तमान में चीन के अधीन है, इसलिए कैलाश पर्वत वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार चीन के क्षेत्र में आता है।
कहां स्थित है कैलाश पर्वत?
कैलाश पर्वत का अधिकांश क्षेत्र तिब्बत में आता है, जिस पर चीन का नियंत्रण है। कैलाश पर्वत श्रेणी कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है, लेकिन इसका सबसे पवित्र स्थल वह शिखर है जो ल्हा चू और झोंग चू नाम की दो स्थानों के बीच स्थित है। इसमें दो शिखर जुड़े हुए हैं, जिनमें से उत्तर वाला शिखर ‘कैलाश‘ कहलाता है। इसकी बनावट एक विशाल शिवलिंग जैसी प्रतीत होती है, जो इसे विशेष आध्यात्मिक महत्व देती है।
भारत के उत्तराखंड राज्य के लिपुलेख दर्रे से यह शिखर केवल 65 किलोमीटर दूर स्थित है, लेकिन चूंकि यह क्षेत्र चीन के अधीन है, इसलिए यहां जाने के लिए चीनी सरकार की अनुमति अनिवार्य होती है।
चार दिशाओं से निकलती हैं चार पवित्र नदियाँ
कैलाश पर्वत के चारों दिशाओं से चार महान नदियों का उद्गम होता है — ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलज और करनाली। यह नदियाँ भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक और भौगोलिक धारा की रीढ़ हैं। कैलाश की दिशाओं को विभिन्न पशु प्रतीकों से जोड़ा गया है — पूर्व में अश्वमुख, पश्चिम में हाथी, उत्तर में सिंह और दक्षिण में मोर। इन मुखों से ही इन नदियों की धाराएँ निकलती हैं, जो पर्वत की आध्यात्मिक ऊर्जा को जल के रूप में प्रवाहित करती हैं।
कैलाश मानसरोवर परिक्रमा:
कैलाश पर्वत की यात्रा यमद्वार से शुरू होती है। यहीं से कैलाश स्पर्श और परिक्रमा की यात्रा का आरंभ होता है।
कैलाश की परिक्रमा लगभग 50 किलोमीटर लंबी होती है, जिसे आमतौर पर श्रद्धालु तीन दिनों में पूरा करते हैं। और मान्यता है कि एक बार यह पूरी कर लेने से जीवन के सारे पाप कट जाते हैं और मुक्ति प्राप्त होती है।
मानसरोवर झील:
मानसरोवर झील, कैलाश पर्वत के दक्षिण में स्थित है, जिसकी गहराई लगभग 330 फीट और परिधि लगभग 88 किलोमीटर है। इसका जल इतना शुद्ध और शांत है कि इसमें कैलाश पर्वत की छाया प्रतिबिंबित होती है।
हिंदू मान्यता के अनुसार, इस झील को स्वयं ब्रह्मा जी ने रचा था — ध्यान और यज्ञ के लिए। यह झील केवल तीर्थ नहीं, दिव्यता की ऊर्जा का सागर है।
मानसरोवर क्षेत्र में दो प्रमुख झीलें स्थित हैं। पहली है मानसरोवर, जो विश्व की शुद्धतम जल वाली उच्चतम मीठे पानी की झीलों में से एक मानी जाती है। इसका आकार सूर्य के समान गोल है। दूसरी है राक्षसताल, जो लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, 84 किलोमीटर परिधि, और 150 फीट गहराई के साथ एक खारे पानी की झील है और इसका आकार चंद्रमा के समान माना जाता है।
इन दोनों झीलों को सौर और चंद्र ऊर्जा का प्रतिनिधित्व माना जाता है। जब इन झीलों को दक्षिण दिशा से देखा जाता है तो वहां स्वस्तिक चिन्ह जैसा आकार स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। मानसरोवर के उत्तर में कैलाश पर्वत, और दक्षिण में गुरला पर्वतमाला स्थित है। इसी पवित्र क्षेत्र के कारण प्राचीन ग्रंथों में कुमाऊँ क्षेत्र को “उत्तराखंड” के नाम से जाना गया है।
कैलाश मानसरोवर यात्रा का इतिहास:
कैलाश मानसरोवर यात्रा कोई आधुनिक खोज नहीं है, बल्कि यह हजारों वर्षों पुरानी आध्यात्मिक परंपरा है। वैदिक ऋषि-मुनियों से लेकर आधुनिक साधकों तक, यह यात्रा केवल शरीर से नहीं, बल्कि आत्मा से जुड़ी हुई मानी जाती रही है।
पौराणिक ग्रंथों में कैलाश को ‘स्वर्ग का द्वार‘ और मानसरोवर को ‘मोक्ष का अमृत‘ बताया गया है।
आधिकारिक रूप से यात्रा कब शुरू हुई?
वर्ष 1981 में यह यात्रा दोबारा औपचारिक रूप से शुरू हुई, जब भारतीय विदेश मंत्रालय और चीनी सरकार के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ। इसके बाद से हर साल सीमित संख्या में श्रद्धालुओं को सरकारी निगरानी में कैलाश-मानसरोवर भेजा जाने लगा।
कैलाश मानसरोवर यात्रा के रास्ते-
कैलाश मानसरोवर यात्रा के मुख्यतः दो रास्तों से होती है — लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड) और नाथू ला दर्रा (सिक्किम) के माध्यम से।
लिपुलेख मार्ग, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से शुरू होता है और पुराने समय से कैलाश मानसरोवर जाने का पारंपरिक रास्ता रहा है। और सबसे छोटा रास्ता भी यही है यहां से कैलाश मानसरोवर की दूरी 65 किलोमीटर है. इस यात्रा में 24 दिन का समय लग जाता है।
दूसरा रूट सिक्किम के नाथूला होकर गुजरता है. यह रूट 802 किलेामीटर है, जिसमें 21 दिन लग जाते हैं. इसके लिए ट्रेनिंग दिल्ली में होती है।
यदि खर्च की बात करें, तो लिपुलेख मार्ग से यात्रा पर प्रति व्यक्ति ₹1.74 लाख का खर्च आता है, जबकि नाथू ला मार्ग से यात्रा की लागत ₹2.83 लाख प्रति व्यक्ति तक हो जाती है। यह अंतर यात्रा की दूरी, सड़क मार्ग की उपलब्धता, आवास, खानपान और चीन में प्रवेश से संबंधित प्रबंधन खर्चों पर आधारित है।
यात्रा की समय-सीमा
कैलाश मानसरोवर यात्रा भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों के बीच हुए द्विपक्षीय समझौते के तहत आयोजित की जाती है। यह पूरी प्रक्रिया दोनों देशों की सहमति और निगरानी में होती है, जिससे श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित की जा सके। आमतौर पर यह यात्रा जून से सितंबर के बीच आयोजित की जाती है, क्योंकि इस समय मौसम अपेक्षाकृत स्थिर और अनुकूल होता है। मानसून की समाप्ति और सर्दियों के आगमन से पहले का यह काल यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।
कौन कर सकता है आवेदन?
हाल के जारी विदेश मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार, इस यात्रा के लिए केवल भारतीय नागरिक ही आवेदन कर सकते हैं। ओवरसीज़ सिटीजन ऑफ इंडिया (OCI) कार्डधारक या अन्य विदेशी नागरिक इस पवित्र यात्रा के पात्र नहीं हैं। आवेदनकर्ताओं को कुछ अहम शर्तें भी पूरी करनी होती हैं। जैसे कि, 1 जनवरी 2025 तक उनकी आयु 18 से 70 वर्ष के बीच होनी चाहिए। पासपोर्ट की वैधता 1 सितंबर 2025 तक अनिवार्य रूप से बनी रहनी चाहिए। साथ ही, बॉडी मास इंडेक्स (BMI) 25 या उससे कम होना चाहिए। चिकित्सा जांच में पूर्ण रूप से फिट पाया जाना भी एक जरूरी मानदंड है।
आवेदन प्रक्रिया?
कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए आवेदन केवल विदेश मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर किया जा सकता है। इसके लिए आपको एक पासपोर्ट साइज फोटो (JPG फॉर्मेट में), पासपोर्ट के पहले और अंतिम पृष्ठ की स्कैन कॉपी अपलोड करनी होगी। एक यूज़र अकाउंट से अधिकतम दो यात्रियों के आवेदन स्वीकार किए जाते हैं। आवेदन भरते समय यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि सारी जानकारी पासपोर्ट के अनुरूप हो — जैसे नाम, पता, जन्मतिथि आदि। अगर किसी भी प्रकार की विसंगति पाई जाती है, तो आवेदन को अस्वीकार कर दिया जाएगा।
चयन की स्थिति में मंत्रालय संबंधित यात्री को ईमेल और मोबाइल नंबर के माध्यम से सूचना देगा। इसके बाद यात्रियों को यात्रा शुल्क संबंधित राज्य निगम — उत्तराखंड के लिए कुमाऊं मंडल विकास निगम (KMVN) और सिक्किम के लिए सिक्किम पर्यटन विकास निगम (STDC) — के खातों में जमा कराना होता है।
यात्रा के लिए जरूरी दस्तावेज
हालिया विदेश मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार यात्रा में शामिल होने के लिए कुछ अनिवार्य दस्तावेज साथ लाना अनिवार्य है: वैध पासपोर्ट, छह रंगीन पासपोर्ट साइज फोटो, ₹100 का नोटरी सत्यापित क्षतिपूर्ति बांड, हेलीकॉप्टर निकासी के लिए एफिडेविट, और चीनी क्षेत्र में मृत्यु की स्थिति में वहीं अंतिम संस्कार की सहमति-पत्र। अगर इनमें से कोई दस्तावेज अधूरा हुआ या नियमों के अनुरूप नहीं पाया गया, तो यात्रा की अनुमति नहीं दी जाती।
भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि किसी भी आपदा, बीमारी, चोट, या मृत्यु की स्थिति में सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। यात्री अपनी जिम्मेदारी पर यात्रा करते हैं, और व्यक्तिगत संपत्ति की हानि या क्षति के लिए भी सरकार उत्तरदायी नहीं मानी जाएगी।