भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है और अपनी ज़रूरत का लगभग 85% कच्चा तेल आयात करता है। देश की ऊर्जा जरूरतें मुख्यतः मध्य एशिया, खासकर ईरान, इराक, सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों पर निर्भर हैं। लेकिन बार-बार पश्चिम एशिया में भड़कते युद्ध और राजनीतिक अस्थिरता भारत की ऊर्जा आपूर्ति को संकट में डाल देते हैं। पहले खाड़ी युद्ध, फिर सऊदी ड्रोन हमले और अब हाल ही में ईरान-इजराइल युद्ध — इन सभी घटनाओं ने यह साफ कर दिया है कि भारत को किसी भी आपातकालीन स्थिति के लिए खुद को तैयार रखना होगा।
अब भारत में बनेंगे 6 नए पेट्रोलियम रिज़र्व
हालांकि भारत के पास पहले से ही रणनीतिक तेल भंडारण (Strategic Petroleum Reserves – SPR) की व्यवस्था है, जो महज़ 9 दिन की जरूरत भर ही तेल स्टोर कर सकता है। लेकिन अब भारत सरकार इस भंडारण क्षमता को 90 दिनों तक पहुंचाने की तैयारी कर रही है। इसका उद्देश्य है — युद्ध, आपदा या वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला टूटने की स्थिति में भारत को तेल संकट से बचाना।
हालिया ईरान-इजराइल युद्ध ने यह स्पष्ट कर दिया कि अगर तनाव और बढ़ता, तो कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित हो सकती थी। इसी आशंका को ध्यान में रखते हुए सरकार देश के 6 और स्थानों पर नए रणनीतिक तेल भंडार विकसित करने जा रही है।
हालांकि इन परियोजनाओं पर हजारों करोड़ रुपये का खर्च आएगा, लेकिन सरकार इसे देश की दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा के लिए आवश्यक निवेश मान रही है।
क्यों है यह जरूरी?

- भारत की अर्थव्यवस्था तेल की कीमतों से गहराई से जुड़ी है।
- युद्ध या आपूर्ति में रुकावट से तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे महंगाई भी uncontrollable हो सकती है।
- वैश्विक बाजार की अस्थिरता से खुद को बचाने के लिए पेट्रोलियम रिजर्व एक रणनीतिक कवच का काम करेंगे।
- विकसित देशों की तरह अब भारत भी अपनी आपूर्ति को कम से कम 3 महीने तक सुरक्षित रखने की योजना बना रहा है।
क्या होते है, रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार:
रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (Strategic Petroleum Reserves – SPRs) वे आपातकालीन कच्चे तेल के भंडार हैं जिन्हें देशों द्वारा संभावित आपूर्ति संकट की स्थिति में उपयोग के लिए संजोकर रखा जाता है। इन भंडारों का उद्देश्य आपात स्थिति में देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना और बाजार में स्थिरता बनाए रखना होता है।
जब किसी देश को युद्ध, प्राकृतिक आपदा या आर्थिक संकट के चलते तेल की आपूर्ति में बाधा का सामना करना पड़ता है, तब यही रणनीतिक भंडार संकटमोचक की भूमिका निभाते हैं। ये न केवल देश को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाते हैं, बल्कि वैश्विक तेल कीमतों में अस्थिरता से भी सुरक्षा प्रदान करते हैं।
अमेरिका के पास विश्व का सबसे बड़ा रणनीतिक तेल भंडार है, जिसकी अधिकृत अधिकतम क्षमता 727 मिलियन बैरल है। यह भंडार अमेरिकी ऊर्जा विभाग द्वारा संचालित किया जाता है। अमेरिका ने अतीत में इस भंडार का उपयोग विभिन्न आपातकालीन स्थितियों में किया है — जैसे कि मानव जनित दुर्घटनाएं, आर्थिक संकट, या तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएं। इसके अलावा, अमेरिका ने कई बार अन्य देशों को भी इस भंडार से तेल बेचा या उधार दिया है, जिससे यह वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- अमेरिका के अलावा चीन और जापान कच्चे तेल के प्रमुख उपभोक्ता हैं तथा इनके पास सबसे बड़ा रणनीतिक भंडार है।
वर्तमान में भारत के रणनीतिक तेल भंडार
भारत के पास कुल तीन रणनीतिक भंडारण स्थल हैं, जिनकी कुल क्षमता 5.33 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) है। ये भंडार देश की लगभग 9.5 दिन की तेल जरूरतें पूरी करने में सक्षम हैं। हालाँकि, जब इन रणनीतिक भंडारों के साथ-साथ सरकारी तेल कंपनियों (IOC, BPCL, HPCL आदि) के कमर्शियल स्टॉक को जोड़ा जाता है, तो भारत कुल मिलाकर लगभग 77 दिन की आवश्यकता तक का भंडारण कर सकता है।
भारत के मौजूदा रणनीतिक तेल भंडार:
आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में स्थित रणनीतिक तेल भंडार की क्षमता लगभग 1.33 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) है, जो देश की आपातकालीन ऊर्जा जरूरतों के लिए एक महत्वपूर्ण भंडारण केंद्र है।
कर्नाटक के मैंगलोर में स्थित दूसरा भंडार 1.5 मिलियन मीट्रिक टन कच्चे तेल को संग्रहित करने की क्षमता रखता है, जिससे आपूर्ति में आने वाली अस्थायी बाधाओं से निपटा जा सकता है।
कर्नाटक के ही पडूर में स्थित सबसे बड़ा भंडार 2.5 मिलियन मीट्रिक टन की क्षमता का है।
भारत में रणनीतिक तेल भंडारण का विस्तार: ऊर्जा सुरक्षा के नए कदम
भारत अब ऊर्जा सुरक्षा को लेकर और अधिक सतर्क हो गया है। हालिया ईरान-इज़राइल युद्ध और उसके असर ने सरकार को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि देश को किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए अपने रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (Strategic Petroleum Reserves) को और बढ़ाना होगा। वर्तमान में भारत के पास सिर्फ 9 दिनों की तेल जरूरतों का भंडार है, जिसे बढ़ाकर 90 दिन करने की योजना है। इसी दिशा में अब सरकार 6 नई जगहों पर तेल रिजर्व बनाने की तैयारी कर रही है।
कहां बनेंगे नए तेल भंडार?
रिपोर्ट के अनुसार, एक नया भंडार कर्नाटक के मैंगलोर स्थित स्पेशल इकनॉमिक ज़ोन में और दूसरा राजस्थान के बीकानेर जिले में बनाया जाएगा। बाकी चार स्थानों का चयन समुद्र तट के निकट या रिफाइनरियों के आसपास किया जाएगा, ताकि परिवहन और आपूर्ति आसान रहे। सरकार ने इस योजना पर विस्तृत रिपोर्ट साल के अंत तक प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है, ताकि निर्माण कार्य शीघ्र शुरू हो सके।
भंडारण क्षमता बढ़ाने की ज़रूरत क्यों पड़ी?
भारत अपनी कुल तेल जरूरत का लगभग 85% आयात करता है, जिसमें से करीब 46% तेल पश्चिम एशियाई देशों से आता है। यह आपूर्ति ‘होर्मुज़ जलडमरूमध्य’ से होकर गुजरती है, जो एक संवेदनशील भौगोलिक क्षेत्र है। इज़राइल-ईरान संघर्ष के दौरान ईरान ने इस मार्ग को बंद करने की धमकी भी दी थी। यदि ऐसा होता, तो वैश्विक तेल आपूर्ति का 20% प्रभावित होता और भारत को गंभीर संकट का सामना करना पड़ता।
भारत प्रतिदिन लगभग 55 लाख बैरल तेल का उपभोग करता है। ऐसे में किसी भी वैश्विक संकट के समय घरेलू आपूर्ति बनाए रखने के लिए रणनीतिक भंडारण की क्षमता बढ़ाना अनिवार्य हो गया है।
भविष्य के लिए रणनीति और निवेश
भारत ने तेल भंडारण के लिए अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा कंपनियों से बातचीत शुरू कर दी है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 10 लाख टन का एक भंडार तैयार करने में लगभग 2,500 करोड़ रुपये का खर्च आता है। कोविड महामारी के समय नवंबर 2021 में भारत ने अपने भंडार से 50 लाख टन तेल निकाला था, ताकि घरेलू कीमतों को नियंत्रित किया जा सके। इसके बाद जब वैश्विक कीमतें गिरीं, तो भारत ने मात्र 19 डॉलर प्रति बैरल के हिसाब से तेल खरीदकर करीब 69 करोड़ डॉलर की बचत की थी।
इस पूरी रणनीति का मकसद है — वैश्विक अस्थिरता के बीच भारत की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना, ताकि किसी भी आपात परिस्थिति में देश में ईंधन की कमी न हो और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर न पड़े।