साढ़े चार अरब साल पहले जब धूल और गैस के बादल से पृथ्वी का निर्माण हुआ तो अंदर कई कीमती चीज समा गई बाहर जीवन पनपने लगा था। फिर जीवन की रफ्तार में मानव आगे निकल गए, अपने दायरे तय किए, यही दायरे आगे चलकर देश बन गए और अब यही देश पृथ्वी के अंदर मौजूद कीमती पदार्थों की रस्साकशी में लगे हैं।
आज हम एक ऐसी ही कीमती चीज की बात करने जा रहे हैं जिनको हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस्तेमाल करते हैं। 17 एलिमेंट्स के इस समूह को टेलीफोन से लेकर टरबाइन एवं इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों से लेकर सैन्य उपकरणों तक में इस्तेमाल किया जाता है। जी हां हम बात कर रहे हैं रेयर अर्थ मैग्नेट्स की( Rare Earth Magnets )।
रेयर अर्थ मैग्नेट्स को रेयर अर्थ मेटल्स से तैयार किया जाता है। एक सप्लाई चैन फॉलो की जाती है जिसमें पहले इन्हें धरती से खोदना होता है, फिर रिफाइन कर इन्हें end use के लिए तैयार किया जाता है। दो सबसे महत्वपूर्ण रेयर अर्थ मैग्नेट्स neodymium और samarium हैं। यह दोनों मैग्नेट्स मिलकर स्मार्टफोंस, ईवी, ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री, विंड टर्बाइंस, जेट इंजंस एवं सेटेलाइट में प्रयोग किए जाते हैं।
रेयर अर्थ मैग्नेट्स सच में देखा जाए तो रेयर नहीं होते हैं। इनका एक्सट्रैक्शन काफी मुश्किल एवं रिफाइन करने का तरीका काफी महंगा होना इन्हें रेयर बनाता है
चीन रेयर अर्थ मेटल्स एवं रेयर अर्थ मैग्नेट्स के लगभग 70% उत्पादन के साथ विश्व भर में मोनोपोली की स्थिति में है। चीन 30 साल पहले इस सप्लाई चैन को स्थापित कर चुका था और आज की जरूरत को समझते हुए उसका विजन बेहद स्पष्ट है। इस रेयर अर्थ मेटल की सप्लाई चैन को चीन जियो पोलिटिकल टूल का प्रयोग करता है। यह एकदम वैसे ही है जैसे अरब देश तेल को लेकर अन्य देशों के साथ करते हैं। उनका मकसद पैसा कमाना होता है लेकिन यहां पर चीन रेयर अर्थ मैग्नेट्स की सप्लाई चैन को नियंत्रित कर या रोक कर उन देशों को एक सबक सिखा रहा है जिन्होंने chinese ambitious टेक्नोलॉजी जैसे huawei,ZTE,tiktok या ताइवान को लेकर के चीन का समर्थन नहीं किया था। चीन हाल ही में अमेरिका के सर दर्द का कारण भी बना था। टैरिफ वार में रेयर अर्थ मेटल्स के जरिये उसने नेगोशिएट किया जहां अमेरिका जैसी महाशक्तियों को भी झुकना पड़ा राष्ट्रपति ट्रंप के साथ ये बातचीत का दौर xi jinping की अगुवाई में हुआ ।
रेयर अर्थ मेटल्स में क्या है भारत की स्थिति ?
यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि Geological सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के राज्य उड़ीसा, ,तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश ,केरल में भारी मात्रा में रेयर अर्थ मेटल्स पाए जाते हैं और इन्हीं से निर्माण संभव है रेयर अर्थ मैग्नेट का भी। परन्तु सबसे बड़ी चुनौती है इनको उपयोग में लाने लायक बनाने की टेक्नोलॉजी का अभाव होना। इसी का परिणाम है की पूर्ण रूप से भारत रेयर मैग्नेट्स के लिए चीन पर निर्भर है।
IEA के अनुसार रेयर अर्थ के भंडार के सही क्रम को देखे तो चीन 44% , ब्राजील 21%, भारत 6.9%, ऑस्ट्रेलिया 5.7%, रूस 3.8%, वियतनाम 3.5%, अमेरिका 1.9% स्थिति बनाए हुए है ।
हाल ही में भारत सरकार द्वारा कुछ उपाय किए गए हैं जिसमें रेयर अर्थ मैग्नेट्स का स्रोत अन्य देशों जैसे आस्ट्रेलिया, ब्राजील, चिली, अर्जेंटीना को बनाने तथा इन देशों की सप्लाई चेन भारत तक विकसित करने को लेकर बात चल रही है।
भारत सरकार ने सभी खदानों को आदेश दिया है कि वह अपने खनन अपशिष्ट में रेयर अर्थ एलिमेंट्स की मौजूदगी की जांच करें पहले जिन मिनरल्स को माइनर माना जाता था जैसे क्वार्ट्ज माइका आदि अब उनमें छिपी क्रिटिकल मिनरल्स की भी पहचान और निष्कर्षण अनिवार्य कर दिया है। घरेलू उत्पादन को बढ़ाने की श्रृंखला में नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन पर सरकार का विशेष फोकस है और ऑटोमोबाइल कंपनियों जैसे की मारुति सुजुकी हुंडई महिंद्रा जो आगे आने वाले समय पर EVs में अपना भविष्य देखती हैं उनके लिए भी काफी राहत देने वाली खबर है।
ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री का भारत की जीडीपी में 7.1% और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में 49% का योगदान रहता है जो कि एक बड़ा भाग है। डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग यहां तक कि सेटेलाइट निर्माण में भी भारत प्रवेश कर चुका है मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री काफी हद तक रोजगार प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण स्तंभ भी है। ऐसे में काफी जरूरी हो जाता है कि भारत भी रेयर मैग्नेट्स पर वैकल्पिक स्रोत के साथ एक अन्य रास्ता भी जरूर तलाशें।
17 जून 2025 को केंद्रीय कोयला और खान मंत्री जी किशन रेड्डी ने केंद्रीय भारी उद्योग और इस्पात मंत्री एचडी कुमारस्वामी और परमाणु ऊर्जा, इस्पात, भारी उद्योग और वाणिज्य मंत्रालयों के अधिकारियों के साथ एक अंतर-मंत्रालयी बैठक की। आरईई के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करने और खनन से लेकर शोधन और अंतिम उपयोग तक मूल्य श्रृंखला को मजबूत करने के लिए कई पहलुओं पर विचार विमर्श किया गया।
जबकि चीन 44 मिलियन टन (एमटी) के साथ आरईई भंडार में सबसे ऊपर है, अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने भारत के भंडार को 6.9 मीट्रिक टन आंका है, जो ब्राजील के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा है। ईवाई की एक रिपोर्ट ने संकेत दिया है कि भारत वैश्विक रेत खनिज भंडार का एक तिहाई से अधिक मेजबान है जिसका उपयोग आरईई की सोर्सिंग के लिए किया जा सकता है।