द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक शक्तियों ने यह महसूस किया कि परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग और उसके संभावित दुरुपयोग के बीच एक अंतरराष्ट्रीय निगरानी तंत्र अनिवार्य है। इसी उद्देश्य से 1957 में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency – IAEA) की स्थापना की गई। IAEA में आज 178 सदस्य देश शामिल हैं, भारत इसके संस्थापक सदस्यों में से एक है।
लेकिन हाल मे ईरान की संसद (Majlis) ने एक विधेयक पारित किया है जिसके तहत उसने IAEA के साथ सहयोग को आंशिक रूप से निलंबित करने का निर्णय लिया है। यह कदम तब उठाया गया है जब ईरान और इज़राइल के बीच 12 दिन तक चली सीमा पार टकराव और हवाई हमलों ने मध्य-पूर्व में तनाव को नए स्तर पर पहुँचा दिया है। आइए अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के बारे में जानते है-
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण (IAEA) क्या है?:
विश्व में परमाणु ऊर्जा का विकास जहां ऊर्जा उत्पादन का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना, वहीं इसके सैन्य उपयोग की संभावनाओं ने वैश्विक शांति और सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएँ पैदा कीं। इसी को ध्यान में रखते हुए, 29 जुलाई 1957 को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण (International Atomic Energy Agency – IAEA) की स्थापना की गई। इसका मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में है।
IAEA एक स्वायत्त अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जो परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने और इसके सैन्य उपयोग की रोकथाम के उद्देश्य से काम करती है। यह एजेंसी विशेष रूप से यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी देश अपने नागरिक परमाणु कार्यक्रम को हथियारों के निर्माण की ओर न मोड़े।
हालाँकि IAEA संयुक्त राष्ट्र (UN) की एजेंसियों के अंतर्गत नहीं आती, परंतु यह UN महासभा और सुरक्षा परिषद को नियमित रूप से रिपोर्ट प्रस्तुत करती है।
IAEA का इतिहास क्या है?
IAEA (अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) की स्थापना का उद्देश्य परमाणु शक्ति के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना और परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना था।
इसका इतिहास कई अंतरराष्ट्रीय प्रयासों और भू-राजनीतिक घटनाओं से जुड़ा है:
आरंभिक प्रयास: 1946 में, संयुक्त राष्ट्र परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की गई थी, लेकिन यह निकाय 1949 में निष्क्रिय हो गया और 1952 में इसे आधिकारिक रूप से भंग कर दिया गया।
आइजनहावर की पहल: 1953 में, अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डी. आइजनहावर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में “Atoms for Peace” नामक प्रसिद्ध भाषण दिया। इसमें उन्होंने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को विनियमित करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी की आवश्यकता पर बल दिया।
अमेरिका का प्रस्ताव: सितंबर 1954 में, अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा जो विखंडनीय सामग्री (Fissile Material) पर नियंत्रण रखे और इसका उपयोग ऊर्जा या हथियारों के लिए सुनिश्चित करे। इस एजेंसी का उद्देश्य एक “परमाणु बैंक” स्थापित करना था, जो सुरक्षित लेन-देन सुनिश्चित करे।
जिनेवा सम्मेलन: 8–20 अगस्त 1955: संयुक्त राष्ट्र ने जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर पहला अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया। इस सम्मेलन में 12 देशों ने मिलकर एक संस्थागत ढांचे की रूपरेखा तैयार की।
स्थापना और कानूनी आधार: 29 जुलाई 1957 को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण (International Atomic Energy Agency – IAEA) की स्थापना की गई। अक्टूबर 1957 में IAEA के स्थापना सम्मेलन का आयोजन संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में हुआ।
प्रथम महानिदेशक: डब्ल्यू. स्टर्लिंग कोल, जो पूर्व अमेरिकी सांसद थे, ने 1957 से 1961 तक IAEA के पहले महानिदेशक के रूप में कार्य किया।
संस्थागत ढाँचा और संचालन तंत्र:
IAEA के तीन प्रमुख कार्यकारी अंग होते हैं:
- बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (Board of Governors): इसमें कुल35 सदस्यहोते हैं — इनमें 13 सदस्य पिछले बोर्ड से, तथा 22 सदस्य जनरल कॉन्फ्रेंस द्वारा निर्वाचित होते हैं। इसका मुख्य कार्य IAEA की नीतियों का निर्धारण करना है।
- जनरल कॉन्फ्रेंस (General Conference): इसमें सभी सदस्य देश शामिल होते हैं और यह एजेंसी की आम नीतियों और बजट से जुड़े निर्णय लेती है।
- सचिवालय: इसका नेतृत्वमहानिदेशककरते हैं — वर्तमान में यह पद राफेल मारियानो ग्रॉसी (Rafael Mariano Grossi) के पास है। सचिवालय एजेंसी के दैनिक प्रशासनिक और तकनीकी कार्यों को देखता है।
वर्ष 2005 में, इसे एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण विश्व के लिये किये गए काम के लिये नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। IAEA में 178 सदस्य देश हैं, भारत इसके संस्थापक सदस्यों में से एक है।
IAEA सुरक्षा उपायों का उद्देश्य-
IAEA (अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) के सुरक्षा उपायों का मुख्य उद्देश्य परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना है। ये उपाय विभिन्न देशों के परमाणु उपक्रमों की निगरानी करके यह सुनिश्चित करते हैं कि परमाणु ऊर्जा का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए हो रहा है। इसके अंतर्गत IAEA स्वतंत्र रूप से यह पुष्टि करता है कि सदस्य राष्ट्र प्रसार-विरोधी समझौतों (Non-Proliferation Agreements) का पालन कर रहे हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से वैश्विक स्तर पर विश्वास और पारदर्शिता को बढ़ावा मिलता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा मजबूत होती है।
IAEA के सुरक्षा उपाय:
IAEA के ये सुरक्षा उपाय कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौतों (Legally Binding Agreements) के माध्यम से लागू किए जाते हैं। किसी भी देश द्वारा जब IAEA के साथ सुरक्षा समझौता किया जाता है, तब वह इस बात के लिए सहमत होता है कि उसकी परमाणु गतिविधियाँ केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए हैं और IAEA उनके सत्यापन का अधिकार रखेगा।
IAEA के तीन प्रमुख मिशन–
IAEA (अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी), जिसका मुख्यालय वियना अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (Vienna International Center) में स्थित है, आमतौर पर तीन मुख्य मिशनों को पूरा करने के लिए कार्यरत है:
शांतिपूर्ण उपयोग (Peaceful Uses): सदस्य देशों द्वारा परमाणु ऊर्जा का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों (जैसे बिजली उत्पादन, चिकित्सा, कृषि आदि) के लिए हो – IAEA इसका समर्थन और प्रोत्साहन करता है। यह तकनीकी सहयोग, शोध और प्रशिक्षण के माध्यम से शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देता है।
सुरक्षा उपाय (Safeguards): IAEA यह सुनिश्चित करने के लिए निगरानी और सत्यापन करता है कि परमाणु ऊर्जा का उपयोग सैन्य या परमाणु हथियार निर्माण के लिए न किया जाए। इसके लिए एजेंसी सुरक्षा उपाय लागू करती है और निरीक्षण प्रणाली के माध्यम से देशों के परमाणु कार्यक्रमों की स्वतंत्र जांच करती है।
परमाणु सुरक्षा (Nuclear Safety): IAEA विश्व स्तर पर परमाणु सुरक्षा मानकों को बढ़ावा देता है ताकि परमाणु संयंत्रों और गतिविधियों में उच्च स्तर की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। इसका उद्देश्य दुर्घटनाओं को रोकना और लोगों तथा पर्यावरण की रक्षा करना है।
IAEA और भारत का संबंध–
स्थापना से साझेदारी: भारत 1957 में IAEA की स्थापना के समय से ही इसका संस्थापक सदस्य रहा है। भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी जे. भाभा ने वियना को IAEA के मुख्यालय के रूप में चुनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। IAEA के नामित सदस्य (Designated Member) के रूप में भारत 1957 से लगातार इसके बोर्ड ऑफ गवर्नर्स का हिस्सा रहा है।
शांतिपूर्ण उपयोग में भारत की भूमिका: भारत ने हमेशा IAEA की सुरक्षा जिम्मेदारियों का समर्थन करते हुए यह भी ज़ोर दिया है कि परमाणु विज्ञान, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी — विशेष रूप से परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग — को बढ़ावा देना भी IAEA की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। भारत लगातार IAEA के Advisory Groups और Technical Committees में सक्रिय सदस्य के रूप में योगदान देता रहा है।
प्रशिक्षण और विशेषज्ञ सहायता: भारत IAEA की गतिविधियों को मजबूत करने के लिए अपने वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की सहायता देता है। इसके अतिरिक्त, भारत प्रशिक्षण कार्यक्रमों, कार्यशालाओं और तकनीकी सेमिनारों का आयोजन भी करता है ताकि अन्य देशों को सुरक्षित परमाणु तकनीक से लाभ मिल सके।
भारत IAEA की इस अंतरराष्ट्रीय परियोजना का संस्थापक सदस्य है और इसके लिए हर वर्ष US $50,000 का योगदान देता है। यह परियोजना उन्नत रिएक्टरों और ईंधन चक्रों पर आधारित अनुसंधान और सहयोग को बढ़ावा देती है
IAEA से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ-
- निष्पक्षता और शक्ति राजनीति का प्रभाव: IAEA को अक्सर यह कहकर आलोचना झेलनी पड़ती है कि यह परमाणु हथियारों से लैस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य देशों (P5) – अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन – के परमाणु हथियार भंडारों को घटाने की दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं करता। इससे यह धारणा बनती है कि एजेंसी, शक्तिशाली देशों के दबाव में काम करती है और वैश्विक परमाणु असंतुलन को चुनौती देने से कतराती है। इसके अलावा, IAEA पर यह आरोप भी लगाया जाता है कि यह परमाणु मामलों को शक्ति-राजनीति (power politics) के प्रभाव से बचाकर स्वतंत्रता के साथ संचालित नहीं कर पाता। 1980 के दशक में पाकिस्तान ने IAEA के पास पर्याप्त सबूत होने के बावजूद अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम को जारी रखा, लेकिन एजेंसी कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं कर सकी।
- निरीक्षण और निगरानी में सीमाएँ: IAEA के निरीक्षण कार्य की सबसे बड़ी सीमा यह है कि सुरक्षा समझौतों के तहत निरीक्षकों की पहुँच आमतौर पर केवल कुछ निश्चित स्थानों तक ही सीमित रहती है। इसका मतलब यह है कि अगर कोई देश किसी स्थान को निरीक्षण के लिए सूचीबद्ध नहीं करता, तो IAEA वहां की गतिविधियों की निगरानी नहीं कर सकता। इससे छिपी हुई या अघोषित परमाणु गतिविधियों का पता लगाना कठिन हो जाता है। साथ ही, बदलती और तेज़ी से विकसित हो रही तकनीकों के कारण भी सत्यापन से जुड़ी चुनौतियाँ लगातार बढ़ रही हैं, जिससे एजेंसी को तकनीकी रूप से खुद को अद्यतन रखना अनिवार्य हो गया है।
- वित्तीय निर्भरता और स्वतंत्रता पर प्रभाव: IAEA को अपने कार्यों को संचालित करने के लिए अतिरिक्त बजट (extrabudgetary resources) पर काफी हद तक निर्भर रहना पड़ता है। यह वित्तीय निर्भरता उसकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल खड़े करती है। जब कोई संगठन बाहरी संसाधनों पर अधिक निर्भर होता है, तो उसके निर्णय और प्राथमिकताएँ दाताओं के प्रभाव में आ सकती हैं। यही कारण है कि IAEA की स्वतंत्र निर्णय क्षमता को लेकर समय-समय पर आलोचना होती रही है।