13 जून को जब इज़राइल ने ईरानी क्षेत्र पर हवाई हमले किए, तो यह सिर्फ दो देशों के बीच की एक और झड़प नहीं थी — यह एक बड़े क्षेत्रीय संघर्ष का संकेत बन गया। ईरान में उस वक्त हजारों भारतीय नागरिक मौजूद थे, जिनमें छात्र, तीर्थयात्री, नौकरशाह, पेशेवर और समुद्री जहाजों के नाविक शामिल थे। अचानक बढ़े तनाव और संभावित युद्ध के हालात ने इन भारतीयों की सुरक्षा को गंभीर खतरे में डाल दिया।
इन हालात को देखते हुए भारत सरकार ने तुरंत एक व्यवस्थित और रणनीतिक अभियान की शुरुआत की, जिसका नाम है ‘ऑपरेशन सिंधु’। इस मिशन का उद्देश्य ईरान में फंसे सभी भारतीय नागरिकों को सुरक्षित, शीघ्र और चरणबद्ध तरीके से निकाला जाना है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह ऑपरेशन विशेष रूप से छात्रों, तीर्थयात्रियों, पेशेवरों और समुद्री कर्मियों पर केंद्रित रहेगा।
तेजी से बदलते हालातों के बीच यह कदम न केवल भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि संकट के समय भारत अपने नागरिकों को अकेला नहीं छोड़ता।
🔹अभी तक कितने लोगों को वापस लाया जा चुका है-
उपलब्ध आकड़ों के अनुसार ऑपरेशन सिंधु के तहत अभी तक 2000 से ज्यादा लोगों को ईरान से वापस लाया जा चुका है और यह ऑपरेशन अभी भी चालू है।
🔹 निकासी की प्राथमिक आवश्यकता:
ईरान में वर्तमान में लगभग 13,000 से अधिक भारतीय नागरिक मौजूद हैं। इनमें से अधिकांश छात्र हैं, जो मेडिकल की डिग्री प्राप्त करने के लिए वहाँ अध्ययनरत हैं। इनके अलावा, कई भारतीय पेशेवर, नाविक, तीर्थयात्री, और श्रमिक भी ईरान के विभिन्न हिस्सों में रह रहे हैं। विशेष रूप से उत्तर ईरान के कुछ हिस्सों में, जैसे उर्मिया क्षेत्र, संघर्ष के खतरे अधिक हैं, जहाँ से नागरिकों को प्राथमिकता के आधार पर बाहर निकाला जा रहा है।
वही 6 खाड़ी देशों में 90 लाख से ज्यादा भारतीय हैं। सबसे ज्यादा 35.5 लाख UAE, 26 लाख सऊदी अरब, 11 लाख कुवैत, 7.45 लाख कतर, 7.79 लाख ओमान और 3.23 लाख बहरीन में हैं।
🔹 ऑपरेशन सिंधु की रणनीति: कैसे हो रही है निकासी
ऑपरेशन सिंधु को अत्यंत सावधानीपूर्वक और चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा रहा है। शुरुआती मिशन के तहत निकासी के दो प्रमुख मार्ग बनाए गए हैं:
जमीन मार्ग: प्राथमिक निकासी मार्ग उत्तर ईरान से अर्मेनिया तक है। इस मार्ग से भारतीयों को ज़मीन के रास्ते सुरक्षित रूप से अर्मेनिया की राजधानी येरेवन पहुँचाया जाता है।
वायु मार्ग: अर्मेनिया पहुँचने के बाद, नागरिकों को चार्टर्ड विमानों के माध्यम से भारत वापस लाया जाता है।
🔹 ऑपरेशन सिंधु में आर्मीनिया की रणनीतिक महत्ता क्यों है?
भू–रणनीतिक स्थिति: आर्मीनिया की ईरान के साथ 44 किलोमीटर लंबी सीमा है। यह सीमा नूर्दुज़-अगाराक (Nurduz-Agarak) क्रॉसिंग से जुड़ी है, जो तेहरान से लगभग 730 किलोमीटर लंबे राजमार्ग द्वारा जुड़ती है। यह रूट भारतीय नागरिकों को तेज़ और सुरक्षित रूप से निकालने के लिए सबसे व्यावहारिक स्थल-मार्ग (land route) प्रदान करता है।
सीमित विकल्प (Limited Alternatives):
पाकिस्तान: ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाक संबंध अत्यंत तनावपूर्ण हो गए हैं। ईरान-पाकिस्तान सीमा पर बढ़े हुए खतरे और अविश्वास के कारण यह मार्ग अस्थिर हो गया है।
तुर्की और अज़रबैजान: दोनों देश पाकिस्तान के घनिष्ठ सहयोगी हैं, जिससे ईरान से इनके माध्यम से भारत को सहयोग मिलने की संभावना बेहद कम है।
अफगानिस्तान: भारत की तालिबान-शासित अफगानिस्तान से कोई औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, जिससे यह मार्ग अव्यवहारिक है।
इराक और तुर्कमेनिस्तान:
- इराक वर्तमान में सक्रिय संघर्ष क्षेत्र है, जहाँ हवाईअड्डे भी बंद हैं।
- तुर्कमेनिस्तान की ईरान से लगी सीमा दुर्गम और अविकसित है, जिससे बड़े स्तर पर निकासी अभियान चलाना कठिन है।
🔹 क्या इजराइल में भी फसे भारतीयों को वापस लाया जा रहा है?
हाँ, इजराइल में भारतीय दूतावास के अनुसार ऑपरेशन सिंधु के तहत 604 भारतीय नागरिकों को जॉर्डन और मिस्र के रास्ते इजराइल से सुरक्षित निकाला गया है। 160 भारतीय नागरिकों का पहला जत्था 24 जून को नई दिल्ली पहुंचेगा।
निकासी अभियान में शामिल एजेंसियाँ और समन्वय
ऑपरेशन सिंधु एक मल्टी-एजेंसी प्रयास है जिसमें कई सरकारी और निजी संस्थाएँ शामिल हैं:
भारतीय वायु सेना (IAF): विशेष परिस्थितियों में आवश्यक संसाधन और लॉजिस्टिक्स उपलब्ध कराने में प्रमुख भूमिका।
वाणिज्यिक विमान सेवा प्रदाता (जैसे इंडिगो): चार्टर्ड विमानों की सुविधा प्रदान करने में सक्रिय सहयोग।
विदेश मंत्रालय (MEA): मिशन की निगरानी और समन्वय का प्रमुख केंद्र। यह मंत्रालय अर्मेनिया, ईरान और तुर्कमेनिस्तान की सरकारों के साथ सीधे संपर्क में है।
भारतीय दूतावास – तेहरान: स्थानीय स्तर पर भारतीयों को जानकारी, सुरक्षा और मार्गदर्शन प्रदान कर रहा है।
संकट नियंत्रण केंद्र (Crisis Control Room): 24×7 कार्यरत केंद्र जो भारत में स्थित है और निकासी से जुड़ी हर गतिविधि की निगरानी करता है।
ऑपरेशन का नाम ‘सिंधु’: प्रतीकात्मक महत्त्व
ऑपरेशन का नाम ‘सिंधु’ रखा गया है, जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भाषिक दृष्टि से अत्यंत गहरा प्रतीक है: ‘सिंधु’ शब्द संस्कृत में नदी या महासागर को दर्शाता है। यह भारतीय सभ्यता की प्रमुख नदी ‘सिंधु’ का नाम भी है।
भारत का नाम भी ‘सिंधु’ से व्युत्पन्न माना जाता है — फारसियों ने इसे ‘हिंदू’ कहा, जो आगे चलकर ‘इंडिया’ बना।
यह नाम एक लंबी, सुरक्षित और समर्पित यात्रा का प्रतीक है, जिसमें भारत अपने नागरिकों को किसी भी संकट से बचाने के लिए सीमाओं से परे जाकर कार्य करता है।
आपातकालीन हेल्पलाइन और सहायता व्यवस्था
भारत सरकार ने संकट में फंसे नागरिकों की मदद के लिए आपातकालीन संपर्क साधन स्थापित किए हैं:
ईरान में कॉल हेतु: +98 9128109115
ईरान में व्हाट्सएप हेतु: +98 9010445557
भारत में 24×7 कंट्रोल रूम (टोल-फ्री): 1800-118-797
अन्य संपर्क (भारत): +91-11-23012113
ये हेल्पलाइन नंबर 24 घंटे सक्रिय हैं और संकट में फंसे नागरिकों या उनके परिवारों को आवश्यक मार्गदर्शन और सहायता प्रदान कर रहे हैं।
यह पहली बार नहीं है जब भारत सरकार ने अपने नागरिकों को संघर्ष या संकट से बाहर निकाला हो। इससे पहले भी कई सफल निकासी अभियान चलाए जा चुके हैं।
नीचे भारत सरकार द्वारा चलाए गए कुछ प्रमुख अभियानों का विवरण दिया गया है:
ऑपरेशन गंगा (2022)
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान जब यूक्रेन में हालात बेहद खराब हो गए और वहां हजारों भारतीय छात्र व नागरिक फंस गए, तब भारत सरकार ने “ऑपरेशन गंगा” की शुरुआत की। इस ऑपरेशन के माध्यम से 20,000 से अधिक भारतीयों को युद्धग्रस्त यूक्रेन से सुरक्षित निकाला गया। निकासी की योजना इस तरह बनाई गई कि यूक्रेन के पड़ोसी देशों — पोलैंड, हंगरी और रोमानिया — के ज़रिए भारतीयों को बॉर्डर पार कराया गया और फिर वहां से फ्लाइट्स के ज़रिए भारत लाया गया। यह मिशन न सिर्फ तेज़ गति से चला बल्कि इसमें केंद्र सरकार के मंत्रियों को भी ज़मीनी समन्वय के लिए यूक्रेन बॉर्डर पर भेजा गया।
ऑपरेशन कावेरी (2023)
सूडान में छिड़े सिविल वॉर ने वहां रह रहे हज़ारों भारतीयों की जान को खतरे में डाल दिया। हालात इतने बिगड़ गए कि सड़क पर गोलीबारी, एयरपोर्ट बंद और खाने-पीने की चीज़ों की भारी किल्लत हो गई थी। भारत सरकार ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए “ऑपरेशन कावेरी” की शुरुआत की। इस अभियान के तहत 3,800 से अधिक भारतीय नागरिकों को सूडान से निकाला गया। उन्हें पहले सूडान से सुरक्षित निकाला गया और फिर सऊदी अरब के जेद्दा शहर के ज़रिए एयरलिफ्ट किया गया। इस अभियान में नौसेना के जहाज़ और वायुसेना के विमान, दोनों का इस्तेमाल किया गया।
ऑपरेशन अजायि (2021)
अगस्त 2021 में जब तालिबान ने अचानक अफगानिस्तान पर नियंत्रण स्थापित कर लिया, तब वहां मौजूद भारतीय नागरिकों, पत्रकारों और राजनयिकों की सुरक्षा एक बड़ी चिंता बन गई। भारत सरकार ने इस संकट से निपटने के लिए “ऑपरेशन अजायि” चलाया। इस ऑपरेशन के अंतर्गत काबुल से 500 से अधिक भारतीयों को सुरक्षित निकाला गया। इस अभियान की खास बात यह थी कि यह बेहद गोपनीयता के साथ संचालित किया गया, जिसमें भारतीय वायुसेना के विमान और खुफिया एजेंसियों का गहरा समन्वय था।
ऑपरेशन देवी शक्ति (2021)
तालिबान के कब्जे के दौरान ही भारत सरकार ने एक और विशेष मिशन चलाया — “ऑपरेशन देवी शक्ति”। यह मिशन न सिर्फ भारतीय नागरिकों को निकालने तक सीमित था, बल्कि इसमें अफगानिस्तान में फंसे अफगान सिखों और हिंदू समुदाय के लोगों को भी सुरक्षित भारत लाया गया। इस अभियान के अंतर्गत लगभग 800 से अधिक लोगों को रेस्क्यू किया गया। काबुल स्थित भारतीय दूतावास और वायुसेना की टीमों के बीच मजबूत तालमेल के कारण यह मिशन सफल हो सका।
ऑपरेशन मित्र शक्ति (2023)
2023 में जब तुर्किये में भयंकर भूकंप आया, तब भारत ने मानवीय सहायता के तहत “ऑपरेशन मित्र शक्ति” चलाया। इस अभियान के माध्यम से भारत ने वहां अपनी राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की टीमें भेजीं, जिन्होंने मलबे में दबे लोगों को निकालने का कार्य किया। राहत कार्यों में तकनीकी उपकरण, मेडिकल टीमें और खोजी कुत्तों की मदद से तेजी लाई गई। यह मिशन भारत की “वसुधैव कुटुम्बकम्” नीति का प्रतीक बना।
ऑपरेशन संजीवनी (2020)
कोविड-19 महामारी की शुरुआत में भारत ने अपने पड़ोसी देश मालदीव की सहायता के लिए “ऑपरेशन संजीवनी” की शुरुआत की। इस ऑपरेशन के तहत भारत ने मालदीव को अत्यावश्यक दवाइयाँ, मेडिकल इक्विपमेंट और अन्य स्वास्थ्य संबंधित सामग्री भेजी। यह मिशन भारत की “Neighbourhood First” नीति का प्रत्यक्ष उदाहरण था, जिसमें भारत ने यह दर्शाया कि संकट के समय वह अपने पड़ोसियों की भी उतनी ही चिंता करता है।