भारत पिछले कुछ वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और टेक्नोलॉजी क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत तेज़ी से आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कार्य कर रहा है। विशेष रूप से मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग (जैसे iPhone असेंबली), इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और अर्धचालक (Semiconductors) जैसे क्षेत्रों में भारत ने विदेशी निवेश आकर्षित किया है। हालांकि, भारत-चीन संबंधों में बढ़ते तनाव के चलते दोनों देशों के बीच आर्थिक मोर्चे पर प्रतिद्वंद्विता भी तेज़ हो गई है। अब यह प्रतिद्वंद्विता एक नए मोड़ पर पहुंच गई है।
अब इस प्रतिद्वंद्विता ने नया मोड़ ले लिया है। हाल ही में चीन ने भारत को आवश्यक मशीनों और पुर्जों की आपूर्ति पर रोक लगा दी है, जो इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे। इसके अतिरिक्त, भारत में iPhone का निर्माण करने वाली कंपनी फॉक्सकॉन ने 300 से अधिक चीनी इंजीनियरों और तकनीकी कर्मी को भारत से वापस बुलाने का निर्देश दिया है। यह निर्णय ऐसे समय पर लिया गया है जब फॉक्सकॉन की फैक्ट्रियां तमिलनाडु और कर्नाटक में सक्रिय हैं, जहां चीनी विशेषज्ञ संचालन, उत्पादन और गुणवत्ता नियंत्रण जैसे महत्वपूर्ण कार्यों का संचालन कर रहे थे।
साथ ही, चीन ने भारत को निर्यात किए जाने वाले मैग्नेट (Magnets) पर भी रोक लगा दी है, जो इलेक्ट्रॉनिक और ऑटोमोबाइल उत्पादों के निर्माण में अत्यंत आवश्यक होते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन का उद्देश्य भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की गति को धीमा करना है, ताकि भारत की आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सके और उसका वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनने का प्रयास प्रभावित हो
“हालांकि चीनी कर्मचारियों की कुल संख्या 1% से भी कम है, फिर भी वे उत्पादन और गुणवत्ता सहित संचालन के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चीनी सरकार द्वारा अपने नागरिकों को वापस बुलाने के निर्देश से iPhone के उत्पादन कार्यक्रम में बाधा उत्पन्न हो सकती है।”

भारत बन रहा है नई मैन्युफैक्चरिंग ताकत: वैश्विक सप्लाई चेन में बदलाव:
दुनिया भर की बड़ी उत्पादन कंपनियाँ अब चीन से बाहर निकलकर नए विकल्पों की तलाश में हैं। इस बदलाव की दौड़ में भारत तेजी से सबसे आगे उभरकर सामने आ रहा है। मजबूत नीतिगत समर्थन, श्रम लागत में प्रतिस्पर्धात्मकता और उत्पादन से जुड़ी योजनाओं जैसे उपायों ने भारत को वैश्विक कंपनियों के लिए एक आकर्षक मैन्युफैक्चरिंग गंतव्य बना दिया है। Apple जैसी टेक दिग्गज कंपनी अब भारत में iPhone और अन्य डिवाइसेज़ के निर्माण की दिशा में बड़े कदम उठा रही है। खिलौना निर्माण के क्षेत्र में भारत ने विदेशी कंपनियों को आकर्षित करके सबको चौंका दिया है! जैसे—इटली की मशहूर कंपनियाँ जैसे ड्रीम प्लास्ट, माइक्रोप्लास्ट और इंकास—अब अपने प्लांट्स का एक बड़ा हिस्सा भारत में शिफ्ट कर रही हैं। ये वही कंपनियाँ हैं जो कभी चीन में अपना बेस बनाए बैठी थीं। भारतीय खिलौनों का निर्यात पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ी से बढ़ा है!
इस दिशा में भारत सरकार की 2 अरब डॉलर की उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना ने भी निर्णायक भूमिका निभाई है। वर्ष की शुरुआत में ताइवानी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी आसुस (Asus) ने वीवीडीएन टेक्नोलॉजीज़ (VVDN Technologies) के साथ साझेदारी कर मानेसर में असेंबली संचालन प्रारंभ किया। इसी प्रकार, HP ने डिक्सन टेक्नोलॉजीज़ (Dixon Technologies) के साथ मिलकर देश में ही लैपटॉप और पर्सनल कंप्यूटरों का निर्माण शुरू किया है।
यह आपूर्ति शृंखला का पुनर्गठन भारत को वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम साबित हो रहा है।
एप्पल की भारत में मैन्युफैक्चरिंग को बड़ी बढ़त:
भारत में अब एप्पल iPhone निर्माण का केंद्र तेजी से बनता जा रहा है। मौजूदा आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में बिकने वाले हर पांच iPhones में से एक अब भारत में असेंबल हो रहा है, यानी कुल वैश्विक उत्पादन का लगभग 20% हिस्सा भारत में तैयार किया जा रहा है। यह आंकड़ा फैक्ट्री गेट वैल्यू को दर्शाता है, न कि बाजार में मिलने वाली रिटेल कीमत को। भारत में iPhone निर्माण की प्रक्रिया मुख्य रूप से दक्षिण भारत स्थित फॉक्सकॉन की फैक्ट्री में होती है, जो एप्पल की सबसे बड़ी साझेदार विनिर्माण कंपनियों में से एक है।
इसके अलावा, भारत के टाटा समूह ने भी इस क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। टाटा ने पहले विस्टरोन (Wistron) को खरीदा और अब वह Pegatron के संचालन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस तरह टाटा अब एप्पल की आपूर्ति श्रृंखला का एक अहम हिस्सा बन चुका है।
भारत में अब सिर्फ बेस मॉडल ही नहीं बल्कि iPhone 15, Pro और टाइटेनियम से बने Pro Max जैसे प्रीमियम मॉडल्स भी बनाए जा रहे हैं। यह भारत के तकनीकी और विनिर्माण कौशल में आई प्रगति का स्पष्ट प्रमाण है। इस विकास में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजनाओं (Production Linked Incentive – PLI Scheme) की भी अहम भूमिका रही है। इन योजनाओं के तहत भारत सरकार वैश्विक ब्रांड्स को देश में निर्माण बढ़ाने के लिए आकर्षक सब्सिडी और प्रोत्साहन दे रही है।
विक्रय के स्तर पर भी एप्पल भारत में तेज़ी से बढ़ रहा है। अब भारत में स्मार्टफोन मार्केट में एप्पल की हिस्सेदारी लगभग 8% हो चुकी है, जो कि पहले की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि है। वित्तीय वर्ष 2024 के दौरान एप्पल की भारत में कुल बिक्री, जिसमें अधिकांश हिस्सा iPhones का है, लगभग 8 अरब डॉलर तक पहुँच चुकी है।
भारत में iPhone उत्पादन का उभार: मार्च 2024 तक भारत ने $22 अरब डॉलर मूल्य के iPhones असेंबल किए, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 60% की वृद्धि है।
Foxconn ने बेंगलुरु के पास Devanahalli में $2.56 अरब डॉलर निवेश किया है और दिसंबर तक 1 लाख iPhones बनाने का लक्ष्य रखा है। मार्च से मई 2024 के बीच Foxconn ने $3.2 अरब डॉलर के iPhones भारत से निर्यात किए, जिनमें से 97% अमेरिका भेजे गए।
मोदी सरकार की नई पहल
मोदी सरकार की नई पहलों के अंतर्गत $2.7 अरब (लगभग ₹22,000 करोड़) की नई वित्तीय प्रोत्साहन योजनाएं लाई गई हैं, जिनका उद्देश्य भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर विनिर्माण का वैश्विक केंद्र बनाना है। इन योजनाओं से एप्पल जैसे वैश्विक तकनीकी ब्रांड्स को सीधा लाभ मिल सकता है और वे भारत में दीर्घकालिक विस्तार की दिशा में अग्रसर होंगे। भारत का यह परिवर्तन वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है, जहाँ चीन की निर्भरता को कम करते हुए भारत एक स्थायी और कुशल विकल्प के रूप में उभर रहा है।
भारत की ओर क्यों बढ़ा Apple का झुकाव, और चीन ने क्यों खींची ब्रेक?
चीन से भारत की ओर Apple का रुख – कारण क्या हैं?
Apple जैसी वैश्विक कंपनी ने चीन से हटकर भारत में मैन्युफैक्चरिंग पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है। इसके पीछे कई आर्थिक, रणनीतिक और तकनीकी कारण हैं:
- सस्ते और प्रशिक्षित श्रमिक: भारत में चीन की तुलना में श्रमिक लागत कम है, लेकिन स्किल्ड लेबर आसानी से उपलब्ध हैं। इससे Apple को उत्पादन लागत कम करने में मदद मिलती है।
- निर्यात में सुविधा: भारत में बने iPhones का एक बड़ा हिस्सा सीधे अमेरिका और अन्य देशों में भेजा जा रहा है। इससे चीन की तुलना में निर्यात लॉजिस्टिक्स अधिक लचीले और कम राजनीतिक जोखिम वाले बनते हैं।
- Apple Store खोलने की राह आसान: भारत में लोकल मैन्युफैक्चरिंग से Apple को अपने खुद के रिटेल स्टोर्स खोलने में मदद मिलती है, जो अभी तक कुछ शर्तों के कारण सीमित थे।
- पर्यावरणीय नियमों में लचीलापन: अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में पर्यावरण को लेकर कड़े नियम हैं, जबकि भारत और चीन में कंपनियां अब भी तुलनात्मक रूप से अधिक लचीलापन पाती हैं। यह एक अनकही लेकिन महत्त्वपूर्ण वजह है।
भारत में मैन्युफैक्चरिंग शिफ्ट को झटका: एप्पल की रफ्तार पर असर
रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के कर्मचारियों की भारत से वापसी एप्पल के लिए एक नई चुनौती बनकर सामने आई है। एप्पल इस समय अपनी इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग चीन से भारत स्थानांतरित करने की दिशा में तेजी से काम कर रही है। लेकिन अब चीन के तकनीकी विशेषज्ञों की कमी के कारण ट्रेनिंग, असेंबली लाइन सेटअप और उत्पादन को स्केल करने की प्रक्रिया धीमी पड़ सकती है।
एप्पल का उद्देश्य भारत को वैकल्पिक मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना है ताकि चीन पर निर्भरता कम हो सके। हालांकि, चीन के तकनीशियनों की अचानक वापसी ने इस रणनीति पर संदेह और देरी की आशंका खड़ी कर दी है। इससे भारत में एप्पल की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने की योजना पर सीधा असर पड़ सकता है।