ट्रंप ने कॉपर पर 50% और फार्मा पर 200% टैरिफ लगाने की धमकी दी, भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में संकेत दिया है कि अमेरिका कॉपर (तांबा) पर 50% और फार्मा (दवाओं) पर 200% तक टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने की योजना बना रहा है। हालांकि यह योजना फिलहाल केवल प्रस्तावित स्तर पर है, लेकिन ट्रंप ने स्पष्ट किया है कि फार्मा पर यह टैरिफ एक साल के भीतर लागू किया जा सकता है। वहीं, कॉपर पर टैरिफ लागू होने की तारीख अभी घोषित नहीं की गई है।

इस बीच, अमेरिका ने रेसिप्रोकल टैरिफ (परस्पर शुल्क व्यवस्था) से छूट की डेडलाइन को बढ़ाकर 1 अगस्त कर दिया है। इसका सीधा मतलब है कि भारत सहित अन्य देशों को अमेरिका के साथ व्यापारिक समझौते करने के लिए अब अधिक समय मिल गया है।
भारत और अमेरिका के बीच बीते कई महीनों से व्यापार समझौते को लेकर वार्ता जारी है। ऐसे में यह उम्मीद की जा रही है कि अमेरिका, भारत के साथ कम से कम एक मिनी ट्रेड डील” की घोषणा जल्द कर सकता है।

कॉपर एक्सपोर्ट पर अमेरिका की संभावित टैरिफ का असर

  • वित्त वर्ष 2025 में भारत ने लगभग 2 अरब डॉलर मूल्य का कॉपर (तांबा) निर्यात किया, जिसमें से 17% हिस्सा अमेरिका को गया। अमेरिका भारत के कॉपर एक्सपोर्ट में तीसरे स्थान पर है, जबकि पहले और दूसरे पायदान पर सऊदी अरब और चीन हैं। अगर अमेरिका भारत के कॉपर पर 50% टैरिफ लगाता है, तो इससे एक्सपोर्ट पर असर जरूर पड़ेगा, लेकिन बड़ा झटका नहीं माना जा रहा है। इसकी मुख्य वजह यह है कि कॉपर का उपयोग कंस्ट्रक्शन, रिन्यूएबल एनर्जी, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे कई क्षेत्रों में होता है, जहां इसकी मांग लगातार बनी रहती है। ऐसे में भारत अन्य देशों को निर्यात बढ़ाकर अमेरिका में आई कमी की भरपाई कर सकता है। इसके अलावा, भारत में कॉपर की घरेलू मांग भी तेजी से बढ़ने की उम्मीद है, जिससे निर्यात में आई कमी का संतुलन बन सकता है।

    फार्मा पर टैरिफ से भारत को बड़ा नुकसान हो सकता है

    अगर अमेरिका फार्मा उत्पादों पर 200% टैरिफ लगाते हैं, तो यह भारत के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है। भारत अमेरिका को सबसे अधिक दवाओं का निर्यात करता है और FY25 में भारत ने अमेरिका को 9.8 अरब डॉलर की दवाओं का निर्यात किया, जो FY24 के मुकाबले 21% अधिक है। भारत के फार्मा निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी लगभग 40% है। भारत अमेरिका को ज्यादातर कम लागत वाली जेनेरिक दवाएं निर्यात करता है, जिनका अमेरिकी हेल्थकेयर सिस्टम में महत्वपूर्ण स्थान है। अमेरिका में 90% से अधिक प्रिस्क्रिप्शन दवाएं जेनेरिक होती हैं। ऐसे में अगर इन पर टैरिफ लगाया गया तो ये दवाएं महंगी हो जाएंगी और भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो जाएगा। हालांकि जब तक अमेरिका अपनी घरेलू जरूरतें खुद पूरी नहीं कर पाता, तब तक उसे विदेशों से दवा मंगवानी ही पड़ेगी। ऐसे में भारतीय कंपनियों के लिए पूरी तरह दरवाजे बंद होने की आशंका कम ही है।

     

    फार्मा निर्यात में भारत की मजबूत पकड़, पहली बार $30 बिलियन का आंकड़ा पार किया

    वित्त वर्ष 2025 में भारत के औषधि और फार्मास्युटिकल उत्पादों के निर्यात ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। इस वर्ष कुल फार्मा निर्यात $30.46 बिलियन तक पहुंच गया, जो कि पिछले वित्त वर्ष 2024 के $27.85 बिलियन की तुलना में 9% अधिक है। यह अब तक का सबसे ऊंचा वार्षिक आंकड़ा है, जो भारत की वैश्विक दवा बाजार में बढ़ती हिस्सेदारी को दर्शाता है।

    मार्च में रिकॉर्ड बढ़ोतरी

    मार्च 2025 में फार्मा निर्यात में साल-दर-साल 31.21% की जबरदस्त वृद्धि देखी गई और यह $3681.51 मिलियन पर पहुंच गया, जो कि पिछले साल मार्च में $2805.71 मिलियन था। पूरे वित्त वर्ष में यह सबसे तेज मासिक वृद्धि रही। इसके अलावा, जनवरी 2025 में भी निर्यात में उल्लेखनीय 21.47% की बढ़ोतरी हुई और उस महीने कुल निर्यात $2590.88 मिलियन रहा।

    अमेरिका बना सबसे बड़ा बाजार: फार्मा निर्यात के प्रमुख गंतव्यों में अमेरिका सबसे आगे रहा। वित्त वर्ष 2025 में अमेरिका को भारत से दवाओं का निर्यात 14.29% बढ़कर $8.95 बिलियन तक पहुंच गया। इसके अलावा ब्रिटेन, ब्राज़ील, फ्रांस और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों ने भी भारतीय दवा उत्पादों की मजबूत मांग दिखाई।

     

    भारत-अमेरिका मिनी ट्रेड डील प्रस्तावित:

    भारत और अमेरिका के बीच एक सीमित लेकिन अहम व्यापार समझौते यानी मिनी ट्रेड डील की घोषणा बहुत जल्दी हो सकती है। यह डील  दोनों देशों के लिए व्यापारिक बाधाओं को कम करने और कुछ महत्वपूर्ण उत्पादों पर शुल्क में राहत देने की दिशा में एक ठोस कदम हो सकता है।

    आइए समझते है मिनी ट्रेड डील के बारे में ?

    यह कोई पूर्ण मुक्त व्यापार समझौता नहीं है, बल्कि एक सीमित समझौता है जिसमें कुछ चुने हुए उत्पादों और सेक्टरों पर टैरिफ कम करने या रियायत देने पर सहमति बनती है। इसका मकसद है व्यापारिक संबंधों को और बेहतर बनाना और आगे बड़े समझौतों के लिए आधार तैयार करना।

     

    भारत-अमेरिका मिनी ट्रेड डील में क्या शामिल हो सकता है?

    भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित मिनी ट्रेड डील में कुछ चुनिंदा क्षेत्रों पर टैरिफ में छूट देने को लेकर सहमति बन रही है। भारत की ओर से ऐसी संभावना जताई गई है कि वह पेकान नट्स, ब्लूबेरी जैसे कृषि उत्पादों और कुछ ऑटो व इंडस्ट्रियल गुड्स पर आयात शुल्क कम करने को तैयार है।

    दूसरी ओर, अमेरिका की प्रमुख मांगों में डेयरी उत्पाद, जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलें और अन्य कृषि वस्तुएं शामिल हैं जिन पर वह टैरिफ कटौती चाहता है। हालांकि भारत ने साफ कर दिया है कि गेहूं, चावल, मक्का, डेयरी और GM फसलों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को इस समझौते से बाहर रखा जाएगा ताकि छोटे और सीमांत किसानों के हितों की रक्षा हो सके।

    टैरिफ की बात करें तो भारत चाहता है कि अमेरिका 26% रेसिप्रोकल शुल्क और 10% बेसलाइन शुल्क को पूरी तरह हटा दे। हालांकि, अमेरिका फिलहाल कम से कम 10% टैरिफ को बनाए रखने पर विचार कर सकता है।

     

    इस समझौते से दोनों पक्षों को संभावित लाभ

    अगर यह डील सफल होती है तो भारत के लिए यह अमेरिका जैसे बड़े और रणनीतिक बाजार में टेक्सटाइल, ज्वेलरी और फार्मास्युटिकल उत्पादों के लिए नए मौके पैदा करेगी। कम शुल्क के चलते भारतीय उत्पाद ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनेंगे और निर्यात में वृद्धि की संभावना बढ़ेगी। अनुमान है कि भारत-अमेरिका का द्विपक्षीय व्यापार 2030 तक $500 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।

    वहीं अमेरिका के लिए यह डील उसके कृषि और ऑटोमोबाइल उत्पादों को भारत में सस्ती दरों पर बेचने का अवसर देगी, साथ ही भारत जैसे मजबूत साझेदार के साथ संबंध मजबूत करने में मदद करेगी जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की दिशा में अहम माना जा रहा है।

     

    ट्रंप की ब्रिक्स देशों को भी चेतावनी

    पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कैबिनेट बैठक के दौरान BRICS समूह को लेकर तीखा बयान दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि यदि BRICS देश अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने का प्रयास करते हैं, तो उन्हें आर्थिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। ट्रंप ने चेतावनी देते हुए कहा कि वह BRICS देशों पर 10% शुल्क लगाने पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इन देशों को एक साल या डेढ़ साल की अवधि दी जाएगी, ताकि वे अपना रुख स्पष्ट कर सकें।

    ट्रंप ने BRICS समूह को ‘गंभीर नहीं’ करार देते हुए कहा कि यदि ये देश डॉलर को चुनौती देने की दिशा में आगे बढ़ते हैं, तो अमेरिका उन्हें यह कदम मुफ्त में नहीं उठाने देगा। शुल्क की यह धमकी इस बात का संकेत है कि अमेरिका अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए आक्रामक नीति अपनाने से पीछे नहीं हटेगा।

     

    आगे क्या हो सकता है?

    भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ताओं का परिणाम भारतीय निर्यातकों के लिए बेहद अहम होगा। यदि 1 अगस्त से पहले दोनों देशों के बीच कोई समझौता हो जाता है, तो संभव है कि भारत के कॉपर और फार्मास्युटिकल निर्यात को इन नए टैरिफ से छूट मिल जाए या इनका कार्यान्वयन धीरे-धीरे किया जाए। लेकिन अगर वार्ता विफल रहती है, तो अमेरिकी प्रस्तावित शुल्क पूरी तरह से लागू हो सकते हैं। इसका सीधा असर भारतीय कंपनियों के व्यापारिक मुनाफे और अमेरिकी बाजार में उनकी पकड़ पर पड़ सकता है। ऐसे में अगला एक महीना भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों की दिशा तय करने में निर्णायक साबित हो सकता है।