अमेरिका का 249वाँ स्वतंत्रता दिवस, कैसे अंग्रेज़ों की गुलामी से निकलकर सुपरपावर बना अमेरिका”

ब्रिटेन का साम्राज्य कभी इतना विशाल था कि कहा जाता था—”सूरज कभी ब्रिटिश साम्राज्य में अस्त नहीं होता।” इस साम्राज्य ने दुनिया के करीब 80 देशों और द्वीपों पर शासन किया। इसकी ताकत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक समय पर पूरी दुनिया का लगभग 26% भूभाग ब्रिटेन के नियंत्रण में था।

अब ज़रा सोचिए—जिस अमेरिका को आज हम सुपरपावर कहते हैं, जिसके पास दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, सबसे घातक सैन्य ताकत और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सबसे मजबूत पकड़ है—वो भी कभी ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा था!

जी हां! 4 जुलाई 1776 को अमेरिका ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता की घोषणा की थी। इसी दिन संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) का जन्म हुआ। तब से हर साल 4 जुलाई को अमेरिका अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है। इस बार अमेरिका मना रहा है अपना 249वां स्वतंत्रता दिवस, जो उसे उस गुलामी की याद दिलाता है जिससे निकलकर वह आज दुनिया का सबसे ताकतवर देश बन चुका है।

4 जुलाई का असली महत्व

4 जुलाई केवल एक राष्ट्रीय अवकाश नहीं, बल्कि अमेरिका के मूलभूत सिद्धांतों — स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय और लोकतंत्र — का प्रतीक है। यह दिन 1776 की उस ऐतिहासिक घड़ी की याद दिलाता है, जब अमेरिका ने ब्रिटिश शासन से खुद को स्वतंत्र घोषित किया और अपनी एक स्वतंत्र पहचान की नींव रखी। 4 जुलाई को पूरे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन परंपरागत रूप से पटाखों की शानदार आतिशबाजी, परेड, संगीत कार्यक्रम, मेलों, खेलकूद की प्रतियोगिताएं का आयोजन होते हैं।

 

आइए जानें अमेरिका का इतिहास — कैसे अंग्रेज़ों की गुलामी से निकलकर सुपरपावर बना अमेरिका

अमेरिका की गुलामी की शुरुआत

अमेरिका की गुलामी के बीज अगर किसी ने बोए, तो वह है क्रिस्टोफर कोलंबस। 1492 में भारत की खोज के इरादे से निकला कोलंबस गलती से अमेरिका पहुँच गया। उसे लगा कि वह एशिया में हैं, लेकिन असल में वह एक नए महाद्वीप पर पहुँच गया था। जब उसने यूरोप लौटकर इस नई भूमि की जानकारी दी, तो वहां के देशों की लालच भरी निगाहें इस नए द्वीप की ओर मुड़ गईं।

 

ब्रिटिश साम्राज्य ने बसा दी 13 कॉलोनियां-

धीरे-धीरे ब्रिटेन, स्पेन और फ्रांस जैसे शक्तिशाली साम्राज्य वहां पहुंचे और स्थानीय मूल अमेरिकियों (रेड इंडियंस) की भूमि पर कब्जा करना शुरू कर दिया। ब्रिटिश साम्राज्य ने ब्रिटेन के राजा जेम्स प्रथम के शासनकाल में अमेरिका को अपने उपनिवेशों में बदल दिया और वहां 13 कॉलोनियां (colonies) बसा लीं।

 

अत्याचार और शोषण से भरी कॉलोनियल व्यवस्था

अंग्रेजों ने अमेरिका में रह रहे लोगों पर तरह-तरह के टैक्स और प्रतिबंध लगाए। चीनी, कॉफी, चायपत्ती और स्प्रिट जैसे सामान्य सामान भी ऊँचे करों के बिना नहीं मिलते थे। व्यापार, अभिव्यक्ति और स्वशासन पर नियंत्रण ने अमेरिकियों के भीतर विद्रोह की भावना जगा दी।

इस शोषण के खिलाफ थॉमस जेफरसन, बेंजामिन फ्रैंकलिन और जॉन एडम्स जैसे नेताओं ने आवाज़ बुलंद की। इन नेताओं ने मिलकर एक संगठन बनाया जिसे कॉन्टिनेंटल कांग्रेस कहा गया। यहीं से स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखी गई।

 

अमेरिका को ब्रिटेन से स्वतंत्रता 4 जुलाई 1776 को मिली थी, लेकिन इसकी असली शुरुआत दो दिन पहले, 2 जुलाई को हुई थी। उस दिन, अमेरिकी कॉलोनियों के प्रतिनिधियों ने एक गुप्त मतदान में ब्रिटिश राज से अलग होने के पक्ष में वोट दिया था। 13 में से 12 उपनिवेशों ने स्वतंत्रता के पक्ष में फैसला लिया। यह ऐतिहासिक कदम कॉन्टिनेंटल कांग्रेस की बैठक में उठाया गया था। इस घोषणा के पीछे थॉमस जेफरसन और बेंजामिन फ्रैंकलिन जैसे बड़े नेताओं का दिमाग था।

अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा

2 जुलाई 1776 को अमेरिका की 13 कॉलोनियों ने ब्रिटिश साम्राज्य से अलग होने की प्रक्रिया शुरू की, और 4 जुलाई 1776 को सभी कॉलोनियों ने डिक्लेरेशन ऑफ इंडिपेंडेंस को अपनाया। इसी के साथ अमेरिका को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया गया और एकजुट होकर संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) का गठन हुआ।

स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनापति जनरल जॉर्ज वॉशिंगटन को अमेरिका का पहला राष्ट्रपति चुना गया। उनके सम्मान में ही अमेरिका की राजधानी का नाम रखा गया — वॉशिंगटन डीसी।

 

स्वतंत्रता के लिए भारी कीमत

हालांकि 4 जुलाई को स्वतंत्रता की घोषणा हुई, लेकिन इस संघर्ष की समाप्ति 1783 में ‘पेरिस की संधि’ से हुई। ब्रिटेन के खिलाफ इस लंबे संघर्ष में लाखों अमेरिकियों ने हिस्सा लिया। हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई। इतिहासकारों के मुताबिक, करीब 25,000 से 70,000 लोगों की मौत हुई थी। इनमें से करीब 6,800 सैनिक युद्ध के दौरान मारे गए, जबकि 17,000 से ज्यादा लोग बीमारियों से मरे। खासतौर पर ब्रिटिश जेल जहाजों में बंद अमेरिकी सैनिकों की हालत बेहद खराब थी। माना जाता है कि अकेले 1776 में ही लगभग 10,000 लोग बीमारी से मारे गए।

 

आजादी के बाद भी राह आसान नहीं थी-

अमेरिका ने 1776 में आज़ादी तो पा ली, लेकिन 19वीं सदी में वह अब भी ब्रिटेन, फ्रांस और स्पेन जैसे यूरोपीय साम्राज्यों के घिरे हुए था। इन साम्राज्यों की कई कॉलोनियाँ उत्तरी अमेरिका और कैरेबियन में मौजूद थीं। यूरोपीय शक्तियाँ अमेरिका को इस क्षेत्र में केवल एक खिलाड़ी मानती थीं।

लेकिन अमेरिका यह समझ चुका था कि यदि उसे ग्लोबल ताकत बनना है तो केवल अपने भीतर विकास करने से काम नहीं चलेगा — उसे भू-राजनीतिक प्रभाव भी स्थापित करना होगा।

 

सुपरपावर बनने की नींव

19वीं सदी के मध्य तक अमेरिका ने खुद को कृषि आधारित अर्थव्यवस्था से औद्योगिक अर्थव्यवस्था में बदल लिया था। स्टीमबोट, पैसेंजर ट्रेन, और फैक्ट्री मशीनें जैसी तकनीकों ने अमेरिका को उत्पादन, परिवहन और सैन्य शक्ति में तेज़ी से आगे बढ़ाया। साथ ही, कैरेबियन और प्रशांत महासागर में छोटे द्वीपों पर अधिकार करके अमेरिका ने खाद (guano fertilizer) और व्यापारिक रास्तों पर पकड़ बनानी शुरू कर दी। और अपने आप को ताकतवर बनाना शुरू कर दिया।

 

अमेरिका का नक्शा बदलने वाले 5 बड़े फैसले

  1. लुइसियाना की खरीद: अमेरिका ने 1803 में लुइसियाना क्षेत्र को फ्रांस से खरीदा। यह सौदा अमेरिका के क्षेत्रीय विस्तार की दिशा में पहला बड़ा कदम था।
  2. फ्लोरिडा की खरीद: 1819 में अमेरिका ने स्पेन से फ्लोरिडा को 50 लाख डॉलर में खरीदा। इससे दक्षिण-पूर्वी हिस्से में अमेरिका की पकड़ और मजबूत हुई।
  3. टेक्सास का विलय: 1845 में अमेरिका ने टेक्सास को अपने में मिला लिया। यह क्षेत्र पहले एक स्वतंत्र गणराज्य था, लेकिन अमेरिका ने इसे औपचारिक रूप से अपने नक्शे में शामिल कर लिया।
  4. मैक्सिको से युद्ध और क्षेत्र पर कब्जा: 1848 में अमेरिका और मैक्सिको के बीच हुए युद्ध के बाद अमेरिका ने कैलिफोर्निया, एरिज़ोना, न्यू मैक्सिको सहित कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। यह अमेरिका के पश्चिमी विस्तार का अहम हिस्सा बना।
  5. अलास्का की खरीद: 1867 में अमेरिका ने रूस से अलास्का को 72 लाख डॉलर में खरीदा। यह अमेरिका के उत्तरी विस्तार और प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से महत्वपूर्ण कदम था।

 

क्यूबा संकट: अमेरिका की  स्पेन से सीधी टक्कर की शुरुआत:

क्यूबा, अमेरिका का पड़ोसी द्वीप, उस समय स्पेनिश कॉलोनी था। क्यूबा में स्वतंत्रता की लहर उठ रही थी और स्पेन वहां क्रांतिकारियों को दबाने में लगा था। अमेरिका ने क्यूबा में चल रहे संघर्ष का समर्थन किया और अपने युद्धपोत (USS Maine) को हवाना़ हार्बर में तैनात कर दिया।

15 फरवरी 1898 को USS Maine को डुबो दिया।  अमेरिका ने इसके लिए स्पेन को दोषी ठहराया, और इसी घटना ने युद्ध का बहाना दे दिया और युद्ध छिड़ गया। अमेरिका ने एक ओर क्यूबा के क्रांतिकारियों को समर्थन दिया, वहीं दूसरी ओर अपनी नौसेना को स्पेनिश जहाजों से टकराने के लिए भेजा।

  • क्यूबा में अमेरिकी सहयोगी विद्रोही लड़ रहे थे।
  • समुद्र में अमेरिका की नौसेना स्पेन की नौसेना पर भारी पड़ रही थी।

स्पेन को चारों ओर से झटका लग रहा था। लड़ाई कुछ महीनों तक चली और स्पेन आखिरकार घुटने टेकने पर मजबूर हो गया। इस युद्ध में जीत के बाद, अमेरिका को न केवल क्यूबा में स्पेन का प्रभुत्व समाप्त करना पड़ा, बल्कि कैरेबियन और प्रशांत महासागर के कई द्वीप भी उसके नियंत्रण में आ गए। स्पेन ने अमेरिका को सौंपे:

  • गुआम (प्रशांत महासागर)
  • प्यूर्टो रिको (कैरेबियन)
  • फिलीपींस पर संप्रभुता हासिल कर ली और क्यूबा पर एक संरक्षक स्थापित कर दिया।

स्पेनिश-अमेरिकन युद्ध अमेरिका की पहली अंतरराष्ट्रीय सैन्य सफलता थी, जिसने उसे एक उपमहाद्वीपीय ताकत से वैश्विक ताकत में बदल दिया। अमेरिका ने प्रशांत से अटलांटिक तक अपनी सैन्य उपस्थिति स्थापित की। उसे नई कॉलोनियाँ, रणनीतिक नौसैनिक अड्डे, और वैश्विक व्यापार के मार्ग मिले।

यह युद्ध 20वीं सदी में अमेरिका के वैश्विक सुपरपावर बनने की दिशा में पहला ठोस कदम था।

 

कैसे अमेरिका बनता गया दुनिया की सबसे बड़ी ताकत

  1. पहले विश्व युद्ध में हस्तक्षेप से मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान-

साल 1914 में जब पहला विश्व युद्ध शुरू हुआ, तब अमेरिका ने शुरू में तटस्थ रहने का रास्ता अपनाया। लेकिन 1917 में जर्मनी की ओर से अमेरिकी जहाजों पर हमले और मेक्सिको को उकसाने की साज़िश के बाद, अमेरिका ने भी युद्ध में उतरने का फैसला किया। 6 अप्रैल 1917 को अमेरिका ने मित्र राष्ट्रों का साथ दिया, जिससे युद्ध का रुख बदल गया और जीत उन्हीं की हुई। इसी मोड़ से अमेरिका की वैश्विक भूमिका मजबूत होने लगी।

  1. दूसरे विश्व युद्ध में निर्णायक शक्ति बनकर उभरा-
    दूसरे विश्व युद्ध में भी अमेरिका की भूमिका शुरुआत में सीमित थी। वह मित्र राष्ट्रों को हथियार और कर्ज देकर सहायता कर रहा था, लेकिन 7 दिसंबर 1941 को जापान ने पर्ल हार्बर पर हमला कर दिया। इसके बाद अमेरिका ने सीधे युद्ध में प्रवेश किया और जापान पर दो परमाणु बम गिराए — हिरोशिमा और नागासाकी में। युद्ध अमेरिका की निर्णायक भूमिका से समाप्त हुआ और मित्र राष्ट्रों की जीत हुई। इस युद्ध के बाद अमेरिका की ताकत को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता था।
  2. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आर्थिक मुनाफे की रणनीति अपनाई:

दोनों विश्व युद्धों के बाद यूरोप और जापान आर्थिक रूप से टूट चुके थे। वहीं, अमेरिका की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही थी। डॉलर स्थिर था और वैश्विक मुद्राएँ उससे जुड़ चुकी थीं। अमेरिका ने इस अवसर को पहचाना और युद्ध से प्रभावित देशों को कर्ज और आर्थिक सहायता देकर अपनी पकड़ बनानी शुरू की।
1949 में अमेरिका के नेतृत्व में नाटो (NATO) का गठन हुआ। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाओं की स्थापना में अमेरिका की बड़ी भूमिका रही। इन अंतरराष्ट्रीय मंचों से उसकी वैश्विक स्थिति और मजबूत हो गई।

  1. शीत युद्ध में सुपरपावर बनने की होड़: विश्व युद्धों के बाद अमेरिका और सोवियत संघ (रूस) के बीच शीत युद्ध शुरू हुआ। इस दौर में अमेरिका ने हथियारों और तकनीक के ज़रिए दुनिया के कई देशों में प्रभाव बनाया। वह जहां चाहता, अपनी सैन्य ताकत और आर्थिक सहायता से सरकारें तय करने लगा। अंतरिक्ष की दौड़ में भी अमेरिका आगे निकला और 1970 के दशक में इंसान को चाँद तक पहुँचा दिया।

 

अमेरिका आज महाशक्ति बना बैठा है

जब दुनिया में महाशक्ति (Superpower) देशों की बात होती है, तो सबसे ऊपर नाम आता है — संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) का। आज अमेरिका न सिर्फ अर्थव्यवस्था के मामले में सबसे आगे है, बल्कि सैन्य ताकत, तकनीक, इंटेलिजेंस और वैश्विक प्रभाव में भी उसका कोई सानी नहीं है।

2025 में अमेरिका की जीडीपी 30.5 ट्रिलियन डॉलर आंकी गई है, जो कि दुनिया में सबसे अधिक है। तुलना करें तो चीन, जो दूसरा सबसे बड़ा आर्थिक शक्ति है, उसकी जीडीपी करीब 19.2 ट्रिलियन डॉलर है। यह अंतर साफ़ दिखाता है कि अमेरिका आर्थिक रूप से कितना आगे है।

सैन्य ताकत में भी सबसे आगे: ग्लोबल फायर पावर इंडेक्स के अनुसार, अमेरिका दुनिया की सबसे ताकतवर सेना रखता है। उसके पास सबसे आधुनिक और घातक हथियार हैं — चाहे वो लड़ाकू विमान हों, युद्धपोत, पनडुब्बियाँ या मिसाइलें।
अमेरिकी सेना में तीनों शाखाएँ — आर्मी, एयरफोर्स और नेवी — दुनिया की सबसे एडवांस और फुर्तीली मानी जाती हैं।

 

परमाणु शक्ति और हथियारों का जखीरा: अमेरिका एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र है और उसके पास ऐसे हथियार हैं जो पूरी दुनिया को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। वह अपने सैन्य शक्ति के दम पर न सिर्फ युद्ध जीतता है, बल्कि दुनिया के कई देशों की रणनीतियों को प्रभावित भी करता है।

सबसे घातक इंटेलिजेंस सिस्टम: अमेरिका के पास CIA (Central Intelligence Agency) जैसी विश्व की सबसे शक्तिशाली और खुफिया एजेंसी है। यह सिस्टम दुनिया के हर कोने में मौजूद गतिविधियों पर नज़र रखता है और अमेरिका को पहले से तैयार रहने में मदद करता है।

तकनीकी और वैश्विक प्रभुत्व: टेक्नोलॉजी, साइबर सिक्योरिटी, स्पेस मिशन और इनोवेशन के मामले में अमेरिका सबसे आगे है। NASA की सफलता, चंद्र और मंगल मिशन, और वैश्विक इंटरनेट कंपनियों जैसे Google, Apple, Microsoft, Meta जैसी कंपनियाँ उसकी ताकत को और मजबूत बनाती हैं।

 

निष्कर्ष:

अंग्रेजों की गुलामी से निकलकर अमेरिका ने न सिर्फ स्वतंत्रता हासिल की, बल्कि युद्ध, अर्थव्यवस्था, तकनीक और कूटनीति के हर मोर्चे पर खुद को सिद्ध किया।
आज वही देश वैश्विक मंच पर सबसे आगे खड़ा है — सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, सबसे ताकतवर सेना और सबसे मजबूत राजनीतिक प्रभाव के साथ। जो कभी नियंत्रण में था, आज वही दुनिया को नियंत्रित कर रहा है।

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