पश्चिम एशिया लंबे समय से संघर्षों और सैन्य तनावों का केंद्र रहा है, लेकिन हाल ही में ईरान और इज़राइल के बीच छिड़े युद्ध ने इस पूरे क्षेत्र की स्थिरता को गहरे संकट में डाल दिया है। यह युद्ध न सिर्फ इन दो देशों के बीच सीमित रहा, बल्कि अमेरिका जैसे वैश्विक महाशक्ति की सीधी सैन्य भागीदारी ने इसे एक वैश्विक चिंता का विषय बना दिया है।
ईरान और इज़राइल के बीच तीव्र संघर्ष के दौरान, अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों – फोर्डो, नतांज और इस्फहान – पर एक सुनियोजित और सफल हमला किया। और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प दावा किया की अमेरिकी हमले से ईरान के परमाणु ठिकाने पूरी तरह नष्ट हो गए है।
इस विनाशकारी हमले के बाद मध्य-पूर्व में और तनाव फैलने की आशंका थी, लेकिन कतर की मध्यस्थता और राजनयिक प्रयासों के बाद अमेरिका ने दोनों पक्षों के बीच संघर्षविराम की घोषणा कर दी।
संघर्षविराम के बाद हाल ही में, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक विवादित लेकिन बेहद तीखा बयान दिया। उन्होंने ईरान पर अमेरिकी हमले की तुलना द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में जापान पर हुए परमाणु हमलों से की।
ट्रम्प ने कहा – “मैं हिरोशिमा का उदाहरण नहीं देना चाहता, मैं नागासाकी का उदाहरण नहीं देना चाहता, लेकिन वह मूल रूप से एक ही बात थी। उस हमले ने युद्ध को समाप्त कर दिया।”
अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान के बाद जापान की प्रतिक्रिया: 'यह अस्वीकार्य है'

डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ईरान पर अमेरिकी हमले की तुलना हिरोशिमा और नागासाकी पर किए गए परमाणु हमलों से करने के बाद, जापान में तीव्र आलोचना और आक्रोश की लहर फैल गई। यह तुलना न केवल राजनयिक रूप से संवेदनशील थी, बल्कि उन लाखों जापानी नागरिकों के घावों को फिर से कुरेदने जैसी थी, जो आज भी उस त्रासदी के दंश को महसूस कर रहे हैं।
नागासाकी के मेयर शिरो सुजुकी (Shiro Suzuki) ने ट्रम्प की टिप्पणी पर गहरी नाराजगी जताते हुए कहा – “यदि ट्रम्प की टिप्पणी परमाणु बम गिराने को न्यायोचित ठहराती है, तो यह हमारे लिए – एक ऐसा शहर जिस पर बम गिराया गया था – अत्यंत खेदजनक है।”
“ऐसी टिप्पणियाँ न केवल संवेदनहीन हैं, बल्कि मानवता के खिलाफ अपराध की स्मृति का भी अपमान करती हैं।”
हिरोशिमा में प्रदर्शन: ट्रम्प के इस बयान के विरोध में हिरोशिमा शहर में स्थानीय नागरिकों, छात्रों, और परमाणु हमलों से प्रभावित परिवारों ने एक शांतिपूर्ण लेकिन सशक्त विरोध प्रदर्शन किया।
इस प्रदर्शन में शामिल लोगों ने अमेरिका से औपचारिक माफी की मांग की और ट्रम्प के बयान को मानवाधिकार और शांति के खिलाफ बताया।
हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमलों की कहानी:
हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमलों के बारे में जानने से पहले इसकी पृष्ठभूमि जानना जरूरी है, इसके लिए थोड़ा पीछे जाना जरूरी है — हमें उस घटना को समझना होगा जिसने इस भयावह इतिहास की नींव रखी थी, और वह था जापान द्वारा अमेरिका के पर्ल हार्बर पर किया गया हमला।
पर्ल हार्बर पर हमला: परमाणु त्रासदी की शुरुआत
7 दिसंबर, 1941 की सुबह जापानी एयरफोर्स ने अमेरिका के हवाई स्थित नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर पर अचानक और बिना चेतावनी हमला कर दिया। इस हमले में 2,403 अमेरिकी सैनिक मारे गए और 1,178 घायल हो गए। साथ ही अमेरिका के 18 नौसैनिक जहाज और 328 विमान या तो क्षतिग्रस्त हो गए या पूरी तरह नष्ट कर दिए गए।
जापान ने इस हमले को दो चरणों में अंजाम दिया। पहले चरण में कमांडर मिस्तुओ फुचिदा के नेतृत्व में 183 फाइटर जेट्स ने ओहियो के ईस्ट में तैनात जापान के छह जंगी जहाजों से उड़ान भरी। इसके बाद लेफ्टिनेंट कमांडर शिगेकाजू शिमाजाकी की अगुवाई में 171 फाइटर जेट्स की दूसरी लहर पर्ल हार्बर को निशाना बनाने पहुंची। जापान ने इस हमले के लिए फाइटर जेट्स, बॉम्बर्स और टारपीडो मिसाइल्स का इस्तेमाल किया।
इस ‘कार्पेट बमिंग’ में अमेरिका के आठ युद्धपोतों में से छह, क्रूजर, डिस्ट्रॉयर और 200 से ज्यादा एयरक्राफ्ट पूरी तरह तबाह हो गए।
कूटनीतिक पृष्ठभूमि और परमाणु हमला
इस हमले का उद्देश्य था — अमेरिका की प्रशांत महासागर में मौजूद नौसेना को बेअसर करना। जापान चाहता था कि वह पूरे एशिया में अपनी सैन्य और आर्थिक पकड़ मजबूत कर सके, बिना अमेरिका के हस्तक्षेप के।
इस बमबारी के ठीक बाद जापान ने अमेरिका और ब्रिटेन के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने इस दिन को ‘कलंक का दिन’ करार दिया और अगले ही दिन यानी 8 दिसंबर को अमेरिका ने भी जापान के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया। इसी के साथ अमेरिका औपचारिक रूप से द्वितीय विश्व युद्ध में कूद पड़ा।
पर्ल हार्बर पर हुए इस हमले का बदला अमेरिका ने चार साल बाद लिया, जब अगस्त 1945 में उसने जापान के दो शहरों — हिरोशिमा और नागासाकी — पर परमाणु बम गिराए। इन हमलों ने न सिर्फ लाखों जिंदगियां खत्म कर दीं, बल्कि पूरे मानव इतिहास को एक स्थायी चेतावनी भी दे दी: कि युद्ध का अंत चाहे जितना तेज हो, उसकी कीमत हमेशा विनाश होती है।
हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमलों की भयावह दास्तान
6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के शहर हिरोशिमा पर इतिहास का पहला परमाणु बम गिराया। देखते ही देखते पूरा शहर राख में बदल गया। फिर ठीक तीन दिन बाद, 9 अगस्त को नागासाकी भी इसी विनाश का शिकार बना। इन दोनों हमलों ने न सिर्फ जापान को झकझोर कर रख दिया, बल्कि पूरी दुनिया को परमाणु शक्ति की तबाही का असली चेहरा दिखाया।
‘लिटिल बॉय’ और ‘फैट मैन’ –
हिरोशिमा पर गिराया गया बम ‘लिटिल बॉय’ था, जिसमें लगभग 65 किलो यूरेनियम भरा था और इसका वजन करीब 4 टन था। यह बम ‘एनोला गे’ नामक अमेरिकी विमान से गिराया गया, जिसे पाल टिबेट्स नामक पायलट उड़ा रहे थे। हिरोशिमा का तापमान विस्फोट के बाद 4 लाख डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। इतनी ऊष्मा में लोगों की परछाइयां दीवारों पर हमेशा के लिए छप गईं।
तीन दिन बाद अमेरिका ने ‘फैट मैन’ नामक बम नागासाकी पर गिराया, जिसका वजन करीब 4500 किलो था और यह 6.5 किलो प्लूटोनियम से भरा हुआ था। इस हमले ने नागासाकी को मलबे में बदल दिया।
इन दोनों हमलों में करीब 2 लाख से ज्यादा लोग मारे गए — हिरोशिमा में करीब 1,40,000 और नागासाकी में 74,000। जो बचे, वे भी रेडिएशन की चपेट में आकर ‘काली बारिश’ और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का शिकार हुए। पीढ़ियों तक इस दर्दनाक हमले के प्रभाव महसूस किए गए।
द्वितीय विश्व युद्ध का अंत
इन हमलों के कुछ ही दिनों बाद, जापान ने 14 अगस्त 1945 को मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। यही घटनाएं द्वितीय विश्व युद्ध के अंत की वजह बनीं। लेकिन इसके साथ ही दुनिया ने यह भी समझ लिया कि परमाणु युद्ध का अंत सिर्फ जीत से नहीं, मानवता के पतन से होता है।
हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमलों के प्रभाव
तत्काल प्रभाव:जब 6 और 9 अगस्त 1945 को अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए, तो उसका असर पल भर में दिखाई देने लगा। दोनों शहरों की 60 से 70 प्रतिशत इमारतें मलबे में तब्दील हो गईं। पूरा शहर धुएं और आग की चादर में लिपट गया।
हिरोशिमा में करीब 90,000 से 1,66,000 लोग और नागासाकी में 60,000 से 80,000 लोग मारे गए, जिनमें से अधिकांश की मौत विस्फोट के कुछ ही पलों में हो गई। जो लोग बचे, वे गंभीर जलन, चोट और विकिरण विषाक्तता से जूझते रहे।
दीर्घकालिक प्रभाव:
इन हमलों का असर केवल तत्काल नहीं था। विस्फोट के बाद बचे लोगों को कैंसर, ल्यूकेमिया और त्वचा संबंधी गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा। कई पीढ़ियों तक बच्चों में शारीरिक और मानसिक विकास में देरी, मस्तिष्क का छोटा आकार, और प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट जैसे प्रभाव देखे गए।
परमाणु बम के कारण हुआ रेडिएशन इतना घातक था कि काली बारिश के रूप में जहरीले कण शहर में गिरे, जिससे और लोग बीमार हुए।
इस भयावह त्रासदी ने लोगों के मन में गहरा मानसिक आघात छोड़ा। जो लोग इस नरसंहार से बचे, उन्हें भावनात्मक पीड़ा और सामाजिक बहिष्कार का भी सामना करना पड़ा।
समाज और दुनिया पर असर:
इस तबाही ने जापान के सामुदायिक ढांचे को झकझोर दिया। राहत और पुनर्निर्माण के प्रयास कई वर्षों तक चलते रहे।
लेकिन सबसे बड़ा प्रभाव यह था कि इस विनाश ने पूरी दुनिया को परमाणु हथियारों की भयावहता का एहसास कराया। इसी के साथ परमाणु शस्त्रों के उपयोग, मानवता और युद्ध की नैतिकता पर वैश्विक बहस शुरू हुई — जो आज तक जारी है।
