प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 अक्टूबर, 2025 को नई दिल्ली के डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया। इस अवसर पर उन्होंने RSS के योगदानों को समर्पित स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किए।
प्रधानमंत्री ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात‘ में संघ की 100 साल की यात्रा को “अद्भुत, अभूतपूर्व और प्रेरणादायक” बताते हुए इसकी उपलब्धियों की सराहना की। उन्होंने कहा कि इस वर्ष का विजयादशमी पर्व विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह संगठन की स्थापना की शताब्दी का प्रतीक है।

RSS के 100 साल पर खास डाक टिकट जारी:
पीएम मोदी के द्वारा RSS के शताब्दी समारोह पर जारी डाक टिकट जारी किया।

डाक टिकट की खासियत क्या है?
जो डाक टिकट जारी हुआ है, उसमें स्वयंसेवकों के सेवा कार्य और 1963 में गणतंत्र दिवस की परेड की पुरानी तस्वीरों को शामिल किया गया है। कहा जाता है कि परेड तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध पर हुई थी, जो 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान नागरिकों की एकजुटता की प्रतीक थी।
100 रुपये का चांदी का सिक्का भी जारी किया गया
कार्यक्रम में एक 100 रुपये का सिक्का भी जारी किया गया है, जो RSS के 100 वर्ष पर विशेष स्मारक है। इस सिक्के में RSS कार्यकर्ताओं को ‘भारत माता’ के समक्ष उनकी पारंपरिक मुद्रा में दिखाया गया है, जो RSS के प्रत्येक आयोजन और समारोह का मानक है। यह स्मारक सिक्का शुद्ध चांदी का बना है। सिक्के के पिछले भाग पर ‘भारत माता’ को प्रणाम करते 3 स्वयंसेवक और सामने के भाग में अशोक स्तंभ का सिंह हैं।
भारतीय मुद्रा पर भारत माता की तस्वीर स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है। इस सिक्के के ऊपर संघ का बोध वाक्य भी अंकित है– राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम।

प्रधानमंत्री मोदी ने संघ के योगदान और विचारधारा की सराहना की:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डॉ. अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि यह देश का सौभाग्य है कि हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) जैसे संगठन का शताब्दी वर्ष देख रहे हैं। उन्होंने स्वयंसेवकों को शुभकामनाएं दीं और संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रधानमंत्री ने कहा कि संघ और स्वयंसेवकों का उद्देश्य सदैव “राष्ट्र प्रथम” रहा है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में संघ ने निरंतर काम किया है। उन्होंने बताया कि संघ की अलग-अलग धाराएं बनने के बावजूद उनमें कोई विरोधाभास नहीं आया, क्योंकि सभी का मूल भाव राष्ट्र निर्माण ही रहा।
उन्होंने संघ की शाखा प्रणाली की सराहना करते हुए कहा कि RSS ने व्यक्ति निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण का मार्ग चुना और उसे सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया।
घुसपैठियों और जनसांख्यिकी में बदलाव मे संघ की भूमिका: प्रधानमंत्री मोदी
प्रधानमंत्री ने वर्तमान चुनौतियों पर भी बात की। उन्होंने कहा कि घुसपैठियों से बड़ी चुनौती सामने है, साथ ही आर्थिक निर्भरता और जनसांख्यिकी में बदलाव के षड्यंत्रों से भी सरकार तेजी से निपट रही है। उन्होंने कहा कि एक स्वयंसेवक के रूप में उन्हें खुशी है कि संघ ने इनसे निपटने के लिए ठोस रोडमैप तैयार किया है और सभी को सतर्क रहने की जरूरत है।
आज़ादी के आंदोलन में संघ की भूमिका पर पीएम का उल्लेख:
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि डॉ. हेडगेवार और कई स्वयंसेवकों ने आजादी के आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को संघ से संरक्षण मिला और कई स्वयंसेवकों ने अंग्रेजों के भीषण अत्याचारों का सामना किया।
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि आजादी के बाद भी संघ की भूमिका केवल सामाजिक गतिविधियों तक सीमित नहीं रही। हैदराबाद में निजामों के अत्याचार के खिलाफ संघर्ष, गोवा के स्वतंत्रता आंदोलन और दादरा-नगर हवेली की मुक्ति जैसे ऐतिहासिक अभियानों में संघ ने सक्रिय रूप से भाग लिया और कई स्वयंसेवकों ने इन संघर्षों में अपने प्राणों की आहुति दी।
RSS ने दशहरा से शताब्दी वर्ष समारोहों की शुरुआत की:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने दशहरा के अवसर पर अपने शताब्दी वर्ष (1925–2025) के कार्यक्रमों की औपचारिक शुरुआत की। यह आयोजन 2 अक्टूबर 2025 से 20 अक्टूबर 2026 तक चलेगा। इस दौरान देशभर में सात बड़े कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जिनका उद्देश्य समाज को संगठित करना और सांस्कृतिक मूल्यों का प्रसार करना है।
शताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों की रूपरेखा:
- विजयदशमी उत्सव: 10 अक्टूबर तक आयोजित होगा।
- सामाजिक सद्भाव बैठकें: 5 से 16 नवंबर तक चलेंगी।
- गृह संपर्क अभियान: 20 नवंबर से 21 दिसंबर तक चलेगा।
- हिंदू सम्मेलन: 1 से 31 जनवरी 2026 के बीच आयोजित होगा।
- प्रमुख जन गोष्ठी: 23 से 28 फरवरी 2026 तक होंगी।
- युवा कार्यक्रम: युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए 1 से 10 सितंबर 2026 तक विशेष आयोजन होंगे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे मे:
स्थापना और उद्देश्य: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के शुभ अवसर पर डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार द्वारा की गई थी। संगठन का प्रमुख उद्देश्य भारतीय संस्कृति और उसके मूल्यों को संरक्षित करना था। इसकी विचारधारा में हिंदू एकता, आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण को विशेष स्थान दिया गया।
संघ के मुख्य उद्देश्य और लक्ष्य:
RSS स्वयं को एक सांस्कृतिक संगठन बताता है, जिसका मकसद हिंदू संस्कृति को बढ़ावा देना, समाज में एकता स्थापित करना और राष्ट्र सेवा के मूल्यों को सशक्त करना है। संगठन का कहना है कि वह भारतीय परंपराओं और विरासत के संरक्षण पर बल देता है।
हालांकि संघ स्वयं को गैर-राजनीतिक संगठन बताता है, लेकिन इसके कई स्वयंसेवक चुनावी राजनीति में सक्रिय रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक कई प्रमुख नेता संघ से जुड़े रहे हैं।
शाखा: संगठन की आधारभूत इकाई:
संघ की ताकत उसकी “शाखाओं” में निहित है। शाखा वह मूल इकाई है जो संगठन को ज़मीनी स्तर पर सशक्त उपस्थिति प्रदान करती है। यहाँ स्वयंसेवकों को वैचारिक और शारीरिक दोनों प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है।
- अधिकांश शाखाएं रोज़ाना सुबह लगती हैं, जबकि कुछ जगहों पर सप्ताह में कुछ दिन भी आयोजित होती हैं। आरएसएस के अनुसार, वर्तमान में भारत में 83 हज़ार से अधिक शाखाएं संचालित हो रही हैं।
- शाखाओं में शारीरिक व्यायाम, खेल, टीमवर्क और नेतृत्व कौशल विकसित करने के लिए गतिविधियां होती हैं।
- साथ ही ‘मार्चिंग’ और ‘आत्मरक्षा’ की तकनीक भी सिखाई जाती है। यही पर स्वयंसेवकों को हिंदुत्व, हिन्दू राष्ट्रवाद और संगठन के मूल सिद्धांतों की वैचारिक शिक्षा दी जाती है। शाखाएं ही संघ के विस्तार और उपस्थिति को पूरे देश में बनाए रखने का मुख्य आधार हैं।
स्वयंसेवक कौन होते हैं?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कहना है कि उसकी कोई औपचारिक सदस्यता नहीं है। जो लोग आरएसएस की शाखाओं में हिस्सा लेते हैं, उन्हें स्वयंसेवक कहा जाता है। कोई भी व्यक्ति संघ की निकटतम ‘शाखा’ से संपर्क कर सकता है और स्वयंसेवक बन सकता है। स्वयंसेवक बनने के लिए कोई शुल्क, पंजीकरण फॉर्म या औपचारिक आवेदन नहीं देना होता है। जो भी व्यक्ति सुबह या शाम दैनिक शाखा में भाग लेना शुरू करता है, वो संघ का स्वयंसेवक बन जाता है।
संगठनात्मक ढाँचा और नेतृत्व:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संगठनात्मक ढाँचा अनुशासित और क्रमबद्ध है। इसका सर्वोच्च पद ‘सरसंघचालक’ का होता है, जो संगठन का वैचारिक और प्रतीकात्मक नेतृत्व करता है। इसके बाद ‘सरकार्यवाह’ का पद आता है, जो मुख्य कार्यकारी अधिकारी की भूमिका निभाता है और दैनिक निर्णयों की ज़िम्मेदारी संभालता है।
संघ के सरसंघचालक कौन- कौन रहे?
संघ के पहले सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार (1925–1940) थे। उनके निधन के बाद माधव सदाशिवराव गोलवलकर (1940–1973), बालासाहब देवरस (1973–1994), राजेंद्र सिंह ‘रज्जू भैया’ (1994–2000), और के. एस. सुदर्शन (2000–2009) ने नेतृत्व संभाला।
साल 2009 में मोहन भागवत को छठा सरसंघचालक नियुक्त किया गया, जो आज भी इस पद पर कार्यरत हैं। समय के साथ संघ ने अपने नेतृत्व, शाखाओं और वैचारिक प्रशिक्षण के माध्यम से एक विशाल संगठनात्मक ढाँचा खड़ा किया है, जिसने भारतीय समाज और राजनीति दोनों में प्रभाव डाला है।
राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक संरक्षण :
- राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना: आरएसएस राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा देने और भारतीय संस्कृति और विरासत को मजबूत करने पर जोर देता है।
- सामाजिक सद्भाव: आरएसएस सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखता है, जिसका एक हिस्सा जाति व्यवस्था को खत्म करने के लिए काम करना है। वे जातिगत भेदभाव को तोड़ने के लिए सामूहिक भोज का आयोजन करते हैं।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव:
- राजनीतिक परिदृश्य को आकार देना: आरएसएस ने भारतीय राजनीति को प्रभावित किया है, और इसके कई सहयोगी संगठन हैं, जैसे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी)।
- आंदोलन में भूमिका: आरएसएस ने गोवा और दादरा और नगर हवेली को पुर्तगाली नियंत्रण से मुक्त कराने में भी भूमिका निभाई।
- भारत-चीन युद्ध में संघ की तत्परता:1962 के भारत-चीन युद्ध में संघ के अनुशासन और तत्परता से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1963 में संघ को गणतंत्र दिवस परेड में आमंत्रित किया। मात्र दो दिन में 3000 स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में परेड में शामिल हुए।
- आपातकाल के दौरान भूमिका: 1975 में आपातकाल के दौरान, आरएसएस ने इसके विरोध में एक मजबूत भूमिका निभाई थी।
समाज सेवा और राहत कार्य:
- आपदा प्रबंधन: आरएसएस के स्वयंसेवक प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूकंप और चक्रवात के दौरान राहत और पुनर्वास कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
- स्वयंसेवी राहत कार्य: कारगिल युद्ध, भोपाल गैस त्रासदी, 2004 के भूकंप और 2013 की उत्तराखंड बाढ़ जैसी आपदाओं में स्वयंसेवकों ने पीड़ितों की मदद की।
- सामुदायिक सेवा: आरएसएस के कार्यकर्ता स्वास्थ्य शिविर, रक्तदान अभियान और स्वच्छता पहल जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।
- शिक्षा और स्वास्थ्य: आरएसएस से जुड़े कई संगठन शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में योगदान करते हैं। इनमें स्कूल और गुरुकुलों की स्थापना शामिल है
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आलोचना
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर अक्सर आलोचना होती रही है। आलोचक कहते हैं कि इसके हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के विचार भारत के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के विपरीत हैं और अल्पसंख्यकों को हाशिए पर डाल सकते हैं। कुछ लोग आरएसएस की स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका पर भी सवाल उठाते हैं। 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन संघ के नेता इसे राजनीतिक प्रेरित मानते हैं।
आइए जान लेते है पोस्टेज स्टैंप रिलीज (डाक टिकट) क्या है?
स्मारक डाक टिकट एक औपचारिक प्रक्रिया है जिसके तहत किसी विशेष अवसर, व्यक्ति या विषय को सम्मानित करने के लिए डाक टिकट जारी किए जाते हैं। यह केवल एक डाक व्यवस्था का हिस्सा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को सहेजने का माध्यम भी है। जब किसी विशिष्ट अवसर पर टिकट जारी किया जाता है, तो वह टिकट उस पल का स्थायी प्रतीक बन जाता है।
15 अगस्त 1947 को आजादी (Indian Independence Day) मिलने के बाद 21 नवंबर (21 Nonember) के ही दिन भारत का पहला का स्टैंप (First Stamp) जारी किया गया था.
विशेष अवसरों की निशानी:
स्मारक टिकट (Commemorative Stamp) वह डाक टिकट होता है जो किसी स्थान, घटना, व्यक्ति या वस्तु के सम्मान या स्मरण के लिए जारी किया जाता है। अक्सर ये टिकट किसी महत्वपूर्ण तिथि जैसे वर्षगांठ या राष्ट्रीय महत्व के अवसर पर जारी किए जाते हैं।
डाक टिकट जारी करने की प्रक्रिया क्या है?
पोस्टेज स्टैंप रिलीज, जिसे हिंदी में डाक टिकट जारी करना कहा जाता है, वह प्रक्रिया है जिसके तहत एक देश की डाक प्रणाली किसी विशेष व्यक्ति, घटना या विषय को मनाने के लिए एक नए डाक टिकट का उत्पादन और वितरण करती है। यह प्रक्रिया सावधानीपूर्वक चयन, डिज़ाइन और अनुमोदन के बाद की जाती है ताकि टिकट उस विषय या अवसर का सटीक और सम्मानजनक प्रतिनिधित्व कर सके।