भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील को लेकर लंबे समय से बातचीत चल रही है। दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने की दिशा में कई प्रयास किए हैं, लेकिन कुछ खास सेक्टर जैसे डेयरी और कृषि पर मतभेद अभी भी कायम हैं। इन्हीं विवादों की वजह से यह डील अब तक अंतिम रूप नहीं ले सकी है।
अब अमेरिका ने 1 अगस्त 2025 की डेडलाइन तय की है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संकेत दिए हैं कि यदि इस तारीख तक समझौता नहीं हुआ, तो अमेरिका भारत पर अपने हिसाब से टैरिफ (शुल्क) लागू कर सकता है।
फिलहाल विवाद का बड़ा कारण डेयरी सेक्टर है। अमेरिका नॉन-वेज दूध भारत में बेचना चाहता है, लेकिन भारत सरकार ने साफ शब्दों में कह दिया है कि वह ऐसे किसी दूध या दूध उत्पाद का आयात नहीं करेगी जिसकी पवित्रता और शुद्धता पर संदेह हो। भारत में दूध न केवल खाद्य वस्तु है, बल्कि यह धार्मिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व भी रखता है। पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान और सांस्कृतिक परंपराओं में दूध को पवित्र माना जाता है, इसलिए सरकार का कहना है कि वह इस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेगी।
भारत का डेयरी सेक्टर न केवल आर्थिक रूप से बड़ा है, बल्कि यह 8 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार भी देता है। ऐसे में भारत किसी भी ऐसे व्यापारिक समझौते के लिए तैयार नहीं है, जिससे घरेलू डेयरी उद्योग पर असर पड़े या सांस्कृतिक आस्थाएं आहत हों।

क्या होता है मांसाहारी दूध?
अमेरिका में मांसाहारी दूध उस दूध को कहा जाता है जो ऐसे जानवरों से निकाला गया हो, जिन्हें मांस या मांस से बनी चीजें (जैसे – सूअर, मछली, मुर्गी, घोड़े, कुत्ते-बिल्ली आदि के अवशेष) खिलाया गया हो। यहां तक कि प्रोटीन सप्लीमेंट के तौर पर इन जानवरों को सूअर और घोड़े का खून तक दिया जाता है। अमेरिका में इस तरह के दूध का उत्पादन सामान्य है, लेकिन भारत में इसे स्वीकार करना संभव नहीं क्योंकि भारतीय पशुपालन पूरी तरह शाकाहारी चारे पर आधारित है और दूध धार्मिक पूजा-पाठ के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
भारत सरकार ने यह शर्त रखी है कि यदि अमेरिका भारत को दूध या डेयरी उत्पाद बेचना चाहता है, तो उस पर स्पष्ट रूप से यह लिखा होना चाहिए कि वह ऐसे मवेशियों से प्राप्त हुआ है जिन्हें केवल शाकाहारी चारा ही खिलाया गया है।
किसानों पर पड़ सकता है प्रभाव-
इस मुद्दे का एक आर्थिक पक्ष भी है। अमेरिका चाहता है कि भारत अपने डेयरी बाज़ार को खोले क्योंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक और उपभोक्ता है। अगर भारत इस पर सहमत हो जाता है, तो अमेरिका से सस्ते डेयरी उत्पाद भारत में आ सकते हैं। इससे घरेलू उत्पादकों को भारी नुकसान हो सकता है। अगर सरकार सस्ते आयात की अनुमति देती है तो छोटे किसानों की आजीविका पर बड़ा असर पड़ेगा। इसके अतिरिक्त अगर भारत अपने डेयरी बाज़ार को अमेरिका के लिए खोलता है तो भारतीय किसानों को सालाना ₹1.03 लाख करोड़ का नुकसान हो सकता है।
भारत का पशुपालन नियम अमेरिका को मंजूर नहीं
भारत के पशुपालन एवं डेयरी विभाग ने स्पष्ट नियम बना रखे हैं कि किसी भी डेयरी उत्पाद का आयात तभी किया जा सकता है जब उसका पशु चिकित्सा प्रमाण पत्र (veterinary certificate) हो, जिसमें यह सुनिश्चित किया गया हो कि मवेशियों को गोमांस या किसी प्रकार का मांस आधारित चारा नहीं खिलाया गया है। अमेरिका ने इस शर्त की शिकायत WTO (विश्व व्यापार संगठन) में की है, लेकिन भारत इस मसले पर कोई समझौता करने के मूड में नहीं है।
भारत का डेयरी सेक्टर: ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़
भारत आज विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है, जो वैश्विक दूध उत्पादन में लगभग 23% का योगदान देता है। 2014-15 में जहाँ भारत का कुल दूध उत्पादन 146.31 मिलियन टन था, वहीं यह 2020-21 तक बढ़कर 210 मिलियन टन हो गया। यह वृद्धि लगभग 6.2% की वार्षिक चक्रवृद्धि दर (CAGR) के साथ हुई है, जो भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र की महत्ता को दर्शाती है।
भारत के शीर्ष 5 दुग्ध उत्पादक राज्य हैं:
- उत्तर प्रदेश – 14.9% (31.4 मिलियन मीट्रिक टन)
- राजस्थान – 14.6% (30.7 मिलियन मीट्रिक टन)
- मध्य प्रदेश – 8.6% (18.0 मिलियन मीट्रिक टन)
- गुजरात – 7.6% (15.9 मिलियन मीट्रिक टन)
- आंध्र प्रदेश – 7.0% (14.7 मिलियन मीट्रिक टन)
डेयरी क्षेत्र न केवल कृषि का सबसे बड़ा उप-क्षेत्र है, बल्कि यह राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5% योगदान देता है। पिछले 5 वर्षों में इसमें 6.4% की चक्रवृद्धि विकास दर देखने को मिली है। इससे भी अहम बात यह है कि देशभर में लगभग 8 करोड़ लोग इस उद्योग से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं, जिनमें अधिकतर छोटे किसान और ग्रामीण महिलाएं शामिल हैं।
अमेरिका भारत के डेयरी सेक्टर में रुचि क्यों रखता है?
अमेरिका भारत के विशाल डेयरी बाजार में प्रवेश करना चाहता है क्योंकि यहाँ दूध की भारी खपत है और यह विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। अमेरिकी डेयरी कंपनियां भारत में अपने उत्पादों का निर्यात बढ़ाना चाहती हैं, जिससे उन्हें अरबों डॉलर का नया बाजार मिल सके। इसके अलावा, भारत में डेयरी क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है और इसमें विदेशी निवेश की संभावनाएं हैं। हालांकि, भारत में गैर-शाकाहारी स्रोतों से बने दूध उत्पादों (non-veg milk ingredients) को लेकर सांस्कृतिक और धार्मिक आपत्तियाँ हैं, जो इस व्यापारिक सहयोग में प्रमुख बाधा बन रही हैं।
भारत-अमेरिका टैरिफ वार्ता–:
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 2 अप्रैल को विश्व के कई देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ (जैसे को तैसा शुल्क) लगाने की घोषणा की थी। हालांकि, इसे बाद में 90 दिनों के लिए टाल दिया गया, जिसकी डेडलाइन 9 जुलाई 2025 थी। अब इसे 1 अगस्त तक के लिए बढ़ा दिया गया है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर तेज़ी से बातचीत जारी है।
अगर 1 अगस्त से पहले यह समझौता नहीं होता, तो भारत के ऊपर 26% का टैरिफ लागू हो सकता है, जिससे भारतीय निर्यातकों को बड़ा झटका लग सकता है। सूत्रों के अनुसार, वॉशिंगटन में दोनों देशों की टीमें लगातार बातचीत कर रही हैं, और जल्द ही इस डील की औपचारिक घोषणा हो सकती है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने स्पष्ट किया है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों से कोई समझौता नहीं करेगा।
डील में मुख्य रुकावटें और मतभेद-
- कृषि और डेयरी सेक्टर पर असहमति: अमेरिका भारत में GM (Genetically Modified) फसलें और डेयरी प्रोडक्ट्स की बिक्री की मांग कर रहा है, जिसे भारत ने खारिज कर दिया है। भारत का मानना है कि इससे खाद्य सुरक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और करोड़ों किसानों की आजीविका पर खतरा हो सकता है।
- टैरिफ नीति को लेकर विरोधाभास: भारत चाहता है कि अमेरिका पूरी तरह से 26% रेसिप्रोकल टैरिफ और 10% बेसलाइन टैरिफ हटाए, लेकिन अमेरिका केवल 10% टैरिफ बनाए रखने पर अड़ा है।
क्या होती हैं ‘जीएम‘ फसलें?
‘Genetically Modified’ यानी आनुवंशिक रूप से परिवर्तित फसलें वे होती हैं, जिन्हें जैव-प्रौद्योगिकी (Biotechnology) की मदद से इस तरह तैयार किया जाता है कि वे विशेष गुणों से भरपूर हों। इसमें एक पौधे या जीव के जीन को किसी अन्य पौधे में मिलाया जाता है, जिससे नई किस्म की फसल पैदा होती है। उदाहरण के लिए, बीटी कपास एक ऐसी ही फसल है जिसमें कीटरोधी (insect-resistant) गुण मौजूद होते हैं।
जीएम फसलों के उद्देश्य क्या होते हैं?
- अधिक उपज प्राप्त करना
- पोषण मूल्य को बढ़ाना
- लंबे समय तक खराब न होने वाली फसलें विकसित करना
- सूखा, कीट और रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना
- खरपतवार नाशकों के प्रति सहनशीलता बढ़ाना
जीएम उत्पादों के लाभ
- खेती में उत्पादकता बढ़ाना
- खाद्य और दवा निर्माण की लागत कम करना
- कीटनाशकों के प्रयोग में कमी
- फसलों और जानवरों की बीमारियों से रक्षा
- पौधों की जीवन अवधि बढ़ाना और खराब होने की दर घटाना
- दुग्ध और मांस उत्पादन में वृद्धि
- खाद्य सुरक्षा को मजबूत करना
- पोषण मूल्य को बढ़ाकर कुपोषण की समस्या को कम करना
दुनिया में जीएम फसलों की स्थिति
अमेरिका, ब्राजील, अर्जेंटीना, भारत और कनाडा दुनिया के प्रमुख जीएम फसल उत्पादक देश हैं। इन पांचों देशों में दुनिया के कुल जीएम फसलों की 90% खेती होती है।
भारत को क्या आपत्ति है?
भारत सरकार ने अमेरिका के उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है जिसमें वह भारत से जीएम फसलों और अमेरिकी डेयरी उत्पादों के लिए बाजार खोलने की मांग कर रहा था। भारत का तर्क है कि:
- इससे खाद्य सुरक्षा (Food Safety) पर खतरा हो सकता है
- यह जनस्वास्थ्य (Public Health) को नुकसान पहुंचा सकता है
- लाखों भारतीय किसानों की आजीविका प्रभावित हो सकती है
सरकारी अधिकारियों ने इसे भारत की राजनीतिक और आर्थिक रूप से संवेदनशील नीति बताया है और साफ कहा है कि भारत इन क्षेत्रों में किसी प्रकार की छूट नहीं देगा।
निष्कर्ष:
भारत की कृषि और दुग्ध उत्पादन प्रणाली सिर्फ आर्थिक गतिविधि नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों से गहराई से जुड़ी हुई है। ऐसे में अमेरिका से व्यापार समझौतों के तहत ‘नॉन-वेज’ दूध (जिसका उत्पादन मांसाहारी चारे या पशु-हिंसा के माध्यम से होता है) और जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फसलों को स्वीकार करना भारत के लिए केवल एक व्यापारिक फैसला नहीं, बल्कि एक नैतिक और सांस्कृतिक चुनौती बन जाता है।
भारत सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि देश की ‘रेड लाइन‘ धार्मिक भावनाओं और कृषि स्वावलंबन की रक्षा है। GM फसलें जहां एक ओर उत्पादन को बढ़ावा देती हैं, वहीं दूसरी ओर स्थानीय बीजों की विविधता, किसान की स्वतंत्रता और खाद्य सुरक्षा पर खतरा बन सकती हैं। इसी तरह मांसाहारी प्रक्रियाओं से प्राप्त दूध भारतीय आस्थाओं के विरुद्ध है।