उत्तराखंड में पत्रकार राजीव प्रताप की मौत मामले की जांच के लिए टीम गठित, सभी पहलुओं का होगा विश्लेषण

उत्तरकाशी में पत्रकार राजीव की मौत के मामले में जांच के लिए डीएसपी उत्तरकाशी के नेतृत्व में एक विशेष टीम का गठन किया गया है। यह टीम अब तक इस मामले में मिले सभी साक्ष्यों का दोबारा अवलोकन कर जांच करेगी। सीसीटीवी कैमरे, लोगों के बयान, कॉल डिटेल और अन्य पहलुओं की भी जांच की जाएगी। 

 

सीसीटीवी फुटेज को फिर से खंगाला जाएगा- पुलिस महानिदेशक

पुलिस महानिदेशक दीपम सेठ ने बताया कि सीसीटीवी फुटेज को एक बार फिर से खंगाला जाएगा और उनकी क्षतिग्रस्त गाड़ी का तकनीकी मूल्यांकन भी किया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि प्रताप के परिजनों ने राजीव को धमकी भरे फोन आने के बारे में भी बताया हालांकि इस संबंध में उत्तरकाशी के पुलिस अधीक्षक या अन्य किसी अधिकारी से कोई शिकायत नहीं की गयी लेकिन जांच दल इस बिंदु की गहन जांच करेगा।

death of journalist Rajiv Pratap in Uttarakhand

घटना का पूरा मामला:

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थानीय पत्रकार राजीव प्रताप 18 सितंबर को अपने दोस्त की कार लेकर निकले थे। अगले दिन, यानी 19 सितंबर को उनकी कार भागीरथी नदी के पास गैंगोरी इलाके में मिली। जब एसडीआरएफ और पुलिस ने कार को बाहर निकाला, तो कार में कोई व्यक्ति या ड्राइवर नहीं था, केवल एक चप्पल मिली थी।

 

मृत्यु और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट:

गुमशुदा होने के 10 दिन बाद, 28 सितंबर को राजीव का शव भागीरथी नदी के जोशियारा बैराज से बरामद हुआ। पुलिस ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के हवाले से इसे दुर्घटना बताया।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि उनकी मौत सीने और पेट में अंदरूनी चोटों के कारण हुई थी. पुलिस ने मंगलवार को यह जानकारी दी. डॉक्टर ने बताया कि ऐसी चोटें दुर्घटनाओं के दौरान लगती हैं.लेकिन परिजनों का आरोप है कि यह हत्या है। उनका दावा है कि राजीव की रिपोर्टिंग के कारण उन्हें धमकियां मिल रही थीं।

 

परिवार का आरोप:

राजीव के भाई आलोक प्रताप भी इस बात पर सवाल उठा रहे हैं कि यह कोई दुर्घटना नहीं बल्कि गहरी साजिश हो सकती है। आलोक का कहना है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पसलियों के टूटने का जिक्र है, लेकिन जब उन्होंने राजीव का शव देखा तो शरीर पर कोई चोट के निशान नहीं थे। उनके अनुसार शरीर पर कपड़े नहीं थे और बेल्ट कैसे टूटी, यह भी समझ से परे है।

 

पत्नी मुस्कान ने उठाए गंभीर आरोप:

प्रताप की पत्नी मुस्कान ने बताया कि जिस दिन राजीव लापता हुए, उस रात करीब 11 बजे उनकी उनसे बातचीत हुई थी। बातचीत में उन्होंने कहा कि अस्पताल और स्कूल की रिपोर्ट के बाद वह बेचैनी महसूस कर रहे थे। मुस्कान ने आरोप लगाया कि कई लोग उन्हें फोन कर रहे थे और वीडियो न हटाने पर जान से मारने की धमकी दे रहे थे।

अगवा होने का शक: मुस्कान ने कहा कि 11:50 बजे उन्होंने राजीव को एक मैसेज भेजा, लेकिन वह नहीं पहुँचा। उनका मानना है कि उन्हें किसी ने अगवा किया था और यह सड़क पर गिरने या दुर्घटना नहीं थी।

पुलिस का बयान और जांच की स्थिति:

उत्तरकाशी की एसपी सरिता डोभाल ने बताया कि जांच के दौरान सीसीटीवी फुटेज की जांच में राजीव प्रताप 18 सितंबर की रात 11:39 बजे अकेले गाड़ी चलाते हुए दिखाई दिए और अगले दिन उनकी कार घटनास्थल से लगभग 500 मीटर दूर मिली. उन्होंने कहा कि तलाशी के बाद उनकी कार से उनकी चप्पलें बरामद की गईं।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में छाती और पेट की चोटों को मृत्यु का कारण बताया गया है। पुलिस का कहना है कि फिलहाल किसी अपहरण या हत्या के ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं और जांच जारी है।

 

जांच और प्रशासन की प्रतिक्रिया:

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस घटना पर दुख व्यक्त किया और जांच के आदेश दिए हैं। पुलिस ने राजीव के अपहरण की शिकायत पर मुकदमा दर्ज कर कई पहलुओं की जांच की। उत्तरकाशी बाजार और आसपास के सीसीटीवी फुटेज भी जांचे गए, लेकिन कोई ठोस सुराग नहीं मिला। लगातार तलाश के बाद ही 28 सितंबर को उनका शव बरामद हुआ।

 

राजीव प्रताप की मौत से पत्रकारों की सुरक्षा पर नए सवाल:

राजीव प्रताप की रहस्यमयी मौत ने एक बार फिर भारत में पत्रकारों की सुरक्षा और मीडिया की आजादी पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे दुखद बताते हुए तत्काल निष्पक्ष जांच की मांग की। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि राजीव जी की मौत की अविलंब पारदर्शी जांच होनी चाहिए और परिवार को न्याय मिलना चाहिए। पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर आवाज उठाने वाली संस्था कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने भी स्वतंत्र और पारदर्शी जांच की मांग की।

 

हाल ही के मामलों ने बढ़ाई चिंता:

इस साल ही छत्तीसगढ़ के बीजापुर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या ने पत्रकारिता जगत को झकझोर दिया। मुकेश 1 जनवरी को लापता हुए और 3 जनवरी को उनका शव सेप्टिक टैंक से बरामद हुआ। हत्या के पीछे स्थानीय ठेकेदार का हाथ बताया गया, जो मुकेश की भ्रष्टाचार रिपोर्ट से नाराज थे।
मार्च में उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में पत्रकार राघवेंद्र वाजपेयी की हत्या हुई, जबकि जुलाई में ओडिशा के मलकानगिरि जिले में पत्रकार नरेश कुमार की बेरहमी से हत्या कर दी गई। छोटे शहरों और कस्बों में पत्रकारों को अक्सर धमकी, गिरफ्तारी और जान से खतरे का सामना करना पड़ता है।

 

भारत में प्रेस स्वतंत्रता की गिरती रैंकिंग:

पिछले 16 वर्षों में भारत की रैंकिंग ‘ग्लोबल प्रेस फ्रीडम इंडेक्स’ में लगातार गिर रही है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2009 में भारत 105वें स्थान पर था, जबकि 2025 में यह 151वें स्थान पर आ गया।

संस्था के अनुसार, हर साल औसतन दो से तीन पत्रकार अपने काम की वजह से मारे जाते हैं। इससे भारत दुनिया के उन देशों में शामिल हो गया है, जहाँ पत्रकारिता करना सबसे जोखिम भरा माना जाता है।

 

निष्कर्ष:

राजीव प्रताप की रहस्यमयी मौत ने न सिर्फ उत्तरकाशी बल्कि पूरे देश में पत्रकारों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह घटना पत्रकारों के मन में डर पैदा करती है और दिखाती है कि छोटे शहरों और कस्बों में काम करना कितना जोखिम भरा है। परिवार और परिजनों की आशंकाओं को गंभीरता से लेते हुए निष्पक्ष और पारदर्शी जांच होना अत्यावश्यक है। दोषियों को जल्द से जल्द कानूनी कार्रवाई और कड़ी सजा मिलनी चाहिए, ताकि पत्रकारों की स्वतंत्रता और उनके काम की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

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