राजनीति से राजनीतिक विज्ञान के आचार्य तक का सफर तय करना कुछ आसान नहीं था
इन दिनों अशोक चौधरी जो कि बिहार के ग्रामीण कार्य विभाग के मंत्री पद पर कार्यरत हैं सुर्खियों में बने हुए हैं वजह है हाल ही में बिहार राज्य विश्वविद्यालय आयोग द्वारा घोषित असिस्टेंट प्रोफेसर का परिणाम तो
हुआ कुछ यू है कि इस परिणाम में अशोक चौधरी जी का भी राजनीति विज्ञान से चयन हुआ। इनकी उम्र 57 साल है और इनका राजनीतिक करियर भी अच्छा चल रहा ऐसे में एक सरकारी नौकरी में चयन होने पर जहाँ एक तरफ इनके लिए यह एक शैक्षिक उपलब्धि है वहीं दूसरी तरफ काँग्रेस पार्टी ने इनको निशाना बनाते हुए कहा है कि “युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही है, लेकिन आरएसएस कोटे की बदौलत अशोक चौधरी 57 साल की उम्र में प्रोफेसर बन गए “ यानी उनको आलोचनाएं भी झेलनी पड़ रही हैं !
संदर्भ के लिए -
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आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि सत्ता पक्ष के नेताओं के परिवार के सदस्यों को सरकार ने आयोगों में एडजस्ट किया गया है. इस दौरान उन्होंने सरकार को यहां तक सलाह दे डाली कि बिहार में ‘जमाई आयोग’ का गठन कर देना चाहिए.
अब इसी कड़ी में एक बार फिर से आरजेडी ने एआई वीडियो जारी कर परिवारवाद के मुद्दे को लेकर एनडीए को घेरा है.
यह इशारा चौधरी के दामाद सायन कुणाल को बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड का सदस्य नियुक्त किए जाने से जुड़े हालिया विवाद की ओर था किंतु मंत्री ने नियुक्ति में अपनी कथित भूमिका से इनकार करते हुए दावा किया था कि कुणाल को “आरएसएस कोटे” से नियुक्त किया गया था।
मंत्री अशोक चौधरी ने नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के आरोपों पर पलटवार कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि सायन कुणाल को उनके दामाद होने की वजह से नहीं, बल्कि उनकी योग्यता के आधार पर बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद में सदस्य बनाया गया है. सायन कुणाल, पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल के पुत्र हैं. साथ ही अशोक चौधरी ने लोजपा के संस्थापक स्व. रामविलास पासवान के दामाद मृणाल पासवान का भी बचाव किया, जिन्हें हाल ही में बिहार अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है. हालांकि, हम पार्टी के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी के दामाद देवेंद्र मांझी, जिन्हें अनुसूचित आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया है, उनके बचाव में अशोक चौधरी कुछ नहीं बोले.
मंत्री जी का कहना है कि वे अपने राजनीतिक करियर को नहीं छोड़ने वाले हैं हालांकि वह बिना कोई वेतन लिए सहायक प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं देना चाहते हैं!
अशोक चौधरी जी कि शिक्षा की बात करें तो उन्होंने राजनीति में प्रवेश करने से पहले मगध विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर और पीएचडी की थी राजनीति में रहते हुए भी उन्होंने कई शोध पत्
(रिसर्च पेपर) प्रकाशित किए ।
2003 में पीएचडी की उपाधि लेने के बाद वे 2020 में सहायक प्रोफेसर के पद पर अपना आवेदन भरते हैं । इतने वर्षों में ये सबसे बड़ी भर्ती बिहार में निकल कर आती है
कुछ वर्ष पहले उन्हें हार्वर्ड आमंत्रित किया गया था वहा इन्हें एक पेपर पढ़ना था जिसका शीर्षक था “स्वतंत्र भारत में अनुसूचित जाति की महिलाएं “जो उनके डॉक्टरेट थीसिस का विषय भी था।
इनका कहना है कि राजनीति में आने की प्रेरणा उन्हें उनके पिता से मिली थी ,बता दें इनके पिताजी दिवंगत महावीर चौधरी 1980 के दशक में बिहार में कांग्रेस के शासन के दौरान मंत्री थे।
चौधरी जी ने सन 2000 में बिहार विधान सभा चुनाव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में बरबीघा (विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र) से लड़ा और जीत हासिल की थी । बाद में 2013 में, उन्हें बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का प्रमुख नियुक्त किया गया।
2014 में, वे बिहार विधान परिषद के सदस्य चुने गए। 2018 में इन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ कर जनता दल यूनाइटेड का दामन थाम लिया था और अब यह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रमुख सहयोगी माने जाते हैं!
बता दें इनकी बेटी शाम्भवी चौधरी भी समस्तीपुर से लोक जनशक्ति (रामविलास) की मौजूदा सांसद हैं, और वह 18वीं लोकसभा में सबसे युवा सांसदों में से एक हैं।
शांभवी चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी से सांसद बनी है यानी केंद्र में सत्तादल एनडीए का हिस्सा भी हैं ।
बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज है ऐसे में विपक्ष दल द्वारा सरकार पर हमला करने का एक मौका भी नहीं छोड़ा जा रहा।
मैदान में इस बार जेडीयू ,राजद लोक जन शक्ति पार्टी (राम विलास) चिराग पासवान, और अपने नए दल जन सुराज के साथ प्रशांत किशोर मैदान में हैं ।